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कांग्रेस 'वचन-पत्र' में RSS शाखाओं पर बैन का जिक्र कहीं उल्टा न पड़ जाए

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 15 नवम्बर, 2018 04:27 PM
  • 15 नवम्बर, 2018 04:27 PM
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मध्यप्रदेश में अब कांग्रेस के सिर एक और विवाद आ गिरा है. इस विवाद का नाम है घोषणा पत्र जिसमें कांग्रेस ने कहा है कि आरएसएस की शाखाओं को सरकारी बिल्डिंगों से बैन कर दिया जाएगा.

कांग्रेस के मध्यप्रदेश के लिए 'वचन-पत्र' अर्थात घोषणापत्र में आरएसएस यानी संघ की शाखाओं पर प्रतिबंध का जिक्र किया गया है. इसके अनुसार संघ की शाखाएं सरकारी भवनों के अंदर नहीं लगेंगी और न ही कोई सरकारी कर्मचारी इसमें भाग ले सकेगा. लेकिन संघ की शाखाओं पर प्रतिबंध लगाने का मुद्दा कांग्रेस के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. एक तरफ जहां कांग्रेस सफाई देने में लगी है वहीं भाजपा और संघ इसे धर्म से जोड़कर अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुट गए हैं. राजनीतिक विश्लेषक इसे कांग्रेस के लिए नुकसानदेह बता रहे हैं.

लेकिन सवाल ये कि आखिर इस चुनावी माहौल में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में आरएसएस की शाखाओं पर पाबंदी लगाने का जिक्र ही क्यों किया, जिससे उसे बैकफुट पर आना पड़ा? क्यों अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं मप्र इकाई के अध्यक्ष कमलनाथ को इस पर सफाई देनी पड़ रही है? एक तरफ जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मध्यप्रदेश में पंद्रह सालों से वनवास झेल रही पार्टी को 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की राह पर चलते हुए वापस लाने की कोशिश कर रहे थे. ऐसे में संघ का विरोध क्यों किया? मध्यप्रदेश में 91 प्रतिशत जहां हिन्दुओं की आबादी है ऐसे में कांग्रेस को सियासी नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा? मप्र में मुस्लिमों की आबादी करीब साढ़े छह प्रतिशत है और विधानसभा की 10 से 12 सीटों पर इनका काफी असर है. कांग्रेस की नज़र इस पर तो नहीं? या फिर ये अब कांग्रेसी की 2019 के लिए मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कवायद है?

ये मुद्दा इतना गर्मा रहा है कि कमलनाथ को सफाई देनी पड़ रही है

वैसे भी इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी कांग्रेस ने कोई गलत मुद्दा उठाया है तब भाजपा हमलावर हो जाती है और कांग्रेस को अपनी पुरानी परंपरा को बरकरार रखते हुए बैकफुट पर आकर सफाई देनी पड़ती है. इस बार भी ऐसा ही होता...

कांग्रेस के मध्यप्रदेश के लिए 'वचन-पत्र' अर्थात घोषणापत्र में आरएसएस यानी संघ की शाखाओं पर प्रतिबंध का जिक्र किया गया है. इसके अनुसार संघ की शाखाएं सरकारी भवनों के अंदर नहीं लगेंगी और न ही कोई सरकारी कर्मचारी इसमें भाग ले सकेगा. लेकिन संघ की शाखाओं पर प्रतिबंध लगाने का मुद्दा कांग्रेस के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. एक तरफ जहां कांग्रेस सफाई देने में लगी है वहीं भाजपा और संघ इसे धर्म से जोड़कर अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुट गए हैं. राजनीतिक विश्लेषक इसे कांग्रेस के लिए नुकसानदेह बता रहे हैं.

लेकिन सवाल ये कि आखिर इस चुनावी माहौल में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में आरएसएस की शाखाओं पर पाबंदी लगाने का जिक्र ही क्यों किया, जिससे उसे बैकफुट पर आना पड़ा? क्यों अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं मप्र इकाई के अध्यक्ष कमलनाथ को इस पर सफाई देनी पड़ रही है? एक तरफ जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मध्यप्रदेश में पंद्रह सालों से वनवास झेल रही पार्टी को 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की राह पर चलते हुए वापस लाने की कोशिश कर रहे थे. ऐसे में संघ का विरोध क्यों किया? मध्यप्रदेश में 91 प्रतिशत जहां हिन्दुओं की आबादी है ऐसे में कांग्रेस को सियासी नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा? मप्र में मुस्लिमों की आबादी करीब साढ़े छह प्रतिशत है और विधानसभा की 10 से 12 सीटों पर इनका काफी असर है. कांग्रेस की नज़र इस पर तो नहीं? या फिर ये अब कांग्रेसी की 2019 के लिए मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कवायद है?

ये मुद्दा इतना गर्मा रहा है कि कमलनाथ को सफाई देनी पड़ रही है

वैसे भी इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी कांग्रेस ने कोई गलत मुद्दा उठाया है तब भाजपा हमलावर हो जाती है और कांग्रेस को अपनी पुरानी परंपरा को बरकरार रखते हुए बैकफुट पर आकर सफाई देनी पड़ती है. इस बार भी ऐसा ही होता दिख रहा है. इससे पहले राहुल गांधी के मंदिर-मठों में जाने को लेकर विरोधी पार्टियां हमला करती रही हैं और इन हमलों पर कांग्रेस सफाई देती फिर रही है. कांग्रेस कभी राहुल गांधी को 'जनेऊधारी ब्राह्मण' तो कभी 'शिवभक्त' की उपमा देकर उनका बचाव कर रही है. यानी कांग्रेस अगर गलती से भी कोई गलत मुद्दा उठा ले और भाजपा उसे घेर ले तो पार्टी का ये नियम है कि उसे अपनी गलती पर सफाई दे और अपनी ताकत बचाव में लगा दे.

कांग्रेस हमेशा से ही मुद्दों को लेकर दुविधा में रही है जो उसकी कमज़ोरी का कारण भी रहा है. मसलन सोनिया गांधी का 'मौत का सौदागर', मणिशंकर अय्यर का 'चाय बेचनेवाला' या फिर राहुल गांधी का 'खून का दलाली' वाला वक्तव्य हो कांग्रेस को सियासी नुकसान ही पहुंचा है. और लगता है कांग्रेस पहले की गई गलतियों से कोई सबक नहीं ले रही है और इसका नतीजा इस बार भी उसे भुगतना पड़ सकता है.

वहीं भाजपा की राजनीतिक रणनीति हमेशा कांग्रेस की ही कही गई बातों को मुद्दा बनाने की रही है. इस बार भी कांग्रेस के "वचन पत्र" में संघ की शाखाओं पर प्रतिबन्ध की बात को मुद्दा बनाकर भाजपा ने एक बार फिर राज्य में ध्रुवीकरण की चाल चलने की तैयारी कर ली है जिसमें कांग्रेस फंसती नजर आ रही है. और अगर इस उद्देश्य में भाजपा सफल हो जाती है तो कांग्रेस को मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए और 5 साल इंतज़ार करना पड़ सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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