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मामला जब 'अल्लाह' के हुक्म का ही है तो हिजाब पर पसंद-नापसंद, अदालती नौटंकियों का कोई तुक है क्या?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 15 अक्टूबर, 2022 05:51 PM
  • 15 अक्टूबर, 2022 05:51 PM
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खुद को मुस्लिम राजनीति का रहनुमा कहने वाले एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) कह देते हैं कि 'कर्नाटक की बच्चियां इसलिए हिजाब (Hijab) पहन रही हैं, क्योंकि कुरान में अल्लाह ने उन्हें कहा है. वैसे, इस्लाम में जब अल्लाह का हुक्म हो, तो वहां पसंद (Choice) और नापसंद का सवाल ही नहीं रह जाता है. तो, बात हिजाब की हो या किसी और की. वो अपने आप ही बाध्यता बन जाता है.

हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बंटा हुआ फैसला देकर मामले को और उलझा दिया है. हिजाब के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया ने इसे पसंद बताते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को गलत ठहराया है. वैसे, हिजाब बैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची छात्राओं के वकीलों से इतर कई सियासी दल, राजनेता और बुद्धिजीवी वर्ग के लोग भी हिजाब को पसंद बताकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं.

हिजाब को अल्लाह का हुक्म भी बताया जा रहा है. और, महिलाओं की पसंद होने की दलील भी दी जा रही है.

जबकि, इसी देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाले मुंबई में एक महिला की गला रेतकर हत्या केवल इस वजह से कर दी जाती हैक्योंकि उसने सख्ती के बावजूद हिजाब और बुर्का जैसी मनमानी परंपराओं को मानने से इनकार कर दिया. मरने वाली लड़की हिंदू थी जिसने एक मुस्लिम युवक के प्यार, सुरक्षा, संरक्षण और स्वतंत्रता पर भरोसा किया. वह मनमाने मुस्लिम रीति-रिवाज नहीं मानना चाहती थी. जिसकी वजह से घर में झगड़ा होने लगा. अंत में आरोपी शौहर इकबाल को गुस्सा आया और उसका गला रेत दिया गया. ऐसी कई घटनाएं होती हैं. लेकिन, हिजाब को पसंद का नाम देने वाले इसकी बाध्यता पर बात ही नहीं करना चाहते हैं?

देश में मुस्लिम सियासत के झंडाबरदार और एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी तक कह देते हैं कि 'कर्नाटक की बच्चियां इसलिए हिजाब पहन रही हैं. क्योंकि, कुरान में अल्लाह ने उन्हें कहा है.' मामला जब अल्लाह के हुक्म ही का है तो फिर कोई बात करने का क्या मतलब. यहां पसंद और नापसंद का सवाल ही नहीं रह जाता. तो, बात हिजाब की हो या कोई भी मुद्दा हो. वो अपने आप ही बाध्यता बन जाता है. इसी आधार पर एक शौहर का अपनी हिंदू बेगम को कत्ल कर देना भी जायज ठहरा दिया जाता है. क्योंकि, वह तो इस्लाम और मुस्लिम समाज को...

हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बंटा हुआ फैसला देकर मामले को और उलझा दिया है. हिजाब के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया ने इसे पसंद बताते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को गलत ठहराया है. वैसे, हिजाब बैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची छात्राओं के वकीलों से इतर कई सियासी दल, राजनेता और बुद्धिजीवी वर्ग के लोग भी हिजाब को पसंद बताकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं.

हिजाब को अल्लाह का हुक्म भी बताया जा रहा है. और, महिलाओं की पसंद होने की दलील भी दी जा रही है.

जबकि, इसी देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाले मुंबई में एक महिला की गला रेतकर हत्या केवल इस वजह से कर दी जाती हैक्योंकि उसने सख्ती के बावजूद हिजाब और बुर्का जैसी मनमानी परंपराओं को मानने से इनकार कर दिया. मरने वाली लड़की हिंदू थी जिसने एक मुस्लिम युवक के प्यार, सुरक्षा, संरक्षण और स्वतंत्रता पर भरोसा किया. वह मनमाने मुस्लिम रीति-रिवाज नहीं मानना चाहती थी. जिसकी वजह से घर में झगड़ा होने लगा. अंत में आरोपी शौहर इकबाल को गुस्सा आया और उसका गला रेत दिया गया. ऐसी कई घटनाएं होती हैं. लेकिन, हिजाब को पसंद का नाम देने वाले इसकी बाध्यता पर बात ही नहीं करना चाहते हैं?

देश में मुस्लिम सियासत के झंडाबरदार और एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी तक कह देते हैं कि 'कर्नाटक की बच्चियां इसलिए हिजाब पहन रही हैं. क्योंकि, कुरान में अल्लाह ने उन्हें कहा है.' मामला जब अल्लाह के हुक्म ही का है तो फिर कोई बात करने का क्या मतलब. यहां पसंद और नापसंद का सवाल ही नहीं रह जाता. तो, बात हिजाब की हो या कोई भी मुद्दा हो. वो अपने आप ही बाध्यता बन जाता है. इसी आधार पर एक शौहर का अपनी हिंदू बेगम को कत्ल कर देना भी जायज ठहरा दिया जाता है. क्योंकि, वह तो इस्लाम और मुस्लिम समाज को अपनी बेगम की वजह से हो सकने वाले संभावित नुकसान से ही बचा रहा था.

ये अलग बात है कि ईरान में मुस्लिम महिलाएं इसी हिजाब के विरोध में नग्न तक हुई जा रही हैं. और, उनके समर्थन में दुनियाभर की महिलाएं अपनी आवाज उठा रही हैं. लेकिन, सवाल यही उठता है कि जो मुस्लिम महिलाएं हिजाब को पसंद नहीं करती हैं या नहीं पहनती हैं. इसको पसंद बताकर जबरन उन पर क्यों थोपा जा रहा है? ये बाध्यता नहीं, तो और क्या है?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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