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नेताओं के बाद हाथी भी मायावती का साथ छोड़ने को तैयार!

    • विनीत कुमार
    • Updated: 11 जुलाई, 2016 04:52 PM
  • 11 जुलाई, 2016 04:52 PM
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चुनाव से पहले पाला बदलने का खेल नया नहीं है. यूपी में अगले साल चुनाव होने हैं, इसलिए हिसाब-किताब का खेल जारी है. लेकिन मायावती के मामले में ये कहानी थोड़ी अलग हो जाती है. पार्टी छोड़ने वाले सभी नेताओं का आरोप एक ही है...

पिछले साल के आखिर में यूपी में पंचायत चुनाव के बाद लगा कि राज्य में मायावती के अच्छे दिन आ गए. ज्यादातर वो उम्मीदवार जीत कर आए जिसका समर्थन मायावती की पार्टी ने किया था. सपा और बीजेपी पीछे रह गए. लेकिन राजनीति में परिस्थितियां एक जैसी कहां रहती हैं. मायावती भले जाहिर न कर रही हों लेकिन पिछले एक महीने में जो कुछ हुआ है, उसने उनके पेशानी पर बल जरूर डाला होगा.

पहले स्वामी प्रसाद मौर्य फिर आरके चौधरी और हाल में रविंद्र नाथ त्रिपाठी के बाद अब बसपा के राष्ट्रीय सचिव परमदेव यादव. ये रही पिछले करीब एक महीनें में मायावती का साथ छोड़कर जाने वालों की लिस्ट. ये ऐसे नेता हैं, जो बसपा के बड़े चेहरे माने जाते हैं. कई वर्षों से पार्टी के साथ थे. परमदेव तो पिछले 35 साल से पार्टी से जुड़े थे. जाते-जाते कह गए कि बीएसपी परचून की दुकान बन गई है. खैर, बात यही थम जाए तो भी अच्छा है पर मुश्किल ये है कि पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी पर भी तलवार लटक रही है.

पहले बात पार्टी छोड़कर जाने वालों की

राजनीति में चुनाव से पहले पाला बदलने का खेल नया नहीं है. यूपी में अगले साल की शुरुआत में ही चुनाव होने हैं, इसलिए हिसाब-किताब का खेल भी जारी है. लेकिन मायावती के मामले में ये कहानी थोड़ी अलग हो जाती है. पार्टी छोड़ने वाले सभी नेताओं का आरोप एक ही है कि मायावती पैसों की भूखी हैं और मनमाने तरीके से पार्टी चला रही हैं.

यह भी पढ़ें- बुरे वक्त में गिरे हैं बसपा के विकेट!

पिछले साल जब मायावती ने कद्दावर नेता दद्दू प्रसाद को पार्टी से निष्कासित किया तभी ऐसी खबरें आने लगी थीं कि पार्टी का एक तबका नाराज चल रहा है और चुनाव से पहले इसक असर देखने को मिल सकता है. दद्दू प्रसाद से पहले भी दारा सिंह चौहान, अखिलेश दास, कबीर राणा, शाहिद अखलाक, रमाशंकर विद्यार्थी जैसे...

पिछले साल के आखिर में यूपी में पंचायत चुनाव के बाद लगा कि राज्य में मायावती के अच्छे दिन आ गए. ज्यादातर वो उम्मीदवार जीत कर आए जिसका समर्थन मायावती की पार्टी ने किया था. सपा और बीजेपी पीछे रह गए. लेकिन राजनीति में परिस्थितियां एक जैसी कहां रहती हैं. मायावती भले जाहिर न कर रही हों लेकिन पिछले एक महीने में जो कुछ हुआ है, उसने उनके पेशानी पर बल जरूर डाला होगा.

पहले स्वामी प्रसाद मौर्य फिर आरके चौधरी और हाल में रविंद्र नाथ त्रिपाठी के बाद अब बसपा के राष्ट्रीय सचिव परमदेव यादव. ये रही पिछले करीब एक महीनें में मायावती का साथ छोड़कर जाने वालों की लिस्ट. ये ऐसे नेता हैं, जो बसपा के बड़े चेहरे माने जाते हैं. कई वर्षों से पार्टी के साथ थे. परमदेव तो पिछले 35 साल से पार्टी से जुड़े थे. जाते-जाते कह गए कि बीएसपी परचून की दुकान बन गई है. खैर, बात यही थम जाए तो भी अच्छा है पर मुश्किल ये है कि पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी पर भी तलवार लटक रही है.

पहले बात पार्टी छोड़कर जाने वालों की

राजनीति में चुनाव से पहले पाला बदलने का खेल नया नहीं है. यूपी में अगले साल की शुरुआत में ही चुनाव होने हैं, इसलिए हिसाब-किताब का खेल भी जारी है. लेकिन मायावती के मामले में ये कहानी थोड़ी अलग हो जाती है. पार्टी छोड़ने वाले सभी नेताओं का आरोप एक ही है कि मायावती पैसों की भूखी हैं और मनमाने तरीके से पार्टी चला रही हैं.

यह भी पढ़ें- बुरे वक्त में गिरे हैं बसपा के विकेट!

पिछले साल जब मायावती ने कद्दावर नेता दद्दू प्रसाद को पार्टी से निष्कासित किया तभी ऐसी खबरें आने लगी थीं कि पार्टी का एक तबका नाराज चल रहा है और चुनाव से पहले इसक असर देखने को मिल सकता है. दद्दू प्रसाद से पहले भी दारा सिंह चौहान, अखिलेश दास, कबीर राणा, शाहिद अखलाक, रमाशंकर विद्यार्थी जैसे कई नेताओं ने या तो पार्टी छोड़ी या निकाले गए. इन सबके बीच बसपा की शुरुआत से पार्टी से जुड़े रहने वाले जुगल किशोर ने भी इसी साल जनवरी में बीजेपी का हाथ थाम लिया. उनका भी आरोप वही था. किशोर के मुताबिक, 'मायावती अब 'दलित की बेटी' नहीं होकर 'दौलत की बेटी' बन गई हैं. वो अब दलितों के वोट बेचने का काम करने लगी हैं.'

 दौलत की बेटी बन गईं हैं मायावती!

मायावती अब तक बहुत आराम से सभी आरोपों को दरकिनार करती आई हैं. साथ ही उनकी कोशिश यही साबित करने की रही कि जिन्होंने पार्टी छोड़ी, उससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता और वे खुद उन्हें निष्कासित करने की तैयारी कर रही थीं. मौर्य के पार्टी छोड़ने के बाद के मायावती के बयान को ही याद कीजिए. बकौल मायावती, 'पार्टी खुश है कि मौर्य खुद ही अलग हो गए नहीं तो हम उन्हें निकालने ही वाले थे.'

यह भी पढ़ें- यूपी के हिमंत बनेंगे स्वामी प्रसाद या मांझी साबित होंगे?

लेकिन दिलचस्प ये कि मायावती ये आरोप भी लगा रही हैं कि इन सबके पीछे बीजेपी और अमित शाह का हाथ हैं. जाहिर है मायावती का इशारा उत्तराखंड प्रकरण की ओर है. यही नहीं, मायावती यूपी में अमित शाह के कार्यक्रमों को 'बूथ मैनेजमेंट' का नाम देती हैं. लेकिन मायावती को देखना होगा कि आरोप लगाने से उनकी मुश्किलों का हल नहीं निकलने वाला.

हाथी पर भी लटकी तलवार!

पार्टी के बड़े नेताओं के साथ छोड़ने के बीच एक तलवार बसपा के चुनाव चिह्न हाथी पर भी लटक रही है. दरअसल, मुख्यमंत्री रहते मायावती ने सूबे में विभिन्न जगहों पर हाथी की जो मूर्तियां बनवाई, वही उनके गले की फांस बन रही है.

 हाथी होगा बीएसपी से दूर?

एक एनजीओ ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपील की थी कि कोर्ट बसपा का मौजूदा चुनाव चिन्ह रद्द कर कोई दूसरा चिन्ह देने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश जारी करे. कोर्ट ने मामला जरूर वापस चुनाव आयोग को भेज दिया है. लेकिन साथ ही कहा है कि चुनाव आयोग को कुछ ऐसे गाइडलाइंस बनाने चाहिए जिससे राजनीतिक पार्टिया सार्वजनति जगहों और पब्लिक मनी को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल न कर सकें, और पार्टियां अगर ऐसा करती हैं तो उनकी मान्यता रद्द करने का विकल्प भी मौजूद हो. विधानसभा और लोकसभा चुनाव से पहले मूर्तियों को ढकने का विवाद अपनी जगह है ही.

यह भी पढ़ें- यूपी में बसपा पर भी कांग्रेस की निग़ाहें

जाहिर है, अगर चुनाव आयोग अभी चुनाव से ठीक पहले इस मामले में कोई अहम फैसला लेता है तो मायावती सबसे बड़ी मुश्किल में होगी. हालांकि ये अभी तो दूर की कौड़ी लगती है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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