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बंगाल में 'विद्यासागर' खुद उतरे मैदान में, असली वोटों के लिए नकली ही सही

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 16 मई, 2019 10:21 PM
  • 16 मई, 2019 10:21 PM
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जिस तरह बंगाल में सातवें चरण के चुनाव से ठीक पहले ईश्वर चन्द्र विद्यासागर को बड़ा मुद्दा बनाकर बंगाली अस्मिता से जोड़ा गया है. साफ हो गया है कि इसपर भाजपा और तृणमूल दोनों ही अपने अपने स्तर से राजनीति कर जनता का ध्यान आकर्षित कर रही हैं

देश में जब चुनाव हों, कब किस चीज को मुद्दा बन दिया जाए कोई नहीं जानता. बचपन से लेकर आज उम्र के इस पड़ाव तक मैं खुद कई चीजों को मुद्दा बनते और उन मुद्दों के बल पर नेताओं को जीतते और संसद जाते देख चुका हूं.17 वीं लोकसभा के 6 चरण के मतदान हो चुके हैं सातवां चरण बाक़ी है और हर किसी की जुबान पर या तो प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र वाराणसी है या फिर पश्चिम बंगाल. मैं वाराणसी जा चुका हूं. वाराणसी में मैंने घाट के किनारे लोगों को चाय के बाद जलेबी और रबड़ी खाते और तंग गलियों में हट्टे कट्टे सांडों को लड़ते देखा है. मैं बंगाल नहीं गया मगर कुछ लोगों की बदौलत मैं बंगाल को जानता हूं.

बात अगर उन कुछ लोगों की हो जिनके बल पर मैंने बंगाल को थोड़ा बहुत जाना है तो टैगोर के बाद वो नाम जो सबसे पहले मेरे जहन में आता है वो ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का नाम किताबों तक सीमित था. मगर ये भारतीय राजनीति ही है जिसने न सिर्फ विद्यासागर को किताबों से निकाला बल्कि अब वो लोगों का दरवाजा खटखटा कर भाजपा के लिए वोट की अपील कर रहे हैं.

बंगाल में इस वक़्त ईश्वरचंद्र विद्यासागर को बंगाली अस्मिता से जोड़कर देखा जा रहा है

यहां जिस ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की बात हो रही है वो भले ही असली न होकर विद्यासागर का पाइरेटेड वर्शन हों. मगर उनमें इतना दम जरूर है कि वो बंगाल की हालिया राजनीति को कुछ हद तक प्रभावित कर सकते हैं. ज्ञात हो कि विद्यासागर कॉलेज में मूर्ति तोड़े जाने के बाद कोलकाता की सड़कों पर सियासी सरगर्मियां उस वक़्त तेज हुईं जब लोगों ने भाजपा प्रत्याशी अनुपम हाजरा को विद्यासागर से मिलते जुलते के आदमी के साथ अपना चुनाव प्रचार करते हुए देखा.

हाजरा की ये अदा उनके आलोचकों को बहुत चुभी है....

देश में जब चुनाव हों, कब किस चीज को मुद्दा बन दिया जाए कोई नहीं जानता. बचपन से लेकर आज उम्र के इस पड़ाव तक मैं खुद कई चीजों को मुद्दा बनते और उन मुद्दों के बल पर नेताओं को जीतते और संसद जाते देख चुका हूं.17 वीं लोकसभा के 6 चरण के मतदान हो चुके हैं सातवां चरण बाक़ी है और हर किसी की जुबान पर या तो प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र वाराणसी है या फिर पश्चिम बंगाल. मैं वाराणसी जा चुका हूं. वाराणसी में मैंने घाट के किनारे लोगों को चाय के बाद जलेबी और रबड़ी खाते और तंग गलियों में हट्टे कट्टे सांडों को लड़ते देखा है. मैं बंगाल नहीं गया मगर कुछ लोगों की बदौलत मैं बंगाल को जानता हूं.

बात अगर उन कुछ लोगों की हो जिनके बल पर मैंने बंगाल को थोड़ा बहुत जाना है तो टैगोर के बाद वो नाम जो सबसे पहले मेरे जहन में आता है वो ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का नाम किताबों तक सीमित था. मगर ये भारतीय राजनीति ही है जिसने न सिर्फ विद्यासागर को किताबों से निकाला बल्कि अब वो लोगों का दरवाजा खटखटा कर भाजपा के लिए वोट की अपील कर रहे हैं.

बंगाल में इस वक़्त ईश्वरचंद्र विद्यासागर को बंगाली अस्मिता से जोड़कर देखा जा रहा है

यहां जिस ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की बात हो रही है वो भले ही असली न होकर विद्यासागर का पाइरेटेड वर्शन हों. मगर उनमें इतना दम जरूर है कि वो बंगाल की हालिया राजनीति को कुछ हद तक प्रभावित कर सकते हैं. ज्ञात हो कि विद्यासागर कॉलेज में मूर्ति तोड़े जाने के बाद कोलकाता की सड़कों पर सियासी सरगर्मियां उस वक़्त तेज हुईं जब लोगों ने भाजपा प्रत्याशी अनुपम हाजरा को विद्यासागर से मिलते जुलते के आदमी के साथ अपना चुनाव प्रचार करते हुए देखा.

हाजरा की ये अदा उनके आलोचकों को बहुत चुभी है. आलोचकों का कहना है कि नकली विद्यासागर को जनता के सामने लाना मामले पर भाजपा की बेशर्मी दिखाता है. विद्यासागर मामले पर इस ताजा मामले के बाद सवाल हो सकता है कि आखिर ये नकली विद्यासागर हैं कौन? तो आपको बताते चलें कि जो व्यक्ति ईश्वरचन्द्र विद्यासागर बन पूरे बंगाल में चर्चा में आया है उसका नाम कृष्णा बैरागी है जो 20 सालों से अलग अलग लोगों के रोल कर रहा है.

बैरागी के अनुसार बीते दिन उसके पास एक फोन आया जिसमें कहा गया कि उसे विद्यासागर बनना है. शुरुआत में उसने माना किया और बाद में उसपर इस हद तक दबाव बनाया गया कि वो ये रोल करने को तैयार हो गया. दिलचस्प बात ये है कि 1 दिन का विद्यासागर बनने के बदले में बैरागी को 150 रुपए बतौर मेहनताना दिया गया है.

वहीं जब इस बारे में भाजपा प्रत्याशी अनुपम हाजरा से पूछा गया तो उन्होंने ये कहकर सभी को हैरत में डाल दिया कि एक प्लान के तहत विद्यासागर की मूर्ति तोड़ी गई है. जिसका उद्देश्य अंत में भाजपा को फायदा पहुंचाना है. गौरतलब है कि बंगाल में सातवें चरण का मतदान होने में कुछ समय शेष है. ऐसे में बंगाल की जनता और बंगाली अस्मिता के नाम पर ईश्वर चन्द्र विद्यासागर बड़ा मुद्दा हैं. बंगाल के इस चुनाव में विद्यासागर मुद्दा कैसे बने ये भी अपने आप में दिलचस्प है.

कोलकाता में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की मूर्ति के अवशेषों के साथ ममता बनर्जी

कोलकाता में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का रोड शो था. शाह का काफिला विद्यासागर कॉलेज के पास से गुजर ही रहा था कि कॉलेज के अन्दर मौजूद छात्रों (जिन्हें टीएमसी से जुड़ा बताया जा रहा है) ने बीजेपी मुर्दाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए. ये बात भाजपा कार्यकर्ताओं को नागवार गुजरी और वो लोग कॉलेज में आ गए और इसके बाद से आरोप प्रत्यारोप की राजनीति अपने सबसे ऊंचे मुकाम पर है. सत्‍ताधारी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों ही एक दूसरे पर मूर्ति तोड़ने का आरोप लगा रही हैं. कॉलेज में लगा सीसीटीवी काम नहीं कर रहा था और दोनों ही दल मोबाइल से रिकॉर्ड अपुष्‍ट विडियो जारी करके अपने-अपने दावे कर रहे हैं.  

मामला प्रकाश में आने के बाद विद्यासागर पर राजनीति उस वक़्त और गर्मा गई जब विद्यासागर को लेकर ममता के नहले पर पीएम मोदी ने उत्तर प्रदेश की एक सभा में दहला जड़ दिया. उत्तर प्रदेश के मऊ में उन्होंने वादा किया कि जिस जगह पर TMC वालों ने मूर्ति को तोड़ा था, हम वहां पर ही ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की एक बड़ी प्रतिमा लगवाएंगे.

यूपी के मऊ में आयोजित रैली में पीएम मोदी ने कहा था कि हमने अमित शाह के रोड शो में टीएमसी के गुंडों की गुंडागर्दी देखी, उन्होंने ही ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति को तोड़ दिया. लेकिन हम वादा करते हैं कि हम विद्यासागर जी के विज़न को आगे बढ़ाएंगे और उसी जगह पर एक विशाल प्रतिमा लगवाएंगे’.

आपको बताते चलें कि घटना के बाद से ही तृणमूल कांग्रेस ने ईश्वरचंद विद्यासागर के मुद्दे पर आक्रामक रुख अपना लिया है. मजेदार बात ये है कि ममता बनर्जी समेत TMC के कई बड़े नेताओं ने ट्विटर और फेसबुक पर अपनी प्रोफाइल फोटो में ईश्वरचंद विद्यासागर की तस्वीर लगाई थी. ममता बनर्जी की अगुवाई में TMC इस मुद्दे को लगातार बंगाली अस्मिता और आन मान शान से जोड़ रही है और यदि बीजेपी इसपर गंभीर नहीं होती तो उसका बैकफुट में आना तय माना जा रहा है.

असली हों या नकली ईश्वर चंद्र विद्यासागर बंगाल की राजनीति को कितना प्रभावित करेंगे इसका फैसला 23 मई को हो जाएगा. मगर जिस तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने मामले को लेकर गर्म रुख अपनाया है और विद्यासागर को बंगाली अस्मिता से जोड़कर बंगाल की सियासी आग को हवा दी है. साफ है कि आगामी चुनावों में ममता बंगाल के किले के लिए बहुत गंभीर हैं और किसी भी कीमत में उसे अपने हाथ से निकलने नहीं देना चाहती हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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