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बीजेपी ने कांग्रेस को यूपी में पंजाब की भरपाई कर लेने की छूट क्यों दे रखी है?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 11 अक्टूबर, 2021 12:10 PM
  • 11 अक्टूबर, 2021 12:10 PM
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प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi Vadra) की वाराणसी रैली पुरानी तारीख पर होती तो ऐसा फायदा नहीं मिलता, लेकिन योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) कांग्रेस नेता को जितना मौका दे रहे हैं वो भी स्वाभाविक नहीं लगता - क्या ये सब अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को काउंटर करने की ही रणनीति है?

प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) का वाराणसी में गांधी जयंती के मौके पर 2 अक्टूबर को कार्यक्रम बना था, लेकिन फिर टाल दिया गया. नयी तारीख 10 अक्टूबर तय हुई. अब तो रैली का नाम तक बदला जा चुका है - और ये लखीमपुर खीरी हिंसा की वजह से किया गया है. कांग्रेस को प्रियंका गांधी की बनारस रैली से अब जो फायदा मिलेगा, पहले से तय तारीख के मुताबिक होता तो नामुमकिन ही था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में प्रियंका गांधी की ये रैली रोहनिया क्षेत्र के जगतपुर कॉलेज में होनी है. अब इसका नाम 'कांग्रेस प्रतिज्ञा यात्रा, हम वचन निभाएंगे' से बदलकर 'किसान न्याय रैली, चलो बनारस' कर दिया गया है - खास बात ये है कि ये बदलाव रैली के तय वक्त से ठीक 24 घंटे पहले किया गया है.

लेकिन लगता तो ऐसा है जैसे रैली का नाम बदल कर कांग्रेस ने बीजेपी को ही फायदा पहुंचा दिया है - बगैर नाम बदले भी तो रैली में लखीमपुर खीरी हिंसा का जिक्र हो सकता था?

देखा जाये तो प्रियंका गांधी हाल फिलहाल सुर्खियों में छायी हुई हैं, ऐसा मौका तो इससे पहले तो ऐसा कभी नहीं देखने को मिला. सिर्फ प्रियंका गांधी ही क्यों राहुल गांधी और नवजोत सिंह सिद्धू को भी तो अपनी बात करने और मनमानी का भी पूरा मौका मिला है. ये तो ऐसे लग रहा है जैसे पंजाब में जो कुछ नुकसान हुआ कांग्रेस उसकी पूरी भरपाई उत्तर प्रदेश में कर रही है.

सवाल ये है कि ये सब सिर्फ बीजेपी के लखीमपुर खीरी की घटना के बाद बैकफुट पर आ जाने से हो रहा है?

या फिर बीजेपी की योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार जानबूझ कर कांग्रेस नेताओं को ये सुविधाएं मुहैया करा रही है - और उसके पीछे बीजेपी नेतृत्व की कोई सोची समझी रणनीति...

प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) का वाराणसी में गांधी जयंती के मौके पर 2 अक्टूबर को कार्यक्रम बना था, लेकिन फिर टाल दिया गया. नयी तारीख 10 अक्टूबर तय हुई. अब तो रैली का नाम तक बदला जा चुका है - और ये लखीमपुर खीरी हिंसा की वजह से किया गया है. कांग्रेस को प्रियंका गांधी की बनारस रैली से अब जो फायदा मिलेगा, पहले से तय तारीख के मुताबिक होता तो नामुमकिन ही था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में प्रियंका गांधी की ये रैली रोहनिया क्षेत्र के जगतपुर कॉलेज में होनी है. अब इसका नाम 'कांग्रेस प्रतिज्ञा यात्रा, हम वचन निभाएंगे' से बदलकर 'किसान न्याय रैली, चलो बनारस' कर दिया गया है - खास बात ये है कि ये बदलाव रैली के तय वक्त से ठीक 24 घंटे पहले किया गया है.

लेकिन लगता तो ऐसा है जैसे रैली का नाम बदल कर कांग्रेस ने बीजेपी को ही फायदा पहुंचा दिया है - बगैर नाम बदले भी तो रैली में लखीमपुर खीरी हिंसा का जिक्र हो सकता था?

देखा जाये तो प्रियंका गांधी हाल फिलहाल सुर्खियों में छायी हुई हैं, ऐसा मौका तो इससे पहले तो ऐसा कभी नहीं देखने को मिला. सिर्फ प्रियंका गांधी ही क्यों राहुल गांधी और नवजोत सिंह सिद्धू को भी तो अपनी बात करने और मनमानी का भी पूरा मौका मिला है. ये तो ऐसे लग रहा है जैसे पंजाब में जो कुछ नुकसान हुआ कांग्रेस उसकी पूरी भरपाई उत्तर प्रदेश में कर रही है.

सवाल ये है कि ये सब सिर्फ बीजेपी के लखीमपुर खीरी की घटना के बाद बैकफुट पर आ जाने से हो रहा है?

या फिर बीजेपी की योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार जानबूझ कर कांग्रेस नेताओं को ये सुविधाएं मुहैया करा रही है - और उसके पीछे बीजेपी नेतृत्व की कोई सोची समझी रणनीति है?

जिस तरह से चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में लगातार अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की समाजवादी पार्टी का नाम बीजेपी को टक्कर देते बताया जा रहा है, कांग्रेस को इतनी उछल कूद मचाने के लिए खुला मैदान मिलना स्वाभाविक तो नहीं ही लगता.

अव्वल तो लखीमपुर खीरी हिंसा को लेकर हल्ला बोल देने का हक समाजवादी पार्टी का बनता था, लेकिन हो तो यही रहा है कि चुनाव पूर्व सर्वे में मायावती की बीएसपी के बाद चौथे स्थान पर आने वाली कांग्रेस अकेले ही पूरी महफिल लूट रही है - और ये भी कतई स्वाभाविक नहीं लगता!

लखीमपुर खीरी हिंसा पर कांग्रेस की राजनीति

जुलाई, 2021 में प्रियंका गांधी वाड्रा लखनऊ से सीधे लखीमपुर खीरी ही गयी थीं, जब अनीता देवी से उनको मुलाकात करनी थी. ब्लॉक प्रमुख चुनाव के दौरान अनीता देवी से कुछ लोगों ने बदसलूकी की थी, लेकिन ज्यादा बवाल तब हुआ जब एक वीडियो वायरल हो गया. वायरल वीडियो से मालूम हुआ था कि कैसे चुनाव में नामांकन के लिए जाने वाली समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार की प्रस्तावक अनीता यादव के साथ बदसलूकी की गयी. उनकी साड़ी खींची गयी - और हाथ पकड़ा गया. घटना के बाद योगी आदित्यनाथ की सरकार ने लखीमपुर खीरी में एक डिप्टी एसपी के साथ कई पुलिस अफसरों को सस्पेंड कर दिया था.

प्रियंका गांधी का वो यूपी दौरा भी लखीमपुर खीरी की घटना की वजह से ही हुआ था और तीन महीने के भीतर वही एक बार फिर एंट्री का बायपास बना है - अगर राजनीतिक तौर पर देखें तो पहले के मुकाबले ये दौरान ज्यादा सफल रहा है.

प्रियंका गांधी की बनारस रैली का नाम बदलने का फैसला क्यों नुकसानदेह लगता है?

सिर्फ प्रियंका गांधी ही नहीं नवजोत सिंह सिद्धू को भी कुछ नया काम करने का मौका मिला, वरना बेचारे पंजाब में ही ईंट से ईंट खड़काने की धमकी वैसे ही देते रहे जैसे उनके कैप्टन राहुल गांधी कभी कहते फिरते थे कि बोल देंगे तो भूकंप आ जाएगा.

लखीमपुर खीरी में मचा बवाल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए भी बहती गंगा में हाथ धो लेने जैसा मौका बन गया. और कुछ न सही कम से कम मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लटक रही खतरे की तलवार कुछ दिनों के लिए टल तो गयी ही है.

बघेल और सिद्धू के साथ साथ पंजाब के नये नवेले मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी पंजाब बाहर निकल कर खुली हवा में थोड़ी राहत देने वाली सांस ले लिये. ऊपर से राहुल गांधी के साथ साथ प्रियंका गांधी के मन की बात भी हो गयी. राहुल गांधी ने लखीमपुर खीरी जाने के लिए जो जो शर्तें रखी योगी आदित्यनाथ के अफसरों को माननी पड़ी - और प्रियंका गांधी को गिरफ्तार कर के तो राजनीतिक महफिल लूट लेने का पूरा अवसर मिला ही.

जैसे सोनभद्र जिले के उभ्भा गांव में नरसंहार के बाद पीड़ित परिवारों से मिलने जा रहीं प्रियंका गांधी को रोक दिया गया तो वो धरने पर बैठ गयीं और रात भर डटी रही हैं. राहुल गांधी भी लखीमपुर खीरी जाने के लिए धरने पर बैठ गये थे, लेकिन उनको प्रियंका गांधी वाड्रा की तरह लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा. जब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी हाथरस जा रहे थे तब भी सरकारी अफसरों ने पहले रोका और फिर जाने की परमिशन भी दे दिये.

किसान आंदोलन के शुरुआती दौर में राहुल गांधी पंजाब से टैक्टर रैली के बाद जब हरियाणा में एंट्री चाह रहे थे तब भी अफसरों ने रास्ता रोक दिया, जब धरने पर बैठे तो थोड़ी ही देर में जाने देने को तैयार भी हो गये.

यूपी हो या हरियाणा आखिर बीजेपी सरकारें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के मामले को ऐसे हैंडल ही क्यों करती हैं - ऐसा क्यों होता है जो फैसला बाद में लिया जाता है, पहले ही ले लिया जाता तो राजनीतिक फायदा उठाने से रोका जा सकता है, लेकिन ऐसा कभी नहीं सोचा जाता.

सवाल तो ये भी उठता है कि आखिर क्यों राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को धरने पर बैठते ही उनके मनमाफिक छूट मिल जाती है, लेकिन समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव के मामले में यूपी के अफसर और पुलिस अलग व्यवहार करते हैं.

अखिलेश यादव भी तो लखीमपुर खीरी जाना चाहते ही थे, लेकिन घर से निकलते ही पुलिस ने घेर लिया. कोई चारा न देख अखिलेश यादव अपने घर के बाहर ही धरने पर बैठ गये, लेकिन उनकी बातें राहुल-प्रियंका की तरह नहीं मानी गयीं.

अखिलेश यादव को भी अब लगने लगा है कि ये बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है कि कांग्रेस को यूपी के चुनावी मुकाबले में बीजेपी को टक्कर देते दिखाया जाये. मतलब, समाजवादी पार्टी को रोकने के लिए बीजेपी बड़ी चालाकी से कांग्रेस को आगे करके काउंटर करने की कोशिश कर रही है.

लखीमपुर खीरी जाते वक्त प्रियंका गांधी वाड्रा को सीतापुर के पीएसी गेस्ट हाउस में हिरासत में रखा गया - और मौके का पूरा फायदा उठाते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा ने झाड़ू लगाते वीडियो जारी कर खूब सुर्खियां बटोर डाली.

प्रियंका गांधी वाड्रा के झाड़ू लगाते वीडियो देखे जाने के बाद अपने रिएक्शन में योगी आदित्यनाथ ने भी ऐसा बयान दिया जिसका कांग्रेस नये सिरे से फायदा उठाने की कोशिश करे, 'लोगों ने उनको इसी लायक छोड़ा है.' योगी के बयान पर कांग्रेस की तरफ से रिएक्शन दिया जाने लगा - क्या बीजेपी और योगी आदित्यनाथ भी बिलकुल ऐसा ही चाहते थे?

प्रियंका की बनारस रैली

प्रियंका गांधी वाड्रा की रैली में लोगों को न्योता देने के लिए कांग्रेस रथ को पांडेयपुर से रवाना किया गया जो वाराणसी जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में घूम घूम कर लोगों को जगतपुर पहुंचने का निमंत्रण दे रहा है. रैली का नया नाम भी तो वैसा ही रखा गया है - 'किसान न्याय रैली, चलो बनारस'.

नवरात्र के अवसर को देखते हुए, बताते हैं कि प्रियंका गांधी वाड्रा रैली में जाने से पहले दुर्गाकुंड मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए जाने वाली हैं. मंदिर दर्शन का कार्यक्रम भी खासतौर पर प्लान किया गया लगता है - क्योंकि प्रियंका गांधी एयरपोर्ट से सीधे रैली की जगह रोहनिया के जगतपुर जा सकती थीं.

कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी के कार्यक्राम का जो रूप प्लान जिला प्रशासन को भेजा गया है, वो भी राजनीतिक रणनीति ही दर्शाता है. दुर्गाकुंड मंदिर भी प्रियंका गांधी ज्यादातर शहर के मुस्लिम आबादी वाले इलाकों ले होकर जाना चाहती हैं - मतलब, साफ है वो झाड़ू लगाकर भी मैसेज ही दे रही हैं और मुस्लिम इलाकों से गुजर कर भी ऐसा ही करना चाहती हैं - और मंदिर दर्शन का मकसद तो पहले ही साफ हो जाता है.

रैली से पहले प्रियंका गांधी का एक पोस्टर भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने तैयार किया है - पोस्टर में मां दुर्गा के रूप में प्रियंका गांधी वाड्रा को दिखाया गया है जो किसानों के हत्यारे का संहार कर रही हैं. ये भी मैसेज देने का ही एक तरीका लगता है.

लेकिन ऐसा क्यों लगता है कि रैली के नाम बदलने का जितना फायदा कांग्रेस को नहीं होगा उससे ज्यादा बीजेपी को हो सकता है - नाम बदलने का तात्कालिक फायदा तो कांग्रेस को निश्चित तौर पर मिलेगा लेकिन नतीजे दूरगामी तो नहीं ही होंगे - और ये तो बीजेपी के फेवर में ही जाएगा.

पहले कांग्रेस प्रतिज्ञा रैली करने वाली थी - नाम से ही जाहिर है कांग्रेस यूपी को लेकर अपने चुनावी वादों की फेहरिस्त सुनाती, लेकिन अब तो सिर्फ लखीमपुर की बातें होंगी. बाकी बातें यानी प्रतिज्ञा पीछे छूट जाएगी या फिर नये सिरे से रैली करके बतानी पड़ेगी. ये तो बीजेपी के पक्ष में ही जा रहा है.

नुकसान तो तब भी नहीं होता अगर कांग्रेस नेता प्रतिज्ञा रैली में ही लखीमपुर खीरी की बात कर डालते - जिन चीजों के लिए रैली को एक नाम दिया गया था वे बाद में भी बतायी जा सकती थीं और रैली का नाम आगे भी वही रखा जा सकता था.

तो क्या कांग्रेस प्रति बीजेपी के उमड़ रहे प्यार की वजह भी वही है जो अखिलेश यादव कह रहे हैं - समाजवादी पार्टी को लड़ाई से दूर करने की कोशिश?

ये तो ऐसा लग रहा है जैसे कांग्रेस भी अब वही काम करने लगी है जो मायावती करती रही हैं - बीजेपी की मदद. लेकिन मायावती को बीजेपी का अघोषित प्रवक्ता कहने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा भला ये सब क्या कर रही हैं? ऐसा क्यों लग रहा है जैसे बीजेपी का विरोध करते करते कांग्रेस भी मायावती की तरह, किसी और वजह से ही सही, स्टॉकहोम सिंड्रोम से ग्रस्त होती जा रही हो!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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