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Ayodhya Ground Report: विकास के नाम से अयोध्यावासी डरते क्यों हैं?

    • शुभ्रा सुमन
    • Updated: 11 अगस्त, 2020 01:50 PM
  • 11 अगस्त, 2020 01:50 PM
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भले ही पीएम मोदी (PM Modi) द्वारा राम मंदिर के लिए किये गए भूमि पूजन (Ram Mandir Bhumi Pujan) के बाद अयोध्या के विकास (Ayodhya Development) को लेकर बड़ी बड़ी बातें हो रही हों मगर उन दुकानदारों का क्या जो इस विकास की भेंट चढ़ अपना सब कुछ गंवाने वाले हैं.

अयोध्या (Ayodhya) पहली बार गई थी. बचपन से जब भी अयोध्या का नाम सुना एक विवाद का जिक्र अपने आप उसके साथ जुड़ जाता. फिर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का फैसला आाया और उसके बाद ही लोकतांत्रिक तरीके से राम मंदिर (Ram Mandir construction) बनने का रास्ता साफ हो गया. इतिहास के पन्नों का विश्लेषण कई तरह से किया जा सकता है. फैसले को भी तमाम लोगों ने अपने-अपने नज़रिए से देखा. लेकिन जिस तरह कभी उबड़खाबड़ कभी समतल रास्तों से गुजरते हुए आखिरकार नदी की नियति है समंदर में मिल जाना वैसे है तमाम ऊंच-नीच कमी-बेसी के बाद विवाद का खत्म होना ही उसकी नियति होनी चाहिए. अयोध्या में रिपोर्टिंग करते हुए मुझे ये बात हमेशा परेशान करती रही कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला अगर उस वर्ग के पक्ष में न आता जिसके पक्ष में आया है तो क्या इसी सहयोग सद्भावना समझदारी और सामंजस्य के साथ उसे अपना लिया जाता? मैं जानती हूं कि हर बात को कहने का एक मुफीद वक्त होता है. मैं ये भी समझती हूं कि दुनिया के हर कोने हर देश हर काल में बहुसंख्यकों-अल्पसंख्यकों की राजनीति, सामाजिक भाव-विचार और तौर-तरीके एक खास तरह से काम करते हैं. लेकिन सच ये भी है कि इससे न सवाल कमज़ोर होते हैं और न बेहतरी की उम्मीद करना अप्रासंगिक होता है.

और इन सबके साथ-साथ एक सच ये भी कि देश का सबसे बड़ा तबका, यहां की बड़ी आबादी राम मंदिर निर्माण के आगाज़ से खुश है. उनकी अथाह आस्था हिलोरे मार रही है औऱ इसे जस का तस रिपोर्ट किया जाना चाहिए. लेकिन ऐसी और भी बहुत सारी आवाज़ें हैं जो संख्या में भले ही ज्यादा न हों लेकिन उनका सुना जाना औऱ सामने आना जरूरी है. रिपोर्टिंग के दौरान अयोध्या की सड़कों पर घूमते हुए मैं श्रृंगार हाट पहुंची थी.

इस बाज़ार का नाम एकदम सटीक है. दूर तक चूड़ियों और साज-श्रृंगार के दूसरे सामानों की दुकानें. घूमते-घूमते मैंने कई दुकानदारों से बात की. ज्यादातर हिन्दू औऱ कुछ मुस्लिम दुकानदार. जो बात समझ में आई वो ये कि भव्य मंदिर के निर्माण और अभूतपूर्व आयोजन से चौंधियाई आंखें बहुत कुछ ज़रूरी नहीं...

अयोध्या (Ayodhya) पहली बार गई थी. बचपन से जब भी अयोध्या का नाम सुना एक विवाद का जिक्र अपने आप उसके साथ जुड़ जाता. फिर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का फैसला आाया और उसके बाद ही लोकतांत्रिक तरीके से राम मंदिर (Ram Mandir construction) बनने का रास्ता साफ हो गया. इतिहास के पन्नों का विश्लेषण कई तरह से किया जा सकता है. फैसले को भी तमाम लोगों ने अपने-अपने नज़रिए से देखा. लेकिन जिस तरह कभी उबड़खाबड़ कभी समतल रास्तों से गुजरते हुए आखिरकार नदी की नियति है समंदर में मिल जाना वैसे है तमाम ऊंच-नीच कमी-बेसी के बाद विवाद का खत्म होना ही उसकी नियति होनी चाहिए. अयोध्या में रिपोर्टिंग करते हुए मुझे ये बात हमेशा परेशान करती रही कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला अगर उस वर्ग के पक्ष में न आता जिसके पक्ष में आया है तो क्या इसी सहयोग सद्भावना समझदारी और सामंजस्य के साथ उसे अपना लिया जाता? मैं जानती हूं कि हर बात को कहने का एक मुफीद वक्त होता है. मैं ये भी समझती हूं कि दुनिया के हर कोने हर देश हर काल में बहुसंख्यकों-अल्पसंख्यकों की राजनीति, सामाजिक भाव-विचार और तौर-तरीके एक खास तरह से काम करते हैं. लेकिन सच ये भी है कि इससे न सवाल कमज़ोर होते हैं और न बेहतरी की उम्मीद करना अप्रासंगिक होता है.

और इन सबके साथ-साथ एक सच ये भी कि देश का सबसे बड़ा तबका, यहां की बड़ी आबादी राम मंदिर निर्माण के आगाज़ से खुश है. उनकी अथाह आस्था हिलोरे मार रही है औऱ इसे जस का तस रिपोर्ट किया जाना चाहिए. लेकिन ऐसी और भी बहुत सारी आवाज़ें हैं जो संख्या में भले ही ज्यादा न हों लेकिन उनका सुना जाना औऱ सामने आना जरूरी है. रिपोर्टिंग के दौरान अयोध्या की सड़कों पर घूमते हुए मैं श्रृंगार हाट पहुंची थी.

इस बाज़ार का नाम एकदम सटीक है. दूर तक चूड़ियों और साज-श्रृंगार के दूसरे सामानों की दुकानें. घूमते-घूमते मैंने कई दुकानदारों से बात की. ज्यादातर हिन्दू औऱ कुछ मुस्लिम दुकानदार. जो बात समझ में आई वो ये कि भव्य मंदिर के निर्माण और अभूतपूर्व आयोजन से चौंधियाई आंखें बहुत कुछ ज़रूरी नहीं देख पा रहीं हैं. उनमें से एक है अयोध्या के आम लोगों में छाया ख़ास तरह का संशय.

अयोध्या भले ही एक भव्य शहर बनने को तैयार हो मगर इसके विकास का खामियाजा छोटे दुकानदारों को ही भुगतना होगा

ये संशय बेबुनियाद नहीं है. क्योंकि शोरगुल और तामझाम से आम लोगों का भला हुआ हो ऐसे उदाहरण कम ही हैं. आम आदमी भव्यता के शिखर पर ज्यादा देर तक विराज नहीं सकता. रोटी कमाने के लिए उसको जमीन पर उतरना पड़ता है. अयोध्या के श्रृंगार हाट में जिन दुकानों से स्थानीय लोगों की रोज़ी-रोटी चलती है अब उन्हीं दुकानों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

दरअसल राम मंदिर निर्माण के साथ-साथ अयोध्या के कायाकल्प की तैयारी किए बैठी सरकार सबकुछ परफेक्ट चाहती है. बाहर से आए हुए लोगों के लिए सब कुछ फर्स्ट क्लास होना चाहिए. मुसीबत ये है कि फर्स्ट क्लास के इस मायाजाल में अक्सर समाज का लोअर और मिडिल क्लास ठग लिया जाता है. अयोध्या से मिल रहे संकेत बहुत अलग नहीं हैं. राम मंदिर निर्माण के साथ-साथ इछ्वाकु योजना के जरिए नई अयोध्या बसाने की योजना है.

लेकिन नई अयोध्या ने पुरानी अयोध्या, उसकी मौलिकता और वहां के मूल निवासियों के लिए संकट की स्थिति पैदा कर दी है. बाद में सरकार इसका निपटारा करे तो करे, फिलहाल ये किसी घोर संकट से कम नहीं है. राम मंदिर से होते हुए तीर्थयात्रियों के लिए बेहतरीन सड़क निकालने के उद्देश्य से अयोध्या के मुख्य बाज़ार के रास्ते को फोर लेन करने की योजना है.

इसकी ज़द में शहर की एक बड़ी आबादी आएगी. प्रशासन कहता है मुआवज़ा मिलेगा लेकिन सरकारी व्यवस्था पर विश्वास की कमी दुकानदारों के बुझे हुए चेहरों पर साफ दिखाई देती है. राम नाम के जाप में डूबी अयोध्या अपने लोगों के दिलों में पल रहा रोज़ी खो जाने का डर हर रोज़ देख रही है. मैंने दुकानदारों से सवाल किया कि मंदिर बनने के बाद आपलोगों की दुकानें भी खूब चलेंगी. जवाब मायूस करने वाला था, ''दुकानें रहेंगी तब चलेंगी न मैडम! अभी तो दुकान ही हाथ से जा रही है.'

अयोध्या के नया घाट से उदया चौराहा तक सड़क को फोर लेन करने की योजना है. स्थानीय पत्रकार ने बताया कि पहले शहादत गंज तक सड़क फोर लेन की जानी थी लेकिन आम लोगों के विरोध की वजह से अब उदया चौराहे से शहादत गंज तक चौड़ीकरण करने का प्लान रखा गया है. हकीकत ये है कि इस योजना की ज़द में अयोध्या की एक बड़ी आबादी आएगी. उन दुकानदारों को अपना भविष्य अधर में लग रहा है.

इस इलाके में बड़ी संख्या उन लोगों की है जो किराए पर दुकान लेकर रोज़गार करते हैं. उन्हें डर है कि उन्हें फिर से न ऐसी जगह पर दुकान मिलेगी और न किराएदार होने की वजह से मुआवज़ा नसीब होगा. कायाकल्प सौंदर्यीकरण और विकास जैसे शब्दों के इर्द-गिर्द बुना जाने वाला मायाजाल अक्सर आम लोगों के लिए उपेक्षा लेकर आता है.

जरूरी है कि अयोध्यावासियों को राम भरोसे छोड़ने की बजाए सरकार और प्रशासन अपनी योजनाओं में उन्हें जगह दे. उनका हित-अहित सोचे. उनके विकास को तरजीह दे. तभी राम मंदिर का निर्माण सार्थक होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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