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कर्नाटक चुनाव : गलती जुबान की नहीं है, कर्नाटक में दोष बीएस येदियुरप्पा के भाग्य का है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 31 मार्च, 2018 08:06 PM
  • 31 मार्च, 2018 08:06 PM
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कर्नाटक चुनाव के मद्देनजर रैलियों में जनता का पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को नकारना ये बता देता है कि आज भी राज्य के आम लोगों के सामने पूर्व में भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे येदियुरप्पा की छवि नकारात्मक है.

कर्नाटक में 12 मई को चुनाव होने हैं. निर्वाचन आयोग ने बहुप्रतीक्षित मतदान कार्यक्रम की घोषणा करते हुए इस बात का एहसास करा दिया है कि राज्य का ये चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक होगा. कर्नाटक में जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है पूरे सूबे में सियासी घमासान तेज होता जा रहा है. 2019 के आम चुनाव से पहले कर्नाटक का ये चुनाव प्रधानमंत्री मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इस चुनाव को अगर हम दो अलग-अलग रूप में देख सकते हैं. इसका पहला रूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मान और प्रतिष्ठा से जुड़ा है तो वहीं इसका दूसरा रूप राहुल गांधी से जोड़ा जा सकता है. अगर प्रदर्शन अच्छा हुआ तो साफ हो जाएगा कि इस चुनाव के जरिये राहुल गांधी को वो जनाधार वापस मिल गया है जो उन्होंने और उनकी पार्टी ने खोया था.

कर्नाटक चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने कमर कस ली है और आरोप प्रत्यारोप लगने शुरू हो गए हैं

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो ये चुनाव इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इससे भाजपा में नई उर्जा का संचार होगा तो वहीं कांग्रेस को जटिल राहों में खड़े होने के लिए बल मिलेगा. कर्नाटक का अगला मुख्यमंत्री भाजपा के खेमे से होगा या फिर वो राहुल गांधी के हाथ के साथ से आएगा इसपर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी. मगर चुनावों के मद्देनजर राज्य में जिस तरह की सरगर्मियां चल रही हैं वो ये बताने के लिए काफी हैं कि दोनों ही राष्ट्रीय दल कमर कस कर एक दूसरे के आमने सामने हैं और दोनों ही दल एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए साम, दाम, दंड भेद सभी नीतियों की जोर आजमाइश कर रहे हैं.

राहुल अपनी रैलियों में पीएम मोदी की नाकामियां और जुमले गिना रहे हैं तो वहीं अमित शाह लगातार प्रदेश की जनता को कांग्रेस पार्टी के अवगुणों से अवगत करा रहे...

कर्नाटक में 12 मई को चुनाव होने हैं. निर्वाचन आयोग ने बहुप्रतीक्षित मतदान कार्यक्रम की घोषणा करते हुए इस बात का एहसास करा दिया है कि राज्य का ये चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक होगा. कर्नाटक में जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है पूरे सूबे में सियासी घमासान तेज होता जा रहा है. 2019 के आम चुनाव से पहले कर्नाटक का ये चुनाव प्रधानमंत्री मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इस चुनाव को अगर हम दो अलग-अलग रूप में देख सकते हैं. इसका पहला रूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मान और प्रतिष्ठा से जुड़ा है तो वहीं इसका दूसरा रूप राहुल गांधी से जोड़ा जा सकता है. अगर प्रदर्शन अच्छा हुआ तो साफ हो जाएगा कि इस चुनाव के जरिये राहुल गांधी को वो जनाधार वापस मिल गया है जो उन्होंने और उनकी पार्टी ने खोया था.

कर्नाटक चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने कमर कस ली है और आरोप प्रत्यारोप लगने शुरू हो गए हैं

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो ये चुनाव इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इससे भाजपा में नई उर्जा का संचार होगा तो वहीं कांग्रेस को जटिल राहों में खड़े होने के लिए बल मिलेगा. कर्नाटक का अगला मुख्यमंत्री भाजपा के खेमे से होगा या फिर वो राहुल गांधी के हाथ के साथ से आएगा इसपर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी. मगर चुनावों के मद्देनजर राज्य में जिस तरह की सरगर्मियां चल रही हैं वो ये बताने के लिए काफी हैं कि दोनों ही राष्ट्रीय दल कमर कस कर एक दूसरे के आमने सामने हैं और दोनों ही दल एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए साम, दाम, दंड भेद सभी नीतियों की जोर आजमाइश कर रहे हैं.

राहुल अपनी रैलियों में पीएम मोदी की नाकामियां और जुमले गिना रहे हैं तो वहीं अमित शाह लगातार प्रदेश की जनता को कांग्रेस पार्टी के अवगुणों से अवगत करा रहे हैं. शायद ये कांग्रेस पार्टी को नीचा दिखाने की जल्दबाजी ही है. जिसके चलते लगातार दूसरी बार अमित शाह से वो गलती हुई है जिसका अगर उन्होंने वक़्त लेते संज्ञान नहीं लिया तो प्रदेश में भाजपा के अच्छे दिन आने मुश्किल हैं.

शाह अपनी रैलियों में लगातार कांग्रेस के भ्रष्टाचार गिनाते नजर आ रहे हैं

जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के प्रचार प्रसार के सिलसिले में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह दवानागिरी में थे और वहां जो हुआ उससे पूरी पार्टी की किरकिरी हो गयी. धारवाड़ में पार्टी भाषा के फेर में पड़ गयी जिससे अर्थ का अनर्थ हो गया. बात आगे बढ़ाने से पहले हमें ये जान लेना चाहिए कि ये कोई पहला मौका नहीं है जब पार्टी के लोगों ने पार्टी की फजीहत कराई हो. अभी कुछ दिन पहले ही शाह ने गलती से भ्रष्टाचार पर खुद अपने ही सीएम उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा का नाम ले लिया था और उन्हें सबसे ज्यादा करप्ट बता दिया था.

अब उसके बाद पार्टी द्वारा धारवाड़ में हुई ये दूसरी बड़ी गलती कई मायनों में भाजपा के आलोचकों विशेषकर राहुल गांधी के लिए, उत्प्रेरक का काम करेगी और वो और मुखर होकर पार्टी की आलोचना करेंगे. हुआ कुछ यूं है कि अमित शाह के एक बयान को धारवाड़ से बीजेपी सांसद प्रह्लाद जोशी ने कन्नड़ में गलत ट्रांसलेट कर दिया. गलत बयान के अनुसार, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गरीब, दलित और पिछड़ों के लिए कुछ भी नहीं करेंगे. वो देश को बर्बाद कर देंगे, आप उन्हें वोट दीजिये.'

ये कहकर कि कन्नड़ भाषियों को हिन्दी नहीं आती या फिर भाषा का दोष बताकर बचा नहीं जा सकता. निस्संदेह ये एक बड़ी गलती है. इस गलती के बाद, हो ये भी सकता है कि देश का कोई भी सामान्य नागरिक इस खबर को नजरंदाज कर दे और कहे कि ये कोई इतना बड़ा विषय नहीं है जिसपर चर्चा हो. मगर जब इन बातों को कर्नाटक की राजनीति के सांचे में डाल कर देखें तो मिल रहा है कि वहां जो कुछ भी हो रहा है सब अपने आप में अहम है और वहां से जुड़ी हर एक चीज सत्ता परिवर्तन का सामर्थ्य रखती है.

आरोपों की इस जंग में नेताओं की जुबान फिसलने से पार्टी एक बड़ी मुसीबत में आ सकती है

इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अभी कुछ दिन पहले चित्रदुर्ग में हुई रैली में अमित शाह ने उपस्थित लोगों से कुछ सवाल पूछे थे जिसके ज्यादातर जवाब उन्हें नहीं में मिले. जैसे अमित शाह ने पूछा था कि "आपको कांग्रेस से कोई पैसा मिला है क्या ?" इसपर लोगों ने कहा नहीं.  इसके बाद उन्होंने कहा कि "इस सरकार, जो वोट बैंक पॉलिटिक्स खेलती है, इसको उखाड़ देना चाहिए या नहीं" इसपर भी लोगों का जवाब नहीं ही था. फिर शाह ने पूछा कि "क्या आप बीएस येदियुरप्पा जी को मुख्यमंत्री बनाएंगे इस सवाल पर जनता का जवाब हैरत में डालने वाला था. जनता ने इसपर भी "नहीं" ही कहा.

हो सकता है कि इसपर एक आम हिंदी भाषी ये कहे कि हो सकता है कर्नाटक की जनता को शाह का सवाल समझ में नहीं आया हो और उन्होंने ये उत्तर दिया हो तो ये बात अपने आप में हास्यपद है. यहां ये बताना ज़रूरी है कि आज भी कर्नाटक में ऐसे लोगों की एक बड़ी संख्या है जो प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को तो पसंद करती है मगर उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा से कोई विशेष लगाव नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को अपना इस्तीफ़ा ही अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोप के चलते देना पड़ा था. भले ही बीएस येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार मामलों में क्लीन चिट मिल गयी हो मगर आज भी पूरे कर्नाटक में उनके भ्रष्टाचार के किस्से किसी से छुपे नहीं हैं. कर्नाटक में लोगों का मत है कि भाजपा भविष्य के मुख्यमंत्री के रूप में एक कमजोर कड़ी को अपने साथ लेकर चल रही है.

अमित शाह द्वारा की जा रही गलतियां लगातार कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो रही हैं

कहा ये भी जा सकता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भी इस बात का एहसास है कि बीएस येदियुरप्पा पाक साफ नहीं हैं. जाने अनजाने बीएस येदियुरप्पा के सम्बन्ध में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के मुंह से निकली बात अपने आप ही ये बता रही है कि आज भी एक लम्बे अन्तराल के बाद येदियुरप्पा का काला अतीत उनके साथ कंधे से कंधा मिलकर चल रहा है.

कर्नाटक में लगातार भाजपा, कांग्रेस द्वारा करे गए भ्रष्टाचार की बात कह रही है. मगर जब हम भ्रष्टाचार की बातों के सांचे में येदियुरप्पा को डालें तो मिल रहा है कि भ्रष्टाचार के आरोपों में कांग्रेस या राज्य में कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोग उनसे कहीं पीछे हैं और वो भ्रष्टाचार के पुराने और माहिर खिलाड़ी हैं. येदियुरप्पा के मद्देनजर बस इतना ही कहा जा सकता है कि यदि वो जीते तो ये जीत उनकी नहीं बल्कि पार्टी और मोदी की जीत होगी जिनका चेहरा देखकर उम्मीदों से भरा हुआ वोटर वोट दे रहा है.

अंत में हम अपनी बात को विराम देते हुए बस इतना ही कहेंगे कि अगर अब भी कोई भाषा और उसके आने या न आने को लेकर बात कर रहा है तो उसे ये जान लेना चाहिए कि कर्नाटक की जनता इतनी भी भोली नहीं है. वो नेताओं की हर बात का बारीकी से आंकलन कर रही है और वोट देकर नेताओं को अपनी शक्ति का एहसास कराएगी. येदियुरप्पा बस ईश्वर से प्रार्थना करें कि इस बार जनता फिर उनपर विश्वास करे वरना उनके ही बड़े नेता जनता के सामने उनकी फजीहत तो करा ही चुके हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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