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बसपा के डूबते जहाज पर सवार मायावती का भारी-भरकम गुस्सा, डूबना एकदम तय

    • संध्या द्विवेदी
    • Updated: 12 अप्रिल, 2019 10:30 AM
  • 12 अप्रिल, 2019 10:30 AM
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कांग्रेस से उलझने का खामियाजा गठबंधन में बसपा के उम्मीदवारों को उठाना पड़ रहा है. कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों के सामने उतने मजबूत उम्मीदवार नहीं उतारे जितने बसपा के उम्मीदवारों के सामने.

यूपी के गांवों में एक कहावत खूब मशहूर है- 'रिश खोए आपन घर' यानी ज्यादा गुस्सा खुद को ही नुक्सान पहुंचाता है. ये कहावत मायावती के खत्म होते जनाधार पर पूरी तरह फिट बैठती है. जमकर कांग्रेस पर बरसना, गठबंधन में से अपने हिस्से की एक भी सीट रालोद के लिए ना छोड़ना और फिर सहारनपुर के चंद्र शेखर 'रावण' पर लगातार निशाना साधना, मायावती के रहे-सहे जनाधार पर भी मट्ठा डालने का ही काम किया है. इतना ही नहीं बसपा से एक-एक कर कई दिग्गज इसका दामन छोड़ते गए और बहनजी इन्हें मनाने की जगह अभिमान लिए बैठी रहीं. केशव प्रसाद मौर्या, नसीमुद्दीन सिद्दीकी आर.के चौधरी जैसे दिग्गज नेताओं की कमी बहनजी को इन चुनाव में खूब खलेगी.

'सियासत में हर कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहिए. गुस्से को निकालना नहीं बल्कि उसे पालना चाहिए और जब मौका मिले तो मिसाइल की तरह इसका इस्तेमाल करना चाहिए. बहन जी तो बस भस्मासुर बनी घूम रही हैं.' पश्चिमी यूपी के एक दलित युवा की खीझ बहनजी पर कुछ यूं निकली.

मायावती का गुस्सा उन्हीं पर भारी पड़ रहा है

पश्चिम यूपी के ही एक बसपा कार्यकर्ता भी इस दलित युवक की तरह ही बहनजी से खफा-खफा से दिखे. नाम न छापने की शर्त पर वे कहते हैं- 'अरे आखिर जरूरत क्या थी, चुनाव के वक्त ही कांग्रेस पर जहर बुझे तीर चलाने की, 'रावण' का जनाधार भले न हो लेकिन दलितों को एक संदेश तो दे ही दिया न कि आगर कोई नया दलित नेता उभरने की कोशिश करेगा तो बहनजी को बर्दाश्त नहीं होगा. अखिलेश की तरह बड़ा दिल करके अगर बहनजी एक भी सीट राष्ट्रीय लोकदल, 'रालोद' के लिए छोड़तीं तो उनका सम्मान लोगों के बीच बढ़ता ही घटता नहीं.' कार्यकर्ता की भड़ास थी कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी. वे आगे कहते हैं- 'देखिए न भाजपा ने निषाद पार्टी से नाता नहीं तोड़ा, बावजूद इसके कि उसका मुखिया उन्हें लगातार गलियाता रहा, शिवसेना ने खूब जहर उगला लेकिन जाकर हाथ मिला लिया, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी 'पीडीपी' तक से हाथ मिला लिया, लेकिन काम निकलते हुए हाथ भी झटक दिया. दरअसल बहनजी के बेकाबू गुस्से ने दलितों की एक...

यूपी के गांवों में एक कहावत खूब मशहूर है- 'रिश खोए आपन घर' यानी ज्यादा गुस्सा खुद को ही नुक्सान पहुंचाता है. ये कहावत मायावती के खत्म होते जनाधार पर पूरी तरह फिट बैठती है. जमकर कांग्रेस पर बरसना, गठबंधन में से अपने हिस्से की एक भी सीट रालोद के लिए ना छोड़ना और फिर सहारनपुर के चंद्र शेखर 'रावण' पर लगातार निशाना साधना, मायावती के रहे-सहे जनाधार पर भी मट्ठा डालने का ही काम किया है. इतना ही नहीं बसपा से एक-एक कर कई दिग्गज इसका दामन छोड़ते गए और बहनजी इन्हें मनाने की जगह अभिमान लिए बैठी रहीं. केशव प्रसाद मौर्या, नसीमुद्दीन सिद्दीकी आर.के चौधरी जैसे दिग्गज नेताओं की कमी बहनजी को इन चुनाव में खूब खलेगी.

'सियासत में हर कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहिए. गुस्से को निकालना नहीं बल्कि उसे पालना चाहिए और जब मौका मिले तो मिसाइल की तरह इसका इस्तेमाल करना चाहिए. बहन जी तो बस भस्मासुर बनी घूम रही हैं.' पश्चिमी यूपी के एक दलित युवा की खीझ बहनजी पर कुछ यूं निकली.

मायावती का गुस्सा उन्हीं पर भारी पड़ रहा है

पश्चिम यूपी के ही एक बसपा कार्यकर्ता भी इस दलित युवक की तरह ही बहनजी से खफा-खफा से दिखे. नाम न छापने की शर्त पर वे कहते हैं- 'अरे आखिर जरूरत क्या थी, चुनाव के वक्त ही कांग्रेस पर जहर बुझे तीर चलाने की, 'रावण' का जनाधार भले न हो लेकिन दलितों को एक संदेश तो दे ही दिया न कि आगर कोई नया दलित नेता उभरने की कोशिश करेगा तो बहनजी को बर्दाश्त नहीं होगा. अखिलेश की तरह बड़ा दिल करके अगर बहनजी एक भी सीट राष्ट्रीय लोकदल, 'रालोद' के लिए छोड़तीं तो उनका सम्मान लोगों के बीच बढ़ता ही घटता नहीं.' कार्यकर्ता की भड़ास थी कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी. वे आगे कहते हैं- 'देखिए न भाजपा ने निषाद पार्टी से नाता नहीं तोड़ा, बावजूद इसके कि उसका मुखिया उन्हें लगातार गलियाता रहा, शिवसेना ने खूब जहर उगला लेकिन जाकर हाथ मिला लिया, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी 'पीडीपी' तक से हाथ मिला लिया, लेकिन काम निकलते हुए हाथ भी झटक दिया. दरअसल बहनजी के बेकाबू गुस्से ने दलितों की एक पार्टी को खत्म कर दिया.'

कार्यकर्ता की एक भी बात बेबुनियादी नहीं लगती. कांग्रेस से उलझने का खामियाजा गठबंधन में बसपा के उम्मीदवारों को उठाना पड़ रहा है. कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों के सामने उतने मजबूत उम्मीदवार नहीं उतारे जितने बसपा के उम्मीदवारों के सामने. कांग्रेस ने सात सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे, इनमें से दो सीटें बागपत, और मुजफ्फरनगर की हैं.

यहां से रालोद उम्मीदवार जयंत चौधरी और मुजफ्फरनगर से खुद चौ. अजीत सिंह हैं. दूसरी तरफ, मुलायम सिंह यादव के कुनबे के चार उम्मीदवार अखिलेश यादव, डिंपल यादव, अक्षय यादव और खुद मुलायम सिंह यादव के लिए कांग्रेस ने सीट छोड़ दी. अखिलेश यादव की पहल पर गठबंधन ने भी कांग्रेस की पारंपरिक सीट अमेठी और रायबरेली से उम्मीदवार नहीं उतारे.

कांग्रेस की प्रियंका गांधी 'रावण' से भी मिलने पहुंचीं. दरअसल रावण से मिलने में प्रियंका गांधी की दिलचस्पी नहीं थी बल्कि दलितों के साथ उदार होने का संदेश देना था.

प्रियंका गांधी भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर 'रावण' से मिलने मेरठ के अस्पताल पहुंची थीं

अब जरा कुछ चर्चित सीटों की बात करें तो बिजनौर का नाम सबसे पहले आता है. यहां से कांग्रेस ने पूर्व बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी को उतारा है. नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने साल भर पहले ही बसपा का साथ छोड़ा. बसपा में कभी नंबर दो की पोजिशन पर काबिज रहे नसीमुद्दीन बसपा के उम्मीदवार मलूक नागर का जमकर वोट काटेंगे.

चर्चित सहारनपुर सीट को ही ले लीजिए, मुस्लिम बाहुल सीट से कांग्रेस ने इमरान मसूद को उतारा है. यह वही इमरान मसूद हैं, जिनके एक वायरल वीडियो ने इन्हें कुख्यात कर दिया था. इस वीडियो में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बोटी-बोटी काटने की बात कह रहे हैं. भाजपा ने राघव लाखन पाल को उतारा है. यहां बसपा का उम्मीदवार फजलुर्रहमान हैं. अव्वल तो यहां मुस्लिम वोट बंटने का फायदा भाजपा को ही मिलेगा, लेकिन दूसरी तरफ इमरान मसूद जैसी चर्चित हस्ती को उतारकर कांग्रेस ने बसपा को और कमजोर करने का काम किया है.

चर्चा थी कि नगीना सीट से खुद मायावती लड़ेंगी. लेकिन वे खुद नहीं खड़ी हुईं वहां से उन्होंने बसपा के पुराने नेता गिरीश चंद्र को उतारा है. उनके सामने कांग्रेस ने पुरानी बसपा नेता ओमवती देवी जाटव को खड़ा किया. इस सीट से ये सांसद और विधायक दोनों रह चुकी हैं. हालांकि ओमवती, कांग्रेस, सपा, बसपा और भाजपा चारों पार्टियों के साथ रह चुकी हैं. कांग्रेस से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाली ओमवती एक बार फिर कांग्रेस की उम्मीदवार हैं. भाजपा से यशवीर सिंह मैदान में हैं.

भले ही रालोद की लोकसभा में भारी सीटें न हों लेकिन उनके समर्थक हैं. इसी तरह 'रावण' के खिलाफ जहर उगलना भी उनके समर्थकों को कम से कम अच्छा तो नहीं लगा. अब नतीजे बताएंगे मायावती का यह गुस्सा सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की डगर में शूल बनकर कितना चुभेगा. जानकारों की मानें तो मायावती का यह रवैया उन्हें इस बार भी 'जीरो' से आगे नहीं बढ़ने देगा. इतना ही नहीं भाजपा के लिए बहनजी की तनी भौं वरदान ही साबित होगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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