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चंद्रशेखर आजाद को योगी आदित्यनाथ के खिलाफ लड़ने के लिए क्या अखिलेश यादव ने मजबूर किया है?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 21 जनवरी, 2022 06:11 PM
  • 21 जनवरी, 2022 06:11 PM
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गोरखपुर सदर सीट से योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के खिलाफ चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) के चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद, समाजवादी पार्टी ने भी अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है - आखिर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की रणनीति क्या है?

भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chandra Shekhar Azad) को चुनाव मैदान में चैलेंज करने जा रहे हैं. चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी ने उनको गोरखपुर सदर सीट से उम्मीदवार घोषित किया है.

चंद्रशेखर ने 2019 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी वाराणसी संसदीय सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी. जब चंद्रशेखर ने हाल ही में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात कही तो लगा नहीं था कि इस बार वो वास्तव में गंभीर हैं.

आम चुनाव के दौरान चंद्रशेखर ने बनारस का दौरा भी किया था और वहां बाइक रैली भी निकाली थी. तब प्रियंका गांधी के अस्पताल जाकर मिलने के बाद से ये भी कयास लगाये जा रहे थे कि वो कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं या विपक्षी दल सपोर्ट कर सकते हैं, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

चंद्रशेखर के मुताबिक, काफी दिनों से वो अखिलेश यादव के संपर्क में थे और समाजवादी पार्टी के साथ उनके चुनावी गठबंधन की भी बात चल रही थी. बताते हैं कि ओमप्रकाश राजभर दोनों के बीच मध्यस्थ बने हुए थे.

फिर एक दिन अचानक चंद्रशेखर ने प्रेस कांफ्रेंस बुला कर ऐलान कर दिया कि वो अखिलेश यादव के साथ कोई चुनावी गठबंधन नहीं करेंगे. साथ ही ये भी कहा कि उनकी आजाद समाज पार्टी यूपी की सभी 403 सीटों पर अपने बूते चुनाव लड़ेगी.

चंद्रशेखर आजाद ने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) पर अपना और दलितों का अपमान करने का भी आरोप लगाया था, लेकिन अखिलेश यादव और ओमप्रकाश राजभर का कहना रहा कि गठबंधन के दरवाजे बंद नहीं हुए हैं - और बाद में चंद्रशेखर की तरफ से भी बताया गया कि बीजेपी को रोकने के लिए वो चुनाव बाद गठबंधन कर भी सकते हैं.

पहले तो लगा था अखिलेश यादव की पार्टी चंद्रशेखर आजाद को सपोर्ट कर सकती है,...

भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chandra Shekhar Azad) को चुनाव मैदान में चैलेंज करने जा रहे हैं. चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी ने उनको गोरखपुर सदर सीट से उम्मीदवार घोषित किया है.

चंद्रशेखर ने 2019 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी वाराणसी संसदीय सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी. जब चंद्रशेखर ने हाल ही में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात कही तो लगा नहीं था कि इस बार वो वास्तव में गंभीर हैं.

आम चुनाव के दौरान चंद्रशेखर ने बनारस का दौरा भी किया था और वहां बाइक रैली भी निकाली थी. तब प्रियंका गांधी के अस्पताल जाकर मिलने के बाद से ये भी कयास लगाये जा रहे थे कि वो कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं या विपक्षी दल सपोर्ट कर सकते हैं, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

चंद्रशेखर के मुताबिक, काफी दिनों से वो अखिलेश यादव के संपर्क में थे और समाजवादी पार्टी के साथ उनके चुनावी गठबंधन की भी बात चल रही थी. बताते हैं कि ओमप्रकाश राजभर दोनों के बीच मध्यस्थ बने हुए थे.

फिर एक दिन अचानक चंद्रशेखर ने प्रेस कांफ्रेंस बुला कर ऐलान कर दिया कि वो अखिलेश यादव के साथ कोई चुनावी गठबंधन नहीं करेंगे. साथ ही ये भी कहा कि उनकी आजाद समाज पार्टी यूपी की सभी 403 सीटों पर अपने बूते चुनाव लड़ेगी.

चंद्रशेखर आजाद ने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) पर अपना और दलितों का अपमान करने का भी आरोप लगाया था, लेकिन अखिलेश यादव और ओमप्रकाश राजभर का कहना रहा कि गठबंधन के दरवाजे बंद नहीं हुए हैं - और बाद में चंद्रशेखर की तरफ से भी बताया गया कि बीजेपी को रोकने के लिए वो चुनाव बाद गठबंधन कर भी सकते हैं.

पहले तो लगा था अखिलेश यादव की पार्टी चंद्रशेखर आजाद को सपोर्ट कर सकती है, लेकिन सुभावती शुक्ला के मैदान में आ जाने के बाद नये समीकरण नजर आने लगे हैं. सुभावती शुक्ला 2018 के उपचुनाव में गोरखपुर संसदीय सीट से बीजेपी उम्मीदवार रहे उपेंद्र दत्त शुक्ला की पत्नी हैं.

वो फोन किसका था?

योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर सदर सीट से बीजेपी उम्मीदवार बनाये जाने का ऐलान केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 15 जनवरी को किया था - और उसी दिन, कुछ ही देर पहले, चंद्रशेखर आजाद ने समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन न करने की घोषणा की थी. 

चंद्रशेखर का कहना था, 'अखिलेश यादव तय कर चुके हैं वो दलितों से गठबंधन नहीं करेंगे... अखिलेश ने मुझे अपमानित किया है... मुझे लगता है कि वो दलितों की लीडरशिप नहीं होने देना चाहते... अखिलेश यादव को दलितों की जरूरत नहीं है.'

गोरखपुर सदर सीट पर लड़ाई दिलचस्प होने लगी है.

जो गुस्सा चंद्रशेखर आजाद ने दिखाया या आरोप लगाया, अखिलेश यादव की तरफ कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, बल्कि वो बोले कि भीम आर्मी नेता की पार्टी से दो सीटों पर समझौता हो गया था. और फिर लगातार कई दिनों तक किसी न किसी बहाने अखिलेश यादव ये मुद्दा दोहराते ही रहे.

चंद्रशेखर को किसने फोन किया: बातों बातों में ही अखिलेश यादव ने एक जानकारी भी दी, जिसे आरोप भी समझा जा सकता है और कोई संकेत भी - "किसी का फोन आया और गठबंधन नहीं हो सका."

हो सकता है दलितों के अपमान का मुद्दा उठा देने के कारण, अखिलेश यादव बार बार अपनी तरफ से सफाई देते रहे. अखिलेश यादव का कहना रहा, 'मैंने चंद्रशेखर की पार्टी को अपने हिस्से से त्याग कर दो सीटें देने का वादा कर दिया था... गठबंधन को लेकर उनसे बात चल रही थी, लेकिन बीच में ही किसी का फोन आ गया... फोन ने ही सारा खेल बिगाड़ दिया.'

जब अखिलेश यादव से ये जानने की कोशिश की गयी कि उनको किसका फोन होने का शक है, तो बोले, 'बस यही पता नहीं चल रहा है कि फोन था किसका... क्योंकि फोन के बाद ही वो सपा का साथ देने से मना किये.'

कितना स्कोप बचा है: अखिलेश यादव के बार बार के जिक्र से ऐसा लगता है कि वो दलितों को लेकर कोई तोहमत नहीं लेना चाहते - और शायद इसी वजह से वो लोगों को ये मैसेज देने की कोशिश करते रहे हैं कि उनकी और चंद्रशेखर की पार्टी के बीच गठबंधन की बातें पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं - बशर्ते, चंद्रशेखर आजाद दो सीटों पर राजी हों.

अखिलेश यादव की ही तरह ओमप्रकाश राजभर भी चंद्रशेखर के सपोर्ट में खड़े नजर आये. राजभर ने कहा, 'मैं चंद्रशेखर को कहीं नहीं जाने दूंगा... चाहे मुझे अपने कोटे से ही चंद्रशेखर को टिकट क्यों न देनी पड़े.'

चंद्रशेखर का स्टैंड तो अब भी यही है कि अगर यूपी में बीजेपी की सरकार बनती है तो जिम्मेदार अखिलेश यादव ही होंगे, लेकिन रुख थोड़ा नरम पड़ा लगता है. चंद्रेशेखर ने एक इंटरव्यू में कहा है कि बीजेपी को सरकार बनाने से रोकने के लिए वो चुनाव बाद भी अखिलेश यादव से हाथ मिलाने को तैयार हैं.

सर्वे क्या कहता है: अखिलेश यादव और चंद्रशेखर की पार्टियों के बीच चुनावी गठबंधन को लेकर एक सर्वे भी आ गया है. सी वोटर के सर्वे के मुताबिक, 42 फीसदी लोगों का मानना है कि अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर के साथ चुनावी गठबंधन न करके सही किया है, जबकि सर्वे में शामिल 33 फीसदी लोग मानते हैं कि समाजवादी पार्टी ने गलत किया है - हां, 25 फीसदी लोग ऐसे भी मिले जिनकी कोई राय नहीं है.

और सपा ने भी उतार दिया उम्मीदवार

गोरखपुर सीट पर मायावती का रुख क्या होगा, समझना बहुत मुश्किल नहीं था. वो चंद्रशेखर आजाद को तो सपोर्ट करने से रहीं, लेकिन योगी आदित्यनाथ के खिलाफ बीएसपी कोई उम्मीदवार खड़ा करेगी ऐसा भी नहीं लगता. कम से कम मायावती का आम चुनाव के बाद का ट्रैक रिकॉर्ड तो यही इशारा करता है.

प्रियंका गांधी का रुख देखना जरूर दिलचस्प होता, लेकिन तभी अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा कर अलग ही स्टैंड ले लिया है.

1. क्या चंद्रशेखर अखिलेश की चाल में फंस गये: बड़ा सवाल अब भी कायम है - क्या अखिलेश यादव ने फोन कॉल की बात करके कोई सियासी गुगली फेंकी थी?

चंद्रशेखर के बारे में सीधे सीधे कुछ न बोल कर कहीं अखिलेश यादव ने ये मैसेज देने के लिए फोन कॉल का जिक्र छेड़ दिया कि वो किसी और के कहने पर राजनीति कर रहे हैं. मतलब, चंद्रशेखर आजाद को दलितों की कोई फिक्र नहीं है, बल्कि वो तो किसी के हाथों में खेल रहे हैं.

क्या अखिलेश यादव ऐसा ही कुछ मैसेज देना चाह रहे थे?

और फिर चंद्रशेखर आजाद ने अपनी छवि के फिक्र में गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ने के फैसले पर आगे बढ़ने को ठीक समझा? मतलब, ये समझा जाये कि अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर यादव को गोरखपुर से चुनाव लड़ने के लिए मजबूर किया है!

लेकिन बाद में गोरखपुर सदर सीट पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार खड़ा करने को कैसे देखा जाये?

2. कौन है समाजवादी पार्टी उम्मीदवार: योगी आदित्यनाथ के खिलाफ बीजेपी के ही नेता रहे उपेंद्र दत्त शुक्ला की पत्नी को उतार कर क्या अखिलेश यादव ने अपर्णा यादव जैसा बदला लिया है?

अखिलेश यादव ने बीजेपी नेता की पत्नी सुभावती शुक्ला को सपा का प्रत्याशी बनाया है

उपेंद्र दत्त शुक्ला भी गोरखपुर में शिव प्रताप शुक्ला की तरह ही बीजेपी के ब्राह्मण चेहरा हुआ करते थे. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद जब 2018 में उपचुनाव हुआ तो बीजेपी के उम्मीदवार रहे, लेकिन मायावती के सपोर्ट से अखिलेश यादव के उम्मीदर प्रवीण निषाद से चुनाव हार गये थे.

समझा गया था कि योगी आदित्यनाथ, उपेंद्र दत्त शुक्ला को उम्मीदवार बनाये जाने से नाखुश थे - और बीजेपी की हार की एक वजह ये भी मानी गयी थी. मई, 2020 में ब्रेन हेमरेज की वजह से उपेंद्र दत्त शुक्ला का निधन हो गया था.

अखिलेश यादव ने सुभावती शुक्ला को समाजवादी पार्टी ज्वाइन कराया और फिर कुछ ही देर बाद उनको पार्टी का अधिकृति प्रत्याशी घोषित कर दिया गया.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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