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कोरोना के चीनी वेरिएंट का खबरों से गुम हो जाना, और चीन की कुटिल चुप्पी!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 13 मई, 2021 03:01 PM
  • 13 मई, 2021 03:01 PM
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अब तक कोरोना संक्रमण से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियों को WHO ने दुनिया के साथ साझा किया है. जिसमें कोरोना के देशवार म्यूटेंट के नाम शामिल हैं. हैरत की बात है कि वो इस महामारी के डेढ़ साल बीत जाने पर भी इसके स्रोत के बारे में कुछ निर्णायक नहीं कह पाया है.

कोरोना महामारी (Covid-19) की वजह से दुनियाभर में लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और एक करोड़ से ज्यादा लोग अभी भी कोरोना संक्रमण से जूझ रहे हैं. दुनिया के कई देशों में कोरोना वायरस (Coronavirus) के कई स्ट्रेन सामने आ चुके हैं, जिनमें से ब्रिटेन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के पाए गए वेरिएंट शामिल हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अब इन स्ट्रेन में भारत में मिले कोरोना वायरस के वेरिएंट बी.1.617 का नाम भी जोड़ दिया है. इन तमाम खबरों के बीच चीनी वेरिएंट की खबरें गायब हो चुकी हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की चर्चाओं में दक्षिण अफ्रीका या ब्राजील या ब्रिटेन में मिले वायरस वेरिएंट की ही बात होती है. लेकिन, चीनी वेरिएंट पर कहीं कोई विश्लेषण या जानकारी ढूंढे नहीं मिलती है.

कोरोना वायरस के बारे में जारी किए जाने वाले अपने साप्ताहिक बुलेटिन में डब्ल्यूएचओ ने बताया कि जीनोम सिक्वेंसिंग से पता चला है, भारत में मिला कोरोना वायरस का डबल म्यूटेंट यानी बी.1.617 दुनिया के 44 देशों में पाया गया है. डब्ल्यूएचओ ने अब तक कोरोना संक्रमण से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियों को दुनिया के साथ साझा किया है. लेकिन, कोविड-19 के सामने आने के करीब डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी कोरोना वायरस के स्त्रोत्र का पता नहीं लगा सका है. वहीं, चीन (China) ने कोरोना के दुनियाभर में फैलने के बाद से ही इस पर 'कुटिल चुप्पी' साध रखी है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर चीन से फैले कोरोना वायरस पर खबरें सामने क्यों नहीं आती हैं? चीन के कोरोना वायरस पर वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों ने कभी इस तरह की टैगिंग क्यों नहीं की?

चीन ने 13 महीनों बाद जनवरी 2021 में WHO के विशेषज्ञों की टीम को चीन आकर कोरोना वायरस के स्त्रोत्र का पता लगाने की अनुमति दी थी.

वैज्ञानिकों और...

कोरोना महामारी (Covid-19) की वजह से दुनियाभर में लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और एक करोड़ से ज्यादा लोग अभी भी कोरोना संक्रमण से जूझ रहे हैं. दुनिया के कई देशों में कोरोना वायरस (Coronavirus) के कई स्ट्रेन सामने आ चुके हैं, जिनमें से ब्रिटेन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के पाए गए वेरिएंट शामिल हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अब इन स्ट्रेन में भारत में मिले कोरोना वायरस के वेरिएंट बी.1.617 का नाम भी जोड़ दिया है. इन तमाम खबरों के बीच चीनी वेरिएंट की खबरें गायब हो चुकी हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की चर्चाओं में दक्षिण अफ्रीका या ब्राजील या ब्रिटेन में मिले वायरस वेरिएंट की ही बात होती है. लेकिन, चीनी वेरिएंट पर कहीं कोई विश्लेषण या जानकारी ढूंढे नहीं मिलती है.

कोरोना वायरस के बारे में जारी किए जाने वाले अपने साप्ताहिक बुलेटिन में डब्ल्यूएचओ ने बताया कि जीनोम सिक्वेंसिंग से पता चला है, भारत में मिला कोरोना वायरस का डबल म्यूटेंट यानी बी.1.617 दुनिया के 44 देशों में पाया गया है. डब्ल्यूएचओ ने अब तक कोरोना संक्रमण से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियों को दुनिया के साथ साझा किया है. लेकिन, कोविड-19 के सामने आने के करीब डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी कोरोना वायरस के स्त्रोत्र का पता नहीं लगा सका है. वहीं, चीन (China) ने कोरोना के दुनियाभर में फैलने के बाद से ही इस पर 'कुटिल चुप्पी' साध रखी है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर चीन से फैले कोरोना वायरस पर खबरें सामने क्यों नहीं आती हैं? चीन के कोरोना वायरस पर वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों ने कभी इस तरह की टैगिंग क्यों नहीं की?

चीन ने 13 महीनों बाद जनवरी 2021 में WHO के विशेषज्ञों की टीम को चीन आकर कोरोना वायरस के स्त्रोत्र का पता लगाने की अनुमति दी थी.

वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों ने 'चीनी वायरस' को 'कोरोना' कहने की करी वकालत

दुनियाभर के वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग ने चीन से दुनियाभर में फैले कोविड-19 को 'चीनी वायरस' की जगह कोरोना वायरस कहने की वकालत की थी. इन लोगों ने दर्जनों की संख्या में लेख लिखते हुए चीन के बचाव की मुद्रा अपनाई हुई थी. अमेरिका के एक बड़े मीडिया हाउस न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख के जरिये इसे कोरोना वायरस कहने की बात कही गई. लेख में कहा गया कि इसकी वजह से अमेरिका में हालात बिगड़ सकते हैं. अमेरिका के लोग अपने आसपास रहने वाले 'एशियन अमेरिकन' लोगों को निशाना बना सकते हैं. लेख में कहा गया कि अमेरिका में एशियन लोग आज भी 'रेसिज्म' का शिकार होते हैं. 'चीनी वायरस' कहने पर यह लोगों के अंदर छिपी नफरत को भड़का देगा. वैज्ञानिकों के कई समूहों ने भी इसे कोरोना वायरस कहने की ही बात कही. इसके पीछे उन्होंने वायरस के 'प्राकृतिक' होने पर वायरस को उसी के नाम से बुलाने को कहा. कई वैज्ञानिकों ने तो इस वायरस के चीन से फैलने की संभावनाओं को ही खारिज कर दिया था.

वायरस फैलने के एक साल बाद दी चीन ने जांच की अनुमति

चीन ने कोरोना वायरस फैलने के बाद से ही इसकी जांच में किसी भी तरह का कोई सहयोग नहीं दिया. चीन ने इसे छुपाने की हर नाकाम कोशिश करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. चीन की एक वेबसाइट साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने खुलासा किया था कि कोरोना वायरस का पहला मामला चीन के हुबेई प्रांत में 17 नवंबर 2019 को ही सामने आ गया था. लेकिन, चीन ने 21 दिन बाद यानी 8 दिसंबर 2019 को कोरोना वायरस के पहले मरीज की पुष्टि की थी. WHO ने कोरोना को 12 मार्च 2020 में महामारी घोषित किया था. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि चीन ने कोरोना वायरस को लेकर किस हद तक जानकारी छुपाने की कोशिश की. वहीं, चीन ने 13 महीनों बाद जनवरी 2021 में WHO के विशेषज्ञों की टीम को चीन आकर कोरोना वायरस के स्त्रोत्र का पता लगाने की अनुमति दी थी. इस टीम को वुहान में जांच के दौरान चीनी अथॉरिटीज के कड़े घेरे में रखा गया था. यहां एक बात गौर करने वाली है कि इतना समय बीत जाने के बाद वायरस के फैलने के निशान मिलना साइंस के हिसाब से नामुमकिन ही है. कोरोना वायरस चीन से दुनिया भर में फैला इसके सबूत मिलने से रहे, डब्ल्यूएचओ केवल जांच करने की ही बात कहता नजर आता है.

वुहान स्थित लैब में लंबे समय से कोविड वायरस पर शोध कर उसके वेरिएंट तैयार किए जा रहे थे.

15 महीनों में कई बार सामने आए चीनी संलिप्तता के दस्तावेज

कोविड-19 महामारी फैलने के बाद बीते 15 महीनों में चीन की कई वेबसाइट समेत दुनिया के अलग-अलग देशों के मीडिया संस्थानों ने कोरोना वायरस को लेकर चीन की संलिप्तता का दावा किया. हाल ही में अमेरिकी विदेश विभाग के हाथ कुछ दस्तावेज लगे थे, जिनमें कोरोना वायरस को 'जैविक हथियारों के नए युग' के तौर पर दर्शाया गया है. वुहान स्थित लैब में लंबे समय से कोविड वायरस पर शोध कर उसके वेरिएंट तैयार किए जा रहे थे. कई खबरें सामने आई थीं कि 2019 में कोरोना संक्रमण का मामला सामने आने से पहले वुहान लैब के कई लोग बीमार पड़े थे. चीन में सरकार का हस्तक्षेप तकरीबन हर जगह पर है, जिसकी वजह से मीडिया में कोरोना वायरस की खबरों के दबाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है. कहना गलत नहीं होगा कि चीनी सरकार इसे एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती है. चीनी सरकार की आलोचना करने के बाद अलीबाबा कंपनी के फाउंडर जैक मा लंबे समय के लिए गायब हो गए थे.

कोरोना वायरस पर शुरुआत से ही रही भ्रम की स्थिति

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, चीन में कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि आठ दिसंबर को की गई थी. वहीं, मेडिकल जर्नल द लांसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वुहान में पहला मामला 1 दिसंबर को सामने आया था. इन रिपोर्टों को आधार माना जाए, तो संभावना इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि कोरोना संक्रमण के मामले लंबे समय से सामने आ रहे थे, लेकिन उन्हें रिपोर्ट करने में चीन ने देरी की. चीन ने शुरुआत में अपने ही स्तर पर स्थितियां संभालने की कोशिश की, लेकिन नाकाम होने पर इसे सामने लाना मजबूरी बन गया. कोविड को लेकर कहा गया कि यह चमगादड़ों से फैली बीमारी है, लेकिन हुबेई प्रांत का तापमान चमगादड़ों के अनुकूल नहीं है. इस प्रांत मे चमगादड़ पाए ही नहीं जाते हैं. दक्षिणी चीन में भारी संख्या में चमगादड़ मिलते हैं, लेकिन 1500 किलोमीटर दूर वुहान में उनका आ पाना हर तरह से नामुमकिन है. इतना समय बीत जाने और तमाम जांच व शोध करने के बाद भी चीनी वैज्ञानिक पता नहीं लगा सके कि कोरोना वायरस फैला कैसे?

कोरोना वायरस से दुनियाभर में अब तक 16 करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं और 33 लाख से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं.

जिस बीमारी पर दुनिया आंसू बहा रही, चीन ने काबू पा लिया

कोरोना वायरस से दुनियाभर में अब तक 16 करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं और 33 लाख से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं. दुनियाभर के देशों में इस वायरस ने कहीं कम, तो कहीं ज्यादा, लेकिन तबाही जरूर मचाई है. वहीं, जिस देश से ये दुनियाभर में फैला यानी चीन में अब तक इसके कुल 90,799 मामले ही सामने आए और 4,636 लोगों की ही मौत हुई है. सर्वाधिक मौतों के मामले में अमेरिका के बाद भारत का नाम है. लेकिन, चीन ने आश्चर्यजनक तरीके से इस वायरस पर काबू पाया हुआ है. कोरोना वायरस से निपटने के लिए चीनी सरकार की तारीफ की जा रही है. जिस शहर वुहान में सबसे पहले ये वायरस फैला था, चीन ने पूरे हुबेई प्रांत को करीब 8 महीने के लिए देश के अन्य हिस्सों से काट दिया था. हुबेई से बाहर कोई नहीं जा सकता था.

चीन ने साध रखी 'कुटिल चुप्पी'

कोरोना वायरस के मामले में दुनिया के कई देश चीन पर इसे फैलाने का आरोप लगाते रहे हैं. डब्ल्यूएचओ ने भी वायरस फैलने की वजह का पता लगाने के लिए चीन में वैज्ञानिकों की टीम भेजने को कहा, लेकिन चीन ने वुहान में किसी को भी घुसने नहीं दिया. साथ ही वायरस फैलाने के सभी आरोपों का खंडन करता रहा. इस दौरान अमेरिका और भारत के साथ उसकी आर्थिक व सैन्य मामलों पर तनानती की खबरें दुनियाभर में छाई रहीं. चीन ने वायरस को लेकर कुछ खास बयान जारी नहीं किये, लेकिन अमेरिका और भारत के खिलाफ चीनी मीडिया लगातार मुखर रहा. जिसकी वजह से धीरे-धीरे ही सही चीनी वायरस की खबरें पीछे छूट गईं. कोरोना वायरस फैलाने की खबरों पर WHO के कई वैज्ञानिकों ने बड़े स्तर पर चीन का बचाव किया था. हालात ये थे कि जापान के उप प्रधानमंत्री ने विश्व स्वास्थ्य संगठन का नाम बदलकर चीनी स्वास्थ्य संगठन करने की बात तक कह दी थी. इन सबके बाद भी चीन ने वायरस को लेकर अपनी जबान नहीं खोली.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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