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भीमा-कोरेगांव केस: 'असहमति' का तर्क खारिज होने से मोदी सरकार बरी

    • आईचौक
    • Updated: 28 सितम्बर, 2018 03:48 PM
  • 28 सितम्बर, 2018 03:48 PM
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भीमा कोरेगांव केस में सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है कि पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की वजह सरकार से असहमति नहीं थी. इस तरह पुणे पुलिस ने सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ साथ मोदी सरकार को बड़ी तोहमत से बरी करा लिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने पुणे पुलिस की वो बात मान ली है जिसमें दावा किया गया है कि भीमा कोरेगांव केस में पांच वामपंथी कार्यकर्ताओं-विचारकों की गिरफ्तारी सरकार से असहमति के कारण नहीं हुई है.

नक्सल लिंक को लेकर देश के पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को सुप्रीम कोर्ट में देश के नामी गिरामी बुद्धिजीवियों द्वारा चुनौती दी गयी थी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए गिरफ्तारी की जगह आरोपियों को उनके घर पर ही नजरबंद रखने का आदेश दिया था. ये कार्यकर्ता 29 अगस्त से अपने घरों में नजरबंद हैं - जिसे चार हफ्ते और बढ़ा दिया गया है.

'असहमति' दबाने के इल्जाम से मोदी सरकार बरी!

तात्कालिक रूप से देखा जाये तो 'असहमति' को दबाने के इल्जाम से मोदी सरकार बरी हो गयी है - लेकिन अभी ट्रायल शुरू हुआ है, आखिरी फैसला आना बाकी है. अगर कोर्ट में पुणे पुलिस द्वारा पांचों कार्यकर्ताओं के खिलाफ जुटाये सबूत सही नहीं साबित होते तो तोहमत अपनी जगह बरकरार माना जाएगा.

'असहमति' दबाने के आरोप से मोदी सरकार बरी!

पुणे पुलिस के एक्शन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी थी. ये याचिका मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और देवकी जैन, समाजशास्त्र के प्रोफेसर सतीश देशपांडे और मानवाधिकारों के लिए वकालत करने वाले माजा दारुवाला की ओर से सुप्रीम दायर की गयी थी.

याचिका में कहा गया कि सरकार से असहमति के कारण पांच कार्यकर्ताओं वरवर राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया गया है. जब पुणे पुलिस अपने एक्शन को लेकर अदालत में संतोषजनक जवाब नहीं दे पायी तो सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ गिरफ्तारी पर रोक लगायी, बल्कि सरकार से 'असहमति' को लेकर बड़ी ही तीखी टिप्पणी भी की.

सुप्रीम...

सुप्रीम कोर्ट ने पुणे पुलिस की वो बात मान ली है जिसमें दावा किया गया है कि भीमा कोरेगांव केस में पांच वामपंथी कार्यकर्ताओं-विचारकों की गिरफ्तारी सरकार से असहमति के कारण नहीं हुई है.

नक्सल लिंक को लेकर देश के पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को सुप्रीम कोर्ट में देश के नामी गिरामी बुद्धिजीवियों द्वारा चुनौती दी गयी थी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए गिरफ्तारी की जगह आरोपियों को उनके घर पर ही नजरबंद रखने का आदेश दिया था. ये कार्यकर्ता 29 अगस्त से अपने घरों में नजरबंद हैं - जिसे चार हफ्ते और बढ़ा दिया गया है.

'असहमति' दबाने के इल्जाम से मोदी सरकार बरी!

तात्कालिक रूप से देखा जाये तो 'असहमति' को दबाने के इल्जाम से मोदी सरकार बरी हो गयी है - लेकिन अभी ट्रायल शुरू हुआ है, आखिरी फैसला आना बाकी है. अगर कोर्ट में पुणे पुलिस द्वारा पांचों कार्यकर्ताओं के खिलाफ जुटाये सबूत सही नहीं साबित होते तो तोहमत अपनी जगह बरकरार माना जाएगा.

'असहमति' दबाने के आरोप से मोदी सरकार बरी!

पुणे पुलिस के एक्शन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी थी. ये याचिका मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और देवकी जैन, समाजशास्त्र के प्रोफेसर सतीश देशपांडे और मानवाधिकारों के लिए वकालत करने वाले माजा दारुवाला की ओर से सुप्रीम दायर की गयी थी.

याचिका में कहा गया कि सरकार से असहमति के कारण पांच कार्यकर्ताओं वरवर राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया गया है. जब पुणे पुलिस अपने एक्शन को लेकर अदालत में संतोषजनक जवाब नहीं दे पायी तो सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ गिरफ्तारी पर रोक लगायी, बल्कि सरकार से 'असहमति' को लेकर बड़ी ही तीखी टिप्पणी भी की.

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी रही - 'असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है और अगर आप इन सेफ्टी वॉल्व की इजाजत नहीं देंगे तो यह फट जाएगा.' हालांकि, पुणे पुलिस अब सुप्रीम कोर्ट को अपनी बात समझाने में कामयाब हो गयी है. अब सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ये केस सरकार से असहमति के लिए गिरफ्तारी का नहीं है.

खास बात ये है कि तीन जजों की इस पीठ में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने साथियों के फैसले से असहमति जतायी है - और यही वो बिंदु है जिससे पुणे पुलिस का दावा फिलहाल तो पूरी तरह दुरूस्त नहीं लगता.

जांच कौन करेगा, ये आरोपी नहीं तय कर सकते

याचिका में पूरे मामले की SIT से जांच और कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई की मांग की गयी थी. सुप्रीम कोर्ट ने ये कहते हुए कि ये आरोपी नहीं तय कर सकते कि जांच कौन करेगा, SIT जांच की मांग खारिज कर दी है.

सु्प्रीम कोर्ट की नजर में सरकार से असहमति का केस नहीं

साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने पुणे पुलिस को आगे की जांच के लिए ग्रीन सिग्नल दे दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने ये जरूर कहा है कि भीमा कोरेगांव केस में गिरफ्तार किए गए ऐक्टिविस्ट चाहें तो राहत के लिए ट्रायल कोर्ट जा सकते हैं.

बचाव पक्ष की ओर से तमाम दलीलें दी गयीं लेकिन सुप्रीम कोर्ट को वे दमदार नहीं लगीं. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वरवर पर 25 केस दर्ज हुए और सभी में वो बरी हो चुके हैं. वननॉन गोंजाल्विस पर 18 मामले दर्ज हुए थे जिनमें 17 में वो बरी हो चुके हैं और एक में अपील किये हुए हैं.

ये सिर्फ आगाज है, अंजाम नहीं!

भीमा कोरेगांव केस में पांच कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की पीठ सुनवाई कर रही है जिनमें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शामिल हैं. साथी जजों की राय से जस्टिस चंद्रचूड़ ने असहमति जतायी क्योंकि उन्हें पुणे पुलिस का बर्ताव ठीक नहीं लगा.

सुप्रीम कोर्ट पुणे पुलिस के उस रवैये से भी नाराज था कि उसके अफसर ये कैसे कह सकते हैं कि अदालत को इस केस की सुनवाई नहीं करनी चाहिये. बहुमत से इतर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "14 सितंबर को ही इस कोर्ट ने एक व्यक्ति को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने के आदेश दिये, जिसे 25 साल पहले फंसाया गया था... ये कोर्ट की निगरानी में विशेष जांच टीम से जांच कराये जाने के लिए फिट केस है..."

पुणे पुलिस के बर्ताव को भी गलत मानते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि गिरफ्तार आरोपियों का नक्सलियों से कोई लिंक नहीं पाया गया... किसी अनुमान के आधार पर आजादी का हनन नहीं किया जा सकता - और कोर्ट को इसे लेकर सावधान रहना चाहिये.

बहुमत के चलते जस्टिस चंद्रचूड़ की राय भले ही गौण हो गयी हो, लेकिन ट्रायल में ये बिंदु जरूर उठाये जाएंगे और बहस के बाद ही अदालत अपना रूख तय करेगी.

जस्टिस चंद्रचूड़ की ये असहमति ही पुणे पुलिस की पोल भी खोल देती है. पुलिस ने तो इसरो केस में भी ऐसे ही जासूसी के सबूत जुटा लिये थे - और आखिर में डॉ. नांबी नारायणन न सिर्फ बाइज्जत बरी हुए बल्कि फर्जी तरीके से फंसाने के लिए राज्य सरकार को ₹50 लाख का मुआवजा भी देना पड़ा है. नांबी नारायणन इस मामले में भी कामयाब रहे कि उन्हें फंसाने वाले पुलिसवालों के खिलाफ भी जांच हो.

भीमा कोरेगांव केस में शुरू से मेन की-वर्ड असहमति ही रहा है. असहमति को लेकर ही सुप्रीम कोर्ट ने सेफ्टी वॉल्व और प्रेशर कुकर की मिसाल दी थी - दिलचस्प बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है उसमें भी असहमति शामिल है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ इसी तरह आधार केस में भी साथी जजों से सहमत नहीं थे, लेकिन फैसला तो बहुमत का ही माना जाता है.

पुणे पुलिस को इस बात के लिए तो तारीफ करनी ही होगी कि उसने पूरे महाराष्ट्र के पुलिस महकमे के लिए इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया - और केस को ऐसे पेश किया कि सुप्रीम कोर्ट को भरोसा हो जाये कि सारे आरोपियों के खिलाफ केस चलाने लायक सबूत हैं. वरना यही पुलिस पहले ये भी नहीं बता पा रही थी कि गिरफ्तारी का वास्तविक कारण क्या है. पुलिस की ओर से कभी बताया गया कि आरोपी प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश में शामिल थे. कभी दावा किया गया कि ये लोग बड़े पैमाने पर सरकार को गिराने के लिए साजिश रच रहे थे.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अमित शाह को भी राहुल गांधी पर हमले का मौका मिल गया है. अब तक इस मामले में राहुल गांधी ट्वीट अटैक करते रहे. अमित शाह का कहना है कि अब राहुल गांधी को अर्बन नक्सल को लेकर अपना रूख साफ करना चाहिये.

अमित शाह ने इस मामले को लेकर लगातार तीन ट्वीट किये - तीसरे ट्वीट में राहुल गांधी के ट्वीट पर टिप्पणी थी.

अमित शाह ने कहा कि भारत में मजबूत लोकतंत्र बहस की स्वस्थ परंपरा, चर्चा और असहमति जताने के कारण है. हालांकि, देश के खिलाफ साजिश करना और अपने ही लोगों को नुकसान पहुंचाने की भावना इसमें नहीं शामिल है - जिन लोगों ने इसके राजनीतिकरण की कोशिश की उन्हें माफी मांगनी चाहिए.

'असहमति' को दबाने के इल्जाम से बचाने महाराष्ट्र पुलिस के आला अफसरों के साथ साथ खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस तक दिन रात एक किये हुए थे - सवाल मोदी सरकार की नाक का जो था. एक साधे सब सधे - पुणे पुलिस ने अपने साथ साथ सीएम देवेंद्र फडणवीस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बड़ी तोहमत से बचा लिया है - अभी तो यही समझा जाना चाहिये, आगे जो होगा देखा जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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