• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

मोदी सरकार के लिए बजट 2018 की चुनौतियां

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 29 जनवरी, 2018 04:46 PM
  • 29 जनवरी, 2018 04:46 PM
offline
वित्त मंत्री जल्द ही 2018 का आम बजट पेश करने वाले हैं. ये एक ऐसा बजट होगा जिसमें शायद ही देश के आम आदमी को कुछ राहत मिले. ऐसा इसलिए क्योंकि पीएम खुद ये बात पहले ही बता चुके हैं.

जब वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को आम बजट पेश करेंगे तो मोदी सरकार का यह पांचवां और अंतिम पूर्ण बजट होगा जिसमें वह सभी वर्गों को साधने की कोशिश कर सकती है. चूंकि मोदी सरकार की सोलहवीं लोकसभा का यह अंतिम बजट है इसलिए यह चुनौतीपूर्ण और महत्वपूर्ण दोनों है. महत्वपूर्ण इसलिए भी क्योंकि यह जीएसटी के बाद देश का पहला बजट है. इसके साथ ही यह 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले का पूर्ण बजट है. एक तरफ जहां वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का दबाव है तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दबावों के परिणामस्वरूप लोकलुभावन योजनाओं को शामिल करने का दबाव भी उनपर है. हालांकि प्रधानमंत्री पहले ही ये साफ़ कर चुके हैं कि इस साल का बजट लोकलुभावन बजट नहीं होगा.

प्रधानमंत्री पहले ही इस बात को साफ कर चुके हैं कि इस बार का बजट जटिल होगा

लेकिन प्रश्न ये कि क्या वित्त मंत्री उन आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने के क्रम में अपना बजट पेश करेंगे जिसमे प्रधानमंत्री मोदी का ज़ोर था. मसलन अर्थव्यवस्था की गति तेज़ करना और सिस्टम से भ्रष्टाचार एवं काला धन समाप्त करने के लिए आर्थिक सुधारों की पहल या फिर इस साल आठ राज्यों के विधान सभा और उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए लोकलुभावन बजट?

बजट चाहे जैसा भी हो. वित्त मंत्री के सामने कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं. जैसे राजकोषीय घाटे के लक्ष्य तक सीमित रखने की, कृषि सेक्टर में सुधार की- क्योंकि फसलों की सही कीमत न मिलने से देश में कई जगह किसानों के आंदोलन होते रहे हैं, मध्यम वर्ग को टैक्स राहत की, घर के सपनों को पूरा करने की, महंगाई को काबू में रखने की या फिर नए रोजगार के मौके बढ़ाने की.

नए रोजगार पैदा करना सबसे बड़ी चुनौती : 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी...

जब वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को आम बजट पेश करेंगे तो मोदी सरकार का यह पांचवां और अंतिम पूर्ण बजट होगा जिसमें वह सभी वर्गों को साधने की कोशिश कर सकती है. चूंकि मोदी सरकार की सोलहवीं लोकसभा का यह अंतिम बजट है इसलिए यह चुनौतीपूर्ण और महत्वपूर्ण दोनों है. महत्वपूर्ण इसलिए भी क्योंकि यह जीएसटी के बाद देश का पहला बजट है. इसके साथ ही यह 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले का पूर्ण बजट है. एक तरफ जहां वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का दबाव है तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दबावों के परिणामस्वरूप लोकलुभावन योजनाओं को शामिल करने का दबाव भी उनपर है. हालांकि प्रधानमंत्री पहले ही ये साफ़ कर चुके हैं कि इस साल का बजट लोकलुभावन बजट नहीं होगा.

प्रधानमंत्री पहले ही इस बात को साफ कर चुके हैं कि इस बार का बजट जटिल होगा

लेकिन प्रश्न ये कि क्या वित्त मंत्री उन आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने के क्रम में अपना बजट पेश करेंगे जिसमे प्रधानमंत्री मोदी का ज़ोर था. मसलन अर्थव्यवस्था की गति तेज़ करना और सिस्टम से भ्रष्टाचार एवं काला धन समाप्त करने के लिए आर्थिक सुधारों की पहल या फिर इस साल आठ राज्यों के विधान सभा और उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए लोकलुभावन बजट?

बजट चाहे जैसा भी हो. वित्त मंत्री के सामने कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं. जैसे राजकोषीय घाटे के लक्ष्य तक सीमित रखने की, कृषि सेक्टर में सुधार की- क्योंकि फसलों की सही कीमत न मिलने से देश में कई जगह किसानों के आंदोलन होते रहे हैं, मध्यम वर्ग को टैक्स राहत की, घर के सपनों को पूरा करने की, महंगाई को काबू में रखने की या फिर नए रोजगार के मौके बढ़ाने की.

नए रोजगार पैदा करना सबसे बड़ी चुनौती : 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी ने हर साल एक करोड़ नौकरियां पैदा करने का वादा किया था. लेकिन इसमें मोदी सरकार दूर-दूर तक लक्ष्य पूरा करते नज़र नहीं आई. श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार साल 2014 में 4.21 लाख और 2015 में 1.35 लाख नई नौकरियों का सृजन हुआ. अगर हम बात 2016 की करें तो आखिरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर 2016) में 1.22 लाख नई नौकरियां ही तैयार हुई थीं

2018 का ये आम बजट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी एक बड़ी चुनौती है

कृषि क्षेत्र का हालत गंभीर : पिछले साल के बजट में सरकार ने अगले पांच वर्षों में किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा था. लेकिन नोटबंदी और इसके बाद जीएसटी लागू होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था की हालत और खराब हो गई. किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत नहीं मिलने से वो अपने फसलों को सड़क पर फेंकने और आत्महत्या करने पर मज़बूर हो गए. साथ ही कृषि विकास दर में कमी से लक्ष्य के पूरा होने पर ही सवालिया निशान लग गया.

लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जहां की एक बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है और इसी साल इन राज्यों में विधान सभा चुनाव भी हैं ऐसे में मोदी सरकार का  लक्ष्य होगा - बजट में किसानों एवं कृषि से जुड़ी ऐसी योजनाओं की घोषणा करने की जिससे वह मजबूती के साथ विधानसभा चुनावों में जाए और किसानों के सामने अपनी योजनाओं का बखान कर सके ताकि अपनी सरकारें बचाने में कामयाब हो सके.

इस प्रकार से 2018 -19  का आम बजट मोदी सरकार के किए चुनौतियों से भरा होगा. जो मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने, बेरोज़गारों को नौकरियां दिलाने का वादा और किसानों की आय बढ़ाने के वादे के साथ सत्ता में आयी थी लेकिन इन 4 सालों में दूर-दूर तक खरा उतरते नज़र नहीं आ रही है उसके लिए यह बजट काफी चुनौतीपूर्ण होगा.

ये भी पढ़ें -

तो इसलिए GST के कारण बदल जाएगा 2018 का बजट!

इस बार रेल बजट में हमें ये चाहिए जेटली जी....

घर लेना हुआ सस्ता लेकिन एक पेंच के साथ...

  


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲