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कांग्रेस को धार्मिक तुष्टिकरण पर कोसने वाली भाजपा अब स्वयं उस राह पर

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 27 मई, 2018 04:33 PM
  • 27 मई, 2018 04:33 PM
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कभी जिन रास्तों पर कांग्रेस चला करती थी, अब भाजपा भी उसी राह पर चल पड़ी है. रेलवे बोर्ड ने रोज़ा रखने वाले रेल कर्मियों, जिन्हें घर पहुंचने में लंबा रास्ता तय पड़ता है, उन्हें जल्दी कार्यालय से जाने की अनुमति दी है.

ऐसा लगता है कि कांग्रेस को धार्मिक तुष्टिकरण पर कोसने वाली भाजपा अब स्वयं उस रह पर चल पड़ी है. हाल में भारतीय रेल ने रमजान के महीने में मुस्लिम कर्मचारियों के लिए विशेष घोषणा की है. रेलवे बोर्ड ने रोज़ा रखने वाले रेल कर्मियों, जिन्हें घर पहुंचने में लंबा रास्ता तय पड़ता है, उन्हें जल्दी कार्यालय से जाने की अनुमति दी है. ऐसा नहीं कि भाजपा सरकार ने यह कदम पहली बार उठाया है. पिछले वर्ष भी रेलवे बोर्ड ने मुस्लिम रेल कर्मियों को घर जल्दी जाने की अनुमति दी थी.

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहते हरीश रावत ने दिसंबर 2016 में राज्य सरकार के मुस्लिम कर्मचारियों को शुक्रवार के दिन नमाज़ पड़ने के लिए 90 मिनट का दोपहर में अवकाश दिया था. उस निर्णय का भाजपा ने घोर विरोध किया था. उस समय भाजपा ने हरीश रावत सरकार पर विधानसभा चुनावों से पहले अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का आरोप लगाया था. भाजपा के आक्रामक रुख़ के कारण रावत सरकार अपने कदम से पीछे हो गई. तदुपरांत राज्य सरकार ने सभी धर्मों के कर्मचारियों को 90 मिनट का दोपहर अवकाश देने का निर्णय लिया.

इसमे कोई शक नहीं कि हरीश रावत सरकार का मूल फ़ैसला धार्मिक तुष्टिकरण का एक उदाहरण था. उस समय भाजपा का विरोध न्याय संगत था, पर भारतीय रेल द्वारा लिया गया उपरोक्त फ़ैसला भी मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा है. भारतीय रेल केंद्र सरकार के आधीन आता है. रेलवे बोर्ड स्वयं ऐसे निर्णय ले ही नहीं सकता है, जब तक सरकार के स्तर पर उसे अनुमति न मिली हो. निकट भूतकाल में भी भाजपा ने धार्मिक तुष्टिकरण की नीति अपनाई थी. नागालैंड की 96% आबादी ईसाई धर्म को मानने वाली है. नागालैंड में पिछले विधानसभा चुनाव प्रचार के समय भाजपा ने प्रत्येक वर्ष नागालैंड के 50 वरिष्ठ नागरिकों को यरुशलम की मुफ़्त यात्रा कराने का लालच दिया था.

दूसरो पर धार्मिक तुष्टिकरण का आरोप लगाना बहुत...

ऐसा लगता है कि कांग्रेस को धार्मिक तुष्टिकरण पर कोसने वाली भाजपा अब स्वयं उस रह पर चल पड़ी है. हाल में भारतीय रेल ने रमजान के महीने में मुस्लिम कर्मचारियों के लिए विशेष घोषणा की है. रेलवे बोर्ड ने रोज़ा रखने वाले रेल कर्मियों, जिन्हें घर पहुंचने में लंबा रास्ता तय पड़ता है, उन्हें जल्दी कार्यालय से जाने की अनुमति दी है. ऐसा नहीं कि भाजपा सरकार ने यह कदम पहली बार उठाया है. पिछले वर्ष भी रेलवे बोर्ड ने मुस्लिम रेल कर्मियों को घर जल्दी जाने की अनुमति दी थी.

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहते हरीश रावत ने दिसंबर 2016 में राज्य सरकार के मुस्लिम कर्मचारियों को शुक्रवार के दिन नमाज़ पड़ने के लिए 90 मिनट का दोपहर में अवकाश दिया था. उस निर्णय का भाजपा ने घोर विरोध किया था. उस समय भाजपा ने हरीश रावत सरकार पर विधानसभा चुनावों से पहले अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का आरोप लगाया था. भाजपा के आक्रामक रुख़ के कारण रावत सरकार अपने कदम से पीछे हो गई. तदुपरांत राज्य सरकार ने सभी धर्मों के कर्मचारियों को 90 मिनट का दोपहर अवकाश देने का निर्णय लिया.

इसमे कोई शक नहीं कि हरीश रावत सरकार का मूल फ़ैसला धार्मिक तुष्टिकरण का एक उदाहरण था. उस समय भाजपा का विरोध न्याय संगत था, पर भारतीय रेल द्वारा लिया गया उपरोक्त फ़ैसला भी मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा है. भारतीय रेल केंद्र सरकार के आधीन आता है. रेलवे बोर्ड स्वयं ऐसे निर्णय ले ही नहीं सकता है, जब तक सरकार के स्तर पर उसे अनुमति न मिली हो. निकट भूतकाल में भी भाजपा ने धार्मिक तुष्टिकरण की नीति अपनाई थी. नागालैंड की 96% आबादी ईसाई धर्म को मानने वाली है. नागालैंड में पिछले विधानसभा चुनाव प्रचार के समय भाजपा ने प्रत्येक वर्ष नागालैंड के 50 वरिष्ठ नागरिकों को यरुशलम की मुफ़्त यात्रा कराने का लालच दिया था.

दूसरो पर धार्मिक तुष्टिकरण का आरोप लगाना बहुत आसान है, पर खुद तुष्टिकरण की नीति से होने वाले फ़ायदों का त्याग करना उतना ही कठिन है. पूर्व में भाजपा अधिक समय विपक्ष में रही है. विपक्ष में रह कर, किसी सरकार में राज कर रही पार्टी पर आरोप लगाना आसान है, पर जब आप खुद सरकार में आते हैं तो ही आपकी असली परीक्षा होती है. भाजपा इस समय केंद्र और अधिकतर राज्यों में सरकार चला रही है. यह भाजपा का परीक्षा का समय चल रहा है. यदि भाजपा भी कांग्रेस की राह चलेगी तो उसमे और कांग्रेस में क्या अंतर रह जाएगा?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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