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Bihar Election Result 2020: तेजस्वी यादव को तो राहुल गांधी ले डूबे!

    • आईचौक
    • Updated: 10 नवम्बर, 2020 07:44 PM
  • 10 नवम्बर, 2020 07:44 PM
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तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का बिहार चुनाव (Bihar Election Result 2020) में उम्मीदों से कहीं ज्यादा बेहतर प्रदर्शन देखने को मिला है, लेकिन लगता है सीटों के बंटवारे को लेकर उनके ही फैसले भारी पड़ रहे हैं - खासतौर पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की कांग्रेस को लेकर.

तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने अपने लिए नयी पहचान गढ़ ली है - RJD और महागठबंधन के नेता को लेकर कम से कम अब ये तो मान लेना ही चाहिये. तेजस्वी यादव की अब तक पहचान बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू यादव और राबड़ी देवी का बेटा होना भर नहीं रहा.

तेजस्वी यादव बिहार चुनाव 2020 (Bihar Election Result 2020) में अपने बूते उतरे थे. लालू यादव और राबड़ी देवी सरकारों पर जंगलराज के आरोपों के लिए सरेआम कई बार माफी भी मांगी थी. आरजेडी के बैनर और पोस्टर से लालू-राबड़ी सहित परिवार के किसी भी सदस्य की तस्वीर नहीं डाली - नये तेवर और जनहित के मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में उतरे और चुनाव रुझानों से साफ है कि प्रदर्शन भी काफी अच्छा है. लालू यादव का नाम लेकर सिर्फ इतना ही कहा कि लालू यादव ने बिहार के लोगों को सामाजिक न्याय दिलाया था और वो आर्थिक न्याय दिलाएंगे.

तेजस्वी ने कई मामलों में खासी परिपक्वता भी दिखायी है. तेजस्वी यादव ने कई बार बोला भी था कि वो खोने के बारे में बहुत नहीं सोचते क्योंकि अभी 9 नवंबर को ही 31 साल के हुए हैं.

एग्जिट पोल में महागठबंधन को बहुमत के संकेत के बावजूद तेजस्वी यादव ने आरजेडी कार्यकर्ताओं से संयम बरतने को कहा था - नतीजा जो भी आयें. न तो जश्न में सब कुछ भूल जाना है न हार की स्थिति में होश खो देना है.

चुनाव नतीजों के रुझानों से मालूम होता है कि तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार को कड़ी टक्कर भी दे रहे हैं - लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जो साफ तौर पर इशारा कर रही हैं कि अगर ध्यान दिया गया होता तो तस्वीर अलग भी हो सकती थी.

तेजस्वी यादव का 10 लाख नौकरी का चुनावी वादा तो शानदार रहा, लेकिन सीटों के बंटवारे में वो सही फैसले नहीं ले पाये या फैसलों में हुई गड़बड़ी नहीं रोक पाये - और सीटों के मामले में एक गलत फैसला कांग्रेस को दी गयीं ज्यादा सीटें भी लगने लगी हैं.

ऐसा क्यों लगता है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का साथ तेजस्वी यादव के लिए भी वैसा ही अनुभव है जैसा 2017 में यूपी में समाजवादी पार्टी नेता...

तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने अपने लिए नयी पहचान गढ़ ली है - RJD और महागठबंधन के नेता को लेकर कम से कम अब ये तो मान लेना ही चाहिये. तेजस्वी यादव की अब तक पहचान बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू यादव और राबड़ी देवी का बेटा होना भर नहीं रहा.

तेजस्वी यादव बिहार चुनाव 2020 (Bihar Election Result 2020) में अपने बूते उतरे थे. लालू यादव और राबड़ी देवी सरकारों पर जंगलराज के आरोपों के लिए सरेआम कई बार माफी भी मांगी थी. आरजेडी के बैनर और पोस्टर से लालू-राबड़ी सहित परिवार के किसी भी सदस्य की तस्वीर नहीं डाली - नये तेवर और जनहित के मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में उतरे और चुनाव रुझानों से साफ है कि प्रदर्शन भी काफी अच्छा है. लालू यादव का नाम लेकर सिर्फ इतना ही कहा कि लालू यादव ने बिहार के लोगों को सामाजिक न्याय दिलाया था और वो आर्थिक न्याय दिलाएंगे.

तेजस्वी ने कई मामलों में खासी परिपक्वता भी दिखायी है. तेजस्वी यादव ने कई बार बोला भी था कि वो खोने के बारे में बहुत नहीं सोचते क्योंकि अभी 9 नवंबर को ही 31 साल के हुए हैं.

एग्जिट पोल में महागठबंधन को बहुमत के संकेत के बावजूद तेजस्वी यादव ने आरजेडी कार्यकर्ताओं से संयम बरतने को कहा था - नतीजा जो भी आयें. न तो जश्न में सब कुछ भूल जाना है न हार की स्थिति में होश खो देना है.

चुनाव नतीजों के रुझानों से मालूम होता है कि तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार को कड़ी टक्कर भी दे रहे हैं - लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जो साफ तौर पर इशारा कर रही हैं कि अगर ध्यान दिया गया होता तो तस्वीर अलग भी हो सकती थी.

तेजस्वी यादव का 10 लाख नौकरी का चुनावी वादा तो शानदार रहा, लेकिन सीटों के बंटवारे में वो सही फैसले नहीं ले पाये या फैसलों में हुई गड़बड़ी नहीं रोक पाये - और सीटों के मामले में एक गलत फैसला कांग्रेस को दी गयीं ज्यादा सीटें भी लगने लगी हैं.

ऐसा क्यों लगता है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का साथ तेजस्वी यादव के लिए भी वैसा ही अनुभव है जैसा 2017 में यूपी में समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव के लिए रहा?

कांग्रेस को ज्यादा सीटें दे डाली

बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से तेजस्वी यादव ने आरजेडी के बाद सबसे ज्यादा सीटें राहुल गांधी की पार्टी कांग्रेस के साथ शेयर किया था. देखा जाये तो कांग्रेस ने आरजेडी के साथ ठीक-ठाक मोलभाव किया था. कांग्रेस की जो डिमांड रही उससे कुछ ही कम ही सीटें उसे मिलीं.

विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने अपने हिस्से में 144 सीटें रखी थी और कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी. वैसे भी कांग्रेस का आखिरी डिमांड 90 से 75 पर पहुंच चुकी थी जब सीटों के बंटवारे पर अंतिम फैसला हुआ.

2015 में भी कांग्रेस महागठबंधन में ही रही, लेकिन तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही उसके पक्षकार बने हुए थे और अपने दबाव के चलते 41 सीटें दिलवाये थे. 2015 में तो कांग्रेस 27 सीटों पर जीती भी थी लेकिन इस बार ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने के बावजूद उसकी स्थिति उसकी बराबरी वाले राजनीतिक दलों के मुकाबले डांवाडोल लग रही है.

तेजस्वी के लिए राहुल का साथ महंगा लगता है!

2017 के यूपी चुनाव में राहुल गांधी ने अखिलेश यादव की पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया था. समाजवादी पार्टी ने 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा में खुद 298 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और कांग्रेस के हिस्से 105 सीटें आयी थीं - लेकिन नतीजे आये तो महज सात सीटें ही मिल पायीं. गठबंधन भी तत्काल टूट ही गया. वैसे समाजवादी पार्टी को भी सत्ता तो गंवानी ही पड़ी थी सीटें भी 47 ही मिल पायी थीं.

अगर मौजूदा चुनाव में भी कांग्रेस और आरजेडी के प्रदर्शन की तुलना करें तो लगता है घाटे में तेजस्वी यादव ही रहे हैं. अगर तेजस्वी यादव ने कांग्रेस को कुछ कम सीटें देकर उनकी जगह आरजेडी के उम्मीदवार उतारे होते तो बेहतर पोजीशन में हो सकते थे.

तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ने मिल कर साझा चुनाव रैलियां भी की, लेकिन दोनों अलग अलग निशाने साधते नजर आये. तेजस्वी यादव जहां अपने 10 लाख नौकरी के वादे पर डटे रहे, वहीं राहुल गांधी अपने पसंदीदा शगल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कुछ नयी और कई पुरानी बातों को लेकर हमलावर रहे.

लेफ्ट की अहमियत नहीं समझी

कांग्रेस की ही तरह वाम दलों की भी ज्यादा सीटों की मांगें रहीं, लेकिन तेजस्वी यादव के कड़े रुख के चलते उनको समझौते करने पड़े. कुछेक दलों ने तो सीटों पर बात न बनते देख उम्मीदवारों की लिस्ट भी जारी कर दी थी. फिर बाद में सहमति बन भी गयी.

औसत के हिसाब से देखा जाये तो चुनाव रुझानों में वाम दलों का प्रदर्शन तो कांग्रेस कौन कहे, आरजेडी से भी अच्छा नजर आ रहा है. तेजस्वी यादव ने वाम दलों को कुल 29 सीटें दी थी - सबसे ज्यादा सीपीआई-एमएल को 19, सीपीआई को 6 और सीपीएम को 4 सीटें.

तीनों ही लेफ्ट पार्टी अपने अपने चुनाव क्षेत्रों में सबसे अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं. तीनों दल मिल कर 29 में से 19 सीटों पर आगे चल रहे हैं.

लगता तो यही है कि तेजस्वी यादव ने कांग्रेस की दी गयी सीटों में से कुछ अपने पास रखा होता और कुछ वाम दलों में बांट दिया होता तो सत्ता के ज्यादा करीब हो सकते थे.

राहुल गांधी की ही तरह तेजस्वी यादव के सीपीआई नेता कन्हैया कुमार के साथ भी मंच साझा करने की संभावना जतायी जा रही थी - क्या ऐसा नहीं लगता कि तेजस्वी यादव सारे पूर्वाग्रह किनारे रख कर कन्हैया कुमार के साथ साझा रैली किये होते तो बेहतर स्थिति में होते?

वीआईपी को हल्के में नहीं लेना चाहिये था

कांग्रेस के मुकाबले वाम दलों को तो तेजस्वी यादव ने नजरअंदाज किया ही, विकासशील इंसान पार्टी की तो परवाह तक न की. सीटों के बंटवारे वाली प्रेस कांफ्रेंस से वीआईपी वाले मुकेश साहनी रूठ कर चले गये और जाकर एनडीए से जा मिले. एनडीए में भी खुद को सन ऑफ मल्लाह कहने वाले मुकेश साहनी को हाथोंहाथ लिया गया - और मुंहमांगी सीटें भी मिल गयीं.

महागठबंधन में जैसा प्रदर्शन वाम दलों का है, करीब करीब वही हाल मुकेश साहनी की वीआईपी का भी देखने को मिल रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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