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बिहार में लड़ाई तेजस्वी vs नीतीश कुमार नहीं, मोदी vs तेजस्वी यादव है

    • अनु रॉय
    • Updated: 29 अक्टूबर, 2020 05:20 PM
  • 29 अक्टूबर, 2020 05:20 PM
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बीते दिन बिहार (Bihar Assembly Elections ) में पहले चरण का मतदान हो चुका है कुछ और चरण बाक़ी है पता नहीं जनता किसका राजतिलक करेगी लेकिन एक बात तो साफ़ है कि मैदान में जलवा तेजस्वी (Tejasvi Yadav) और पीएम मोदी (PM Modi) का है न कि नीतीश (Nitish Kumar) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का.

बिहार (Bihar) में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की जीत उनकी जीत नहीं है. इसी तरह तेजस्वी (Tejashwi Yadav) की हार भी उनकी हार नहीं है. सूबे में सीधी टक्कर तेजस्वी और पीएम मोदी (PM Modi) के बीच है. मैदान में न तो नीतीश कुमार हैं और न राहुल गांधी (Rahul Gandhi). आप सोच रहें होंगे कैसे? तो इस बात को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं. बिहार में नीतीश कुमार तब उभरे थे जब पूरा बिहार लालू राज से त्रस्त था. बरोज़गारी, अपहरण और लूट-मार जैसी चीजें पूरे शबाब पर थी. लोगों को लगने लगा था कि लालू अब और रहे तो जो बिहार की इज़्ज़त है वो भी मटिया मेट हो जाएगी. ऐसे में नीतीश कुमार सुशासन का चेहरा बन कर बिहार में उभरे. उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में शिक्षामित्र की बहाली से लेकर हेल्थ-केयर, आंगनबाड़ी, स्कूल में पोषाहार, खिचड़ी, साइकिल, यूनीफ़ॉर्म और पैड तक दिलाना शुरू किया. जो सड़कें टूटी और खंडहर में तब्दील हो चुकी थी उनको चलने लायक बनवाया. उन गांवों में बिजली पहुंचाई जहां सिर्फ़ पोल गाड़ कर छोड़ दिया गया था.

बिहार में लोग नीतीश कुमार से नाराज हैं जिसका फायदा भाजपा और तेजस्वी यादव को मिलेगा

ये नीतीश बाबू के दो कार्य-काल में हुआ. यहां तक सब कुछ ठीक-ठाक जा रहा था फिर उनकी बुद्धि बदल गयी. उनको पता नहीं कहां से ये ख़्याल आया कि बिहार में शराब बंद कर देते हैं. ये था उनके पंद्रह साल के मुख्यमंत्री काल का सबसे बड़ा ब्लंडर. उन्होंने सोचा कि ऐसा करके वो स्त्रियों का उत्थान कर रहें हैं, समाज को सेनेटाईज कर रहें हैं लेकिन हक़ीक़त ठीक इसके उलट निकली. बिहार में पहले जितना शराब मिलती या बिकती थी अभी उससे ज़्यादा शराब राज्य में बिकने लगी है.

हां ये ज़रूर हुआ है कि, शराब बिकने से जो टैक्स...

बिहार (Bihar) में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की जीत उनकी जीत नहीं है. इसी तरह तेजस्वी (Tejashwi Yadav) की हार भी उनकी हार नहीं है. सूबे में सीधी टक्कर तेजस्वी और पीएम मोदी (PM Modi) के बीच है. मैदान में न तो नीतीश कुमार हैं और न राहुल गांधी (Rahul Gandhi). आप सोच रहें होंगे कैसे? तो इस बात को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं. बिहार में नीतीश कुमार तब उभरे थे जब पूरा बिहार लालू राज से त्रस्त था. बरोज़गारी, अपहरण और लूट-मार जैसी चीजें पूरे शबाब पर थी. लोगों को लगने लगा था कि लालू अब और रहे तो जो बिहार की इज़्ज़त है वो भी मटिया मेट हो जाएगी. ऐसे में नीतीश कुमार सुशासन का चेहरा बन कर बिहार में उभरे. उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में शिक्षामित्र की बहाली से लेकर हेल्थ-केयर, आंगनबाड़ी, स्कूल में पोषाहार, खिचड़ी, साइकिल, यूनीफ़ॉर्म और पैड तक दिलाना शुरू किया. जो सड़कें टूटी और खंडहर में तब्दील हो चुकी थी उनको चलने लायक बनवाया. उन गांवों में बिजली पहुंचाई जहां सिर्फ़ पोल गाड़ कर छोड़ दिया गया था.

बिहार में लोग नीतीश कुमार से नाराज हैं जिसका फायदा भाजपा और तेजस्वी यादव को मिलेगा

ये नीतीश बाबू के दो कार्य-काल में हुआ. यहां तक सब कुछ ठीक-ठाक जा रहा था फिर उनकी बुद्धि बदल गयी. उनको पता नहीं कहां से ये ख़्याल आया कि बिहार में शराब बंद कर देते हैं. ये था उनके पंद्रह साल के मुख्यमंत्री काल का सबसे बड़ा ब्लंडर. उन्होंने सोचा कि ऐसा करके वो स्त्रियों का उत्थान कर रहें हैं, समाज को सेनेटाईज कर रहें हैं लेकिन हक़ीक़त ठीक इसके उलट निकली. बिहार में पहले जितना शराब मिलती या बिकती थी अभी उससे ज़्यादा शराब राज्य में बिकने लगी है.

हां ये ज़रूर हुआ है कि, शराब बिकने से जो टैक्स आता था जिससे राज्य के विकास के कामों में मदद मिलती थी. अब वो पैसे, पुलिस विभाग से होते हुए नीतीश कुमार की पार्टी वाले फंड में चले जाते हैं. लोकल लोगों से बात करने पर पता चलता है कि बिहार में शराब कभी बंद हुई ही नहीं. पड़ोसी राज्यों से शराब ट्रकों में भर कर लायी जाती है. पुलिस से लेकर नेता जी सबका कमीशन फ़िक्स है और सबको उनके हिस्से के पैसे पहुंचा दिए जाते हैं.

तो जनता में नाराज़गी इस बात को लेकर है कि अमीर लोग शराब पी ही रहें हैं. लेकिन ग़रीबों को बस उससे दूर किया गया है. ऊपर से शराब पीने के जुर्म में न जाने कितने ग़रीब जेल में बंद है जबकि नेता जी की पार्टियों में शराब की नदियां बहती हैं. दिलचस्प ये रहा कि शराब वाले कांड के बाद नीतीश ने उन लोगों को अपने पाले में ले लिया जिनके खिलाफ कभी उन्होंने मोर्चा खोला था.

अब बिहार की जनता उतनी भी मूर्ख है जितना नीतीश बाबू को लगता है. फ़ील्ड में निकलने और लोगों से बात करने पर साफ़ पता चलता है कि अगर नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी का साथ न मिला होता तो वो इस बार अपनी सीट से भी अपनी ज़मानत ज़ब्त करवा लेते. बिहार में नीतीश कुमार को जो भी और जितना भी वोट मिलेगा वो सिर्फ़ और सिर्फ़ पीएम मोदी के नाम पर मिलेगा. अगर आप आम पब्लिक को कहिएगा कि आपको अपना मुख्यमंत्री चुनना है न कि प्रधानमंत्री फिर भी वो मोदी जी का नाम लेते हैं.

तो ये हुई बिहार के एक वर्ग की कहानी. अब आते हैं बिहार के दूसरे वर्ग यानी पिछड़े वर्ग पर. उनको ऐसा लगने लगा है कि शराब बंदी, लॉकडाउन में मज़दूरों की बेहाल होने पर घर वापसी और बेरोजगारी जैसे हर मुद्दे के लिए नीतीश कुमार ही ज़िम्मेदार हैं. और ये सच है भी. चुनाव सिर पर था और नीतीश कुमार न जाने कौन सी ख़्यालों की दुनिया में गुम थे. उन्होंने अपने राज्य के प्रवासी मज़दूरों के लिए कुछ भी नहीं किया और उस वक्त का फ़ायदा तेजस्वी यादव को मिला.

तेजस्वी बार-बार सरकार की खामियां गिनाते रहे जिस पर नीतीश सरकार ने कान देना ज़रूरी नहीं समझा. अब आलम ये है कि लोग तेजस्वी यादव में अपना भावी मुख्यमंत्री देख रहें हैं. तेजस्वी का कम पढ़ा-लिखा होना भी लोग नज़र-अन्दाज़ करने को तैयार हैं. कई लोग ये कहते मिले कि एक अच्छे राजनेता में अच्छी नेतृत्व क्षमता होनी चाहिए न कि डिग्री.

अब देखिए कल पहले चरण का मतदान हो चुका है कुछ और चरण बाक़ी है पता नहीं जनता किसका राजतिलक करेगी लेकिन एक बात तो साफ़ है कि मैदान में तेजस्वी और पीएम मोदी हैं. न कि नीतीश और राहुल गांधी. जनता को न तो राहुल में भरोसा है और न नीतीश में.

इसलिए मैंने ऊपर लिखा भी है कि नीतीश की जीत में भी उनकी हार है क्योंकि अगर वो जीतते हैं तब भी उनकी छवि कमजोर मुख्यमंत्री की होगी, जिसका रिमोट मोदी जी के हाथों में होगा. और अगर तेजस्वी हारते भी हैं तो वो नीतीश से नहीं बल्कि मोदी जी से हारेंगे जो तेजस्वी के क़द को और बढ़ाएगा. मगर इन सारी उठा पटक में बिहार का भविष्य मझधार में ही लटका दिख रहा है. सबके दिन बदले. न जाने कब बदलेंगे बिहार के दिन!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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