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हम अमर जवान ज्योति का चिराग़ हैं, गर्व की अनुभूति के लिए प्रमाण नहीं चाहिए!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 27 जनवरी, 2022 03:10 PM
  • 27 जनवरी, 2022 03:10 PM
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देश के जांबाज़ों की यादों की अमर ज्योति हमारे दिल-ओ-दिमाग़ों में रोशन थी, रौशन हैं और रोशन रहेगी. क्यों न रहे, हमारा वजूद ही इनसें है. क्योंकि हम इस ज्योति के चिराग हैं. साइंस, सहाफत और सेना.. का गौरवशाली इतिहास हमारी खानदानी विरासत से जगमगाया है. हमें गर्व की अनुभूति के लिए प्रमाण नहीं चाहिए.

देश के जांबाज़ों की यादों की अमर ज्योति हमारे दिल-ओ-दिमाग़ों में रोशन थी, रौशन हैं और रोशन रहेगी. क्यों न रहे, हमारा वजूद ही इनसें है. क्योंकि हम इस ज्योति के चिराग हैं. साइंस, सहाफत और सेना.. का गौरवशाली इतिहास हमारी खानदानी विरासत से जगमगाया है. गर्व की अनुभूति के लिए प्रमाण नहीं चाहिए होते, पर कभी कभी हमें 70-80 बरस पुराने कागजों में जब अपनी बेशकीमती जायदादों के टुकड़े दिख जाते हैं तो उन्हें शेयर करने के लिए हमारे अंदर का सहाफी हमें प्रेरित करता है. बुजुर्गों से सुनें वो किस्से कानों में गूंजते और और नजरों के सामने नजर आते हैं जब हमारे घर में लम्बे़ अरसे तक कोहराम बरपा रहा. हमारे बड़े चचा अमारत शिकोह के भाई छोटे थे और उनपर घर की जिम्मेदारियां थी. बावजूद इसके देश के लिए उन्होंने अपनी जिन्दगी दांव पर लगा दी थी. नेता जी सुभाषचन्द्र बोस के राइट हैंड अमानत शिकोह आजाद हिंद फौज के उन जांबाज सिपाहियों में थे जो लम्बे अर्से तक युद्धबंदी रहे. घर वालों को नहीं पता चला कि वो कहां हैं, जीवित हैं या नहीं ! इस पीड़ा की एक लम्बी कहानी है.

इंसानी फितरत है, खुशी के अहसास में ग़म के फसाने याद आते हैं. नेता जी सुभाषचन्द्र बोस जयंती से गणतंत्र दिवस के दो दिनों के दौरान बंटवारे के दर्द का अहसास हुआ और सोचा कि वो कौन लोग थे जो पाकिस्तान चले गए थे. फिर खुद ही के सवाल का ख़ुद ही जवाब दिया कि हम लोग कुम्हार हैं. जिसे हमने बनाया वो हम कैसे छोड़ते?

आज़ाद हिंद फ़ौज कैसे एक परिवार के गर्व का पर्याय है उसे बताता एक आई कार्ड

हमने जिस मिट्टी को आकार,मजबूती, रंग और खूबसूरती दी है उसी में जीना हैं और उस ही मिट्टी में मिल जाने को हम खुशनसीबी समझेंगे. मट्टी का बर्तन बनाने वाले चीनी के बर्तन में खाना नहीं खा सकते. इतिहास तटस्थ होता है, उसे कहीं...

देश के जांबाज़ों की यादों की अमर ज्योति हमारे दिल-ओ-दिमाग़ों में रोशन थी, रौशन हैं और रोशन रहेगी. क्यों न रहे, हमारा वजूद ही इनसें है. क्योंकि हम इस ज्योति के चिराग हैं. साइंस, सहाफत और सेना.. का गौरवशाली इतिहास हमारी खानदानी विरासत से जगमगाया है. गर्व की अनुभूति के लिए प्रमाण नहीं चाहिए होते, पर कभी कभी हमें 70-80 बरस पुराने कागजों में जब अपनी बेशकीमती जायदादों के टुकड़े दिख जाते हैं तो उन्हें शेयर करने के लिए हमारे अंदर का सहाफी हमें प्रेरित करता है. बुजुर्गों से सुनें वो किस्से कानों में गूंजते और और नजरों के सामने नजर आते हैं जब हमारे घर में लम्बे़ अरसे तक कोहराम बरपा रहा. हमारे बड़े चचा अमारत शिकोह के भाई छोटे थे और उनपर घर की जिम्मेदारियां थी. बावजूद इसके देश के लिए उन्होंने अपनी जिन्दगी दांव पर लगा दी थी. नेता जी सुभाषचन्द्र बोस के राइट हैंड अमानत शिकोह आजाद हिंद फौज के उन जांबाज सिपाहियों में थे जो लम्बे अर्से तक युद्धबंदी रहे. घर वालों को नहीं पता चला कि वो कहां हैं, जीवित हैं या नहीं ! इस पीड़ा की एक लम्बी कहानी है.

इंसानी फितरत है, खुशी के अहसास में ग़म के फसाने याद आते हैं. नेता जी सुभाषचन्द्र बोस जयंती से गणतंत्र दिवस के दो दिनों के दौरान बंटवारे के दर्द का अहसास हुआ और सोचा कि वो कौन लोग थे जो पाकिस्तान चले गए थे. फिर खुद ही के सवाल का ख़ुद ही जवाब दिया कि हम लोग कुम्हार हैं. जिसे हमने बनाया वो हम कैसे छोड़ते?

आज़ाद हिंद फ़ौज कैसे एक परिवार के गर्व का पर्याय है उसे बताता एक आई कार्ड

हमने जिस मिट्टी को आकार,मजबूती, रंग और खूबसूरती दी है उसी में जीना हैं और उस ही मिट्टी में मिल जाने को हम खुशनसीबी समझेंगे. मट्टी का बर्तन बनाने वाले चीनी के बर्तन में खाना नहीं खा सकते. इतिहास तटस्थ होता है, उसे कहीं शिफ्ट नहीं किया जा सकता. हमारे अंदर अमर जांबाज़ों की यादों,जज्बातों और एहसासों की ज्योति जल रही है. या यूं कहिए कि हम उस मशाल का ही चिराग हैं.

लम्बे संघर्षों की कुर्बानियों के बाद भारत को आजाद कराया गया, हमारा देश दुनियां का सबसे खूबसूरत मुल्क बना. हमें समानता के अधिकारों के संविधान की ताक़त मिली . ये हमारी मिल्कियत है, विरासत है, ये देश हमारा घर है और यहां का हर बाशिंदा हमारे भारतीय परिवार का सदस्य है. 1857 के स्वतंत्रा संग्राम से लेकर 1942 में आजाद हिंद फौज का गठन और फिर 1947 में देश की आजादी की लड़ाई में हमारे बुजुर्ग बराबर के शरीक थे.

हमारे भारत देश में जो खूबियां हैं वो दुनियां के किसी मुल्क में नहीं हो सकतीं. यहां आजादी की लड़ाई में जिन्दगी दांव पर लगाने वालें जांबाज़ों की यादों की मशाल बुझाने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. हमारे देश की बुनियाद ही वो विशाल समुंद्र है जिसकी पवित्रता को किसी भी दौर को चंद दिनों की गंदी सियासत अपवित्र नहीं कर सकती.

यहां असमानता, धार्मिक कट्टरता, भेदभाव, ऊंच-नीच.. जैसी विकृतियां भी ज्यादा दिन तक कभी नहीं टिक सकतीं. क्योंकि इस देश के निर्माण करने वालों बहुत दूरदर्शी थे. उन्होंने(नेता जी सुभाष चंद्र बोस, डाक्टर अंम्बेडकर .इत्यादि) अपने मोटे फ्रेम के काले चश्मे से भविष्य की विकृत तस्वीरों से लड़ने के लिए भी हमें हौसलों की विरासत और शानदार संविधान की विरासत सौंप दी थी.

लस्सी के स्वाद पर एक पंजाबी मित्र ने कहा था कि जितना मथोगे और जितनी लागत लगाओगे, लस्सी उतनी ही स्वादिष्ट और पौष्टिक होगी. इस देश को महान देश बनने में बहुत मेटीरियल लगा है. बहुत कुर्बानियों की लागत लगी है. कोई आंधी हमारे देश की अमर ज्योति को नहीं बुझा सकती. कोई साजिश अनेकता में एकता के स्वाद और अखंडता की पौष्टिकता को चुनौती नहीं दे सकता. जय हिंद. गणतंत्र दिवस की बधाई-शुभकामनांए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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