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पंजाब में राहुल गांधी का कथित 'बायकॉट' होने की कहानी कहां तक पहुंची?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 28 जनवरी, 2022 02:39 PM
  • 28 जनवरी, 2022 02:39 PM
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यूपी और उत्तराखंड की तरह ही पंजाब में भी कांग्रेस के लिए स्थिति जटिल है. पंजाब में कांग्रेस बंटी हुई नजर आ रही है और पार्टी के लोग मुखर होकर राहुल गांधी की आलोचना में जुट गए हैं. हालात कैसे हैं? इसका अंदाजा उन 5 सांसदों को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है जिन्होंने पंजाब में राहुल के दौरे का बायकॉट किया है.

5 राज्यों में चुनाव हैं. नजर उत्तर प्रदेश के बाद पंजाब पर इसलिए भी है क्योंकि पंजाब और उत्तर प्रदेश ही इस बात का निर्धारण करेंगे कि 2024 में ऊंट किस करवट बैठेगा. एक ऐसे समय में जब सपा बसपा भाजपा और अन्य चुनाव के लिए रणनीतियां बना रहे हों टिकटों का बंटवारा कर रहे हों चुनावी रण जीतने के लिए गुणा गणित लगा रहे हों कांग्रेस का हाल बेहाल है. यूपी में जहां बड़ा ओबीसी चेहरा आरपीएन सिंह और उत्तराखंड से किशोर उपाध्यक्ष भाजपा में चले गए हैं. पंजाब में भी स्थिति जटिल है. जहां पर कांग्रेस बंटी हुई है और पार्टी के लोग मुखर होकर राहुल गांधी की आलोचना में जुट गए हैं. हालात कैसे हैं? इसका अंदाजा उन 5 सांसदों को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है जिन्होंने पंजाब में राहुल के दौरे का बायकॉट किया है. ध्यान रहे कि मनीष तिवारी, रवनीत बिट्टू, जसबीर डिम्पा, मोहम्मद सिद्दीकी और परनीक कौर का शुमार उन लोगों में है जिन्होंने मुखर होकर राहुल गांधी के खिलाफ बिगुल फूंका है. बताते चलें कि परनीत कौर सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी हैं जो कांग्रेस पार्टी की नीतियों के खिलाफ हैं.

परनीत का मानना है कि कांग्रेस की नीतियों के चलते ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस को अलविदा कह और पंजाब लोक कांग्रेस के नाम से नई पार्टी का गठन किया है. ज्ञात हो कि कैप्टन भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं.

पंजाब में रूठों को मनाना कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है

वहीं पंजाब में राहुल गांधी के बायकॉट पर जैसा कांग्रेस पार्टी का रवैया है, प्रयास यही है कि कुछ भी कर के पूरे मामले पर पर्दा डाल दिया जाए. पार्टी के सांसद जसबीर सिंह गिल ने ट्वीट कर कहा कि इस इवेंट में सिर्फ 117 कांग्रेस प्रत्याशियों को ही बुलाया गया था. सांसदों...

5 राज्यों में चुनाव हैं. नजर उत्तर प्रदेश के बाद पंजाब पर इसलिए भी है क्योंकि पंजाब और उत्तर प्रदेश ही इस बात का निर्धारण करेंगे कि 2024 में ऊंट किस करवट बैठेगा. एक ऐसे समय में जब सपा बसपा भाजपा और अन्य चुनाव के लिए रणनीतियां बना रहे हों टिकटों का बंटवारा कर रहे हों चुनावी रण जीतने के लिए गुणा गणित लगा रहे हों कांग्रेस का हाल बेहाल है. यूपी में जहां बड़ा ओबीसी चेहरा आरपीएन सिंह और उत्तराखंड से किशोर उपाध्यक्ष भाजपा में चले गए हैं. पंजाब में भी स्थिति जटिल है. जहां पर कांग्रेस बंटी हुई है और पार्टी के लोग मुखर होकर राहुल गांधी की आलोचना में जुट गए हैं. हालात कैसे हैं? इसका अंदाजा उन 5 सांसदों को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है जिन्होंने पंजाब में राहुल के दौरे का बायकॉट किया है. ध्यान रहे कि मनीष तिवारी, रवनीत बिट्टू, जसबीर डिम्पा, मोहम्मद सिद्दीकी और परनीक कौर का शुमार उन लोगों में है जिन्होंने मुखर होकर राहुल गांधी के खिलाफ बिगुल फूंका है. बताते चलें कि परनीत कौर सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी हैं जो कांग्रेस पार्टी की नीतियों के खिलाफ हैं.

परनीत का मानना है कि कांग्रेस की नीतियों के चलते ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस को अलविदा कह और पंजाब लोक कांग्रेस के नाम से नई पार्टी का गठन किया है. ज्ञात हो कि कैप्टन भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं.

पंजाब में रूठों को मनाना कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है

वहीं पंजाब में राहुल गांधी के बायकॉट पर जैसा कांग्रेस पार्टी का रवैया है, प्रयास यही है कि कुछ भी कर के पूरे मामले पर पर्दा डाल दिया जाए. पार्टी के सांसद जसबीर सिंह गिल ने ट्वीट कर कहा कि इस इवेंट में सिर्फ 117 कांग्रेस प्रत्याशियों को ही बुलाया गया था. सांसदों को आमंत्रण ही नहीं था. इसलिए बायकॉट जैसी कोई बात ही नहीं है.

इस ट्वीट से पहले भी गिल ने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने इस बात का जिक्र किया था कि एक निजी काम के चलते मैं अमृतसर के कार्यक्रम में नहीं पहुंच सका. इस संबंध में मैंने लीडरशिप को जानकारी दे दी है. कृपया कोई अनुमान न लगाएं.

गौरतलब है कि अब जबकि चुनाव में कुछ दिन ही शेष हैं, राहुल गांधी पंजाब के प्रति गंभीर हुए हैं और मिशन पंजाब की शुरुआत की है. वोटर्स को रिझाया जा सके इसके लिए राहुल स्पेशल फ्लाइट से अमृतसर पहुंचे जहां सीरम चरणजीत चन्नी और पंजाब कांग्रेस चीफ नवजोत सिद्धू की अगुवाई में कांग्रेस नेताओं ने उनका स्वागत किया.

बाद मे राहुल श्री दरबार साहिब पहुंचे, जहां उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवारों के साथ माथा टेकने के बाद लंगर खाया. वोटर्स का ध्यान आकर्षित हो इसलिए राहुल ने हर वो जतन किया जिसके दम पर वोट्स उनकी झोली में आएं. दरबार साहिब के बाद राहुल जलियांवाला बाग देखने गए जहां उन्होंने शहीदों को श्रद्धांजलि दी. हिंदू और दलित वोट मुट्ठी में रहें इसलिए राहुल श्री दुर्ग्याणा मंदिर और भगवान वाल्मीकि तीर्थ के दर्शन किये.

भले ही राहुल ने पंजाब में अपने मिशन को 'पंजाब फतेह' का नाम दिया हो लेकिन वहां पार्टी में असंतोष क्यों है? क्यों पार्टी में राहुल का इस तरह विरोध हो रहा है इसकी एक बड़ी वजह टिकटों के बंटवारे को माना जा रहा है. ज्ञात रहे पंजाब विधानसभा चुनावों के तहत 23 उम्मीदवारों की अपनी दूसरी लिस्ट कांग्रेस ने जारी की है. इस लिस्ट में कई दावेदारों ने टिकट नहीं मिलने पर असंतोष जाहिर किया है.

बात इन असंतोषी नेताओं की हो तो चाहे वो पूर्व मंत्री जगमोहन सिंह कांग, दमन बाजवा, सतविंदर बिट्टी और मौजूदा विधायक अमरीक सिंह ढिल्लों भी शामिल हैं. इसी क्रम में खरड़ से पार्टी का टिकट मांग रहे जगमोहन सिंह कांग ने मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी पर बहुत गंभीर आरोप लगाए हैं. कांग का आरोप है कि चन्नी शराब माफियाओं को खुला समर्थन दे रहे हैं और चाहते हैं कि टिकट इन्हीं लोगों को मिले.

पंजाब क्यों कांग्रेस के लिए जरूरी है? इसकी एक बड़ी वजह कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए उस वैक्यूम को भरना है जो कैप्टन अमरिंदर सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद खाली हुआ है. बात मौजूदा वक़्त की हो तो जिस तरह का गतिरोध चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू में है. प्रयास यही है कि गतिरोध पर पर्दा ढंककर सत्ता को बचाया जा सके. 

अच्छा बात चूंकि 5 सांसदों के विरोध की हुई है तो पंजाब में नेतागण राहुल से उस वक़्त नाराज हुए जब मोगा की रैली को दरकिनार कर वो छुट्टी मनाने विदेश निकल गए थे. तब ही मान लिया गया था कि चुनाव से पहले राहुल की इस नासमझी का खामियाजा पार्टी को चुनाव से पहले प्रचार के वक़्त भुगतना पड़ेगा. 

जैसा कि हम बता चुके हैं पंजाब का रण जीतना कांग्रेस के लिए अहम् है लेकिन जिस तरह एक के बाद एक गतिरोध दिखाई दे रहा है साफ़ जाहिर हो रहा है कि मुश्किलें शायद ही ख़त्म हों.वहीं पूरे देश की नजर परनीत कौर और मनीष तिवारी कोई चुप्पी पर है. बात चूंकि राहुल गांधी की हुई है तो हम बस ये कहकर अपनी बात को विराम देंगे की अब वक़्त आ गया है जब अपनी नीतियों का अवलोकन राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को करना चाहिए और कुछ ऐसे निष्कर्ष निकालने चाहिए जो न केवल पार्टी की इज्जत को बल्कि स्वयं पार्टी को बचाए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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