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गुजरात में विपक्ष के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी लहर, समझिए वोट शेयर से

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 08 दिसम्बर, 2022 08:23 PM
  • 08 दिसम्बर, 2022 08:23 PM
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गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Assembly Elections) के नतीजों को देख ऐसा लग रहा है कि सूबे में विपक्ष के खिलाफ ही एंटी-इनकंबेंसी (Anti Incumbency) की लहर थी. क्योंकि, कांग्रेस (Congress) और आम आदमी पार्टी (AAP) की सीटों और वोट शेयर के आंकड़े ही सारी कहानी कह दे रहे हैं.

गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ हो गया है कि सूबे में विपक्ष के खिलाफ किस कदर सत्ताविरोधी लहर यानी एंटी-इनकंबेंसी थी. और, गुजरात की जनता ने विपक्ष को उखाड़ फेंकने में कोई कोर-कसर भी नहीं छोड़ी है. कांग्रेस को 2017 के विधानसभा चुनाव में 77 सीटें मिली थीं. लेकिन, इस बार ये आंकड़ा 17 सीटों पर आ गया है. इतना ही नहीं, गुजरात में अपनी पूरी ताकत झोंकने के बावजूद आम आदमी पार्टी को महज 5 सीटें ही मिलती दिख रही हैं. ये विपक्ष के खिलाफ एंटी-इंनकंबेंसी का ही असर था कि भाजपा 156 सीटों पर जीतती दिख रही है. गुजरात में पार्टियों को मिले वोट शेयर पर नजर डालें, तो पता चलता है कि कांग्रेस को 27 प्रतिशत और आम आदमी पार्टी को 13 प्रतिशत वोट मिला है. जो पिछले चुनाव में कांग्रेस को मिले कुल वोट शेयर से भी एक प्रतिशत कम है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर गुजरात में विपक्ष के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी लहर क्यों थी?

गुजरात विधानसभा चुनाव में हार के लिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ही जिम्मेदार हैं.

गुजरात में कांग्रेस ने बनाया ही नहीं चुनावी माहौल

गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने मतदाताओं को महसूस ही नहीं होने दिया कि राज्य में चुनाव का माहौल है. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा महाराष्ट्र के बाद गुजरात में जा सकती थी. लेकिन, ये यात्रा गुजरात की सीमा को छूते हुए निकल गई. और, राहुल गांधी ने केवल एक ही दिन के लिए गुजरात में जाकर चुनाव प्रचार किया. जबकि, गुजरात जैसे राज्य के जनादेश का संदेश पूरे देश में जाता है. ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस ने गुजरात विधानसभा चुनाव शुरू होने से पहले ही हथियार डाल दिए हों. कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता भी इस चुनाव में नदारद ही दिखे. कांग्रेस आलाकमान ने अशोक गहलोत को राज्य का प्रभारी बनाया था. लेकिन, गहलोत सचिन पायलट के साथ अपनी ही उलझनों में उलझे रहे.

गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ हो गया है कि सूबे में विपक्ष के खिलाफ किस कदर सत्ताविरोधी लहर यानी एंटी-इनकंबेंसी थी. और, गुजरात की जनता ने विपक्ष को उखाड़ फेंकने में कोई कोर-कसर भी नहीं छोड़ी है. कांग्रेस को 2017 के विधानसभा चुनाव में 77 सीटें मिली थीं. लेकिन, इस बार ये आंकड़ा 17 सीटों पर आ गया है. इतना ही नहीं, गुजरात में अपनी पूरी ताकत झोंकने के बावजूद आम आदमी पार्टी को महज 5 सीटें ही मिलती दिख रही हैं. ये विपक्ष के खिलाफ एंटी-इंनकंबेंसी का ही असर था कि भाजपा 156 सीटों पर जीतती दिख रही है. गुजरात में पार्टियों को मिले वोट शेयर पर नजर डालें, तो पता चलता है कि कांग्रेस को 27 प्रतिशत और आम आदमी पार्टी को 13 प्रतिशत वोट मिला है. जो पिछले चुनाव में कांग्रेस को मिले कुल वोट शेयर से भी एक प्रतिशत कम है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर गुजरात में विपक्ष के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी लहर क्यों थी?

गुजरात विधानसभा चुनाव में हार के लिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ही जिम्मेदार हैं.

गुजरात में कांग्रेस ने बनाया ही नहीं चुनावी माहौल

गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने मतदाताओं को महसूस ही नहीं होने दिया कि राज्य में चुनाव का माहौल है. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा महाराष्ट्र के बाद गुजरात में जा सकती थी. लेकिन, ये यात्रा गुजरात की सीमा को छूते हुए निकल गई. और, राहुल गांधी ने केवल एक ही दिन के लिए गुजरात में जाकर चुनाव प्रचार किया. जबकि, गुजरात जैसे राज्य के जनादेश का संदेश पूरे देश में जाता है. ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस ने गुजरात विधानसभा चुनाव शुरू होने से पहले ही हथियार डाल दिए हों. कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता भी इस चुनाव में नदारद ही दिखे. कांग्रेस आलाकमान ने अशोक गहलोत को राज्य का प्रभारी बनाया था. लेकिन, गहलोत सचिन पायलट के साथ अपनी ही उलझनों में उलझे रहे.

केजरीवाल की गारंटियों के खिलाफ गुस्सा

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने गुजरात विधानसभा चुनाव में फ्री बिजली-पानी, महिलाओं को आर्थिक मदद, बेरोजगारों के भत्ता जैसी कई गारंटियां दी थीं. लेकिन, गुजरात की जनता ने आम आदमी पार्टी के इन वादों को दरकिनार कर दिया. क्योंकि, गुजरात की जनता समझ चुकी थी कि अरविंद केजरीवाल चुनाव जीतने नहीं. बल्कि, आम आदमी पार्टी को किसी भी तरह से राष्ट्रीय पार्टी बनाने की कोशिश कर रहे हैं. खैर, आम आदमी पार्टी इसमें कामयाब भी हो गई. क्योंकि, उसने सभी 182 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. लेकिन, केजरीवाल के सरकार बनाने के दावों की पोल खुल ही गई.

मुस्लिम बहुल सीटों पर भी छिटक गया वोट

मुस्लिम मतदाताओं को परंपरागत रूप से कांग्रेस का वोटर माना जाता है. लेकिन, इस चुनाव में मुस्लिम मतदाता भी मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के साथ नहीं दिखा. और, उनके वोटों में भी खूब बिखराव हुआ. लेकिन, इस बिखराव की असली विपक्ष किसी मजबूत विपक्ष का नामौजूदगी थी. आसान शब्दों में कहें, तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में से किसी ने भी मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए कोई खास कोशिश नहीं की.

हिंदू और हिंदुत्व की बात नहीं उतरी गले

चुनावी समय में सियासी दलों का हिंदू और हिंदुत्व की बातें करना आम हो जाता है. जो नेता कभी मंदिर जाते नहीं दिखते हैं. वो भी मंदिरों में साष्टांग प्रणाम करते नजर आते हैं. अरविंद केजरीवाल ने तो खुले तौर पर यहां तक कह दिया था कि हिंदू हूं, तो हिंदुत्व की ही बात करूंगा. इसके बावजूद हिंदू मतदाताओं के बीच आम आदमी पार्टी मजबूत विकल्प के तौर पर नहीं उभर सकी.

मुद्दों के प्रति उदासीनता

गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मोरबी पुल हादसे में 141 लोगों की मौत हो गई थी. इस पर खूब हो-हल्ला मचाया गया. लेकिन, जनता के बीच इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी कोई गुस्सा पैदा ही नहीं कर सकी. बिलकिस बानो रेप के दोषियों को जेल से रिहा करने के मामले पर भी कांग्रेस ने खूब हो-हल्ला काटा. लेकिन, आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने तो इस मुद्दे पर बोलने से कन्नी ही काट ली.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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