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'बेगूसराय को समझने में जो भूल हुई उसके लिए माफी चाहता हूं'

    • आयुष कुमार अग्रवाल
    • Updated: 25 मई, 2019 03:45 PM
  • 25 मई, 2019 03:45 PM
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कन्हैया कुमार द्वारा बिना विज़न के सिर्फ सेक्युलरिज्म के साथ बेगूसराय की जनता को अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया गया. लेकिन बिहार में मोदी + नीतीश के गठजोड़ ने एक नया माहौल बना दिया था.

मैं नमन करता हूं उस भूमि को जिसे मैं कल तक समझ नहीं पाया था. आज समझा हूं इसके लिए माफी. बेगूसराय सीट पर पिछली बार जहां भाजपा प्रत्याशी 4 लाख 20 हजार वोट ले गए थे, इस बार 6 लाख 90 हजार पार कर गए. तनवीर हसन को करीब 3 लाख 70 हजार वोट मिले थे लेकिन इस बार उन्हें 1 लाख 90 हजार मिले. फर्क लगभग 1 लाख 80 हजार का, जिसपर लोग कहेंगे मोदी विरोध में कन्हैया ले गए होंगे. लेकिन नहीं. सीपीएम को पिछली बार 1 लाख 92 हजार वोट मिले थे तो इस बार सीपीएम के कन्हैया 2 लाख 70 हजार ले गये. इस बार 80 हजार ज्यादा मिले. चलिए इसमें से पुराने 60 हजार तनवीर हसन के कटे मान लेते हैं. क्योंकि इस बार वोट भी बढ़े. उस औसत से तो 1 लाख से ज्यादा तनवीर हसन के वोट भाजपा पर ट्रांसफर हुए. यह क्यों?

जिस तरह से मीडिया में बेगूसराय की सीट लोकप्रिय हुई थी उसकी वजह थी एक छात्र नेता और एक विचारधारा के एकमात्र बडे भविष्य दिख रहे कन्हैया वहाँ से मैदान में थे. भाजपा ने मौके की नब्ज पकड़ी और माहौल का पता लगाया. वहां कोई ऐसा छत्रप चाहिए था जो कन्हैया को मजबूती से झेल सके. भाजपा को पहले से पता था इस सीट पर देश भर के वामपंथी जी जान लगा देंगे. कन्हैया के प्रचार के लिए वहां बहुत बड़े बड़े नाम आएंगे और हर तरह का प्रयोग होगा.

कन्हैया कुमार को भाजपा के गिरिराज सिंह ने ने 4 लाख वोटों से हरा दिया

जब भाजपा ने अपने बिहार के सबसे दबंग छत्रप को वहां उतारा तो शुरुआत में गिरिराज अपनी सुरक्षित सीट नहीं छोड़ना चाहते थे. लेकिन पार्टी का फैसला था, करते तो क्या करते, अब तो लड़ना ही था. तो रणनीति बनाने के माहिर गिरिराज ने जी जान लगा दी. धीरे-धीरे प्रचार आगे बढ़ा और गिरिराज ने मौके की नजाकत समझकर अपनी छवि को खत्म कर मोदी और राष्ट्रवाद को आगे कर दिया. गिरिराज है तो महादेव का साथ तो मिलता...

मैं नमन करता हूं उस भूमि को जिसे मैं कल तक समझ नहीं पाया था. आज समझा हूं इसके लिए माफी. बेगूसराय सीट पर पिछली बार जहां भाजपा प्रत्याशी 4 लाख 20 हजार वोट ले गए थे, इस बार 6 लाख 90 हजार पार कर गए. तनवीर हसन को करीब 3 लाख 70 हजार वोट मिले थे लेकिन इस बार उन्हें 1 लाख 90 हजार मिले. फर्क लगभग 1 लाख 80 हजार का, जिसपर लोग कहेंगे मोदी विरोध में कन्हैया ले गए होंगे. लेकिन नहीं. सीपीएम को पिछली बार 1 लाख 92 हजार वोट मिले थे तो इस बार सीपीएम के कन्हैया 2 लाख 70 हजार ले गये. इस बार 80 हजार ज्यादा मिले. चलिए इसमें से पुराने 60 हजार तनवीर हसन के कटे मान लेते हैं. क्योंकि इस बार वोट भी बढ़े. उस औसत से तो 1 लाख से ज्यादा तनवीर हसन के वोट भाजपा पर ट्रांसफर हुए. यह क्यों?

जिस तरह से मीडिया में बेगूसराय की सीट लोकप्रिय हुई थी उसकी वजह थी एक छात्र नेता और एक विचारधारा के एकमात्र बडे भविष्य दिख रहे कन्हैया वहाँ से मैदान में थे. भाजपा ने मौके की नब्ज पकड़ी और माहौल का पता लगाया. वहां कोई ऐसा छत्रप चाहिए था जो कन्हैया को मजबूती से झेल सके. भाजपा को पहले से पता था इस सीट पर देश भर के वामपंथी जी जान लगा देंगे. कन्हैया के प्रचार के लिए वहां बहुत बड़े बड़े नाम आएंगे और हर तरह का प्रयोग होगा.

कन्हैया कुमार को भाजपा के गिरिराज सिंह ने ने 4 लाख वोटों से हरा दिया

जब भाजपा ने अपने बिहार के सबसे दबंग छत्रप को वहां उतारा तो शुरुआत में गिरिराज अपनी सुरक्षित सीट नहीं छोड़ना चाहते थे. लेकिन पार्टी का फैसला था, करते तो क्या करते, अब तो लड़ना ही था. तो रणनीति बनाने के माहिर गिरिराज ने जी जान लगा दी. धीरे-धीरे प्रचार आगे बढ़ा और गिरिराज ने मौके की नजाकत समझकर अपनी छवि को खत्म कर मोदी और राष्ट्रवाद को आगे कर दिया. गिरिराज है तो महादेव का साथ तो मिलता ही.

दूसरी तरफ कन्हैया जिनका एक आधार था मोदी को रोको, कैसे भी. मोदी विरोध में उनको साथ मिला जेएनयू के उनके साथियों का. साथ ही पूरे देश के वामपंथी वहां पहुंच गए. लोगों के मन में मोदी विरोध का माहौल बनाने के लिए स्वरा भास्कर जैसे प्रसिद्ध सिनेमा से जुड़े लोग भी वहां पहुंचे. बिना विज़न के सिर्फ सेक्युलरिज्म के साथ बेगूसराय की जनता को अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया गया. लेकिन बिहार में मोदी + नीतीश के गठजोड़ ने एक नया माहौल बना दिया था. ऊपर से राष्ट्रवाद का जोर, साथ ही केंद्र की योजनाओं का जमीन पर आना चाहे अटल आवास हो या उज्ज्वला और चाहे जनधन योजना.

राष्ट्रीय जनता दल के तनवीर हसन एकतरफ हो चुके थे. अब तक के चुनाव में मीडिया ने गिरिराज vs कन्हैया बनाकर एक कद्दावर नेता के कद ही हत्या तो पहले ही कर दी थी. जिससे उबरना उनके सामर्थ्य से बाहर हो गया था. क्योंकि पार्टी का प्रभाव भी कोई खास नहीं था. इससे वामपंथी राजनीतिक पंडितों ने मन ही मन बेगूसराय की जीत का एक खाका बनाया, जिसमें तनवीर हसन के 70% से अधिक वोट मोदी विरोध में कन्हैया को मिलने का भरोसा जताया. जिससे वामपंथी 1 लाख 90 हजार केडर और तनवीर हसन के 3 लाख मिलाकर भाजपा का खेल बिगाड़ने की योजना तैयार हुई. लेकिन हुआ कुछ उल्टा ही. तनवीर हसन को मिले गैर मुस्लिम वोट का बड़ा भाग भजपा को मिल गया और सारा खेल उल्टा पड़ गया.

गिरिराज द्वारा अपनी छवि को मिटाकर मोदी+राष्ट्रवाद का खेल सब खेल पर भारी पढ़ा. राजनीतिक पण्डित सब फेल हुए, जीत देश की हुई.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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