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Covid-19: संकट काल की राजनीति अलग होनी चाहिये - सवालों के लिए पूरा साल है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 25 मार्च, 2020 06:44 PM
  • 25 मार्च, 2020 06:44 PM
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देश में कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते लॉकडाउन (Corona Virus Lockdown) लागू है, लेकिन विपक्ष की राजनीति (Rahul Gandhi and Randeep Surjewala) वैसे ही चालू है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ उनके हमले रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संपूर्ण लॉकडाउन (Corona Virus Lockdown) की घोषणा तो तब की जब कई राज्य ऐसे उपाय पहले से ही अख्तियार कर चुके थे - खास बात ये है कि ऐसा करने वाले राज्यों में यूपी और उत्तराखंड जैसे बीजेपी शासित राज्य नहीं बल्कि महाराष्ट्र, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों के सीएम भी शामिल हैं.

भारतीय राजनीति की तस्वीर के दूसरे पहलू पर भी सहज तौर पर ध्यान चला जाता है - कांग्रेस नेता राहुल गांधी और उनके करीबी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला (Rahul Gandhi and Randeep Surjewala) तो जैसे हाथ धोकर पीछे पड़े हैं. हाथ धोकर पीछे पड़ना मुहावरा है, लेकिन कोरोना काल में इसे सैनिटाइजर से साफ हाथ भी समझ सकते हैं.

जेल से छूट कर आने के बाद से ही पी. चिदंबरम आर्थिक मुद्दों पर फिर से आक्रामक हो गये थे, हैरानी की बात ये है कि कोरोना संकट के दौरान भी वो किसी न किसी बहाने केंद्र की सरकार (Narendra Modi) को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. वैसे तो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बयान से निराशा मिली है, लेकिन उनकी टिप्पणी पूरी जिम्मेदारी के साथ आयी है.

राजनीति के लिए भी जल्दी टाइम आएगा

संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घर के बाहर एक लक्ष्मण रेखा खींच लेने की सलाह दी थी, लेकिन वो आम लोगों के लिए है. राजनीति में भी ऐसे दौर में कुछ लक्ष्मण रेखा खींची जानी चाहिये - क्योंकि राजनीति का एक बड़ा केंद्र तो सोशल मीडिया भी है. शाहीन बाग मिसाल है, धरना जमीन पर तो खत्म हो गया लेकिन सोशल मीडिया पर चालू है.

विपक्ष, खासकर कांग्रेस नेताओं को तो ट्विटर के लिए भी कोई न कोई आभासी ही सही, लक्ष्मण रेखा खींच ही लेनी चाहिये. आम चुनाव में राहुल गांधी 'चौकीदार चोर है' का नारा लगाते रहे और दिल्ली चुनाव के वक्त 'डंडे मारने' को लेकर अपने भाषण में समझा रहे थे - लेकिन ये चुनाव का वक्त नहीं है. ये देश और समाज के लिए संकटकाल है. पूरी मानवता संकटकाल के दौर से गुजर रही...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संपूर्ण लॉकडाउन (Corona Virus Lockdown) की घोषणा तो तब की जब कई राज्य ऐसे उपाय पहले से ही अख्तियार कर चुके थे - खास बात ये है कि ऐसा करने वाले राज्यों में यूपी और उत्तराखंड जैसे बीजेपी शासित राज्य नहीं बल्कि महाराष्ट्र, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों के सीएम भी शामिल हैं.

भारतीय राजनीति की तस्वीर के दूसरे पहलू पर भी सहज तौर पर ध्यान चला जाता है - कांग्रेस नेता राहुल गांधी और उनके करीबी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला (Rahul Gandhi and Randeep Surjewala) तो जैसे हाथ धोकर पीछे पड़े हैं. हाथ धोकर पीछे पड़ना मुहावरा है, लेकिन कोरोना काल में इसे सैनिटाइजर से साफ हाथ भी समझ सकते हैं.

जेल से छूट कर आने के बाद से ही पी. चिदंबरम आर्थिक मुद्दों पर फिर से आक्रामक हो गये थे, हैरानी की बात ये है कि कोरोना संकट के दौरान भी वो किसी न किसी बहाने केंद्र की सरकार (Narendra Modi) को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. वैसे तो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बयान से निराशा मिली है, लेकिन उनकी टिप्पणी पूरी जिम्मेदारी के साथ आयी है.

राजनीति के लिए भी जल्दी टाइम आएगा

संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घर के बाहर एक लक्ष्मण रेखा खींच लेने की सलाह दी थी, लेकिन वो आम लोगों के लिए है. राजनीति में भी ऐसे दौर में कुछ लक्ष्मण रेखा खींची जानी चाहिये - क्योंकि राजनीति का एक बड़ा केंद्र तो सोशल मीडिया भी है. शाहीन बाग मिसाल है, धरना जमीन पर तो खत्म हो गया लेकिन सोशल मीडिया पर चालू है.

विपक्ष, खासकर कांग्रेस नेताओं को तो ट्विटर के लिए भी कोई न कोई आभासी ही सही, लक्ष्मण रेखा खींच ही लेनी चाहिये. आम चुनाव में राहुल गांधी 'चौकीदार चोर है' का नारा लगाते रहे और दिल्ली चुनाव के वक्त 'डंडे मारने' को लेकर अपने भाषण में समझा रहे थे - लेकिन ये चुनाव का वक्त नहीं है. ये देश और समाज के लिए संकटकाल है. पूरी मानवता संकटकाल के दौर से गुजर रही है.

घर ही नहीं, ट्विटर पर भी एक लक्ष्मण रेखा तो बनती है

हो सकता है राहुल गांधी एक जागरूक विपक्ष की भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे हों. सरकार अगर कुछ गलत करे तो शोर मचाना विपक्ष का धर्म होता है, लेकिन धर्म के पालन में भी एक लक्ष्मण रेखा होती है ताकि किसी तरह के अधर्म से बचा जा सके - लगता है राहुल गांधी अक्सर ये भूल जाते हैं.

अपने नेता के दिखाये रास्ते पर चलते हुए रणदीप सिंह सुरजेवाला ने एक साथ 10-10 ट्वीट किया है. हिंदी और अंग्रेजी दोनों में जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके. एक ट्वीट में सुरजेवाला ये भी पूछते हैं कि आइसोलेशन बेड और वेंटिलेटर कितने हैं और कहां कहां हैं? हद है, जानना इतना ही जरूरी है तो RTI के तहत एक आवेदन डाल देते - सब कुछ ट्विटर पर ही क्यों चाहिये? और वो भी अभी के अभी. दिल्ली के चुनावों में ऐसे सवाल खूब पूछे जाते रहे - लेकिन अभी तो वहां भी कोई नहीं पूछ रहा है.

रणदीप सुरजेवाला ने ट्विटर पर सरकार से सवालों की झड़ी लगा दी है. साथ में कुछ मांगें भी हैं जिनसे कांग्रेस का प्रचार भी हो जाये. एक बार ऐसे कुछ सवालों और मांगों पर जरा गौर कीजिये, इरादे साफ साफ नजर आएंगे.

1. देश के डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए पूरे देश ने ताली और थाली तो बजाई पर वो पूछ रहे हैं कि देश के रखवालों की रखवाली कब होगी?

2. देश के डॉक्टर, नर्स व स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा से किये गये आपराधिक खिलवाड़ की सजा कब और किसे देंगे, कृपया जबाब दें.

3. आज सर्वाधिक जरूरत राहुल जी और कांग्रेस द्वारा सुझाई गई 'न्यूनतम आय योजना' को तत्काल लागू करना वक्त की माग है.

4. हर जन-धन खाते, PM किसान खाते और पेंशन खाते में ₹ 7,500 तुरंकत जमा करवायें ताकि गरीब इन 21 दिनों में दो जून की रोटी खा सके.

राहुल गांधी सवाल तो विपक्ष के नेता की तरह पूछते हैं, लेकिन कोरोना से लड़ाई में उनका योगदान सिर्फ वायनाड तक सीमित रह जाता है. राहुल गांधी फिलहाल केरल के वायनाड से सांसद हैं - और अपने इलाके के लोगों की कोरोना जांच को आसान बनाने के लिए मदद पेश की है. राहुल गांधी ने वायनाड में 50 थर्मल स्कैनर भिजवाया है ताकि कोविड-19 के लक्षणों की आसानी से जांच में मदद मिल सके - 30 स्कैनर वायनाड और 10 स्कैनर कोझिकोड और मलप्पुरम में बांटे गये हैं. साथ ही राहुल गांधी की तरफ से हैंडवॉश, सैनिटाइजर और मास्क भी उपलब्ध कराये गये हैं. यथाशक्ति मदद काफी है, लेकिन ये काम कांग्रेस पार्टी की तरफ से पूरे देश के लिए किया गया होता तो लोगों की धारणा थोड़ी बदल सकती थी.

विरोधी दलों के मुख्यमंत्री भी मोदी सरकार के साथ

विरोधी दलों के मुख्यमंत्री हर बात पर मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक बने रहते हैं - और हमले का कोई भी मौका नहीं छोड़ते, लेकिन अभी कोई ऐसा कुछ नहीं कर रहा है.

1. अरविंद केजरीवाल: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जब से कुर्सी पर बैठे शायद ही कोई मौका बचा हो जब वो उप राज्यपाल से लड़ते नजर न आये हों. अभी देखिये केजरीवाल दिल्ली कके एलजी अनिल बैजल के साथ बैठ कर प्रेस कांफ्रेंस कर रहे हैं और बार बार ये संदेश देते लगते हैं जैसे सब मिल जुल कर काम कर रहे हैं. चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ मिल कर दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने की बात बार बार दोहराने वाले केजरीवाल दिल्ली दंगों के दौरान भी राजनीति से नहीं चूके. अभी तो ऐसा लग रहा है जैसे कोई भूल सुधार मुहिम चला रहे हों. राजनीति में वैसे तो प्रायश्चित के तरीके कम ही अपनाये जाते हैं.

वो प्रधानमंत्री का जिक्र भी करते हैं तो ऐसा नहीं लगता जैसे राजनीतिक बयान दे रहे हों, 'प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के बाद हमने कल देखा कि लोग जरूरी सामानों की दुकानों के बाहर लाइन लगा कर खड़े हो गए... मैं दोबारा लोगों से अपील करता हूं कि घबराकर खरीदारी मत कीजिए. मैं सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि जरूरी सामान की कोई किल्लत नहीं होगी.'

2. कैप्टन अमरिंदर सिंह: पाकिस्तान और देश हित के मुद्दों पर अक्सर मोदी सरकार के साथ नजर आने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से थोड़े खफा नजर आते तो हैं, लेकिन हदों का भी पूरा ख्याल रखते हैं. कैप्टन अमरिंदर का कहना है कि गरीबों खासकर गैर संगठित मजदूरों की दुर्दशा पर कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिस पर सभी राज्य चिंता जाहिर करते हुए दबाव बना रहे थे.

कैप्टन अमरिंदर ने उम्मीद जतायी है कि केंद्र सरकार की मांग पर पंजाब सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को जो जरूरी सुझाव भेजे गये हैं उन पर विचार किया जाएगा.

3. उद्धव ठाकरे: केरल की तरह महाराष्ट्र में भी कोरोना वायरस का खासा असर हुआ है. महाराष्ट्र सरकार ने भी कर्फ्यू और बाकी जरूरी उपाय कर रखा है - और कोरोना को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फोन पर बात भी कर चुके हैं.

हाल फिलहाल देखा गया कि नागरिकता संशोधन कानून से लेकर तमाम मुद्दों पर उद्धव ठाकरे लगातार मोदी-शाह के खिलाफ आक्रामक बने रहे, लेकिन कोरोना से आये संकट के समय वे काम कर रहे हैं जो देश और समाज के लिए जरूरी है. ध्यान रहे, राहुल गांधी और सुरजेवाला की पार्टी कांग्रेस भी महाराष्ट्र सरकार का हिस्सा है.

3. हेमंत सोरेन: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कोरोना के खिलाफ जंग में काफी सख्ती से पेश आ रहे हैं. ये सोरेन की सख्ती की हिदायत ही रही कि पाकुड़िया की पुलिस ने सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हारून रशीद की सरेआम पिटाई कर दी - और उसके बाद सरकारी काम में बाधा डालने के इल्जाम में हवालात में भी डाल दिया. महाराष्ट्र की तरह झारखंड में भी कांग्रेस सत्ता में साझीदार है.

4. ममता बनर्जी: ममता बनर्जी तो मोदी-शाह से इस कदर गुस्से में रहती हैं कि सेना के मॉक ड्रिल के वक्त विधानसभा में ही रात भर खुद भी रह जाती हैं और साथी नेताओं-अधिकारियों को भी बिठाये रखती हैं, लेकिन कोरोना संकट में नियमों को मानने के लिए सख्त कदम उठा रही हैं.

5. चंद्रशेखर राव: तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव तो कुछ ज्यादा ही सख्ती से पेश आ रहे हैं. साफ साफ कह दिया है कि अगर लोग लॉकडाउन के दौरान घरों से बाहर निकले तो उनके पास देखते ही गोली मारने का आदेश देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा.

तेलंगाना के लोग भी कम उत्पात नहीं मचा रहे हैं - एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें रंगारेड्डी जिले में दो लोग मिल होम गार्ड के जवान पर बरस पड़े हैं. ड्यूटी पर तैनात होम गार्ड दोनो को हैदराबाद में घुसने से रोक रहा था. दोनों के खिलाफ आईपीसी की धारा 188 के तहत कार्रवाई की गयी है.

एक तरफ विरोधी दलों के मुख्यमंत्री जहां प्रधानमंत्री मोदी के साथ कदम से कदम मिला कर चलते नजर आ रहे हैं, तो बीजेपी सरकार के यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को लगता है कोई परवाह ही नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी हाल फिलहाल प्रधानमंत्री आवास 7, लोक कल्याण मार्ग से ही सारे काम निबटा रहे हैं - यहां तक की कैबिनेट की मीटिंग में भी सोशल डिस्टैंसिंग का पूरा ख्याल रखा जा रहा है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सरकारी फरमान तो एनकाउंटर वाले अंदाज में ही जारी कर रहे हैं, लेकिन खुद के मामले में प्रधानमंत्री मोदी की सलाह की भी परवाह नहीं करते.

क्या योगी आदित्यनाथ को सोशल डिस्टैंसिंग की परवाह नहीं है?

योगी आदित्यनाथ की ही तरह बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा भी सोशल मीडिया पर निशाने पर हैं - संबित पात्रा ने ये कह कर मुसीबत मोल ली कि चाहे कुछ भी हो वो घर से बाहर तो नहीं ही निकलने वाले हैं.

संबित पात्रा ये भूल गये कि राजनीति में आने से पहले वो मेडिकल प्रोफेशनल रहे हैं - वो भी सर्जन. ऐसे मुश्किल दौर में डॉक्टरों की सबसे ज्यादा जरूरत है. जब प्रधानमंत्री ऐसे लोगों के सम्मान में ताली और थाली बजाने की बात कर रहे हैं तो संबित पात्रा अपनी पहली ड्यूटी ही भूल जा रहे हैं. वैसे कुछ लोगों ने संबित पात्रा को ड्यूटी याद दिलायी जरूर है.

राहुल गांधी बारहों महीने सवाल पूछते रहते हैं, लेकिन ये संकटकाल राजनीतिक भेदभाव भूल कर लोगों के बारे में सोचने का है - लोग बचेंगे तभी वोट भी मिलेगा, टीम राहुल गांधी को ये नहीं भूलना चाहिये. जब 1984 के दंगों को लेकर हुआ तो हुआ की अवधारणा स्थापित की जा सकती है, तो देर से लॉकडाउन तो उसके आगे बहुत ही छोटी बात है - सड़कों पर लिखा हुआ पढ़े तो वो भी होंगे - दुर्घटना से देर भली.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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