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क्या चिराग की गलती सिर्फ यही है कि स्पीकर से पहले वो मीडिया में चले गये?

    • आईचौक
    • Updated: 21 जून, 2021 04:51 PM
  • 21 जून, 2021 04:51 PM
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लोक जनशक्ति पार्टी के झगड़े में स्पीकर ओम बिड़ला (Om Birla) की बातों से लगता है कि अगर चिराग पासवान (Chirag Paswan) वक्त रहते पशुपति पारस (Pashupati Paras) की गतिविधियों पर आपत्ति जता सकते थे - लेकिन क्या अब कोई गुंजाइश नहीं बची है?

चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने अपने खिलाफ बगावत की जंग जीतने के लिए कमर कस ली है - और अपने चाचा पशुपति कुमार पारस को घेरने के लिए सीधे जनता के दरबार में जाने का फैसला किया है.

दिल्ली में अपने आवास पर लोक जनशक्ति पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर साथी नेताओं के सामने चिराग पासवान ने कई घोषणाएं की है - और मीटिंग की तस्वीरें मीडिया में जारी कर ये मैसेज देने की कोशिश की है कि पार्टी पर वो अब भी काबिज हैं - और ज्यादातर नेताओं का समर्थन उनको हासिल है.

बैठक में चिराग पासवान ने दावा किया कि पशुपति पारस (Pashupati Paras) की तरफ से किये गये सभी तरह के दावों का कोई आधार नहीं है क्योंकि राष्ट्रीय कार्यकारिणी का बहुमत उनके साथ है. साथ ही, चिराग पासवान ने ये भी समझाने की कोशिश की कि कार्यकारिणी का बहुमत मिले होने की वजह से राष्ट्रीय अध्यक्ष भी वही हैं और संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष भी.

चिराग पासवान अब चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने के साथ साथ अपने चारा पशुपति पारस के खिलाफ सीधे जनता के दरबार में भी जाने की तैयारी में लग गये हैं - और इसके लिए चिराग पासवान ने पिता रामविलास पासवान की जयंती का मौका चुना है.

लोक जनशक्ति पार्टी के नये नेता को मान्यता देने को लेकर चिराग पासवान ने स्पीकर को पत्र तो पहले ही लिख रखा था - अब मुलाकात करके भी अपना पक्ष रह चुके हैं. हालांकि, मुलाकात से पहले ही एक इंटरव्यू में स्पीकर ओम बिड़ला (Om Birla) की बातों से ऐसा लगा कि चिराग पासवान एक्शन मोड में आने में देर न करते तो कहानी अलग हो सकती थी.

चिराग ने देर कर दी तो गुंजाइश भी खत्म समझें?

लोक जनशक्ति पार्टी में चिराग पासवान के खिलाफ बगावत का मामला सीधे लोक सभा स्पीकर के पास पहुंचा था - और पल पल बदलते घटनाक्रम के बीच स्पीकर ओम...

चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने अपने खिलाफ बगावत की जंग जीतने के लिए कमर कस ली है - और अपने चाचा पशुपति कुमार पारस को घेरने के लिए सीधे जनता के दरबार में जाने का फैसला किया है.

दिल्ली में अपने आवास पर लोक जनशक्ति पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर साथी नेताओं के सामने चिराग पासवान ने कई घोषणाएं की है - और मीटिंग की तस्वीरें मीडिया में जारी कर ये मैसेज देने की कोशिश की है कि पार्टी पर वो अब भी काबिज हैं - और ज्यादातर नेताओं का समर्थन उनको हासिल है.

बैठक में चिराग पासवान ने दावा किया कि पशुपति पारस (Pashupati Paras) की तरफ से किये गये सभी तरह के दावों का कोई आधार नहीं है क्योंकि राष्ट्रीय कार्यकारिणी का बहुमत उनके साथ है. साथ ही, चिराग पासवान ने ये भी समझाने की कोशिश की कि कार्यकारिणी का बहुमत मिले होने की वजह से राष्ट्रीय अध्यक्ष भी वही हैं और संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष भी.

चिराग पासवान अब चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने के साथ साथ अपने चारा पशुपति पारस के खिलाफ सीधे जनता के दरबार में भी जाने की तैयारी में लग गये हैं - और इसके लिए चिराग पासवान ने पिता रामविलास पासवान की जयंती का मौका चुना है.

लोक जनशक्ति पार्टी के नये नेता को मान्यता देने को लेकर चिराग पासवान ने स्पीकर को पत्र तो पहले ही लिख रखा था - अब मुलाकात करके भी अपना पक्ष रह चुके हैं. हालांकि, मुलाकात से पहले ही एक इंटरव्यू में स्पीकर ओम बिड़ला (Om Birla) की बातों से ऐसा लगा कि चिराग पासवान एक्शन मोड में आने में देर न करते तो कहानी अलग हो सकती थी.

चिराग ने देर कर दी तो गुंजाइश भी खत्म समझें?

लोक जनशक्ति पार्टी में चिराग पासवान के खिलाफ बगावत का मामला सीधे लोक सभा स्पीकर के पास पहुंचा था - और पल पल बदलते घटनाक्रम के बीच स्पीकर ओम बिड़ला ने तत्काल प्रभाव से पशुपति कुमार पारस को एलजेपी के संसदीय दल के नेता के रूप में मान्यता भी दे दी - और घंटे भर के भीतर ही ये जानकारी लोक सभा की वेबसाइट पर अपडेट भी कर दी गयी.

खबर तो ये आयी थी कि पशुपति पारस की पहले जेडीयू में चले जाने की तैयारी रही, लेकिन जैसे भी बीजेपी नेताओं को इसकी भनक लगी, दौड़े दौड़े पहुंचे और समझाने बुझाने के बाद बीच का रास्ता निकाला गया कि बागी गुट का नेता ही क्यों न स्पीकर से मान्यता लेले. ऐसा करके बीजेपी ने जेडीयू का खेल तो खत्म कर दिया, लेकिन राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए पार्टी को टूटने से बचाने का भी रास्ता बना दिया.

ये तो साफ साफ नजर आ रहा है कि एलजेपी का दो हिस्सों में बंटवारा हो गया है, लेकिन जब तक चुनाव आयोग से कोई फैसला नहीं आता ये सब अनौपचारिक तौर पर ही माना जाएगा. हां, इतना तो हुआ ही है कि पशुपति पारस के गुट ने एक मीटिंग में चुनाव कराकर उनको अध्यक्ष बना दिया है. अध्यक्ष बन जाने के बाद पशुपति पारस ने कमेटियों को भंग कर दिये जाने की भी जानकारी दी है.

स्पीकर के दरबार में चिराग पासवान के लिए कोई गुंजाइश बची भी है या नहीं अब?

चिराग पासवान गुट का दावा है कि जब पशुपति पारस को पार्टी से बेदखल किया जा चुके है तो वो कौन होते हैं कमेटियों को भंग करने वाले. दिल्ली में बुलायी गयी एलजेपी कार्यकारिणी की बैठक में चिराग पासवान ने भी ऐसा ही दावा किया है.

ये सब करने से पहले चिराग पासवान ने स्पीकर ओम बिड़ला से मुलाकात कर अपना पक्ष रखा है - हालांकि, अभी तक स्पीकर की तरफ से चिराग की अपील पर किसी तरह के फैसले की जानकारी नहीं आयी है.

लेकिन उससे पहले इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में स्पीकर ओम बिड़ला ने जो कुछ कहा है वो महत्वपूर्ण इस लिहाज से भी है क्योंकि उससे फैसले में हड़बड़ी की झलक भी मिलती है - और यही तो खबरों में भी आया था.

अंग्रेजी अखबार के सवाल पर ओम बिड़ला कहते हैं, 'हम किसी भी मामले में तत्काल फैसला लेते हैं.' स्पीकर ने फौरी फैसलों को लेकर बीएसपी के केस का जिक्र किया है. स्पीकर ने बताया कि कैसे बीएसपी के नेतृत्व परिवर्तन के आग्रह पर घंटे भर के अंदर ही फैसला लिया गया.

और फिर लोक जनशक्ति पार्टी के मामले में भी वैसे ही फैसला लेने की बात करते हैं, 'इस केस में, लोक जनशक्ति पार्टी ने एक बैठक बुलायी और हमे पत्र देकर अपने फैसले के बारे में अवगत कराया. हमारे पास पत्र की कॉपी भी है.'

स्पीकर ओम बिड़ला अपनी तरफ से जो भी दलील पेश करें, लेकिन बात गले के नीचे आसानी से नहीं उतरती. ऊपर से जो मिसाल पेश कर रहे हैं वो भी मिलती जुलती होती तो और बात होती, वो तो पूरी तरह उलटा केस ही है.

बीएसपी के जिस भी केस का उदाहरण स्पीकर दे रहे हैं वो पत्र पार्टी के नेता की तरफ से मिला होगा, जिसमें नेतृत्व की तरफ से बताया गया होगा कि पार्टी ने एक नेता की जगह दूसरे को सदन का नेता बनाने का फैसला किया है - और उसमें विवाद की तो कोई गुंजाइश भी नहीं रही होगी. स्पीकर ने पत्र के हिसाब से पार्टी ने जो नाम बढ़ाया था उसे नेता के रूप में मान्यता दे दी होगी - लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी का तो केस ही अलग है.

जिस वक्त स्पीकर के पास एलजेपी की तरफ से पत्र पहुंचा वो पार्टी के अध्यक्ष की तरफ से तो था नहीं. जो भी मीटिंग हुई उसमें ऐन उसी वक्त एक नेता को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था और जिसे नेता के तौर पर मान्यता दी गयी वो तो बगावत करके ऐसा किया था.

सवाल ये है कि स्पीकर को शक क्यों नहीं हुआ कि जो कुछ भी हो रहा है वो कोई सामान्य प्रक्रिया तो है नहीं - क्या ऐसी स्थिति में स्पीकर को ये जानने समझने की कोशिश नहीं करनी चाहिये थी कि जो कुछ पत्र में नजर आ रहा है वो वास्तव में सही प्रक्रिया के मुताबिक है भी या नहीं?

अखबार से बातचीत में स्पीकर ओम बिड़ला कहते हैं, 'अगर किसी ने भी पहले या उसके बाद आपत्ति जतायी होती तो हम विचार जरूर करते - लेकिन दो दिन बाद जब कोई प्रेस कांफ्रेंस करके आपत्ति जता रहा है तो हम क्या कर सकते हैं?'

स्पीकर ओम बिड़ला ठीक कह रहे हैं और चिराग पासवान को मीडिया से पहले निश्चित तौर पर स्पीकर के पास अपनी आपत्ति जतानी चाहिये थी - लेकिन स्पीकर की बातों से ये तो साफ है ही कि जो कुछ हुआ है वो पूरी तरह सही हुआ है, ऐसा समझना भी पूरी तरह सही नहीं कहा जा सकता.

बहरहाल, अब जबकि चिराग पासवान ने मुलाकात कर आपत्ति जता दी है तो क्या फैसले पर पुनर्विचार की कोई गुंजाइश बची भी है या वैलिडिटी बिलकुल खत्म हो गयी है?

पशुपति पारस को उनसे संसदीय क्षेत्र में घेरेंगे चिराग

चिराग के पिता रामविलास पासवान 2019 का चुनाव नहीं लड़े थे और अपनी जगह पशुपति पारस को दे दी थी. पशुपति पारस, पासवान के संसदीय क्षेत्र रहे हाजीपुर से ही लोक सभा सांसद हैं.

5 जुलाई, 2021 को चिराग पासवान हाजीपुर से ही आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत करने जा रहे हैं - क्योंकि उसी दिन रामविलास पासवान की जयंती है. इसे चिराग पासवान का इमोशनल कार्ड भी समझा जा सकता है.

साफ है अपने पिता की कर्मभूमि में लोगों के बीच पहुंच कर चिराग पासवान अपने चाचा को एक्सपोज करने की कोशिश करेंगे - और ये काम पशुपति पारस के चुनाव क्षेत्र में ही होगा.

चिराग पासवान ने कार्यकारिणी की बैठक में बताया कि ये यात्रा बिहार के हर जिले से होकर गुजरेगी - और कहा, 'हमें लोगों के प्यार और आशीर्वाद की जरूरत है.'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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