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BHU protest छेड़छाड़ की वजह से नहीं हो रहा...

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 25 सितम्बर, 2017 01:28 PM
  • 25 सितम्बर, 2017 01:28 PM
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बीएचयू में सड़क पर उतर कर प्रदर्शन कर रही छात्राओं के लिए प्रदर्शन का कारण छेड़छाड़ नहीं है. बल्कि उस घटना के बाद हुई घटनाएं हैं. जैसे पीड़ि‍तों को ही दोषी ठहरा देना. लेकिन अब उस प्रदर्शन पर हुई राजनीति ने सारे मामले पर पानी फेर दिया है.

बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी लगातार चर्चा में बनी हुई है. कहा ये भी जा सकता है कि यहां चर्चा का दौर जो एक बार चला वो थमने का नाम ही नहीं ले रहा. पहले छेड़छाड़, फिर उस छेड़छाड़ से खफ़ा छात्राओं का प्रदर्शन, वीसी से मिलने की मांग, प्रधानमंत्री का आगमन, अपने ही संसदीय क्षेत्र में प्रदर्शन कर रही छात्राओं से मिलने के बजाए प्रधानमंत्री का अलग रूट लेना, प्रधानमंत्री के इस कृत्य से छात्राओं का आहत होना, प्रदर्शन का हिंसक होना और फिर लाठीचार्ज.

उपरोक्त पंक्ति को फिर से पढ़िये बनारस में यूनिवर्सिटी की लड़कियों द्वारा किया जा रहा ये प्रदर्शन किसी फिल्म सरीखा है. जिसमें एक्शन, कॉमेडी, ड्रामा, थ्रिल, एक्शन समेत सारे इमोशन हैं. बीएचयू जैसे शिक्षण संसथान में जो हो रहा है उसपर हमारा समाज कई धड़ों में बंट चुका है. इस प्रदर्शन और सरकार के रवैये पर देश के प्रत्येक नागरिक के अपने अलग तर्क हैं, जिसमें कोई इस घटना की निंदा कर रहा है तो कहीं कोई इस घटना के पीछे प्रदर्शन से जुड़ी लड़कियों को ही दोषी मान रहा है.

बीएचयू में छात्राओं का प्रदर्शन अब धीरे धीरे उग्र हो रहा है

लेकिन, सच ये है कि अब बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में जो कुछ भी हो रहा है, वो कोरी राजनीति है. ये एक ऐसी राजनीति है जो हमें लगातार शर्मसार किये जा रही है. निस्संदेह ही पूर्व में, इस पूरे प्रदर्शन की वजह छेड़छाड़ मगर आज जब हम इसे देखें तो मिल रहा है कि इस आंच में क्या एबीवीपी और एनएसयूआई क्या एसएफआई और आइसा सपा से लेकर बसपा लगभग सभी राजनीतिक दल इसपर अपनी रोटी सेंक रहे हैं.  आज जो इन लड़कियों के समर्थन में हैं वो भी इन लड़कियों को उतना ही नुकसान पहुंचा रहे हैं जितना वो जो इन लड़कियों के विरोध में हैं.

क्या था पूरा मामला

बात आगे बढ़ाने से पहले हम आपको इस विषय का सम्पूर्ण सार...

बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी लगातार चर्चा में बनी हुई है. कहा ये भी जा सकता है कि यहां चर्चा का दौर जो एक बार चला वो थमने का नाम ही नहीं ले रहा. पहले छेड़छाड़, फिर उस छेड़छाड़ से खफ़ा छात्राओं का प्रदर्शन, वीसी से मिलने की मांग, प्रधानमंत्री का आगमन, अपने ही संसदीय क्षेत्र में प्रदर्शन कर रही छात्राओं से मिलने के बजाए प्रधानमंत्री का अलग रूट लेना, प्रधानमंत्री के इस कृत्य से छात्राओं का आहत होना, प्रदर्शन का हिंसक होना और फिर लाठीचार्ज.

उपरोक्त पंक्ति को फिर से पढ़िये बनारस में यूनिवर्सिटी की लड़कियों द्वारा किया जा रहा ये प्रदर्शन किसी फिल्म सरीखा है. जिसमें एक्शन, कॉमेडी, ड्रामा, थ्रिल, एक्शन समेत सारे इमोशन हैं. बीएचयू जैसे शिक्षण संसथान में जो हो रहा है उसपर हमारा समाज कई धड़ों में बंट चुका है. इस प्रदर्शन और सरकार के रवैये पर देश के प्रत्येक नागरिक के अपने अलग तर्क हैं, जिसमें कोई इस घटना की निंदा कर रहा है तो कहीं कोई इस घटना के पीछे प्रदर्शन से जुड़ी लड़कियों को ही दोषी मान रहा है.

बीएचयू में छात्राओं का प्रदर्शन अब धीरे धीरे उग्र हो रहा है

लेकिन, सच ये है कि अब बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में जो कुछ भी हो रहा है, वो कोरी राजनीति है. ये एक ऐसी राजनीति है जो हमें लगातार शर्मसार किये जा रही है. निस्संदेह ही पूर्व में, इस पूरे प्रदर्शन की वजह छेड़छाड़ मगर आज जब हम इसे देखें तो मिल रहा है कि इस आंच में क्या एबीवीपी और एनएसयूआई क्या एसएफआई और आइसा सपा से लेकर बसपा लगभग सभी राजनीतिक दल इसपर अपनी रोटी सेंक रहे हैं.  आज जो इन लड़कियों के समर्थन में हैं वो भी इन लड़कियों को उतना ही नुकसान पहुंचा रहे हैं जितना वो जो इन लड़कियों के विरोध में हैं.

क्या था पूरा मामला

बात आगे बढ़ाने से पहले हम आपको इस विषय का सम्पूर्ण सार बताना चाहेंगे. हुआ ये था कि अपने डिपार्टमेंट से शाम को विश्व विद्यालय की दो छात्राएं वापस हॉस्टल जा रही थीं. हॉस्टल से ही कुछ दूरी पर मोटर साइकिल सवार मनचलों ने छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की. जब इस पूरी घटना की जानकारी छात्राओं ने गेट पर मौजूद सिक्योरिटी गार्ड को दी तो मदद करने के बजाए उन्‍होंने इन लड़कियों को हिदायत दी की वो शाम होने से पहले छात्रावास वापस आ जाया करें. रात को अकेले न घूमा करें.

इस पूरे मामले में बात बस इतनी थी कि कुछ छात्राओं के साथ छेड़छाड़ हुई जिसकी यूनिवर्सिटी में कोई सुनवाई न हुईइसके बाद विश्व विद्यालय की छात्राओं ने विश्व विद्यालय के गेट पर प्रदर्शन शुरू कर दिया. मामला तब गंभीर हो गया जब भुक्तभोगी छात्रा ने अपने बाल मुंडवाकर इस प्रदर्शन में आग में खर डालने का काम किया. उसका गुस्‍सा जायज और विरोध दोनों जायज थे.

इसके बाद जो हुआ उससे हम परिचित हैं और हम विश्व विद्यालय प्रशासन द्वारा लड़कियों पर पुलिस बल का प्रयोग भी देख चुके हैं. निश्चित तौर पर एक ऐसे युग में जब एक तरफ हम, बेटी पढ़ाने और बेटी बढ़ाने की बातें कर रहे हैं तो उसी युग में देश की बेटियों पर इस तरह का लाठीचार्ज न सिर्फ हमारी सोच पर सवालिया निशान लगाकर हमारा दोगलापन दर्शाता है बल्कि ये भी बताता है कि अपनी- अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए हम किसी भी हद तक गिर सकते हैं.

कैसे ये आंदोलन हुआ राजनीति का शिकार

आप चाहे मानें या न मानें, मगर अब इस प्रदर्शन में सिर्फ राजनीति हो रही है. ये मामला विश्वविद्यालय, छात्राओं और कुलपति से जुड़ा था जो आपस में मिल बैठ के मामले को सुलझा सकते थे. इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को घसीटना अपने आप में अचरज में डालने वाला है. यह संदेह से परे नहीं कि ये मुद्दा इसीलिए गरमाया क्‍योंकि प्रधानमंत्री उस दिन शहर में थे. सोशल मीडिया पर एक से बढ़कर एक सुलगती पोस्‍ट शेयर की गईं. इनमें से ज्‍यादातर शेयर उन्‍हीं लोगों के थे, जो किसी ने किसी पार्टी से जुड़े थे. और इस तरह छात्राओं का प्रदर्शनर हाईजैक हो गया. युनिवर्सिटी, वीसी और छात्राओं के बीच का मामला अब बीजेपी बनाम अन्‍य राजनीतिक दल हो गया. इसके बाद सोने पे सुहागा किया कुछ फेक तस्वीरों ने. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. सोशल मीडिया के इस टॉयलेट युग में जिसे देखो वही किसी भी मुद्दे से जुड़ी तस्वीरें शेयर कर आग में घी डालने का काम करता है. व्यक्ति जो फोटो शेयर कर रहा है वो ये भी नहीं जानता कि उसकी विश्वसनीयता क्या है. वो असली हैं भी या नहीं. मृणाल पांडे जैसी साहित्‍यकार और प्रशांत भूषण जैसे प्रख्‍यात वकील ने लखीमपुर खिरी में घायल हुए एक लड़की की तस्‍वीर को बीएचयू का बताकर शेयर कर दिया. लहूलुहान लड़की की तस्‍वीर का ये गलत उपयोग एक बार फिर गवाही दे गया कि बीएचयू की एक छात्रा की परेशानी कैसे दूर-दूर बैठे लोगों के लिए अपनी राजनीति दोस्‍ती-दुश्‍मनी निकालने का सबब बन सकती है.

इस पूरे मामले पर जिन तस्वीरों का सहारा किया जा रहा है उनमें से ज्यादातर फेक तस्वीरें हैंबनारस वाले इस मामले में भी हम ऐसी कई तस्वीरें देख चुके हैं जिनका बनारस से कोई लेना देना नहीं है मगर फिर भी इन्हें बनारस के नाम पर, बनारस की उन लड़कियों का दर्द दिखाने के लिए साझा किया जा रहा है.

खैर कह सकते हैं कि वो क्रांतियां सम्पूर्ण हैं जिनमें भागीदारों को लाठी, रबर बुलेट, वाटर कैनन और कभी - कभी पैलेट गन से निकली गोलियों के बाद अखबार के पन्नों, वेबसाइटों के पेजों और न्यूज़ चैनल के स्लॉट्स पर जगह मिलती है. बनारस की ये क्रांति भी पूर्ण हो गयी है मगर अब भी ये देखना बाक़ी है कि राजनीति और राजनीतिक दल इसको भुनाने के चक्कर में और कितना नीचे गिरते हैं.

अंत में बस इतना ही कि अब वो दौर आ गया है जब हमें समझ लेना चाहिए कि देश में अब हर चीज का राजनीतिकरण हो रहा है और वो चीज भी ज्यादा बिक रही है जो ज्यादा देखी जा रही है. हम देश वासियों ने समय रहते कई चीजों को देखा और उसे इग्नोर किया है. वो दिन दूर नहीं जब इस क्रांति को भी लोग भूल जाएंगे और अपने रूटीन में लग जाएंगे तब तक जब तक चुनाव न हों. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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