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राम मंदिर अयोध्या विवाद का फैसला जस्टिस दीपक मिश्रा सुना पाएंगे?

    • संजय शर्मा
    • Updated: 05 सितम्बर, 2018 11:35 AM
  • 05 सितम्बर, 2018 11:35 AM
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राम मंदिर पर फैसले का मामला हर सुनवाई में टलता ही गया और अब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा भी रिटायर होने वाले हैं. ऐसे में माना ये जा रहा है कि अब इस मामले का फैसला अगले चीफ जस्टिस ही करेंगे.

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद आने के बाद तो गहमा गहमी इस कदर बढ़ी थी कि सबको लगा था कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच 2018 की दीवाली से पहले ही फ़ैसला सुना देगी. क्योंकि तब कोर्ट ने तय किया था कि वो इस पर रोज़ाना सुनवाई कर इसे जल्दी निपटाएगा. एक दिन सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपक मिश्रा ने तो यहां तक कह दिया कि हमारे लिए ये मामला आस्था का नहीं बल्कि एक आम भूमि विवाद है. लिहाज़ा हम इसी नज़रिए से इन मामले की सुनवाई करेंगे.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एस ए नज़ीर और जस्टिस अशोक भूषण के इस पीठ ने 11 अगस्त 2017 को शुरू की थी. कोर्ट ने साफ कर दिया था कि वो मुख्य पक्षकारों को सुनेगा. हस्तक्षेप याचिकाएं दाखिल करने वालों की दलीलें वो नहीं सुनेगा. देश को फिर उम्मीदें जगी कि लगता है कोर्ट जल्दी फैसला देने के मूड में है. हालांकि पहली सुनवाई के दिन ही मुस्लिम पक्षकारों की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा भी था कि 2019 के चुनाव तक इस मामले की सुनवाई टाल दी जाए.

देश के सामने बड़ा सवाल ये है कि क्या दीपक मिश्रा अपने रिटायर्मेंट से पहले राम मंदिर मामले की सुनवाई कर पाएंगे

इन्हीं पक्षकारों की ओर से पेश राजीव धवन ने भी कहा था कि इस मुकदमे में दस हज़ार से ज़्यादा पेज के दस्तावेज हैं. मीलॉर्ड आप कितनी भी कोशिश कर लें इस मामले का फैसला आपके कार्यकाल में नहीं आ सकता. इन्हीं बातों में दस्तावेजों के अनुवाद का सवाल उठा और सुनवाई 5 दिसम्बर 2017 के लिए टल गई. पांच दिसम्बर को अचानक जस्टिस अशोक भूषण ने राजीव धवन से पूछ लिया कि पिछली सुनवाई में आपने इस्माइल फारूकी वाले मामले में पीठ के 1994 में फैसले की बात उठाई थी जिसमे ये कहा गया था कि मस्जिद में नमाज अदा करना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है.

हम इस पर पहले सुनवाई कर जानना चाहते हैं कि क्या...

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद आने के बाद तो गहमा गहमी इस कदर बढ़ी थी कि सबको लगा था कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच 2018 की दीवाली से पहले ही फ़ैसला सुना देगी. क्योंकि तब कोर्ट ने तय किया था कि वो इस पर रोज़ाना सुनवाई कर इसे जल्दी निपटाएगा. एक दिन सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपक मिश्रा ने तो यहां तक कह दिया कि हमारे लिए ये मामला आस्था का नहीं बल्कि एक आम भूमि विवाद है. लिहाज़ा हम इसी नज़रिए से इन मामले की सुनवाई करेंगे.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एस ए नज़ीर और जस्टिस अशोक भूषण के इस पीठ ने 11 अगस्त 2017 को शुरू की थी. कोर्ट ने साफ कर दिया था कि वो मुख्य पक्षकारों को सुनेगा. हस्तक्षेप याचिकाएं दाखिल करने वालों की दलीलें वो नहीं सुनेगा. देश को फिर उम्मीदें जगी कि लगता है कोर्ट जल्दी फैसला देने के मूड में है. हालांकि पहली सुनवाई के दिन ही मुस्लिम पक्षकारों की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा भी था कि 2019 के चुनाव तक इस मामले की सुनवाई टाल दी जाए.

देश के सामने बड़ा सवाल ये है कि क्या दीपक मिश्रा अपने रिटायर्मेंट से पहले राम मंदिर मामले की सुनवाई कर पाएंगे

इन्हीं पक्षकारों की ओर से पेश राजीव धवन ने भी कहा था कि इस मुकदमे में दस हज़ार से ज़्यादा पेज के दस्तावेज हैं. मीलॉर्ड आप कितनी भी कोशिश कर लें इस मामले का फैसला आपके कार्यकाल में नहीं आ सकता. इन्हीं बातों में दस्तावेजों के अनुवाद का सवाल उठा और सुनवाई 5 दिसम्बर 2017 के लिए टल गई. पांच दिसम्बर को अचानक जस्टिस अशोक भूषण ने राजीव धवन से पूछ लिया कि पिछली सुनवाई में आपने इस्माइल फारूकी वाले मामले में पीठ के 1994 में फैसले की बात उठाई थी जिसमे ये कहा गया था कि मस्जिद में नमाज अदा करना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है.

हम इस पर पहले सुनवाई कर जानना चाहते हैं कि क्या इस पर फिर से विचार की ज़रूरत है? अगर है तो इसे बड़ी पीठ को भेजा जाय या यही पीठ सुने, पहले इसे ही तय कर लिया जाय. तभी समझ मे आने लगा था कि अब इस मामले का लटकना तय है. वरना लोगों ने अयोध्या विवाद का फैसला आने के दिन गिनने शुरू कर दिए थे. अति उत्साहित डॉ सुब्रमण्यन स्वामी ने तो यहां तक हिसाब लगा लिया था कि अगले साल 2018 की दिवाली अयोध्या के राममंदिर में ही मनाएंगे. उनका अनुमान था रोज़ाना सुनवाई और गर्मी छुट्टियों में सुनवाई कर चीफ जस्टिस की बेंच अगस्त तक फैसला सुना देगी और दिवाली तक प्रिफेब्रिकेटेड तकनीक से मन्दिर बन ही जाएगा.

लेकिन हर सुनवाई में मामला टलता ही गया. अब तक तो इस बाबत ही सुनवाई पूरी नहीं हो सकी है कि ये मामला संविधान पीठ के पास भेजा जाय या नहीं. अब दर्जन भर मामलों के फैसले और महीने भर से भी कम समय.इतना तो साफ दिख रहा है कि अब इस मामले का फ़ैसला अगले ही चीफ जस्टिस करेंगे. अब इस पर भी अगला सवाल आ सकता है कि अगले या उनसे भी अगले.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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