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कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ गठबंधन पक्का, बीजेपी अब बड़े भाई की भूमिका में

    • आईचौक
    • Updated: 18 दिसम्बर, 2021 07:24 PM
  • 18 दिसम्बर, 2021 07:24 PM
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कृषि कानूनों की वापसी के बाद बीजेपी (BJP) का हौसला बढ़ा है पंजाब चुनाव (Punjab Election 2022) में नये गठबंधन में वो अपनी भूमिका बदलने जा रही है. मोर्चे पर बेशक कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) आगे नजर आयें, लेकिन मैदान में ज्यादा उम्मीदवार बीजेपी के ही होंगे.

कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) और बीजेपी के बीच चुनावी गठबंधन पक्का हो गया है. दोनों पक्षों ने मीडिया के सामने गठबंधन की बातें कंफर्म की है. सीटों के बंटवारे पर भी बात करीब करीब बन गयी लगती है, लेकिन अभी इसकी घोषणा नहीं की गयी है.

जो संकेत मिल रहे हैं, लगता है अगले पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Election 2022) के लिए बने नये गठबंधन में बीजेपी (BJP) का रोल भी बदल जाएगा. अब तक बीजेपी पंजाब के चुनावी गठबंधन में छोटे भाई की भूमिका में रही है, लेकिन नये गठबंधन में नयी भूमिका बड़े भाई की हो सकती है.

जाहिर है बीजेपी ने कृषि कानूनों की वापसी के बाद कदम आगे बढ़ा कर खुद को आजमाने का फैसला किया होगा - गठबंधन फाइनल होने में भले ही 7 दौर की बातचीत हुई हो, लेकिन मजबूरियों के चलते कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास भी ऑप्शन तो बहुत बचे नहीं थे.

पहले बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल के बीच गठबंधन हुआ करता था, लेकिन कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल ने एनडीए छोड़ दिया था. अब बादल परिवार के अकाली दल ने अब मायावती की पार्टी बीएसपी में चुनावी गठबंधन कर लिया है और मैदान में डटे हुए हैं.

अकाली दल की एनडीए में नो-एंट्री: हाल ही में बीजेपी नेता अमित शाह ने पंजाब में गठबंधन को लेकर बातचीत के संकेत दिये थे - और तब तक अकाली दल के लिए एनडीए में वापसी का रास्ता बंद नजर नहीं आया था.

जिस तरीके से बीजेपी और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच सीटों के बंटवारे के आसार नजर आ रहे हैं, साफ है अकाली दल के लिए सारी संभावनाएं खत्म हो चुकी हैं. 2019 के आम चुनाव तक अकाली दल के साथ गठबंधन में बीजेपी छोटे भाई की भूमिका में हुआ करती थी - लेकिन अब तो पुराना पार्टनर भी बीजेपी के निशाने पर आने वाला है.

कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) और बीजेपी के बीच चुनावी गठबंधन पक्का हो गया है. दोनों पक्षों ने मीडिया के सामने गठबंधन की बातें कंफर्म की है. सीटों के बंटवारे पर भी बात करीब करीब बन गयी लगती है, लेकिन अभी इसकी घोषणा नहीं की गयी है.

जो संकेत मिल रहे हैं, लगता है अगले पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Election 2022) के लिए बने नये गठबंधन में बीजेपी (BJP) का रोल भी बदल जाएगा. अब तक बीजेपी पंजाब के चुनावी गठबंधन में छोटे भाई की भूमिका में रही है, लेकिन नये गठबंधन में नयी भूमिका बड़े भाई की हो सकती है.

जाहिर है बीजेपी ने कृषि कानूनों की वापसी के बाद कदम आगे बढ़ा कर खुद को आजमाने का फैसला किया होगा - गठबंधन फाइनल होने में भले ही 7 दौर की बातचीत हुई हो, लेकिन मजबूरियों के चलते कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास भी ऑप्शन तो बहुत बचे नहीं थे.

पहले बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल के बीच गठबंधन हुआ करता था, लेकिन कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल ने एनडीए छोड़ दिया था. अब बादल परिवार के अकाली दल ने अब मायावती की पार्टी बीएसपी में चुनावी गठबंधन कर लिया है और मैदान में डटे हुए हैं.

अकाली दल की एनडीए में नो-एंट्री: हाल ही में बीजेपी नेता अमित शाह ने पंजाब में गठबंधन को लेकर बातचीत के संकेत दिये थे - और तब तक अकाली दल के लिए एनडीए में वापसी का रास्ता बंद नजर नहीं आया था.

जिस तरीके से बीजेपी और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच सीटों के बंटवारे के आसार नजर आ रहे हैं, साफ है अकाली दल के लिए सारी संभावनाएं खत्म हो चुकी हैं. 2019 के आम चुनाव तक अकाली दल के साथ गठबंधन में बीजेपी छोटे भाई की भूमिका में हुआ करती थी - लेकिन अब तो पुराना पार्टनर भी बीजेपी के निशाने पर आने वाला है.

पंजाब में त्रिरोणीय मुकाबले में एक और ऐंगल जुड़ गया है

कृषि कानूनों के खिलाफ मोदी कैबिनेट से इस्तीफा देने वाली अकाली दल नेता हरसिमरत कौर बादल ने मौजूदा बीजेपी नेतृत्व पर इल्जाम लगाया है कि जो सामाजिक ताना-बाना बादल साहब और अटल जी ने पंजाब में बनाया उसे तोड़ने की कोशिश की गयी है.

7 दौर की बातचीत के बाद

कैप्टन अमरिंदर सिंह और बीजेपी के बीच गठबंधन फाइनल होने में बातचीत के 7 दौर चले, लेकिन अंत भला तो सब भला. सारी चीजों पर सहमति बन जाने के बाद पंजाब बीजेपी प्रभारी और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने मीडिया को बताया, ‘7 दौर की बातचीत के बाद, आज कंफर्म कर रहा हूं कि बीजेपी और पंजाब लोक कांग्रेस आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ने जा रहे हैं... सीट बंटवारे जैसी चीजें भी सही समय आने पर बता दी जाएंगी.’

बीजेपी के साथ गठबंधन को अंतिम रूप देने के लिए ही पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह दिल्ली पहुंचे थे और बीजेपी प्रभारी शेखावत के साथ आखिरी दौर की बातचीत के बाद ट्वीट कर बताया कि वो 101 फीसदी श्योर हैं कि उनका गठबंधन चुनाव जीत रहा है, ‘हम तैयार हैं और हम ये चुनाव जीतने जा रहे हैं. सीट बंटवारे पर फैसला अलग अलग सीटों के हिसाब से लिया जाएगा... जीत को प्राथमिकता दी जाएगी.’

कैसा होगा कैप्टन-बीजेपी गठबंधन

अकाली दल के साथ गठबंधन टूटने के बाद समझा जा रहा था कि बीजेपी का फोकस हिंदू आबादी बहुल सीटों पर होगा, लेकिन बदला हुआ मिजाज तो यही बता रहा है कि कृषि कानूनों की वापसी के बाद बीजेपी का काफी हौसला बढ़ा हुआ है.

कैप्टन को एक तिहाई सीटें: सीटों के बंटवारे को लेकर आधिकारिक घोषणा होने से पहले कुछ मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि बीजेपी 70 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है, जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह की नयी नवेली पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस 35 सीटों पर. मतलब, बीजेपी ने कैप्टन के मुकाबले डबल सीटों पर उम्मीदवार उतारने का मन बना लिया है. बची हुई 12 सीटें सुखदेव सिंह ढींढसा के हिस्से में जाने की अपेक्षा की जा रही है.

अकाली दल के एनडीए में रहते बीजेपी कभी भी 23 सीटों से ज्यादा पर चुनाव नहीं लड़ सकी है, लेकिन नये गठबंधन में ये कहानी दोहराये जाने के संकेत बिलकुल नहीं हैं. पंजाब में विधानसभा की 117 सीटों पर चुनाव होने हैं जिनमें 34 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं.

बीजेपी का फायदा ही फायदा: कैप्टन अमरिंदर सिंह की नयी भूमिका के सवाल पर हरसिमरत कौर बादल का कहना है, 'बीजेपी को पंजाब में सियासी जमीन की तलाश है... वो उन सभी पर दांव लगाएगी, जिन्हें दूसरी पार्टियों में टिकट नहीं मिला होगा... बीजेपी को संघ समर्थित वोट तो मिलेगा, लेकिन वो हिंदू चेहरे के बल पर चुनाव नहीं लड़ सकती - एक सीनियर सिख चेहरे की जरूरत है जो कैप्टन अमरिंदर पूरा करते हैं.'

हरसिमरत कौर बादल की बात काफी हद तक ठीक भी लगती है, लेकिन बात ये भी है कि कैप्टन को अपना नया संगठन मजबूत करने का मौका भी नहीं मिला है. पंजाब लोक कांग्रेस के पास कैप्टन जैसा चेहरा तो है लेकिन जमीनी स्तर पर उसके पास कार्यकर्ता नहीं हैं. बूथ लेवल पर देखा जाये तो कांग्रेस भारी पड़ेगी, बशर्ते नवजोत सिंह सिद्धू आने वाले दिनों में चरणजीत सिंह चन्नी में भी कैप्टन का अक्स न देखने लगें.

कैप्टन का संगठन अभी कमजोर: कैप्टन अमरिंदर की मुश्किल ये भी रही है कि कांग्रेस को तोड़ने की कोशिशें इतनी कामयाब नहीं रही हैं कि एक समानांतर संगठन खड़ा किया जा सके. वैसे वो धीरे धीरे जिलास्तर पर अध्यक्षों की नियुक्ति कर विस्तार करने की कोशिश जरूर कर रहे हैं.

असल बात तो ये है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तोड़ कर ही अपने संगठन का विस्तार करना है, लेकिन जब तक टिकटों की घोषणा नहीं हो जाती कोई भी खुल कर पाला बदलने के लिए राजी नहीं है. कोई ऐसा कर भी रहा है तो वो कैप्टन का बेहद खास है या पहले से ही हाशिये पर पहुंचा हुआ है और नये तरीके से अपने लिए एक मंच की तलाश में है.

लुधियाना से दो बार सांसद रहे अमरीक सिंह अलिवाल के साथ साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह सहित पांच नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराया है. पंजाब लोक कांग्रेस ज्वाइन करने वालों में चार पूर्व विधायक हैं और उनमें से तीन अकाली दल के नेता रहे हैं. कैप्टन को ज्वाइन करने वालों में पूर्व कांग्रेस विधायक हरजिंदर सिंह ठेकेदार भी शामिल हैं.

कैप्टन के तेवर और उम्मीदें

कृषि कानून कैप्टन और बीजेपी के बीच चुनावी गठबंधन में सबसे बड़ी बाधा बने हुए थे. कानूनों की वापसी के बाद किसान आंदोलन खत्म भले न हुआ हो, लेकिन होल्ड हो जाना भी कम तो नहीं है. अब तो कैप्टन और बीजेपी दोनों ही एक दूसरे के पूरक और म्युचुअल सपोर्ट सिस्टम बन चुके हैं.

कैप्टन का तेवर देख कर भी ऐसा ही लगता है. बड़े ही साफ लहजे में कहते हैं, 'पंजाब लोक कांग्रेस का मिशन पंजाब में अगली सरकार बनाना है, न कि सिर्फ कांग्रेस को हराना.'

साथ ही कैप्टन अपनी राष्ट्रवादी छवि भी लोगों को भूलने नहीं देना चाहते. ऐसा भी तभी कर सकते हैं जब वो नवजोत सिंह सिद्धू को निशाना बनाते रहें. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का नाम लेकर पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को टारगेट करते हैं, 'अगर आप इन लोगों के दोस्त हैं तो आप भारत के शुभचिंतक नहीं हैं.'

कुछ सोच कर पाकिस्तान के प्रति वो अपना स्टैंड साफ भी करते हैं कि वो निजी तौर पर किसी पाकिस्तानी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन पाकिस्तान की सरकार और वहां की आतंकवाद की फैक्ट्रियों से समस्या है क्योंकि वे आतंकवाद फैलाते हैं.

कैप्टन अमरिंदर सिंह का दावा है कि जल्दी ही तीनों राजनीतिक दलों - कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अकाली दल से कई मौजूदा और पूर्व विधायक पंजाब लोक कांग्रेस में शामिल होंगे - और एक बड़े प्रोग्राम में ऐसे नेताओं को शामिल कराया जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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