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GST से महिला वोट पर निशाना - फिर तो मोदी के बाद स्टार प्रचारक अक्षय कुमार होंगे

    • आईचौक
    • Updated: 22 जुलाई, 2018 04:11 PM
  • 22 जुलाई, 2018 04:11 PM
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बीजेपी महिलाओँ पर इतनी मेहरबान यूं ही नहीं हो रही. सैनिटरी नैपकिन से GST हटाकर बीजेपी ने महिला वोट पर नजर टिकाई है. मुस्लिम महिला वोट पर नजर तो पहले से ही है. हां, सियासी वजहों से महिला आरक्षण बिल में उसकी दिलचस्पी जरूर कम है.

महिला बिल पर मोदी सरकार ने भले ही शर्तें लागू कर रखी हो, लेकिन उससे इतर खुद को महिलाओं की असली हमदर्द दिखाने में कोई कसर बाकी नहीं रख रही है. सैनिटरी नैपकिंस को जीएसटी के दायरे से हटाने का फैसला बीजेपी सरकार की महिला वोट बैंक साधने की बड़ी कवायद का ही हिस्सा है.

2019 में स्टार कैंपेनर होंगे अक्षय कुमार

अभी तक सैनिटरी पैड पर 12 फीसदी जीएसटी लगाया जा रहा था, अब ऐसा नहीं होगा. 2015-16 की नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट के अनुसार शहरी इलाकों में 77.5 फीसदी महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं. गांवों के मामले में ये आंकड़ा शहरों के मुकाबले आधे से कुछ ज्यादा है. रिपोर्ट के मुताबिक गांवों में 48.5 फीसदी महिलाएं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं - और औसत देखा जाये तो 57.6 यानी आधे से ज्यादा महिलाओं की आबादी इसका इस्तेमाल करती है. तीन साल में इस आंकड़े इजाफा तो हुआ ही होगा. जाहिर है बीजेपी की नजर इस आबादी के वोट पर टिकी है.

2019 में बीजेपी के दो स्टार प्रचारक!

ऐसा भी नहीं है कि मोदी सरकार ने यूं ही ये फैसला लिया है. इसे लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में जेएनयू की रिसर्च स्कॉलर जरमीना ने एक जनहित याचिका दाखिल की थी.

बीबीसी से बातचीत में जरमीना ने कोर्ट में दी गयी दलील साझा की, "मैंने कहा था कि अगर सिंदूर, बिंदी, काजल और कॉन्डोम जैसी चीजों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जा सकता है तो सैनिटरी नैपकिन्स को क्यों नहीं?" दिल्ली हाईकोर्ट ने जरमीना की याचिका पर संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार से सवाल पूछे थे. कोर्ट ने इस बात पर भी हैरानी जतायी थी कि 31 सदस्यों वाली जीएसटी काउंसिल में एक भी महिला क्यों नहीं है? कोर्ट का ये भी सवाल था कि क्या सरकार ने सैनिटरी पैड को जीएसटी के दायरे में रखने से पहले महिला और बाल कल्याण मंत्रालय...

महिला बिल पर मोदी सरकार ने भले ही शर्तें लागू कर रखी हो, लेकिन उससे इतर खुद को महिलाओं की असली हमदर्द दिखाने में कोई कसर बाकी नहीं रख रही है. सैनिटरी नैपकिंस को जीएसटी के दायरे से हटाने का फैसला बीजेपी सरकार की महिला वोट बैंक साधने की बड़ी कवायद का ही हिस्सा है.

2019 में स्टार कैंपेनर होंगे अक्षय कुमार

अभी तक सैनिटरी पैड पर 12 फीसदी जीएसटी लगाया जा रहा था, अब ऐसा नहीं होगा. 2015-16 की नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट के अनुसार शहरी इलाकों में 77.5 फीसदी महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं. गांवों के मामले में ये आंकड़ा शहरों के मुकाबले आधे से कुछ ज्यादा है. रिपोर्ट के मुताबिक गांवों में 48.5 फीसदी महिलाएं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं - और औसत देखा जाये तो 57.6 यानी आधे से ज्यादा महिलाओं की आबादी इसका इस्तेमाल करती है. तीन साल में इस आंकड़े इजाफा तो हुआ ही होगा. जाहिर है बीजेपी की नजर इस आबादी के वोट पर टिकी है.

2019 में बीजेपी के दो स्टार प्रचारक!

ऐसा भी नहीं है कि मोदी सरकार ने यूं ही ये फैसला लिया है. इसे लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में जेएनयू की रिसर्च स्कॉलर जरमीना ने एक जनहित याचिका दाखिल की थी.

बीबीसी से बातचीत में जरमीना ने कोर्ट में दी गयी दलील साझा की, "मैंने कहा था कि अगर सिंदूर, बिंदी, काजल और कॉन्डोम जैसी चीजों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जा सकता है तो सैनिटरी नैपकिन्स को क्यों नहीं?" दिल्ली हाईकोर्ट ने जरमीना की याचिका पर संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार से सवाल पूछे थे. कोर्ट ने इस बात पर भी हैरानी जतायी थी कि 31 सदस्यों वाली जीएसटी काउंसिल में एक भी महिला क्यों नहीं है? कोर्ट का ये भी सवाल था कि क्या सरकार ने सैनिटरी पैड को जीएसटी के दायरे में रखने से पहले महिला और बाल कल्याण मंत्रालय की सलाह ली थी? बहरहाल, कोर्ट का फैसला आने से पहले ही सरकार ने ये कदम उठा लिया है. कोर्ट के सवाल पर ही सही, सरकार ने इस बात को समझा - ये बात अलग है कि मुद्दे से ज्यादा इसमें सरकार को सीधा राजनीतिक फायदा नजर आया होगा.

महिला वोट बीजेपी के लिए किस कदर अहम हो चले हैं, राखी को भी जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाना उसी का नमूना है. इतना ही नहीं, महिलाओं के इस्तेमाल में आने वाले गहने, हेयर ड्रायर, परफ्यूम और हैंड बैग में भी राहत दी गई है. पहले ये 28 फीसदी के जीएसटी स्‍लैब में थे लेकिन अब सिर्फ 18 फीसदी के जीएसटी स्‍लैब में आ गये हैं - मतलब सीधे सीधे 10 फीसदी का फायदा हुआ.

फिल्म पैडमैन के बाद एक्टर अक्षय कुमार अपनेआप इसके ब्रांड एंबेसडर हो चुके हैं - और अब तो खबर ये भी है कि बीजेपी अक्षय कुमार को पंजाब की गुरदासपुर सीट से चुनाव लड़ने के लिए तकरीबन राजी कर चुकी है. गुरदासपुर को बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन विनोद खन्ना के निधन के बाद हुए उपचुनाव में इस पर कांग्रेस का कब्जा हो चुका है. अक्षय के जरिये बीजेपी इसे वापस लेने की कोशिश में है.

पैडमैन को भुनाने की तैयारी...

अब अगर अक्षय कुमार गुरदासपुर से चुनाव लड़ते हैं तो क्या वो सिर्फ अपने चुनाव क्षेत्र में जमे रहेंगे? ऐसा होने का कोई मतलब ही नहीं बनता. निश्चित रूप से वो देश भर में पैडमैन बन कर महिलाओं से बीजेपी के लिए वोट मांगेंगे.

महिला वोट बैंक पर फोकस उज्ज्वला स्कीम मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है. अविश्वास प्रस्ताव पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर दोहराया कि उज्ज्वला योजना से देश भर में 4.5 करोड़ महिलाओं को फायदा पहुंचा है.

एक तरफ बीजेपी महिलाओं का वोट बटोरने में मुस्तैदी से जुटी हुई है, लेकिन महिला आरक्षण बिल पर वो सीधे सीधे तैयार नहीं दिखती. एक वजह इसकी ये भी हो सकती है कि वो किसी भी सूरत में कांग्रेस को इसका क्रेडिट नहीं लेने देना चाहती है.

नयी डील के पेंच में फंसा महिला बिल

महिलाओं के वोट पर बीजेपी की ही तरह कांग्रेस की भी लगातार नजर रही है. राहुल गांधी ने हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख कर संसद के मॉनसून सत्र में महिला विधेयक लाने की गुजारिश की थी - और कांग्रेस की ओर से पूरे सपोर्ट का भरोसा दिलाया था. आपको याद होगा, 2017 में गुजरात चुनाव से पहले सोनिया गांधी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसा ही एक पत्र लिखा था. सोनिया के पत्र की भाषा चुनौती देने वाली थी.

राहुल के पत्र पर रिएक्ट करते हुए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी जवाबी चिट्ठी में पहले तो उल्टे राहुल गांधी से सवाल पूछ लिया, 'यूपीए शासन के दौरान इस विधेयक को क्यों पास नहीं कराया गया?'

फिर केंद्रीय मंत्री कांग्रेस के साथ सौदेबाजी पर उतर आये, बोले, 'नई डील के मुताबिक, हमें महिला आरक्षण बिल, तीन तलाक विरोधी बिल और निकाह हलाला बिल दोनों सदनों में पास करने चाहिये.'

कांग्रेस ने भी अब चाल चल दी है. सरकार की शर्त मानते हुए कांग्रेस ने नयी शर्त रख दी है. अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव का कहना है कि अगर सरकार तीन तलाक विरोधी विधेयक में महिला के लिए गुजारा भत्ता का प्रावधान करती है तो कांग्रेस इसका का समर्थन जरूर करेगी.

दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी और उनके साथी बाखूबी जानते हैं कि तीन तलाक, हलाला, निकाह जैसे मसलों पर कांग्रेस के भीतर एक राय नहीं है. कांग्रेस को हिंदू वोटों की फिक्र है तो मुस्लिम वोटों के मामले में भी कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगी. यही वजह है कि ऐसे मामलों में कांग्रेस काफी सोच समझ कर टिप्पणी करती है. यही वजह है कि मोदी और उनके साथी, कांग्रेस को घेर घेर कर पूछ रहे हैं कि वो बताये कि क्या कांग्रेस सिर्फ मुस्लिम पुरुषों की पार्टी है?

तीन तलाक और हलाला के जरिये बीजेपी मुस्लिम वोट बैंक में फूट डालने की कोशिश कर रही है. अब तक एकजुट मुस्लिम वोट बीजेपी के खिलाफ ही पड़ता रहा है. बीजेपी को पता है कि अगर महिला वोटों में उसने सेंध लगा ली तो काम बन जाएगा.

बीबीसी के हार्ड टॉक कार्यक्रम में रविशंकर प्रसाद ने माना भी कि बीजेपी को मुस्लिम वोट नहीं मिलते. सवाल था कि बीजेपी का एक भी मुस्लिम सांसद क्यों नहीं है? यूपी चुनाव के वक्त बीजेपी की ओर से कहा गया था कि जिताऊ मुस्लिम कैंडिडेट नहीं होने के चलते उसने किसी को टिकट नहीं दिया.

हैरानी नहीं होनी चाहिये जब 2019 में बीजेपी मुस्लिम महिलाओं को मैदान में उतारे और पैडमैन अक्षय कुमार घूम घूम कर वोट मांगते नजर आयें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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