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कांग्रेस की बरेली मैराथन: महामारी के बीच छोटी बच्चियों का खतरनाक‍ सियासी इस्तेमाल!

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 04 जनवरी, 2022 10:55 PM
  • 04 जनवरी, 2022 10:55 PM
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बरेली मैराथन (Bareilly Marathon) की ये तस्वीर देखी आपने? मासूम बच्चियां भीड़ में अपनी पूरा ताकत लगाकर दौड़ने की कोशिश कर रही हैं. लड़की हूं लड़ सकती हूं मैराथन में लड़कियों की इतनी भीड़ एक स्कूटी के लिए लगी थी.

कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया, बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया...साहिर लुधियानवी की पंक्तियां बरेली मैराथन में भाग लेेने वाली लड़कियों की कहानी बयां कर रही हैं. 

बरेली मैराथन (Bareilly Marathon) की ये तस्वीर देखी आपने? मासूम बच्चियां भीड़ में अपनी पूरा ताकत लगाकर दौड़ने की कोशिश कर रही हैं. 'लड़की हूं लड़ सकती हूं मैराथन' में लड़कियों की इतनी भीड़ एक स्कूटी के लिए लगी है. सच में राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं. किसी की मजबूरी का फायदा उठाना कोई इन नेताओं से पूछे...

मैराथन में बच्चियां दौड़ने की शुरुआत करती हैं, तभी धक्का-मुक्की होती है और कुछ लड़कियां एक-दूसरे के ऊपर गिरने लगती हैं. देखते ही देखते भगदड़ मच जाती है, लड़कियां घायल हो जाती हैं और कांग्रेस कहती है कि भीड़ में तो इतना होता ही है.

वीडियो में देखा जा सकता है कि ये बच्चियां स्कूटी और मोबाइल पाने के लिए एक-दूसरे से आगे निकलने की भरपूर कोशिश कर रही हैं. वे किसी भी तरह लड़की हूं लड़ सकती हूं मैराथन की इस जंग को जीतना चाहती हैं, इन मासूमों को क्या पता कि एक स्कूटी के चक्कर में इन्हें कुचला भी जा सकता है.

जरा उन माता-पिता के बारे में सोचिए जिनकी बच्चियां बरेली के मैराथन में भाग लेने गईं होगीं

असल में सामान्य घरों में किसी लड़की के पास स्कूटी होना बड़ी बात होती है. लड़कियों ने मैराथन में भाग इसी के चलते ही लिया था. अगर कोई ईनाम नहीं होता तो शायद की किसी लड़की के घरवाले इस मैराथन में उसे भाग लेने देते. मैराथन हो भी रहा था तो कांग्रेस के लोगों को इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए था कि लड़कियां की संख्या सीमित हो. लड़कियों ने मास्क पहना हो और किसी भी तरह की भगदड़ न मचे लेकिन जो हुआ अब वो...

कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया, बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया...साहिर लुधियानवी की पंक्तियां बरेली मैराथन में भाग लेेने वाली लड़कियों की कहानी बयां कर रही हैं. 

बरेली मैराथन (Bareilly Marathon) की ये तस्वीर देखी आपने? मासूम बच्चियां भीड़ में अपनी पूरा ताकत लगाकर दौड़ने की कोशिश कर रही हैं. 'लड़की हूं लड़ सकती हूं मैराथन' में लड़कियों की इतनी भीड़ एक स्कूटी के लिए लगी है. सच में राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं. किसी की मजबूरी का फायदा उठाना कोई इन नेताओं से पूछे...

मैराथन में बच्चियां दौड़ने की शुरुआत करती हैं, तभी धक्का-मुक्की होती है और कुछ लड़कियां एक-दूसरे के ऊपर गिरने लगती हैं. देखते ही देखते भगदड़ मच जाती है, लड़कियां घायल हो जाती हैं और कांग्रेस कहती है कि भीड़ में तो इतना होता ही है.

वीडियो में देखा जा सकता है कि ये बच्चियां स्कूटी और मोबाइल पाने के लिए एक-दूसरे से आगे निकलने की भरपूर कोशिश कर रही हैं. वे किसी भी तरह लड़की हूं लड़ सकती हूं मैराथन की इस जंग को जीतना चाहती हैं, इन मासूमों को क्या पता कि एक स्कूटी के चक्कर में इन्हें कुचला भी जा सकता है.

जरा उन माता-पिता के बारे में सोचिए जिनकी बच्चियां बरेली के मैराथन में भाग लेने गईं होगीं

असल में सामान्य घरों में किसी लड़की के पास स्कूटी होना बड़ी बात होती है. लड़कियों ने मैराथन में भाग इसी के चलते ही लिया था. अगर कोई ईनाम नहीं होता तो शायद की किसी लड़की के घरवाले इस मैराथन में उसे भाग लेने देते. मैराथन हो भी रहा था तो कांग्रेस के लोगों को इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए था कि लड़कियां की संख्या सीमित हो. लड़कियों ने मास्क पहना हो और किसी भी तरह की भगदड़ न मचे लेकिन जो हुआ अब वो आपके सामने है.

ये तस्वीरें भयावह हैं

एक तरफ जब देश में कोरोना का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है ऐसे में यह तस्वीर डरा रही है. कांग्रेस को अपने सियासी फायदे के लिए इन बच्चियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था. एक तरफ महामारी का डर तो दूसरी तरफ भगदड़ की मार...बेचारी मैराथन में शामिल हुई लड़कियों के जूते-चप्पल सड़कों पर बिखरे पड़े हैं, ये तस्वीरें भयावह हैं जिन्हें देखकर पीड़ा होती है. किसी की मजबूरी के ऐसा फायदा कौन उठाता है? लड़कियां लड़ सकती हैं लेकिन आप उन्हें लड़ने लायक छोड़ेंगे तब ना...

भगदड़ की वजह से कुछ लड़कियां घायल हो गई हैं जिनका इलाज अस्पताल में किया जा रहा है. वहीं जो बच गई हैं वे कब कोरोना की चपेट में आ जाए इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है. चुनाव जीतने के लिए कम से कम उन लड़कियों को तो बख्श दो जिनका नाम भुनाकर आपने चुनावी मुद्दा तैयार किया है.

शर्म इन्हें जरा भी नहीं आती

‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ मैराथन की शुरुआत तो कर दी गई लेकिन लड़कियों की सुरक्षा का इंतजाम करने के बजाय कांग्रेस के नेता बेतुका बयान दे रहे हैं. इन्हें जहां अपनी गलती के लिए क्षमा मांगनी चाहिए वहां वे बोल रहे हैं कि जब वैष्णो देवी में भगदड़ मच सकती है, तो यहां क्यों नहीं. कांग्रेस को इस भगदड़ की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और उन सभी लड़कियों से माफी मांगनी चाहिए.

उनका कहना था कि ‘वैष्णो देवी में जब भगदड़ मच सकती है, तो यहां क्यों नहीं...ये तो फिर बच्चियां हैं, ये इंसानी फितरत होती है लेकिन मैं मीडियाकर्मियों से माफी मांगती हूं. कांग्रेस के बढ़ते जनाधार की वजह से इस तरह की साजिश भी की जा सकती है.’

जरा उन माता-पिता के बारे में सोचिए जिनकी बच्चियां बरेली के मैराथन में भाग लेने गईं होगीं. भगदड़ की खबर सुनकर उनके दिलपर क्या बीती होगी. उन बच्चियों के बारे में सोचिए जो अपने घरवालों से लड़कर उस प्रतियोगिता में भाग लेने गईं होंगी यह सोचकर कि उन्हें इनाम में स्कूटी या मोबाइल मिल जाएगा. छोटे शहरों में बहुत कम घरों में लड़कियों को मोबाइल और स्कूटी नसीब हो पाती है. कांग्रेस ने इस बात का फायदा उठाया यूपी चुनाव में इसे खूब भुनाया. अब आप इन लड़कियों के बीच किसी भी तरह का कंपटीशन रखेंगे और ईनाम में स्कूटी रखेंगे तो भीड़ तो जुटेगी ही.

बरेली के मैराथन में भी यही हुआ, स्कूटी और मोबाइल के नाम पर लड़कियों का एक बड़ा हुजूम मैराथन में भाग लेने के लिए उमड़ पड़ा. किसी ने उनकी सुरक्षा के बारे में नहीं सोचा और एक साथ लड़कियों की भीड़ दौड़ने लगी नतीजा यह हुआ कि भगदड़ मच गई...

इससे तो अच्छा है कि लड़कियों को उनके हाल पर छोड़ दो. वे जिंदा रहेंगी तो अपने लिए बहुत कुछ खुद ही कर लेंगी. आप उन्हें कोई स्कूटी और मोबाइल देने लालच में मत दो. उन्हें बस मुफ्त की शिक्षा और स्वास्थय का इंतजाम करवा दो ताकि वे पढ़-लिखकर इस काबिल बन जाएं कि अपनी जरूरत की चीजें खुद ही खऱीद सकें...

उन्हें किसी के रहमों करम की जरूरत ही महसूस न हो. चुनाव जीतने के लिए इस हद तक मत गिर जाओ कि कल को खुद पर ही शर्म आ जाए...आज वे भगदड़ में तो जैसे-तैसे बच गईं, कल को कोरोना से ग्रसित हो जाएं तो आप तो धीरे से निकल लोगे लेकिन परेशानी उन्हें होगी...शायद अब लड़कियों के घऱवाले कहीं किसी प्रतियोगिता में भेजने से पहले भी 10 बार सोचें...

इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि कोविड मानदंडों का पालन बिल्कुल भी नहीं किया जा सकता. शुक्र मनाइए कि किसी लड़की को कुछ हुआ नहीं वरना भगदड़ तो मच ही चुकी थी. यही कारण है कि राजनीतिक दलों को कोई देखना नहीं चाहता. यही वजह है कि लोग किसी राजनीतिक पार्टी पर भरोसा नहीं करना चाहते. मतलब मस्त रहो मस्ती में आग लगे बस्ती में...

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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