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मैं रोमियो तो नहीं हूं, लेकिन स्क्वाड से डरता हूं

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 01 फरवरी, 2017 05:33 PM
  • 01 फरवरी, 2017 05:33 PM
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देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी उन लोगों को इस महान कृत्य के लिए नियुक्त करेगी जो अब तक मुफ्त में कल्चर की रखवाली कर रहे थे या फिर इस नियुक्ति के लिए नए रंगरूट भर्ती करे जाएंगे.

बड़ी अराजकता और खतरों का दौर है, कुछ लिखने मात्र से, कब अपशब्द सुनने को मिल जाएं, ये तो खुद दयालु येशू भी नहीं जानते. ऐसे में मैं भला क्या चीज हूं. आगे बढ़ने और कुछ पढने से पहले नोट पढ़ लीजिये. आपको समझने और मुझे समझाने में आसानी होगी. 

नोट – एक महिला ही किसी पुरुष की मां है, बहन है, प्रेमिका है, बीवी है. मैं महिलाओं का सम्मान उतना ही करता हूं जितना सम्मान मैं अपने परिवार को देता हूँ. मैं सिर्फ यह अर्ज करना चाहता हूं कि महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए किसी पुरुष, किसी संस्था, किसी टास्क फ़ोर्स, किसी स्क्वाड की मोहताज नहीं है. कोई पाठक इसे पढ़कर जज्‍बाती हो, इससे पहले बता देना चाहता हूं कि यदि लोग अपने दायरे में रहें, भाषणों और बयानों में महिलाओं की गरिमा का ख्‍याल रखें तो किसी 'रोमियो' या 'मजनू' का हौसला हद पार नहीं बढ़ेगा.       

नोट खत्म हो चुका है, बात शुरू करने का दौर है. मैं लिखते–लिखते ये सोच रहा हूं कि कहां से बात शुरु करूं. चुनावी बयार है तो चलिए बात की शुरुआत चुनाव के मद्देनज़र ही करी जाए. जब चुनाव आता है तो जहां एक तरफ नेता जी आते हैं तो वहीं दूसरी तरफ मेनिफेस्टो भी आ ही जाते हैं. हां वही मेनिफेस्टो जिनको आपने पिछले चुनाव और उसके भी पहले के चुनावों में देखा होगा. चुनावों के मेनिफेस्टो में मुद्दे वही रहते हैं बस काग़ज की क्वालिटी, नम्बरिंग, फॉर्मेट और फॉण्ट बदल जाते हैं. जो बात है, ये मेनिफेस्टो होते बड़े हास्यजनक हैं. मतलब ये कि यदि डिप्रेशन का शिकार कोई आदमी इनको पढ़ ले तो पढने मात्र से ही उसका डिप्रेशन दूर हो जाये. बहरहाल मैं बड़ा परेशान रहता था. अभी कुछ दिन पहले ही यूपी चुनावों के अंतर्गत बनाया हुआ बीजेपी का मेनिफेस्टो मेरे हाथ लगा. मैंने उसे पढ़ा, और जैसे ही मैं उसके उस पॉइंट पर पहुंचा जहां महिला सुरक्षा के लिए “एंटी रोमियो स्क्वाड” की बात लिखी थी मेरी सारी परेशानी छू मंतर हो गयी. 

जी हां सही सुना, यूपी की लड़कियों की...

बड़ी अराजकता और खतरों का दौर है, कुछ लिखने मात्र से, कब अपशब्द सुनने को मिल जाएं, ये तो खुद दयालु येशू भी नहीं जानते. ऐसे में मैं भला क्या चीज हूं. आगे बढ़ने और कुछ पढने से पहले नोट पढ़ लीजिये. आपको समझने और मुझे समझाने में आसानी होगी. 

नोट – एक महिला ही किसी पुरुष की मां है, बहन है, प्रेमिका है, बीवी है. मैं महिलाओं का सम्मान उतना ही करता हूं जितना सम्मान मैं अपने परिवार को देता हूँ. मैं सिर्फ यह अर्ज करना चाहता हूं कि महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए किसी पुरुष, किसी संस्था, किसी टास्क फ़ोर्स, किसी स्क्वाड की मोहताज नहीं है. कोई पाठक इसे पढ़कर जज्‍बाती हो, इससे पहले बता देना चाहता हूं कि यदि लोग अपने दायरे में रहें, भाषणों और बयानों में महिलाओं की गरिमा का ख्‍याल रखें तो किसी 'रोमियो' या 'मजनू' का हौसला हद पार नहीं बढ़ेगा.       

नोट खत्म हो चुका है, बात शुरू करने का दौर है. मैं लिखते–लिखते ये सोच रहा हूं कि कहां से बात शुरु करूं. चुनावी बयार है तो चलिए बात की शुरुआत चुनाव के मद्देनज़र ही करी जाए. जब चुनाव आता है तो जहां एक तरफ नेता जी आते हैं तो वहीं दूसरी तरफ मेनिफेस्टो भी आ ही जाते हैं. हां वही मेनिफेस्टो जिनको आपने पिछले चुनाव और उसके भी पहले के चुनावों में देखा होगा. चुनावों के मेनिफेस्टो में मुद्दे वही रहते हैं बस काग़ज की क्वालिटी, नम्बरिंग, फॉर्मेट और फॉण्ट बदल जाते हैं. जो बात है, ये मेनिफेस्टो होते बड़े हास्यजनक हैं. मतलब ये कि यदि डिप्रेशन का शिकार कोई आदमी इनको पढ़ ले तो पढने मात्र से ही उसका डिप्रेशन दूर हो जाये. बहरहाल मैं बड़ा परेशान रहता था. अभी कुछ दिन पहले ही यूपी चुनावों के अंतर्गत बनाया हुआ बीजेपी का मेनिफेस्टो मेरे हाथ लगा. मैंने उसे पढ़ा, और जैसे ही मैं उसके उस पॉइंट पर पहुंचा जहां महिला सुरक्षा के लिए “एंटी रोमियो स्क्वाड” की बात लिखी थी मेरी सारी परेशानी छू मंतर हो गयी. 

जी हां सही सुना, यूपी की लड़कियों की सुरक्षा के मद्देनजर सोहदों और मनचलों पर नकेल कसने के लिए बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में “एंटी रोमियो स्क्वाड” के गठन की बात करी है. मेनिफेस्टो के इस बिंदु को पढ़कर मैं आधा इमोशनल और पूरा जज्बाती हो रहा हूं. इमोशनल मैं यूं हुआ कि मेरी नज़र के सामने बजरंग दल, हिन्दू वाहिनी, विहिप के वो कार्यकर्ता आ गए हैं जो हर साल न्यू ईयर और खासतौर से वेलेंटाइन डे का विरोध करते थे, वो भी बिना किसी वेतन या पारिश्रमिक के, और अब तो वो इस काम को ऑफीशियली करेंगे, और ऐसा करने के लिए वेतन भी मिलेगा.

जज्बाती इसलिए हो रहा हूं कि अब मुझे वाकई उन महिलाओं कि सुरक्षा की चिंता है जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी के लिए इस “स्पेशल टास्क फ़ोर्स” का गठन किया जा रहा है. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि सुरक्षा के नाम पर कुछ विशेष दिनों में कल्चर के ठेकेदारों द्वारा देश की महिलाओं को खासा डरा दिया जाता है. प्रायः ये कई बार सुनने में आता है कि भाई या परिवार के किसी सदस्य के साथ कहीं जाने पर महापराक्रमी टास्क फोर्सों द्वारा, दिन विशेष पर महिलाओं को रोक लिया गया और उनको प्रताड़ना की सीमा तक प्रताड़ित किया गया. गौरतलब है कि ऐसा करने के पीछे ऐसी संस्थाओं की मंशा बस ये है कि आज धर्म विशेष के लोगों द्वारा बहला फुसला कर दूसरे धर्म की बेटियों को ठगा जा रहा है. जिसके फल स्वरुप उन्हें लव जिहाद के कुंए में धकेल कर उनकी ज़िन्दगी बर्बाद की जा रही है.

बताया जाता है कि ऐसी संस्थाओं का निर्माण उन महिलाओं का बचाव होता है. ध्यान रहे कि पूर्व में कुछ मामले ऐसे आएं हैं जिन्होंने अपने शुरुआती दौर में लव जिहाद की चिंगारी को आग में बदला था मगर जब उनकी जांच हुई तो आधे से ज्यादा मामले फर्ज़ी और बेबुनियाद पाए गए. जहां तक व्यक्तिगत रूप से मैं महिला और उसकी सुरक्षा जैसे मुद्दे को अपनी इन झुर्री पड़ी आंखों से देखता हूं तो मुझे मिलता है कि महिला किसी पुरुष और उसकी सहानुभूति की ज़िम्मेदार नहीं है और बड़े ही बेहतर ढंग से वो अपनी सुरक्षा कर सकती है. कह सकते हैं एक महिला की सुरक्षा के नाम पर ऐसी संस्थानों का निर्माण माया है और ज्ञात हो कि माया महाठगनी होती है.     

बहरहाल अंत में ये देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी उन लोगों को इस महान कृत्य के लिए नियुक्त करेगी जो अब तक मुफ्त में कल्चर की रखवाली कर रहे थे या फिर इस नियुक्ति के लिए नए रंगरूट भर्ती करे जाएंगे. साथ ही ये भी देखना दिलचस्प रहेगा कि यदि 15 साल के लंबे अंतराल के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी अपनी वापसी करती है और इस स्क्वाड का निर्माण करती है तो इसके एसपी, कोतवाल, दरोगा दीवान कैसे होंगे और वो किस तरह प्रदेश की महिलाओं को सुरक्षा की गारंटी देंगे.

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यूपी में महिलाओं के मुद्दे पर कब होगा चुनाव ?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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