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'कैप्टन' की बात सुनती भारत सरकार, तो रोके जा सकते थे ड्रोन हमले!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 30 जून, 2021 01:18 PM
  • 30 जून, 2021 01:18 PM
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अमरिंदर सिंह ने नवंबर में पीएम मोदी को पत्र लिखकर और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के दौरान ये मुद्दा उठाया था. लेकिन, मोदी सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. सुरक्षा एजेंसियों ने भी सीमा के आस-पास स्थित सैन्य ठिकानों पर ड्रोन से किए जा सकने वाले संभावित हमलों को लेकर उदासीनता ही दिखाई.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जम्मू-कश्मीर के नेताओं से भरोसा कायम करने वाली बातचीत के दो दिनों बाद ही राज्य में आतंकियों ने एक एयरफोर्स बेस को निशाना बनाया. आतंकियों ने इस हमले में पहली बार ड्रोन (Drone) के जरिये विस्फोटकों को गिराकर हमला किया. हालांकि, इस हमले में जान-माल का कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ. लेकिन, इस तरह का हमला होना चौंकाने वाला कहा जा सकता है. आतंकियों ने आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले ड्रोन का इस्तेमाल कर भविष्य में भारत के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर कर दिया है. ये भारत के लिए लिए एक बड़ी चेतावनी और नया सुरक्षा खतरा है. नई तकनीक की वजह से उभरने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए मोदी सरकार को जल्द बड़े और कड़े फैसलें लेने होंगे.

हालांकि, ड्रोन-ड्रॉप (Drone Drop) के इस हमले के खतरे और पाकिस्तान की साजिश को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने नवंबर में ही मोदी सरकार (Modi Government) को आगाह कर दिया था. कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) ने पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को लिखे पत्र में ड्रोन और यूएवी (अनमैंड एरियल विहिकल) के जरिये हथियारों और मादक पदार्थों की डिलीवरी की बात कही थी. अमरिंदर सिंह ने कहा था कि किसान आंदोलन शुरू होने के बाद पाकिस्तान अवैध रूप से भारी मात्रा में हथियारों की खेप भेज रहा है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अमरिंदर सिंह की बात गंभीरता से सुनने पर ड्रोन हमलों को मोदी सरकार रोक सकती थी?

सीएम अमरिंदर सिंह ने पीएम नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में ड्रोन और यूएवी के जरिये हथियारों और मादक पदार्थों की डिलीवरी की बात कही थी.

कई सालों से जारी है ड्रोन का इस्तेमाल

भारतीय सीमा से सटे राज्यों में ड्रोन के जरिये हथियारों, मादक पदार्थों और पैसों की...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जम्मू-कश्मीर के नेताओं से भरोसा कायम करने वाली बातचीत के दो दिनों बाद ही राज्य में आतंकियों ने एक एयरफोर्स बेस को निशाना बनाया. आतंकियों ने इस हमले में पहली बार ड्रोन (Drone) के जरिये विस्फोटकों को गिराकर हमला किया. हालांकि, इस हमले में जान-माल का कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ. लेकिन, इस तरह का हमला होना चौंकाने वाला कहा जा सकता है. आतंकियों ने आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले ड्रोन का इस्तेमाल कर भविष्य में भारत के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर कर दिया है. ये भारत के लिए लिए एक बड़ी चेतावनी और नया सुरक्षा खतरा है. नई तकनीक की वजह से उभरने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए मोदी सरकार को जल्द बड़े और कड़े फैसलें लेने होंगे.

हालांकि, ड्रोन-ड्रॉप (Drone Drop) के इस हमले के खतरे और पाकिस्तान की साजिश को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने नवंबर में ही मोदी सरकार (Modi Government) को आगाह कर दिया था. कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) ने पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को लिखे पत्र में ड्रोन और यूएवी (अनमैंड एरियल विहिकल) के जरिये हथियारों और मादक पदार्थों की डिलीवरी की बात कही थी. अमरिंदर सिंह ने कहा था कि किसान आंदोलन शुरू होने के बाद पाकिस्तान अवैध रूप से भारी मात्रा में हथियारों की खेप भेज रहा है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अमरिंदर सिंह की बात गंभीरता से सुनने पर ड्रोन हमलों को मोदी सरकार रोक सकती थी?

सीएम अमरिंदर सिंह ने पीएम नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में ड्रोन और यूएवी के जरिये हथियारों और मादक पदार्थों की डिलीवरी की बात कही थी.

कई सालों से जारी है ड्रोन का इस्तेमाल

भारतीय सीमा से सटे राज्यों में ड्रोन के जरिये हथियारों, मादक पदार्थों और पैसों की अवैध खेप लंबे समय से आती रही है. केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, अगस्त 2019 के बाद 300 से ज्यादा बार ड्रोन या यूएवी (अनमैन्ड एरियल व्हिकल) देखे गए हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब में भी 70-80 बार ड्रोन देखे गए और कुछ मामलों में इन्हें मार गिराया गया. भारतीय सीमा से लगे इलाकों में बीते कुछ सालों से ड्रोन का इस्तेमाल काफी बढ़ा है. ड्रोन या यूएवी से निपटने के लिए बीएसएफ और सुरक्षा बल 'देखो और मार गिराओ' के एसओपी को फॉलो करते हैं. डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) द्वारा बनाए गए एंटी-ड्रोन सिस्टम में 3 किलोमीटर तक की रेंज में आने वाले संदिग्ध ड्रोन को जैम या मार गिराया जा सकता है. माना जा रहा है कि ये तकनीक इस साल के अंत तक भारतीय सेना के साथ जुड़ सकती है.

'कैप्टन' की बात को गंभीरता से नहीं लिया

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में कहा था कि किसान आंदोलन के शुरू होने के साथ ही ड्रोन के जरिये पाकिस्तान से अवैध तौर पर आने वाले हथियारों की खेप बढ़ गई है. अमरिंदर सिंह ने नवंबर में पीएम मोदी को पत्र लिखकर और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के दौरान ये मुद्दा उठाया था. लेकिन, मोदी सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. एयरफोर्स बेस पर हुए हमले ने ये साबित कर दिया है कि मोदी सरकार की ओर से एक बड़ी चूक हुई है. मोदी सरकार के साथ ही सुरक्षा एजेंसियों ने भी सीमा के आस-पास स्थित सैन्य ठिकानों पर ड्रोन से किए जा सकने वाले संभावित हमलों को लेकर उदासीनता ही दिखाई. सवाल खड़े होना तय है कि सालों से ड्रोन का इस्तेमाल तस्करी और अवैध हथियारों की खेप पहुंचाने के लिए किया जा रहा है, तो सुरक्षा एजेंसियां और सरकार इसके द्वारा किए जा सकने वाले हमले को लेकर अलर्ट क्यों नहीं हुए? सवाल ये भी उठेंगे कि अवैध हथियार, मादक पदार्थों की तस्करी और सीमाओं पर जासूसी को मोदी सरकार और सुरक्षा एजेंसियों ने गंभीरता से क्यों नहीं लिया? भारत को 'ये तो चलता है' वाले एप्रोच से बाहर नकलना होगा और भविष्य में आने वाली चुनौतियों के लिए अभी से तैयारी करनी होगी.

भारत के लिए जरूरी है रक्षा तकनीक बढ़ाना

जम्मू के एयरफोर्स बेस पर हुए हमले को देखते हुए कहा जा सकता है कि आतंकी पूरी तरह से वाकिफ हैं कि भारत के पास ड्रोन हमलों से निपटने के लिए फिलहाल कोई तकनीक नहीं है. यह एक तरह से ड्रोन हमलों का ट्रायल रन कहा जा सकता है. भविष्य में अगर इसके जैसे और ड्रोन हमले होते हैं, तो इसकी जिम्मेदारी मोदी सरकार को ही लेनी पड़ेगी. दिन के समय अगर ड्रोन दिखते हैं, तो उन्हें मार गिराया जा सकता है. लेकिन, रात के समय इन ड्रोन पर किस तरह से नजर रखी जाती है, इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है. चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों की वजह भारत के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हो जाता है कि वह अपनी रक्षा तकनीकों को लगातार मजबूत करता रहे. पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम की स्थिति बनी हुई. लेकिन, फिर भी उसकी ओर से आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है. वहीं, बीते साल गलवान घाटी में चीन के साथ हुई खूनी झड़प भी भारत को खतरे के संकेत दे रही है.

ड्रोन और यूएवी में क्या है अंतर

ड्रोन और यूएवी दो अलग-अलग तकनीक हैं. ड्रोन आसानी से बाजार में उपलब्ध होने वाली तकनीक है. जिसका कॉमर्शियल प्रयोग भी किया जाता है. ड्रोन के प्रोटोटाइप को इंटरनेट की सहायता से घर में बैठकर भी बनाया जा सकता है. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कई पहाड़ी और दुर्गम जगहों पर वैक्सीन पहुंचाने के लिए भी ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल किया गया था. वहीं, ड्रोन के मुकाबले यूएवी तकनीक में कहीं आगे हैं. यूएवी को रडार की पकड़ में आने से बचाने के लिए विशेष धातु का इस्तेमाल किया जाता है. यूएवी में कम ऊंचाई पर उड़ते हुए रडार से बचने की क्षमता होती है और यह बेहद कम आवाज करते हैं. अमेरिका और चीन में इस तरह के यूएवी बड़े स्तर पर बनाए जा रहे हैं. ड्रोन और यूएवी लगभग 25 किलो का भार उठा सकते हैं. भविष्य में इनका इस्तेमाल अगर हमलों के लिए किया जाने लगा, तो भारत को काफी नुकसान पहुंच सकता है.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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