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Ayodhya Verdict: एक ऐसा फैसला जो बन गया इतिहास!

    • शलभ मणि त्रिपाठी
    • Updated: 10 जनवरी, 2020 03:26 PM
  • 10 जनवरी, 2020 03:26 PM
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Ayodhya Verdict पर जैसी चुस्ती उत्तर प्रदेश की Yogi Adityanath सरकार ने दिखाई उसकी जमकर तारीफ हुई. फैसले के दौरान जैसा रवैया UP Police और योगी आदित्यनाथ का था, सूबे के अमन चैन के लिए उन्हें जरूर याद किया जाएगा.

नागरिकता कानून (Citizen Amendment Act ) के बाद उत्तर प्रदेश समेत देश के तमाम हिस्सों में जिस तरह का उपद्रव (CAA protest violence in P) देखने को मिला, उससे ये बात एक बार फिर साबित हुई कि ऐसी तमाम ताकतें हर वक्त इस मौके की ताक में रहती हैं जब सियासी सरपरस्ती और विरोध की आड़ में वे अराजकता का नंगा नाच कर सकें. जाहिर है ऐसे में जबकि अयोध्या का फैसला (Ayodhya verdict) आए अब दो महीने का वक्त पूरा हो गया, तब यूपी की योगी सरकार की इस मामले में तारीफ होनी ही चाहिए कि तमाम चुनौतियों और नापाक कोशिशों के बावजूद पिछले दो महीनों के दौरान उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द (Communal Harmony of P after Ayodhya verdict) बिगड़ने नहीं पाया और सांप्रदायिक तनाव की एक घटना नहीं हुई. पिछले दिनों प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने भी चिट्ठी लिखकर इस कामयाबी के लिए योगी सरकार की प्रशंसा की थी. यहां ये जानना भी जरूरी है कि जिस फैसले पर पूरी दुनिया की नजर टिकी थी उस फैसले वाले दिन यानी नौ नवंबर को तो पूरे प्रदेश में अपराध की एक मामूली घटना तक नहीं हुई और प्रदेश के सारे रोजनांमचे खाली रहे.

अयोध्या फैसले पर जो रवैया योगी आदित्यनाथ का था उन्होंने मामले पर पूरी सूझ बूझ से काम लिया

दरअसल, देश के इस सबसे पुराने लगभग 593 वर्ष पुराने विवाद का ही नतीजा था कि अयोध्या सुनते ही जहन में एक साथ कई तस्वीरें उभरती हैं. प्रभु राम का जन्म, मंदिर मस्जिद का विवाद, कारसेवकों पर चली गोलियां, विवादित ढांचे का विध्वंस, देश भर में दंगे, कर्फ्यू, अदालती लड़ाई और फैसला. ऐसे में जब अयोध्या का फैसला आने वाला था तब इस फैसले को लेकर पूरा देश तमाम तरह की आशंकाओं से सशंकित था.

तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे थे. अफवाहें तैर रही थीं. चर्चाओं का बाजार गर्म...

नागरिकता कानून (Citizen Amendment Act ) के बाद उत्तर प्रदेश समेत देश के तमाम हिस्सों में जिस तरह का उपद्रव (CAA protest violence in P) देखने को मिला, उससे ये बात एक बार फिर साबित हुई कि ऐसी तमाम ताकतें हर वक्त इस मौके की ताक में रहती हैं जब सियासी सरपरस्ती और विरोध की आड़ में वे अराजकता का नंगा नाच कर सकें. जाहिर है ऐसे में जबकि अयोध्या का फैसला (Ayodhya verdict) आए अब दो महीने का वक्त पूरा हो गया, तब यूपी की योगी सरकार की इस मामले में तारीफ होनी ही चाहिए कि तमाम चुनौतियों और नापाक कोशिशों के बावजूद पिछले दो महीनों के दौरान उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द (Communal Harmony of P after Ayodhya verdict) बिगड़ने नहीं पाया और सांप्रदायिक तनाव की एक घटना नहीं हुई. पिछले दिनों प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने भी चिट्ठी लिखकर इस कामयाबी के लिए योगी सरकार की प्रशंसा की थी. यहां ये जानना भी जरूरी है कि जिस फैसले पर पूरी दुनिया की नजर टिकी थी उस फैसले वाले दिन यानी नौ नवंबर को तो पूरे प्रदेश में अपराध की एक मामूली घटना तक नहीं हुई और प्रदेश के सारे रोजनांमचे खाली रहे.

अयोध्या फैसले पर जो रवैया योगी आदित्यनाथ का था उन्होंने मामले पर पूरी सूझ बूझ से काम लिया

दरअसल, देश के इस सबसे पुराने लगभग 593 वर्ष पुराने विवाद का ही नतीजा था कि अयोध्या सुनते ही जहन में एक साथ कई तस्वीरें उभरती हैं. प्रभु राम का जन्म, मंदिर मस्जिद का विवाद, कारसेवकों पर चली गोलियां, विवादित ढांचे का विध्वंस, देश भर में दंगे, कर्फ्यू, अदालती लड़ाई और फैसला. ऐसे में जब अयोध्या का फैसला आने वाला था तब इस फैसले को लेकर पूरा देश तमाम तरह की आशंकाओं से सशंकित था.

तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे थे. अफवाहें तैर रही थीं. चर्चाओं का बाजार गर्म था. फैसले के बाद किसी तरह की अशांति के खौफ से डरे कुछ लोग घर का राशन जमा करने मे जुटे थे. देश विरोधी तमाम ताकतें अमन चैन बिगाड़ने की कवायद में भी जुटी थीं. शायद यही वजह थी कि ये फैसला सुनाने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव आरके तिवारी और पुलिस प्रमुख ओपी सिंह को बुलाकर बात की थी. सुरक्षा के उपायों को लेकर चर्चा की थी. ये अपेक्षा थी कि फैसले के बाद किसी भी तरह अमन चैन या शांति बिगड़ने ना पाए.

चुनौती बड़ी थी. पूरे देश की नजर अयोध्या और उत्तर प्रदेश पर थी. सियासी बयानबाजी भी अपने चरम पर थी. एकतरह से ये उत्तर प्रदेश सरकार के लिए अग्निपरीक्षा का घड़ी थी. ऐसे में ये जिम्मेदारी अधिकारियों को देने की बजाए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कानून व्यवस्था की कमान खुद संभाली. तय किया कि लखनऊ के डायल 112 मुख्यालय में एक कंट्रोल रूम स्थापित किया जाए.

सड़क से लेकर गली गलियारों ही नहीं स्पेक्ट्रम की दुनिया यानी सोशल मीडिया पर भी गहन नजर रखी जाए. लखनऊ से बड़े अफसर छोटे छोटे जिलों में तैनात किए जाएं. आम लोगों में आपसी सद्भाव और विश्वास मजबूत किया जाए.गड़बड़ी फैलाने की किसी भी कोशिश को तत्काल नाकाम करने के साथ ही कड़ा रवैया अपनाया जाए.

ये सुनिश्चित कराया जाए कि फैसले को लेकर किसी भी तरह का जश्न या ऐसी कोई प्रतिक्रिया समाज में ना होने दी जाए जिसे लेकर आपसी वैमनस्यता बढ़े. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मसले पर खुद भी सभी वर्गों को धर्मगुरूओं से बात की.

इन तैयारियों के सबसे बड़ी चुनौती थी फैसले की तारीख को लेकर संशय. कुछ लोगों का मानना था कि ये फैसला कार्तिक पूर्णिया के स्नान के बाद आए तो बेहतर होगा. तैयारियों के लिए थोड़ा वक्त मिल जाएगा. कुछ अधिकारी कार्तिक पूर्णिमा में जुटने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ को लेकर चिंतित भी थे, कि कहीं ऐसा ना हो कि फैसले का असर इस स्नान पर भी पड़े.

पर इसी बीच आठ नवंबर की रात दस बजे, अचानक टेलीविजन पर खबर चमकी. खबर ये थी कि कल सुबह दस बजे आएगा अयोध्या का फैसला. जिस वक्त ये खबर आई उस वक्त मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बाहर से आए कुछ मेहमानों के साथ आयोजित डिनर में मौजूद थे. खबर आते ही मुख्यमंत्री डिनर छोड़ निकल गए. तत्काल आला अफसरों को आवास पर तलब किया गया. और शुरू हो गई मैराथन बैठक.

बैठक में कानून व्यवस्था पर मोर्चा संभालने के साथ ही साथ मीडिया और सोशल मीडिया पर भी गहरी नजर रखने पर रणनीति बनाई गई. इसी वक्त खबर आई कि पश्चिमी यूपी से कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट डाली है. अगले कुछ ही घंटों के भीतर सात लोग गिरफ्तार हो चुके थे. ये निर्देश था किसी भी स्तर पर कोई भेदभाव ना हो. गड़बड़ी जहां से भी हो तुरंत कार्रवाई हो.यही वजह है कि फैसले का दिन बीतते बीतते 109 लोग भड़काऊ और आपत्तिजक पोस्ट डालने पर गिरफ्तार हो चुके थे.

पूरी रात मुख्यमंत्री ने हर जिले के अधिकारियों से खुद बात की. इसके साथ ही लखनऊ से छोटे छोटे इलाकों में भेजे गए अधिकारियों से भी पल पल की रिपोर्ट लेते रहे. मेरठ से खबर आई की आशंकाओं से डरे कुछ लोग सामान खरीदने निकल पड़े हैं, दुकानें भी रात में खुलने लगी हैं. फौरन अधिकारियों को वहां भेजा गया. मीडिया के जरिए भी ये संदेश दिया गया कि ना तो रात में दुकानें खोलने की जरूरत हैं ना ही ज्यादा सामान इकट्टा करने की. सब कुछ शांत रहेगा.

अगली सुबह दस बजे फैसला आना था. फैसले वाले दिन सुबह आठ बजे ही मुख्यमंत्री ने पुलिस और प्रशासनिक प्रमुखों को आवास पर बुलाया और सबके साथ जा पहुंचे डायल 112 के मुख्यालय. खुद मुख्यालय पर बैठकर पूरे प्रदेश का हाल जाना. और फिर दस बजे फैसला सुनने के लिए सरकारी आवास 5 कालीदास मार्ग निकल गए.

करीब 11 बजे तक फैसला आ चुका था. आशंकाओं को लेकर भले ही सबकी धड़कनें बढी हुईं थीं पर मुख्यमंत्री आत्मविश्वास में थे. बहुप्रतीक्षित फैसले को पूरी टीम के साथ सुनने के बाद एक बार फिर शुरू हो गया मानिटरिंग का दौर. सबको निर्देश दिए गए कि गश्त ना छोड़ें, फील्ड में रहें. इन प्रयासों का ही परिणाम है कि आज अयोध्या ही नहीं, पूरा उत्तर प्रदेश शांत है.

पर कम ही लोग जानते होंगे कि इस शांति के लिए यूपी पुलिस ने अलग अलग वर्गों और संगठनों के साथ करीब 10 हजार बैठकें कर शांति की अपील की. करीब 2.5 लाख सोशल मीडिया वालंटियर्स के जरिए सोशल मीडिया पर नजर रखते हुए करीब तीन हजार ऐसे एकाउंट बंद कराए गए जो नफरत फैलाने की कोशिश में थे. आगे चलकर जब भी अयोध्या का इतिहास लिखा जाएगा, तब सर्वोच्च अदालत से आए फैसले के दौरान अमन चैन रखने के लिए प्रदेश के लोगों के योगदान को भी जरूर याद किया जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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