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जिस खंजर से कैप्टन अमरिंदर सिंह का काम तमाम हुआ, वो ही सिद्धू की पीठ पर आ अड़ा!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 02 दिसम्बर, 2021 12:30 PM
  • 02 दिसम्बर, 2021 12:30 PM
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पंजाब विधानसभा चुनावों से पहले हुई एक जरूरी बैठक में चन्नी द्वारा सिद्धू को आमंत्रित नहीं किया गया. इस घटना को देखकर कुछ पुरानी यादें खुद ब खुद ताजा हो गईं हैं. वो दौर याद आ गया है जब कैप्टन अमरिंदर सिंह राज्य के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. तब कैप्टन अमरिंदर सिंह को ठिकाने लगाने के लिए उन्‍हें बायपास कर बैठक बुलाई जा रही थी.

पंजाब में विधानसभा के चुनाव होने हैं. जैसे हालात पंजाब में हैं और जिस तरह की नूराकुश्ती चल रही है. पार्टी और राहुल गांधी की ऊर्जा नई रणनीतियां बनाने में नहीं बल्कि रूठों को मनाने में व्यय हो रही है. इसमें भी दिलचस्प ये कि रूठों के बीच आपसी गतिरोध कुछ इस हद तक व्याप्त है कि वो किसी की एक नहीं सुन रहे हैं जिसके चलते एक पार्टी के रूप में कांग्रेस पर सवालिया निशान लग रहे हैं. इशारा नवजोत सिंह सिद्धू और राज्य के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की तरफ है. सत्ता को लेकर जैसी खींचतान दोनों के बीच है हर बीतते दिन के साथ पार्टी को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसी आंतरिक गतिरोध के बीच सीएम चन्नी ने 2022 के विधानसभा चुनावों में रणनीति तैयार करने और शिकायतों को सुने जाने के उद्देश्य से ब्लॉक अध्यक्षों के साथ बैठक की और इस बैठक से सिद्धू को दूर रखा. बैठक के विषय में सिद्धू समर्थकों का यही कहना है कि चन्नी के घर बुलाई बैठक का न्योता सिद्धू को नहीं दिया गया. यदि सिद्धू को बुलाया जाता तो वो बैठक में अवश्य आते. चूंकि चुनाव से पहले एक जरूरी बैठक में चन्नी द्वारा सिद्धू को आमंत्रित नहीं किया गया कुछ पुरानी यादें खुद ब खुद ताजा हो गईं हैं. वो दौर याद आ गया है जब कैप्टन अमरिंदर सिंह राज्य के मुख्यमंत्री हुआ करते थे.

पंजाब में विधानसभा चुनावों से पहले जैसे हालात हैं सिद्धू को उन्हीं की भाषा में जवाब दे रहे हैं चरणजीत सिंह चन्नी

बताते चलें कि ऐसे ही कैप्टन अमरिंदर सिंह को ठिकाने लगाने के लिए उन्‍हें बायपास कर बैठक बुलाई जा रही थी. तब निर्णायक भूमिका में नवजोत सिंह सिद्धू थे. आज जब चन्नी द्वारा सिद्धू को बाईपास किया गया है तो ये कहना अतिशयोक्ति न होगा कि सिद्धू से सीखे हुए दाव चन्‍नी अब उन्हीं के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे...

पंजाब में विधानसभा के चुनाव होने हैं. जैसे हालात पंजाब में हैं और जिस तरह की नूराकुश्ती चल रही है. पार्टी और राहुल गांधी की ऊर्जा नई रणनीतियां बनाने में नहीं बल्कि रूठों को मनाने में व्यय हो रही है. इसमें भी दिलचस्प ये कि रूठों के बीच आपसी गतिरोध कुछ इस हद तक व्याप्त है कि वो किसी की एक नहीं सुन रहे हैं जिसके चलते एक पार्टी के रूप में कांग्रेस पर सवालिया निशान लग रहे हैं. इशारा नवजोत सिंह सिद्धू और राज्य के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की तरफ है. सत्ता को लेकर जैसी खींचतान दोनों के बीच है हर बीतते दिन के साथ पार्टी को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसी आंतरिक गतिरोध के बीच सीएम चन्नी ने 2022 के विधानसभा चुनावों में रणनीति तैयार करने और शिकायतों को सुने जाने के उद्देश्य से ब्लॉक अध्यक्षों के साथ बैठक की और इस बैठक से सिद्धू को दूर रखा. बैठक के विषय में सिद्धू समर्थकों का यही कहना है कि चन्नी के घर बुलाई बैठक का न्योता सिद्धू को नहीं दिया गया. यदि सिद्धू को बुलाया जाता तो वो बैठक में अवश्य आते. चूंकि चुनाव से पहले एक जरूरी बैठक में चन्नी द्वारा सिद्धू को आमंत्रित नहीं किया गया कुछ पुरानी यादें खुद ब खुद ताजा हो गईं हैं. वो दौर याद आ गया है जब कैप्टन अमरिंदर सिंह राज्य के मुख्यमंत्री हुआ करते थे.

पंजाब में विधानसभा चुनावों से पहले जैसे हालात हैं सिद्धू को उन्हीं की भाषा में जवाब दे रहे हैं चरणजीत सिंह चन्नी

बताते चलें कि ऐसे ही कैप्टन अमरिंदर सिंह को ठिकाने लगाने के लिए उन्‍हें बायपास कर बैठक बुलाई जा रही थी. तब निर्णायक भूमिका में नवजोत सिंह सिद्धू थे. आज जब चन्नी द्वारा सिद्धू को बाईपास किया गया है तो ये कहना अतिशयोक्ति न होगा कि सिद्धू से सीखे हुए दाव चन्‍नी अब उन्हीं के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं.

ध्यान रहे कि अभी बीते दिन ही चन्नी ने अपने आवास पर मालवा, दोआब और माझा क्षेत्र के प्रखंड अध्यक्षों से मुलाकात की है. इस बैठक में सिद्धू को होना था लेकिन वो नहीं थे जिस समय चन्नी इन लोगों से आगामी चुनावों की रणनीतियों पर चर्चा कर रहे थे उस वक़्त सिद्धू लुधियाना में थे जहां उन्होंने पार्टी के पार्षदों औरउद्योगपतियों के साथ बैठक को अंजाम दिया.

चुनाव पूर्व सीएम आवास पर हुई ये बैठक सिद्धू के लिए क्यों महत्वपूर्ण थी? यदि सवाल ये हो तो जवाब बस इतना है कि इस बैठक में पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश चौधरी भी उपस्थित थे जिनकी जिम्मेदारी पंजाब कांग्रेस से जुड़ी छोटी बड़ी जानकारी और सूचनाएं पार्टी आलाकमान और राहुल गांधी को देना है. क्योंकि मुख्यमंत्री आवास पर ब्लॉक अध्यक्षों से बैठक दो दिन चली है और दोनों ही दिन सिद्धू बैठक में अनुपस्थित रहे हैं.

इसलिए माना यही जा रहा है कि इस अनुपस्थिति का खामियाजा नवजोत सिंह सिद्धू को आने वाले वक्त में भुगतना होगा. वहीं इस अनुपस्थिति पर सिद्धू के करीबियों के अपने तर्क हैं. उनका कहना है कि बैठक के लिए सिद्धू को आमंत्रित नहीं किया गया था. कहा ये भी जा रहा है कि,'अगर उन्हें आमंत्रित किया जाता तो वह चले जाते.

इसके बाद सिद्धू समर्थकों द्वारा ये तर्क भी दिया गया कि सीएम और प्रभारी कांग्रेस पदाधिकारियों के साथ बैठकें करें तो बेहतर है. क्योंकि सीएम आवास पर हुई बैठक का मोटो 22 के विधानसभा चुनावों के लिए नई रणनीतियां बनाना और शिकायतों की सुनवाई थी. मौके का फायदा ब्लॉक अध्यक्षों ने भी खूब उठाया और आरोप लगाया कि सिद्धू पार्टी और सरकार पर हमले कर रहे हैं.

बैठक में आए लोगों का आरोप था कि सिद्धू की गतिविधियों से पार्टी की छवि धूमिल हो रही है और यदि ऐसे ही चलता रहा तो इसका असर चुनावों में देखने को मिलेगा. गौरतलब है कि सिद्धू, चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही उनपर हमलावर हैं. अभी बीते दिनों ही सिद्धू ने ड्रग के मसले पर एसटीएफ रिपोर्ट को मुद्दा बनाते हुए अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर जाने की धमकी भी दी थी. साथ हीसिद्धू का चन्नी पर वादाखिलाफी के आरोप लगाना भी याब रोज की बात हो गई है.

चन्नी को लेकर जैसा रवैया सिद्धू का है प्रयास यही है कि आलाकमान और जनता को ये बता दिया जाए कि चन्नी एक नकारा मुख्यमंत्री हैं जो न ही राज्य संभाल पा रहे हैं और न ही सही निर्णय ले पा रहे हैं. वहीं बात अगर चन्नी की हो तो उन्होंने यही चीजें तब देखीं थीं जब पंजाब की बागडोर कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाथ में थी और सिद्धू इसी तरह कैप्टन के पीछे पड़े थे. कहना गलत नहीं है कि चन्नी चीजों को समझते हैं और आज वो सिद्धू को उन्हीं की भाषा में जवाब दे रहे हैं.

बात गतिरोध की चली है तो नवजोत सिंह सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी के बीच का गतिरोध कैसा है? अगर इसे समझना हो तो हमें बीते दिनों की उस घटना का रुख करना चाहिए जब एक रैली में सिद्धू द्वारा दिए गए भाषण का सीधा प्रसारण पंजाब सरकार के सोशल मीडिया हैंडल से नहीं किया गया. इसके अलावा एक अन्य रैली में चन्नी ने सिद्धू के सामने बात की और राज्य कांग्रेस प्रमुख के भाषण शुरू करने से पहले ही निकल गए.

आमतौर पर सीएम ही अपने भाषण से रैलियों का अंत करते हैं. ये घटनाएं ये बताने के लिए काफी हैं कि जिस खंजर से किसी ज़माने में सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह का काम तमाम किया आज वही चन्नी की बदौलत सिद्धू की पीठ पर अड़ा है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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