• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

यूपी में बसपा पर भी कांग्रेस की निग़ाहें

    • कुमार विक्रांत
    • Updated: 06 जुलाई, 2016 01:48 PM
  • 06 जुलाई, 2016 01:48 PM
offline
बसपा के साथ समझौता भी कांग्रेस के एजेंडे में है. लेकिन अपनी हैसियत बढ़ने और बसपा की ताक़त कमज़ोर होने का उसे इंतज़ार है.

भले ही कांग्रेस यूपी में अकेलेदम लड़ने का दावा कर रही हो, लेकिन अंदरखाने पार्टी में बसपा से तालमेल का भी ब्लू प्रिंट तैयार किया जा रहा है. ग़ुलाम नबी आज़ाद को यूपी का प्रभारी महासचिव बनाया जाना भी इसी रणनीति का हिस्सा है.

आज़ाद और मायावती के रिश्ते आपस में काफी अच्छे माने जाते हैं. 1996 में जब बसपा से कांग्रेस का समझौता हुआ तब आज़ाद ही यूपी के प्रभारी थे. लेकिन पार्टी और खुद आज़ाद को एहसास है कि, जब तक मायावती को ये एहसास नहीं होगा कि, वो अकेले दम सत्ता नहीं पा सकेंगी, तब तक वो समझौते के लिए राज़ी नहीं होंगी और हुईं भी तो कांग्रेस को काफी कम सीटें देंगी. लेकिन पार्टी का बड़ा तबका मानता है कि, बिहार की तरह बीजेपी को रोकना फायदे का सौदा हो सकता है.

राहुल गांधी

पहले अपनी ताक़त दिखाने की तैयारी

मायावती को कांग्रेस की ताक़त का एहसास हो,पार्टी पहले इसी मुहीम में जुटना चाहती है. प्रदेश भर में कांग्रेस अपनी उपस्थिति जताना चाहती है. जिससे मायावती को लगे कि, अगर गठजोड़ नहीं हुआ तो वो सत्ता से दूर रह सकती हैं. साथ ही कांग्रेस के नेता अंदरखाने बीजेपी के भारी-भरकम प्रचार अभियान, हिन्दू-मुस्लिम की सियासत से भी बसपा को आगाह कर रहे हैं.

कांग्रेस को लगता है कि, स्वामी प्रसाद मौर्या और आरके चौधरी जैसे नेताओं का जाना भी बसपा के लिए झटका है. ऐसे में आने वाले वक़्त में बीजेपी का डर और खुद की पार्टी की कमज़ोरी के चलते मायावती समझौते की हामी भर सकती हैं. लेकिन माया तो माया ठहरीं, ज़िद में अगर बाद में भी समझौता नहीं किया तो कांग्रेस की फज़ीहत हो सकती है. इसीलिए फ़िलहाल कांग्रेस के नेता अकेले चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं और...

भले ही कांग्रेस यूपी में अकेलेदम लड़ने का दावा कर रही हो, लेकिन अंदरखाने पार्टी में बसपा से तालमेल का भी ब्लू प्रिंट तैयार किया जा रहा है. ग़ुलाम नबी आज़ाद को यूपी का प्रभारी महासचिव बनाया जाना भी इसी रणनीति का हिस्सा है.

आज़ाद और मायावती के रिश्ते आपस में काफी अच्छे माने जाते हैं. 1996 में जब बसपा से कांग्रेस का समझौता हुआ तब आज़ाद ही यूपी के प्रभारी थे. लेकिन पार्टी और खुद आज़ाद को एहसास है कि, जब तक मायावती को ये एहसास नहीं होगा कि, वो अकेले दम सत्ता नहीं पा सकेंगी, तब तक वो समझौते के लिए राज़ी नहीं होंगी और हुईं भी तो कांग्रेस को काफी कम सीटें देंगी. लेकिन पार्टी का बड़ा तबका मानता है कि, बिहार की तरह बीजेपी को रोकना फायदे का सौदा हो सकता है.

राहुल गांधी

पहले अपनी ताक़त दिखाने की तैयारी

मायावती को कांग्रेस की ताक़त का एहसास हो,पार्टी पहले इसी मुहीम में जुटना चाहती है. प्रदेश भर में कांग्रेस अपनी उपस्थिति जताना चाहती है. जिससे मायावती को लगे कि, अगर गठजोड़ नहीं हुआ तो वो सत्ता से दूर रह सकती हैं. साथ ही कांग्रेस के नेता अंदरखाने बीजेपी के भारी-भरकम प्रचार अभियान, हिन्दू-मुस्लिम की सियासत से भी बसपा को आगाह कर रहे हैं.

कांग्रेस को लगता है कि, स्वामी प्रसाद मौर्या और आरके चौधरी जैसे नेताओं का जाना भी बसपा के लिए झटका है. ऐसे में आने वाले वक़्त में बीजेपी का डर और खुद की पार्टी की कमज़ोरी के चलते मायावती समझौते की हामी भर सकती हैं. लेकिन माया तो माया ठहरीं, ज़िद में अगर बाद में भी समझौता नहीं किया तो कांग्रेस की फज़ीहत हो सकती है. इसीलिए फ़िलहाल कांग्रेस के नेता अकेले चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं और बसपा से गठजोड़ के सवाल कुछ बोलना नहीं चाहते.

 मायावती

सीटों की संख्या है कांग्रेस की परेशानी का सबब

दरअसल राहुल गांधी अब तक आपसी बैठकों में ये कहते रहे हैं कि, कांग्रेस की यूपी में बुरी हालत की बड़ी वजह 1996 विधानसभा में कांग्रेस बसपा का वो समझौता था, जब कांग्रेस 125 सीटों में लड़ी और बाकी सीटों पर कांग्रेस का डंडा झंडा गायब हो गया.

उलटे मायावती मानती हैं कि, कांग्रेस को बसपा का वोट ट्रांसफर होता है, लेकिन कांग्रेस का वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं होता. ऐसे हालात में फ़िलहाल तो कांग्रेस अकेले आगे बढ़ते हुए दिखना चाहती है , लेकिन बसपा के साथ तालमेल को लेकर देखो और इंतज़ार करो को नीति पर है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲