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Liquor sale: इसलिए हर मुख्यमंत्री सुशासन बाबू नहीं कहलाता

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 06 मई, 2020 11:34 AM
  • 06 मई, 2020 11:34 AM
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लॉकडाउन (lockdown) के तीसरे चरण में सरकार ने अर्थव्यवस्था का हवाला देकर शराब की दुकानें खोलने की इजाजत दी. शराब के मामले में अन्य राज्यों को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सीख लेनी चाहिए जिन्होंने अर्थव्यवस्था को दरकिनार कर बड़ा फैसला लिया.

कोरोना (Coronavirus) से हमें जान और माल का खतरा है. इन दोनों खतरों से बचाने के लिए एल्कोहल (Alcohol) खूब साथ दे रहा है. कोविड 19 से लड़ने के पहले मार्चे में अल्कोहल को हमने अपनी जान बचाने का हथियार बनाया, माली तौर से टूटी सरकार को अपना राजस्व (Revenue) बढ़ाने के लिए भी अल्कोहल युक्त शराब बिक्री का सहारा लेना पड़ रहा है. अल्कोहल पर ही आधारित सेनिटाइजर कोरोना वायरस से बचाने का मजबूत कवच की तरह काम आ रहा है. वायरस को भगाने में इसका उपयोग कारगर साबित हो रहा है. अब अंधेरे छंटते दिखाई दे रहे हैं. हमने मौत की आंधी पर क़ाबू पाने में किसी हद तक सफलता हासिल कर ली, ये कहें तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी. अब आर्थिक मोर्चे को संभालना है. वैश्विक महामारी और लॉकडाउन (Lockdown) के बाद आर्थिक व्यवस्था को संभालने और राजस्व बढ़ाने के लिए भी अल्कोहल ही काम आ रहा है. स्कूल-कालेजों की पढ़ाई ठप्प है, मंदिर-मस्जिद बंद है लेकिन मधुशालायें खुल जायेंगी. एक महीने से ज्यादा वक्त से जारी लॉकडान में शराब ना मिल पाने से पीने के शौकीन बिलबिला रहे थे. इनकी दुआओं का असर था या सरकार की मजबूरी भरी जरुरत थी कि शराबियों के लिए शराब के बंद रास्ते सरकार ने खोल दिये.

शराब के मामले में देश भर की सरकारों को बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार से सीख लेनी चाहिए

रेड जोन के लॉकडाउन में भी शराब की बिक्री बहाल कर दी गई है. इस कदम से ये साबित हो गया कि जान के बाद माल(राजस्व/आर्थिक स्थिति) बचाने के लिए भी अल्कोहल (शराब) ही काम आया. जारी लॉकडाउन के दौरान शराब की बिक्री शुरु करने वाले सरकार के फैसले पर तमाम सवाल उठाये जा रहे हैं. तरह-तरह की बातें हो रही हैं. जब होश वालों से लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाने में पसीने आये जा रहे हैं वहां नशेड़ियों से इसका पालन कैसे करवाया जायेगा....

कोरोना (Coronavirus) से हमें जान और माल का खतरा है. इन दोनों खतरों से बचाने के लिए एल्कोहल (Alcohol) खूब साथ दे रहा है. कोविड 19 से लड़ने के पहले मार्चे में अल्कोहल को हमने अपनी जान बचाने का हथियार बनाया, माली तौर से टूटी सरकार को अपना राजस्व (Revenue) बढ़ाने के लिए भी अल्कोहल युक्त शराब बिक्री का सहारा लेना पड़ रहा है. अल्कोहल पर ही आधारित सेनिटाइजर कोरोना वायरस से बचाने का मजबूत कवच की तरह काम आ रहा है. वायरस को भगाने में इसका उपयोग कारगर साबित हो रहा है. अब अंधेरे छंटते दिखाई दे रहे हैं. हमने मौत की आंधी पर क़ाबू पाने में किसी हद तक सफलता हासिल कर ली, ये कहें तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी. अब आर्थिक मोर्चे को संभालना है. वैश्विक महामारी और लॉकडाउन (Lockdown) के बाद आर्थिक व्यवस्था को संभालने और राजस्व बढ़ाने के लिए भी अल्कोहल ही काम आ रहा है. स्कूल-कालेजों की पढ़ाई ठप्प है, मंदिर-मस्जिद बंद है लेकिन मधुशालायें खुल जायेंगी. एक महीने से ज्यादा वक्त से जारी लॉकडान में शराब ना मिल पाने से पीने के शौकीन बिलबिला रहे थे. इनकी दुआओं का असर था या सरकार की मजबूरी भरी जरुरत थी कि शराबियों के लिए शराब के बंद रास्ते सरकार ने खोल दिये.

शराब के मामले में देश भर की सरकारों को बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार से सीख लेनी चाहिए

रेड जोन के लॉकडाउन में भी शराब की बिक्री बहाल कर दी गई है. इस कदम से ये साबित हो गया कि जान के बाद माल(राजस्व/आर्थिक स्थिति) बचाने के लिए भी अल्कोहल (शराब) ही काम आया. जारी लॉकडाउन के दौरान शराब की बिक्री शुरु करने वाले सरकार के फैसले पर तमाम सवाल उठाये जा रहे हैं. तरह-तरह की बातें हो रही हैं. जब होश वालों से लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाने में पसीने आये जा रहे हैं वहां नशेड़ियों से इसका पालन कैसे करवाया जायेगा. शराब पीने वाले नशे में दुर्घटनाओं को अंजाम देंगे. कोरोना से लड़ने वाले डाक्टरों, पैरा मेडिकल स्टॉफ और पुलिसकर्मियों से लड़ेंगे.

जगह-जगह पुलिस से इनकी झड़पें होंगी. नशे में मारपीट या दुर्घटनाओं को अंजाम देकर जब ये घायलावस्था में अस्पतालों पंहुचेंगे तो कोरोना मरीजों का इलाज प्रभावित होगा. घरेलू हिंसा बढ़ेगी. इन पहलुओ को छोड़कर सरकार के नजरिए से देखिये तो आर्थिक तंगी के दौर में राजस्व बढ़ाने के लिए सरकार के पास यही एक रास्ता था.

गौरतलब है कि शराब पर भारी टैक्स होता है और इससे प्राप्त राजस्व से सरकार जरूरी खर्चे उठाती है. लॉकडाउन के बाद सरकार के खर्चे तो बढ़ गये थे किंतु ना के बराबर हो गयी थी. इसलिए इन मुसीबात भरी बंदी के दौरा में भी सरकार को रेवेन्यू के लिए शराब की बिक्री बहाल करनी पड़ी. इसके अतिरिक्त शराब की लत के आदि लोग मानोरोगी हुए जा रहे है. शराब की बंद दुकानों को लूटने की घटनायें सामने आ रहीं थीं. बंद और पुलिसिया नाकेबंदी के बीच भी हत्याओं की घटनायें सामने आयीं. ज्यादा दिन तक शराब बंदी जारी रहती तो आत्महत्याओं का भी सिलसिला तेज हो सकता था.

इन तमाम तर्क-वितर्क और कुतर्को के बीच शुसासन बाबू नितीश कुमार के जिगर का एहसास तो करना ही पड़ेगा. जब शराब इतनी ज़रूरी है तब भी बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने कितने बड़े जिगरे से कितने बड़े सूबे बिहार में कितने शराबियों के बीच किस तरह शराब बंद की होगी. ये तो उनका ही कलेजा जानता होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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