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जानिए बिंदी यादव के 'साइकिल चोर' से बाहुबली बनने की कहानी

    • आईचौक
    • Updated: 14 मई, 2016 06:02 PM
  • 14 मई, 2016 06:02 PM
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एक छुटभैया अपराधी से बिहार के पावरपुल बिजनेसमैन बनने वाले बिंदी यादव की कहानी जानकर आप जान जाएंगे कि अपराधी इस देश में नेताओं की मदद से कैसे फलते-फूलते हैं.

पिछले कुछ दिनों से आपने इस शख्स का नाम कई बार सुना होगा. उसके बेटे ने एक 19 साल के लड़के की जान ले ली है. यह शख्स बिहार में अपराधियों द्वारा पॉलिटिक्स, पावर और पैसे के शर्मनाक खेल की चौंकाने वाली दास्तां का सबूत है. इसका नाम है बिंदी यादव, जिसके बेटे रॉकी यादव पर हाल ही में रोड रेज की घटना में आदित्य सचदेवा नामके के एक 19 साल के लड़के की हत्या का आरोप है.

एक छुटभैया अपराधी से बिहार के पावरपुल पॉलिटिशयन बनने वाले बिंदी यादव की कहानी जानकर आप जान जाएंगे कि अपराधी इस देश में नेताओं की मदद से कैसे फलते-फूलते हैं. आइए आपको बताते हैं कि एक साइकिल चोर से एक बड़ा बिजनैसमैन और बाहुबली कैसे बन गया बिंदी यादव.

साइकिल चोर से बाहुबली बना बिंदी यादवः

80 के दशक में बिंदी यादव को एक मामूली अपराधी के रूप में जाना जाता था. उसे जब एक साइकिल चुराने के आरोप में पकड़ा गया तो वह गया शहर की अपराध की दुनिया में बहुत ही मामूली अपराधी था. लेकिन बिंदी यादव यहीं नहीं रुका और उसने एक और अपराधी बच्चू से हाथ मिला लिया. इसके बाद बिंदी यादव ने अपराध की दुनिया में तेजी से कदम बढ़ाए. अगले तीन वर्षों तक इन दोनों ने कई आपराधिक वारदातों को अंजाम दिया. स्थानीय स्तर पर इनका नाम बिंदी-बच्चुआ के नाम से छाने लगा और उन्होंने अपने रास्ते में आने वाले किसी को नहीं बख्शा. ये दोनों गया शहर की महत्वपूर्ण जमीनों पर कब्जा जमाकर कुख्यात हो गए. उनकी बंदूकें गरजती रहीं और यह इलाका उनकी दहशत से थर्रा उठा.

ये भी पढ़ें: नीतीश के 'सुशासन' पर बड़ा धब्बा है एक बिंदी

लालू राज में चमका राजनीतिक करियरः

ये वही समय था जब बिहार में लालू प्रसाद यादव का राज था. बिहार में अपराध अपने चरम पर था. राज्य में सुरेंद्र यादव, राजेंद्र यादव और महेश्वर यादव जैसे...

पिछले कुछ दिनों से आपने इस शख्स का नाम कई बार सुना होगा. उसके बेटे ने एक 19 साल के लड़के की जान ले ली है. यह शख्स बिहार में अपराधियों द्वारा पॉलिटिक्स, पावर और पैसे के शर्मनाक खेल की चौंकाने वाली दास्तां का सबूत है. इसका नाम है बिंदी यादव, जिसके बेटे रॉकी यादव पर हाल ही में रोड रेज की घटना में आदित्य सचदेवा नामके के एक 19 साल के लड़के की हत्या का आरोप है.

एक छुटभैया अपराधी से बिहार के पावरपुल पॉलिटिशयन बनने वाले बिंदी यादव की कहानी जानकर आप जान जाएंगे कि अपराधी इस देश में नेताओं की मदद से कैसे फलते-फूलते हैं. आइए आपको बताते हैं कि एक साइकिल चोर से एक बड़ा बिजनैसमैन और बाहुबली कैसे बन गया बिंदी यादव.

साइकिल चोर से बाहुबली बना बिंदी यादवः

80 के दशक में बिंदी यादव को एक मामूली अपराधी के रूप में जाना जाता था. उसे जब एक साइकिल चुराने के आरोप में पकड़ा गया तो वह गया शहर की अपराध की दुनिया में बहुत ही मामूली अपराधी था. लेकिन बिंदी यादव यहीं नहीं रुका और उसने एक और अपराधी बच्चू से हाथ मिला लिया. इसके बाद बिंदी यादव ने अपराध की दुनिया में तेजी से कदम बढ़ाए. अगले तीन वर्षों तक इन दोनों ने कई आपराधिक वारदातों को अंजाम दिया. स्थानीय स्तर पर इनका नाम बिंदी-बच्चुआ के नाम से छाने लगा और उन्होंने अपने रास्ते में आने वाले किसी को नहीं बख्शा. ये दोनों गया शहर की महत्वपूर्ण जमीनों पर कब्जा जमाकर कुख्यात हो गए. उनकी बंदूकें गरजती रहीं और यह इलाका उनकी दहशत से थर्रा उठा.

ये भी पढ़ें: नीतीश के 'सुशासन' पर बड़ा धब्बा है एक बिंदी

लालू राज में चमका राजनीतिक करियरः

ये वही समय था जब बिहार में लालू प्रसाद यादव का राज था. बिहार में अपराध अपने चरम पर था. राज्य में सुरेंद्र यादव, राजेंद्र यादव और महेश्वर यादव जैसे अपराधियों का बोलबाला था. धीरे-धीरे बिंदी यादव और बच्चू का नाम भी चर्चा में आने लगा. जब प्रशासन ने इन दोनों के खिलाफ सख्ती बरती तो उन्हें अपने बचाव के लिए राजनीति ही सबसे बड़ी शरणस्थली नजर आई. इसलिए बिंदी ने 1990 में लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) जॉइन कर ली. यहां से शुरू हुआ उसके अपराधी से नेता बनने का सफर.

आरजेडी के समर्थन से उसे 2001 में गया जिला परिषद का निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया. इस पद पर वह 2006 तक रहा. 2005 में आरजेडी से टिकट न मिलने पर वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गया. 2010 में वह आरजेडी के टिकट पर फिर से विधानसभा चुनाव लड़ा. अपने हलफनामे में उसने अपने ऊपर 18 आपराधिक मामले चलने की जानकारी दी. लालू प्रसाद यादव ने बिंदी यादव के आपराधिक रिकॉर्ड की अनदेखी करते हुए उसके राजनीतिक करियर को चमकाने में मदद की. हालांकि ये काम नहीं आया.

बिंदी यादव के बेटे रॉकी को गया में एक बिजनेसमैन के 19 साल के बेटे आदित्य सचदेवा की हत्या के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है

सरकार बदली, बदल लिया पालाः

2010 में उसने बिहार में सत्ता परिवर्तन होते हुए लालू का साथ छोड़कर नीतीश की पार्टी का दामन थाम लिया. 2011 में जब बिंदी की गिरफ्तारी हुई तो उसके कब्जे से एक एके-47 और चार हजार कारतूस बरामद हुए. इस घटना के बाद इस साइकिल चोर ने अपने रास्ते बदले और उसने आरेजडी और जेडीयू से अपनी करीबी के दम पर से कई सरकारी ठेके हासिल किए जिससे उससे अपना साम्राज्य खड़ा करने में मदद मिली. माना जाता है कि बिंदी के नक्सलियों से भी अच्छे संबंध है इसीलिए विद्रोह प्रभावित क्षेत्र के ज्यादातर ठेके उसे ही मिलते रहे. और यही है एक साइकिल चोर से पैसों के ढेर पर जा बैठने वाला बिजनेसमैन बनने की कहानी.

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ऐसा लगता है कि बिहार की सरकारों ने उसके आपराधिक रिकॉर्ड को लगातार नजरअंदाज किया. यही वजह है कि उसके खिलाफ आपराधिक मामलों की संख्या 19 तक पहुंचने के बावजूद कभी भी उसके हथियारों के लाइसेंस की समीक्षा नहीं की गई. नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक उसके खिलाफ 11 मामले दर्ज हैं, जिनमें किडनैपिंग और मर्डर के केस भी शामिल हैं.

अकूत संपत्ति का मालिक है बिंदी यादवः

आज बिंदी यादव के पास दौलत का साम्राज्य है. उसके पास अपने मॉल, होटेल्स, गया, बोध गया, दिल्ली और उससे सटे इलाकों में 15 पेट्रोल पंप्स हैं. साथ ही उसकी रोड, कंस्ट्रक्शन और शराब के बिजनेस में भी हिस्सेदारी है. यही वजह है कि उसका बेटा रॉकी यादव 1.5 करोड़ की एसयूवी से चलता है और उसके पास .32 बोर इटैलियन मेड पिस्टल से जिससे आदित्य की हत्या हुई. इतना ही नहीं बिंदी यादव ने ही 2015 में अपनी पत्नी मनोरमा देवी को जेडीयू से बिहार विधान परिषद का सदस्य बनवाया. उसका अपना राजनीतिक करियर कुछ खास नहीं रहा लेकिन अपनी पत्नी के राजनीतिक करियर का पावरहाउस बिंदी यादव ही है.

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हालांकि लगता है कि बिंदी यादव का बुरा वक्त शुरू हो गया है. उसे अपने बेटे को कथित तौर पर भागने में मदद करने के लिए गिरफ्तार किया गया है. उसकी एमएलसी पत्नी अपने घर में राज्य में बैन के बावजूद शराब की बोतलें पाए जाने के बाद सस्पेंड हैं.

अब देखना ये है कि क्या बिहार सरकार इस अपराधी पर नकेल कसेगी या एक बार फिर से बिंदी अपने राजनीतिक रसूखों के बल पर बच जाएगा?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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