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पांचवा वर्ष-छठा बजट: आखिरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमां होंगे!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 02 फरवरी, 2019 06:34 PM
  • 02 फरवरी, 2019 06:34 PM
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चुनावों से पहले सरकार ने बजट पेश किया है और 12 करोड़ किसानों को 6000 रुपए देने की बात की है.सरकार के इस फैसले के बाद किसानों के बीच से मिली जुली प्रतिक्रिया मिल रही है. कोई इसे घोषणा से खुश है तो कहीं किसी को ये मजाक से ज्यादा और कुछ नहीं लग रहा.

का पांन सौ रुपए महीना सच्चो में मिली,

पंद्रह लाख के जैसन जुमला त नाही बा ई!

बजट में राहत की खबर गांव-देहातों में करंट की तरह फैल गई है. दो हेक्टेयर जमीन वाले किसानों को 6000 सालाना की आर्थिक सहायता के एलान से किसानों के चेहरे खिल गए हैं. ज्यादातर किसान खुश हैं तो कुछ नाखुश हैं और इस मदद को नाकाफी बता रहे हैं. कुछ को यकीन नहीं आ रहा. पूर्वांचल के एक गरीब किसान की प्रतिक्रिया का एक वीडियो वायरल हो रहा है. किसान कहता है- का पान सौ रुपए महीना सच्चो में मिली! पंद्रह लाख के जैसन जुमला त नाही बा ई!

बजट में, किसनों के साथ जो सरकार ने किया उसपर उसे मिली जूली प्रतिक्रिया मिल रही है

बजट में किसानों की राहत पर चर्चाएं खेत खलिहानों और चौपालों से सोशल मीडिया तक पंहुच गयीं है. कोई कृषक खुशी से मोदी-मोदी, जय मोदी के साथ अपनी खुशी का इजहार कर रहा है. कोई मदद की इस रकम से नाखुश है और इसे नाकाफी बता रहा है. अकबरपुर निशांडा गांव के किसान अंजनी सोशल मीडिया पर लिखते हैं- नाही चाहिए हमका भीख. आजकल का भिखारिन भी पांच रूपया महीना भीख ना लेवत.

गरीब किसान भी स्मार्ट फोन और इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा है. इसका श्रेय भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खास कहे जाने वाले अंबानी ग्रुप को जाता है. किन्तु अपनी गरीबी का रोना रोते हुए कुछ किसान अपने स्मार्ट फोन पर सरकार के राहत भरे फैसले से संतुष्ट नहीं. हरदोई के बुजुर्ग किसान गफ्फार का भी वीडियो वायरल हुआ है. वो कहते हैं- जय जवान- जय किसान,  किन्तु किसानों को महीने में केवल पांच सौ रुपइया का ही वरदान. बड़के लोगन का करोड़ों का कर्जा कर दीहन माफ.

हांलाकि ज्यादातर लोग बजट को भारत की आम जनता और किसानों का मददगार बता रहे हैं....

का पांन सौ रुपए महीना सच्चो में मिली,

पंद्रह लाख के जैसन जुमला त नाही बा ई!

बजट में राहत की खबर गांव-देहातों में करंट की तरह फैल गई है. दो हेक्टेयर जमीन वाले किसानों को 6000 सालाना की आर्थिक सहायता के एलान से किसानों के चेहरे खिल गए हैं. ज्यादातर किसान खुश हैं तो कुछ नाखुश हैं और इस मदद को नाकाफी बता रहे हैं. कुछ को यकीन नहीं आ रहा. पूर्वांचल के एक गरीब किसान की प्रतिक्रिया का एक वीडियो वायरल हो रहा है. किसान कहता है- का पान सौ रुपए महीना सच्चो में मिली! पंद्रह लाख के जैसन जुमला त नाही बा ई!

बजट में, किसनों के साथ जो सरकार ने किया उसपर उसे मिली जूली प्रतिक्रिया मिल रही है

बजट में किसानों की राहत पर चर्चाएं खेत खलिहानों और चौपालों से सोशल मीडिया तक पंहुच गयीं है. कोई कृषक खुशी से मोदी-मोदी, जय मोदी के साथ अपनी खुशी का इजहार कर रहा है. कोई मदद की इस रकम से नाखुश है और इसे नाकाफी बता रहा है. अकबरपुर निशांडा गांव के किसान अंजनी सोशल मीडिया पर लिखते हैं- नाही चाहिए हमका भीख. आजकल का भिखारिन भी पांच रूपया महीना भीख ना लेवत.

गरीब किसान भी स्मार्ट फोन और इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा है. इसका श्रेय भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खास कहे जाने वाले अंबानी ग्रुप को जाता है. किन्तु अपनी गरीबी का रोना रोते हुए कुछ किसान अपने स्मार्ट फोन पर सरकार के राहत भरे फैसले से संतुष्ट नहीं. हरदोई के बुजुर्ग किसान गफ्फार का भी वीडियो वायरल हुआ है. वो कहते हैं- जय जवान- जय किसान,  किन्तु किसानों को महीने में केवल पांच सौ रुपइया का ही वरदान. बड़के लोगन का करोड़ों का कर्जा कर दीहन माफ.

हांलाकि ज्यादातर लोग बजट को भारत की आम जनता और किसानों का मददगार बता रहे हैं. इनकम टैक्स की छूट ढ़ाई हजार से पांच हजार कर देने और किसानों को आर्थिक सहायता देने का लाभ भारत की आधी से ज्यादा आबादी को मिलेगा. ये सच भी है.आज ना जाने कितने परिवार अपने बुजुर्गों की पेंशन पर आश्रित हैं. घर का खर्च, बच्चों की पढ़ाई और दवा इलाज का इंतजाम करने वाली किसी के घर आने वाली तीस से चालीस हजार रुपये की पेंशन से भी टैक्स कट जाता था. आज करोड़ों परिवार घर के मुखिया की पेंशन पर निर्भर हैं. अब चालीस हजार तक की पेंशन पाने वाले को टैक्स से मुक्ति मिल जायेगी. यही नहीं किसी की भी पांच लाख सालाना आमदनी इनकम टैक्स से मुक्त रहेगी.

यही सब कारण हैं जिनके दम पर माना जा रहा है कि मोदी सरकार का ये बजट आगामी लोकसभा चुनाव में जीतने की उम्मीद के लिए संजीवनी बन सकता है. बजट को लोकहित में बताने और इसकी प्रशंसा मोदी सरकार के विरोधियों को नहीं भा रही है. सोशल मीडिया पर बजट के खिलाफ भी माहौल छाया हुआ है. कोई इसे चुनावी लॉलीपॉप कह रहा है तो कोई कह रहा है कि - बहुत देर कर दी हुजूर आते आते.

किसी ने बजट पर सोशल मीडिया में ही अपनी में अपनी राय लिखा है कि चुनाव से पहले गांव-देहातों में वोट के लिए नोट बांटे जाते थे. दारू का पउवा (देसी दारू) बंटता था. ठीक ऐसे ही मोदी सरकार चुनाव से दो महीने पहले गांव वालों के एकाउंट में पांच-पांच सौ रूपये डालेगी. प्रचार के समय भाजपा के वर्कर्स कहेंगे- काका आ गवा ना तुमरे खाते में पांच सौ रूपइया. बस मोदी जी ने इसी खातिर तुम्हारे खाते में पैसवा डलवाना सुरु कर दिया है कि तुम कमल को वोट दो.  ई पैसवा तुमरे पास तब तलक ही आवेगा जब तलक मोदी जी सरकार में रहेंगे. आगे यही पांच सौ रूपया पांच हजार हो जइये. इस खातिर कमल पर बटन दबाना काका.

लगभग पांच साल गुजर जाने के बाद आम नागरिकों और किसानों का गुस्सा लोकलुभावन बजट से क्या खाक ठंडा हो जायेगा ? इस बात के साथ बजट की प्रतिक्रिया पर एक मशहूर शेर भी वायरल हो रहा है-

उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुतां में 'मोमिन'

आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमां होंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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