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बजट तो बैलेंस लेकिन निर्मला समझें रसोई वाली समस्या अभी भी जस की तस है!

    • रमेश ठाकुर
    • Updated: 02 फरवरी, 2023 01:06 PM
  • 02 फरवरी, 2023 01:06 PM
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नए बजट में बजट में जितनी भी योजनाओं को लागू करने की बात कही गई है उन्हें ईमानदारी से अमल में लाया जाए. क्योंकि कई योजनाएं ऐसी होती हैं, साल बीत जाने तक शुरू नहीं होती. ये हर पिछले बजट में होता आया है, इसमें ऐसा ना हो, ऐसी सबको उम्मीदें हैं.

बजट के दिन एक दैनिक कामगार बस इतना सोचता है, उसके हिस्से क्या आया? रोजमर्रा की जरूरतें जैसे, दूध, दाल, सब्जी, आटा-चावल, बच्चों के खिलौने व खानपान की अति जरूरी वस्तुओं में क्या राहतें मिली, वो ये सवाल स्वयं से पूछता है और बजट की अगली सुबह बाजार जाकर उसका मुआयना करता है, जिसमें उसे ‘निल बटे सन्नाटा’ मिलता है. आम आदमी को तत्कालिक कोई राहत 2023-2024 के इस बजट में मिलेगी, फिलहाल ऐसी तस्वीर दिखाई नहीं पड़ती. क्योंकि महिलाओं की रसोई वाली महंगाई जस की तस रही. वित्तमंत्री साहिबा खुद एक महिला हैं, रसोई को अच्छे से समझती है, इसलिए देश की महिलाओं को इस बार उनसे खासी उम्मीदें थीं. उनको लग रहा था कि सिलेंडर और महीने के खर्च में कुछ सहूलियतें मिलेंगी. देखिए, देश में चुनावी हलचल शुरू होने वाली हैं, सरकार को चुनाव साधना है, चाहें जैसे भी? इसलिए बजट को चुनाव को ध्यान में रखकर बुना है. चुनावी बजट को एक सामान्य व्यक्ति भी अच्छे से समझता है कि लोकलुभावन ही होता है, कमोबेश मौजूदा बजट है भी वैसा ही? आगे 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जम्मू-कश्मीर में भी हुए तो 10 राज्य हो जाएंगे.

जैसा बजट है माना जा रहा है कि इसने महिलाओं को निराश और नाराज किया है

अगले वर्ष लोकसभा का चुनाव है. इसलिए बुधवार को संसद में पेश हुआ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार 2.0 का ये आखिरी पूर्ण बजट है. कहे चाहें कोई कुछ भी? लेकिन ये बजट आगामी 2024 लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर पेश किया है. हालांकि कुछ सहूलियत भी दिखीं, लेकिन वो उंट के मुंह में जीरे जैसी मात्र हैं. 7 लाख रुपए तक की सालाना आय वालों कोई टैक्स नहीं देना होगा. लेकिन एक आम आदमी के लिए क्या सोचा इस सरकार ने. क्या दिहाड़ी मजदूरी के स्लैब को बढ़ाया है.

अमूमन 250-300 सौ रूपए कमाने वाले...

बजट के दिन एक दैनिक कामगार बस इतना सोचता है, उसके हिस्से क्या आया? रोजमर्रा की जरूरतें जैसे, दूध, दाल, सब्जी, आटा-चावल, बच्चों के खिलौने व खानपान की अति जरूरी वस्तुओं में क्या राहतें मिली, वो ये सवाल स्वयं से पूछता है और बजट की अगली सुबह बाजार जाकर उसका मुआयना करता है, जिसमें उसे ‘निल बटे सन्नाटा’ मिलता है. आम आदमी को तत्कालिक कोई राहत 2023-2024 के इस बजट में मिलेगी, फिलहाल ऐसी तस्वीर दिखाई नहीं पड़ती. क्योंकि महिलाओं की रसोई वाली महंगाई जस की तस रही. वित्तमंत्री साहिबा खुद एक महिला हैं, रसोई को अच्छे से समझती है, इसलिए देश की महिलाओं को इस बार उनसे खासी उम्मीदें थीं. उनको लग रहा था कि सिलेंडर और महीने के खर्च में कुछ सहूलियतें मिलेंगी. देखिए, देश में चुनावी हलचल शुरू होने वाली हैं, सरकार को चुनाव साधना है, चाहें जैसे भी? इसलिए बजट को चुनाव को ध्यान में रखकर बुना है. चुनावी बजट को एक सामान्य व्यक्ति भी अच्छे से समझता है कि लोकलुभावन ही होता है, कमोबेश मौजूदा बजट है भी वैसा ही? आगे 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जम्मू-कश्मीर में भी हुए तो 10 राज्य हो जाएंगे.

जैसा बजट है माना जा रहा है कि इसने महिलाओं को निराश और नाराज किया है

अगले वर्ष लोकसभा का चुनाव है. इसलिए बुधवार को संसद में पेश हुआ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार 2.0 का ये आखिरी पूर्ण बजट है. कहे चाहें कोई कुछ भी? लेकिन ये बजट आगामी 2024 लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर पेश किया है. हालांकि कुछ सहूलियत भी दिखीं, लेकिन वो उंट के मुंह में जीरे जैसी मात्र हैं. 7 लाख रुपए तक की सालाना आय वालों कोई टैक्स नहीं देना होगा. लेकिन एक आम आदमी के लिए क्या सोचा इस सरकार ने. क्या दिहाड़ी मजदूरी के स्लैब को बढ़ाया है.

अमूमन 250-300 सौ रूपए कमाने वाले दैनिक मजदूर के हिस्से क्या आया, शायद कुछ भी नहीं? संसद में बजट के रूप में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने युवाओं के लिए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 4.0 लॉन्च की, लेकिन ये क्रियान्वयन कैसे होगी, युवा लाभांश कैसे होंगे, ये स्थिति स्पष्ट नहीं की. महिला एवं बाल विकास के क्षेत्र में भी ज्यादा कुछ नहीं है इस बजट में? महिला सम्मान बचत पत्र योजना शुरू करने का ऐलान हुआ है, जबकि इस तरह की तमाम योजनाएं पहले से अमल में हैं.

उनका खास प्रभाव आधी आबादी के सुधार एवं कल्याण में नहीं दिखा, पिछले बजट में मुद्रा लोन योजना शुरू हुई थी, जिसे गेम चेंजर बताया गया था. प्रचार भी जोर जोर से हुआ था. एकाध महीने तक चर्चा जरूर हुई, लेकिन बाद में पता चला जरूरतमंद महिलाओं को बैंक आसानी से लोन नहीं देते. शिकायत करने से भी कुछ नहीं हुआ. इतना ही नहीं, निर्मला सीतारमण ने वरिष्ठ नागरिकों को भी इस बार बड़ी सौगातें दी हैं. पर, ये योजनाएं धरातल पर कब दिखेंगी, ये बड़ी बात है, लंबा इतजार भी करना पड़ सकता है. फिलहाल, विपक्षी दल बजट को नकार रहे हैं, चुनावी बता रहे हैं, बजट के बाद विपक्षी दलों नें हंगामा भी काटा, कड़ी प्रतिक्रियाएं भी देने शुरू कर दी है.

उनके जवाब में खुद प्रधानमंत्री को आगे आना पड़ा, उन्होंने जवाब दिया, बतया कि ये बजट विकसित हिंदुस्तान के विराट संकल्प को पूरा करने के लिए मजबूत नींव का निर्माण करेगा, साथ ही आकांक्षी समाज, गांव, गरीब, किसान, मध्यम वर्ग सभी के सपनों को भी पूरा करेगा, इससे विपक्ष और भड़क गया. उन्होंने कहा, मौजूदा वक्त में सबसे बड़ी समस्या महंगाई-बेरोजगारी की है, जिस दिशा में ये बजट बौना साबित होता है.

पेश करते हुए वित्तमंत्री ने बजट को अमृतकाल का पहला और सबसे बेहतरीन बजट बताया. कहा, भारत की अर्थव्यवस्था ठीक दिशा में है और सुनहरे भविष्य की ओर अग्रसर है, दुनिया ने भारतीय अर्थव्यवस्था को चमकता हुआ माना है, दुनिया में भारत के कदम को बढ़ता भी बताया. अच्छी बात है, हर हिंदुस्तानी भी यही चाहेगा मुल्क तेजी से आगे बढ़े. पर, ईमानदारी से, पर्दे के पीछे कोई खेला ना हो? जो अक्सर होता है. बजट में जितनी भी योजनाओं को लागू करने की बात कही गई है उन्हें ईमानदारी से अमल में लाया जाए. क्योंकि कई योजनाएं ऐसी होती हैं, साल बीत जाने तक शुरू नहीं होती. ये हर पिछले बजट में होता आया है, इसमें ऐसा ना हो, ऐसी सबको उम्मीदें हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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