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2019 लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के लिए अपशकुन वाले संकेत

    • बिजय कुमार
    • Updated: 29 जनवरी, 2018 10:41 PM
  • 29 जनवरी, 2018 10:41 PM
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एनडीए के सहयोगी दल बिखर रहे हैं. कई बार गठबंधन में शामिल पार्टियां अपनी बात मनवाने के लिए भी इस तरह की नाराजगी दिखाती हैं. लेकिन इस बार क्‍या वाकई ऐसा है ?

शिवसेना ने अभी कुछ ही दिन पहले ये ऐलान किया था कि वो 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव और विधानसभा का चुनाव अकेले लड़ेगी. इसके बाद अब आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्राबाबू नायडू ने कहा है कि 'अगर बीजेपी उनका साथ नहीं चाहती तो उन्हें भी उसे नमस्कार करने यानी गठबंधन को तोड़ने में कोई गुरेज नहीं होगा.' श्री नायडू का यह बयान बीजेपी के प्रदेश के नेताओं द्वारा उनकी सरकार की कई मुद्दों पर आलोचना करने के बाद आया है. उन्होंने कहा की प्रदेश सरकार के खिलाफ बयानों पर केंद्रीय नेतृत्व को संज्ञान लेना चाहिए और अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए.

बता दें कि नायडू की तेलगुदेशम पार्टी बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा है. राज्य में भी बीजेपी और टीडीपी एक साथ हैं. उन्होंने इस मौके पर विपक्षी वाईएसआर कांग्रेस और उसके प्रमुख वाईएस जगन मोहन रेड्डी पर बीजेपी के करीब जाने के प्रयासों के लिए हमला बोला. बीजेपी को केंद्र और राज्य में समर्थन देने के जगन के बयानों पर नायडू ने कहा कि विपक्ष केंद्र के साथ डील करना चाहता है क्योंकि उनके खिलाफ मामलों की सीबीआई और ईडी के पास जांच होनी है. वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के प्रमुख वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने हाल ही में बयान दिया था कि यदि आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिया गया तो वह भाजपा को समर्थन देंगे.

2019 के चुनावों के पहले भाजपा का साथ छोड़ने वाले सहयोगी दलों का गुणा-भाग समझने की कोशिश

ऐसा नहीं है कि ये अचानक से हो रहा है बल्कि अन्य मौकों पर भी श्री नायडू बीजेपी से कुछ अलग राय रखते हैं या कहें कि कुछ नाराज हैं. अभी हाल ही में उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी और प्रदेश के लिए कुछ मांग रखी थी, उनमें से एक है नयी राजधानी अमरावती के निर्माण लिए फंड. इसके अलावा अभी हाल ही में ट्रिपल तलाक़ बिल पर बीजेपी से अलग राय रखने से...

शिवसेना ने अभी कुछ ही दिन पहले ये ऐलान किया था कि वो 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव और विधानसभा का चुनाव अकेले लड़ेगी. इसके बाद अब आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्राबाबू नायडू ने कहा है कि 'अगर बीजेपी उनका साथ नहीं चाहती तो उन्हें भी उसे नमस्कार करने यानी गठबंधन को तोड़ने में कोई गुरेज नहीं होगा.' श्री नायडू का यह बयान बीजेपी के प्रदेश के नेताओं द्वारा उनकी सरकार की कई मुद्दों पर आलोचना करने के बाद आया है. उन्होंने कहा की प्रदेश सरकार के खिलाफ बयानों पर केंद्रीय नेतृत्व को संज्ञान लेना चाहिए और अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए.

बता दें कि नायडू की तेलगुदेशम पार्टी बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा है. राज्य में भी बीजेपी और टीडीपी एक साथ हैं. उन्होंने इस मौके पर विपक्षी वाईएसआर कांग्रेस और उसके प्रमुख वाईएस जगन मोहन रेड्डी पर बीजेपी के करीब जाने के प्रयासों के लिए हमला बोला. बीजेपी को केंद्र और राज्य में समर्थन देने के जगन के बयानों पर नायडू ने कहा कि विपक्ष केंद्र के साथ डील करना चाहता है क्योंकि उनके खिलाफ मामलों की सीबीआई और ईडी के पास जांच होनी है. वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के प्रमुख वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने हाल ही में बयान दिया था कि यदि आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिया गया तो वह भाजपा को समर्थन देंगे.

2019 के चुनावों के पहले भाजपा का साथ छोड़ने वाले सहयोगी दलों का गुणा-भाग समझने की कोशिश

ऐसा नहीं है कि ये अचानक से हो रहा है बल्कि अन्य मौकों पर भी श्री नायडू बीजेपी से कुछ अलग राय रखते हैं या कहें कि कुछ नाराज हैं. अभी हाल ही में उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी और प्रदेश के लिए कुछ मांग रखी थी, उनमें से एक है नयी राजधानी अमरावती के निर्माण लिए फंड. इसके अलावा अभी हाल ही में ट्रिपल तलाक़ बिल पर बीजेपी से अलग राय रखने से भी दोनों दलों में दरार की ख़बरें आयी थीं.

बीजेपी के ‘मिशन 2019’ के लिए ये दोनों खबरें काफी निराशाजनक हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल शिवसेना और टीडीपी ही इससे नाराज हों, बल्कि कुछ और सहयोगी दलों में भी रोष देखने को मिला रहा है. पिछले साल महाराष्ट्र के सासंद राजू शेट्टी के नेतृत्व वाले स्वाभिमानी शेतकरी संघटना (एसएसएस) ने भी केंद्र और राज्य सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था और सरकार पर आरोप लगाया था कि उसने किसानों से किये वायदों को पूरा नहीं किया है. पिछले वर्ष ही ऐसी खबरें आयी थीं कि बिहार के आरएलएसपी के प्रमुख और केंद्रीय राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा भी गठबंधन तोड़ सकते हैं.

वैसे कई बार गठबंधन में शामिल पार्टियां अपनी बात मनवाने के लिए भी इस तरह की नाराजगी दिखाती हैं. इसे एक तरह की प्रेशर टैक्टिस कह सकते हैं जो चुनाव के नजदीक आते- आते और भी ज्यादा देखने को मिलती है. लेकिन इन सबसे पार पाकर ही बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनाव में अच्छा कर पायेगी.

कह सकते हैं कि एक ओर जहां बीजेपी यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आजाद जैसे नेताओं की आलोचना का सामना कर रही है. तो वहीं इसके कुछ गठबंधन सहयोगी विभिन्न मुद्दों पर असहमति के चलते इसे छोड़ गए हैं या फिर नाराज हैं. ऐसे में पार्टी को इसपर विचार करना होगा और इसका हल निकालना होगा. नहीं तो इससे नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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