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मीरा कुमार और उनसे जुड़े विवाद जो उनके राष्ट्रपति पद की जड़ काट सकते हैं

    • कुमार शक्ति शेखर
    • Updated: 25 जून, 2017 12:50 PM
  • 25 जून, 2017 12:50 PM
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दलित होने के अलावा रामनाथ कोविंद और मीरा कुमार के बीच कुछ और बात भी बातें हैं जो मिलती हैं. उनमें से एक है दोनों ही राष्ट्रपति उम्मीदवारों का विवादों से नाता.

भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करके विपक्ष को सन्न कर दिया था. लेकिन कांग्रेस और अन्य 16 अन्य पार्टियों ने लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार के नाम की घोषणा करके इसे दलित बनाम दलित चुनाव बना दिया है. दलित होने के अलावा रामनाथ कोविंद और मीरा कुमार के बीच कुछ और बात भी बातें हैं जो मिलती हैं. उनमें से एक है दोनों ही राष्ट्रपति उम्मीदवारों का विवादों से नाता.

रामनाथ कोविंद और मीरा कुमार दोनों ने कानून की पढ़ाई की है. एक तरफ जहां मीरा कुमार ने लॉ की प्रैक्टिस की वहीं कोविंद ने सिविल की परीक्षा पास करके एलाईड सर्विसेज में ज्वाइन करने से मना कर दिया. वहीं मीरा कुमार आईएफएस थी और कई पदों पर उन्होंने काम किया है. दोनों ही राजनेता हैं लेकिन अपने प्रतिद्वंदी रामनाथ कोवंद के मुकाबले मीरा कुमार का राजनीतिक करियर ज्यादा शानदार रहा है. कोविंद दो बार उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद रह चुके हैं, साथ ही भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा का वो नेतृत्व भी कर रहे थे. इसके अलावा वो पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी थे.

मीरा कुमार उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार से पांच बार लोकसभा का चुनाव जीत चुकी हैं. इसके साथ ही लोकसभा अध्यक्ष बनने से पहले वो केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भी रही थीं. हालांकि, मीरा कुमार का राजनीतिक जीवन, रामनाथ कोविंद की अपेक्षा कहीं अधिक विवादास्पद रहा है. और यही विवाद अब उन्हें परेशान करने के लिए आए हैं.

मीरा कुमार

मीरा कुमार का राजनीतिक जीवन, रामनाथ कोविंद की अपेक्षा ज्यादा विवादास्पद

बंगला आवंटन

लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष के दिल्ली के लुटियंस जोन स्थित बंगलों के आवंटन को लेकर विवादों में रही हैं और...

भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करके विपक्ष को सन्न कर दिया था. लेकिन कांग्रेस और अन्य 16 अन्य पार्टियों ने लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार के नाम की घोषणा करके इसे दलित बनाम दलित चुनाव बना दिया है. दलित होने के अलावा रामनाथ कोविंद और मीरा कुमार के बीच कुछ और बात भी बातें हैं जो मिलती हैं. उनमें से एक है दोनों ही राष्ट्रपति उम्मीदवारों का विवादों से नाता.

रामनाथ कोविंद और मीरा कुमार दोनों ने कानून की पढ़ाई की है. एक तरफ जहां मीरा कुमार ने लॉ की प्रैक्टिस की वहीं कोविंद ने सिविल की परीक्षा पास करके एलाईड सर्विसेज में ज्वाइन करने से मना कर दिया. वहीं मीरा कुमार आईएफएस थी और कई पदों पर उन्होंने काम किया है. दोनों ही राजनेता हैं लेकिन अपने प्रतिद्वंदी रामनाथ कोवंद के मुकाबले मीरा कुमार का राजनीतिक करियर ज्यादा शानदार रहा है. कोविंद दो बार उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद रह चुके हैं, साथ ही भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा का वो नेतृत्व भी कर रहे थे. इसके अलावा वो पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी थे.

मीरा कुमार उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार से पांच बार लोकसभा का चुनाव जीत चुकी हैं. इसके साथ ही लोकसभा अध्यक्ष बनने से पहले वो केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भी रही थीं. हालांकि, मीरा कुमार का राजनीतिक जीवन, रामनाथ कोविंद की अपेक्षा कहीं अधिक विवादास्पद रहा है. और यही विवाद अब उन्हें परेशान करने के लिए आए हैं.

मीरा कुमार

मीरा कुमार का राजनीतिक जीवन, रामनाथ कोविंद की अपेक्षा ज्यादा विवादास्पद

बंगला आवंटन

लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष के दिल्ली के लुटियंस जोन स्थित बंगलों के आवंटन को लेकर विवादों में रही हैं और ये मुद्दा आगे भी उनको परेशानी में डाल सकता है. जब मीरा कुमार लोकसभा की स्पीकर के पद पर थी तब कथित तौर पर उन्होंने अपने रसूख का इस्तेमाल कर 6, कृष्ण मेनन मार्ग पर मिले बंगले को न सिर्फ उन्होंने 25 सालों यानी 2038 तक के लिए आवंटित करा लिया बल्कि उसे बाबू जगजीवन राम नेशनल फाउंडेशन के रूप में बदल दिया.

मीरा कुमार पूर्व उप प्रधान मंत्री और स्वतंत्रता सेनानी बाबू जगजीवन राम की बेटी हैं. 6, कृष्ण मेनन मार्ग स्थित ये बंगला बाबू जगजीवन राम को आवंटित हुआ था और मीरा कुमार 2002 तक इस बंगले में रहीं थी. जगजीवन अपने 1986 तक इसी बंगले में रहे थे. एक समय में मीरा कुमार के पास दो बंगले थे- एक 6, कृष्ण मेनन मार्ग और दूसरा, 20, अकबर रोड पर. 20 अकबर रोड का बंगला उन्हें स्पीकर होने के नाते आवंटित किया गया था.

आरटीआई के जवाब के मुताबिक, सरकार ने कृष्णा मेनन मार्ग स्थित बंगले पर 1.98 करोड़ रुपये का किराया बिल लगाया था. हालांकि, मीरा कुमार पर आरोप लगाया जाता है कि जब वह स्पीकर थी तब उन्होंने इस किराए को माफ करा लिया था.

आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने सरकार से जानकारी मांगी थी. इस बारे में इंडिया टुडे से बात करते हुए उन्होंने बताया कि- एस्टेट्स निदेशालय से जवाब मिलने के बाद सीआईसी ने रिकार्ड पर बिना किसी अनुरोध के 1.98 करोड़ रुपये का किराया बिल रद्द कर दिया था.

लोकसभा के टीवी सीईओ राजीव मिश्रा की बर्खास्तगी

एक प्रमुख विवादास्पद फैसले में मीरा कुमार ने लोकसभा अध्यक्ष पद पर रहने के दौरान लोकसभा टीवी के सीईओ राजीव मिश्रा को बर्खास्त कर दिया था. हालांकि 26 मई 2014 को मोदी सरकार ने शपथ ली थी, लेकिन 30 मई की दोपहर तक मीरा कुमार लोकसभा की कार्यवाहक अध्यक्ष थीं. 30 मई की दोपहर कमल नाथ को प्रो टेम स्पीकर नियुक्त किया गया था.

मीरा कुमार ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन, लोकसभा सचिवालय ने एक अधिसूचना जारी करते हुए कहा था कि- 'लोकसभा अध्यक्ष राजीव मिश्रा का कार्यकाल 31 मई तक के लिए सीमित करती हैं.'

मिश्रा का दावा था कि- 'उन्हें इसलिए हटा दिया गया क्योंकि मीरा कुमार लोकसभा टीवी से परेशान थीं. लोकसभा टीवी ने मीरा कुमार 2014 के आम चुनावों में सासारम लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से मीरा कुमार के अपने प्रतिद्वंदी से पीछे चलने और बाद में हारने की खबर चला दी थी. हालांकि सभी निजी चैनल इस खबर को चला रहे थे.'

यही नहीं वो 20 मी को लोकसभा टीवी द्वारा भाजपा संसदीय दल की संसद के केंद्रीय हॉल के अंदर रहने का प्रसारण करने पर भी कथित तौर पर गुस्सा थीं. इसी समय नरेंद्र मोदी को भाजपा ने अपना नेता चुना था.

सुभाष चंद्र अग्रवाल ने दावा किया कि- 'मिश्रा का वेतन 31 मई तक उनके बैंक खाते में जमा हुआ था. लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों के खिलाफ और अनैतिक तरीके से मीरा कुमार ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए भारतीय स्टेट बैंक पर दबाव डाला और मिश्रा की सैलेरी को बिना उनकी अनुमति के वापस करा दिया. उन्होंने मिश्रा से बदला चुकाया था.'

तेलंगाना विधेयक के विधेयक के दौरान लोकसभा टीवी से बाहर का सामना करना

19 फरवरी, 2014 को लोअर हाउस में तेलंगाना विधेयक की चर्चा के दौरान लोकसभा टीवी की कार्यवाही के लाइव प्रसारण का ब्लैकआउट कराने को लेकर बड़े पैमाने पर विवाद हुआ था. तब मीरा कुमार स्पीकर थी और लोकसभा टीवी उनके नियंत्रण में था. हालांकि लोकसभा सचिवालय ने दावा किया था कि यह एक 'तकनीकी गड़बड़ी' है. लोकसभा में विपक्ष की नेता और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इसे 'टैक्टिकल ग्लिच' कहा था. वहीं राज्यसभा में विपक्ष के नेता और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसकी तुलना 'आपातकाल के दिनों' से की थी.

राम नाथ कोविंद

रामनाथ कोविंद पर केवल दो मामलेसिर्फ दो ही ऐसे विवादित मामले हैं जिसमें एनडीए के उम्मीदवार का नाम सामने आया है-

बंगारू लक्ष्मण का बचाव

2012 में रामनाथ कोविंद ने भाजपा के पूर्व अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण का साथ दिया था. बंगारू लक्ष्मण को तहलका स्टिंग के मामले में बाद में दोषी ठहराया गया था. लेकिन वहीं कोविंद ने अपनी गवाही में कहा था कि वो 20 साल से लक्ष्मण को जानते हैं वो एक सरल और ईमानदार व्यक्ति हैं. उन्होंने गवाही में ये भी कहा था कि वो स्टिंग ऑपरेशन के बाद भी लक्ष्मण से मिले थे. लक्ष्मण ने उन्हें बताया था कि इस मामले में उन्हें फंसाया गया है.

दलित मुसलमानों और दलित ईसाईयों के लिए आरक्षण का विरोध करना

माना जाता है कि रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट के अनुसार कोविंद ने मुसलमानों और ईसाइयों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा देने का विरोध किया था. भाजपा प्रवक्ता के रूप में उन्होंने कहा था कि अगर दलित मुस्लिम और दलित ईसाई को एससी श्रेणी में शामिल किया गया तो वे इस समुदाय के लिए आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने का हकदार होंगे. इसके अलावा, वे एससी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित नौकरियों को भी खाएंगे.

उन्होंने अपने बयान में तर्क दिया था कि बीआर अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और सी राजगोपालाचारी जैसे लोग भी संविधान के निर्माता भी इस मांग का विरोध करते थे. यह पूछे जाने पर कि अगर सिख दलितों को एससी का दर्जा दिया जा सकता है तो मुस्लिम और ईसाईयों को क्यों नहीं? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि ये दो धर्म भारत में उत्पन्न नहीं हुए हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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