• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

भाजपा केवल हिंदी भाषी प्रदेशों की पार्टी नहीं रह गई है...

    • डा. दिलीप अग्निहोत्री
    • Updated: 22 मई, 2016 04:16 PM
  • 22 मई, 2016 04:16 PM
offline
चुनाव में हार-जीत एक सामान्य प्रक्रिया है लेकिन पांच राज्यों के ये चुनाव परिणाम राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले साबित होंगे. भाजपा अब सच्चे अर्थों में देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गयी है. नीतीश कुमार का इन चुनाव से कोई लेना देना नहीं था. लेकिन संदेश उनके लिए भी है...

केरल में कम्युनिस्ट और पुडुचेरी में कांग्रेस को जश्न मनाने का अवसर मिला, लेकिन इसे अंधकार में रोशनी की साधारण किरण भी नहीं माना जा सकता. इन पार्टियों की विफलता कहीं ज्यादा बड़ी है. इसके केवल प्रादेशिक ही नहीं राष्ट्रीय निहितार्थ हैं. दोनों पार्टियों का केन्द्रीय नेतृत्व जहां कसौटी पर था, नाकामी वहीं मिली है. कांग्रेस ने दो प्रदेशों की सत्ता गंवा दी, वामपंथियों की सर्वाधिक उम्मीद पश्चिम बंगाल से जुड़ी रही है, यहां मुख्य विपक्षी का दर्जा तक नसीब नहीं हुआ. दूसरी ओर भाजपा ने अपने और असम के इतिहास में नया अध्याय जोड़ा.

सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय दल बनने की दिशा में बीजेपी ने महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया. कुछ वर्ष पहले तक उसे हिन्दी भाषी प्रदेशों तक सीमित माना जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा. असम में वह अपने दम पर बहुमत तक पहुंची है. कम्युनिस्ट पार्टियां पश्चिम बंगाल के दम पर राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका का निर्वाह करती थीं, यह आधार समाप्त हुआ.

यूं तो विधानसभा चुनाव पांच राज्यों में हुए थे लेकिन उसके राष्ट्रीय संदेश को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. सबसे बड़ा संदेश यह है कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों का संयुक्त उपक्रम ध्वस्त हो गया. इन्होंने पश्चिम बंगाल को अपनी साझा रणनीति की प्रयोगशाला बनाया था. मतदाताओं ने इनके प्रयोग को नकार दिया.

पुडुचेरी में कांग्रेस और केरल में कम्युनिस्टों के राष्ट्रीय नेतृत्व ने ज्यादा हस्तक्षेप नहीं किया. यहां स्थानीय नेताओं की चली. इसलिए परिणाम अनुकूल रहे. दोनों पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं को इस पर आत्मचिंतन करना होगा. पश्चिम बंगाल में इन्होंने अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी थी. विफलता मिली. बिहार के मुख्यमंत्री और जद(यू) के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार का इन पांच राज्यों के चुनाव से कोई लेना देना नहीं था. लेकिन संदेश इनके लिए भी है क्योंकि चुनाव परिणाम इनके लिए सिर मुड़ाते ही ओले जैसे साबित हुए. इधर उन्होंने भाजपा-संघ मुक्त अभियान शुरू किया, उधर असम में भाजपा को बहुमत मिल गया....

केरल में कम्युनिस्ट और पुडुचेरी में कांग्रेस को जश्न मनाने का अवसर मिला, लेकिन इसे अंधकार में रोशनी की साधारण किरण भी नहीं माना जा सकता. इन पार्टियों की विफलता कहीं ज्यादा बड़ी है. इसके केवल प्रादेशिक ही नहीं राष्ट्रीय निहितार्थ हैं. दोनों पार्टियों का केन्द्रीय नेतृत्व जहां कसौटी पर था, नाकामी वहीं मिली है. कांग्रेस ने दो प्रदेशों की सत्ता गंवा दी, वामपंथियों की सर्वाधिक उम्मीद पश्चिम बंगाल से जुड़ी रही है, यहां मुख्य विपक्षी का दर्जा तक नसीब नहीं हुआ. दूसरी ओर भाजपा ने अपने और असम के इतिहास में नया अध्याय जोड़ा.

सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय दल बनने की दिशा में बीजेपी ने महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया. कुछ वर्ष पहले तक उसे हिन्दी भाषी प्रदेशों तक सीमित माना जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा. असम में वह अपने दम पर बहुमत तक पहुंची है. कम्युनिस्ट पार्टियां पश्चिम बंगाल के दम पर राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका का निर्वाह करती थीं, यह आधार समाप्त हुआ.

यूं तो विधानसभा चुनाव पांच राज्यों में हुए थे लेकिन उसके राष्ट्रीय संदेश को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. सबसे बड़ा संदेश यह है कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों का संयुक्त उपक्रम ध्वस्त हो गया. इन्होंने पश्चिम बंगाल को अपनी साझा रणनीति की प्रयोगशाला बनाया था. मतदाताओं ने इनके प्रयोग को नकार दिया.

पुडुचेरी में कांग्रेस और केरल में कम्युनिस्टों के राष्ट्रीय नेतृत्व ने ज्यादा हस्तक्षेप नहीं किया. यहां स्थानीय नेताओं की चली. इसलिए परिणाम अनुकूल रहे. दोनों पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं को इस पर आत्मचिंतन करना होगा. पश्चिम बंगाल में इन्होंने अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी थी. विफलता मिली. बिहार के मुख्यमंत्री और जद(यू) के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार का इन पांच राज्यों के चुनाव से कोई लेना देना नहीं था. लेकिन संदेश इनके लिए भी है क्योंकि चुनाव परिणाम इनके लिए सिर मुड़ाते ही ओले जैसे साबित हुए. इधर उन्होंने भाजपा-संघ मुक्त अभियान शुरू किया, उधर असम में भाजपा को बहुमत मिल गया. अर्थात राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का उल्लेखनीय विस्तार हुआ है. अब नीतीश को सोचना होगा कि उन्हें विपरीत परिणाम देने वाले इस अभियान को आगे जारी रखना है या नहीं.

यह भी पढ़ें- आखिर बीजेपी को मिल गया नया चुनावी रणनीतिकार

नीतीश के लिए संदेश यहीं तक सीमित नहीं है. वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बनाने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन इस मामले में भी ममता बनर्जी और जयललिता ने पीछे छोड़ दिया है. जहां तक चुनाव परिणाम की बात है तो पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी विधानसभा में कुछ भी अप्रत्याशित नहीं था. यहां परम्परागत रूप से मुख्य मुकाबले में रहने वाली पार्टियों के बीच ही फैसला होना था. तमिलनाडु में जयललिता ने अपने प्रतिद्वन्द्वी करुणानिधि की उम्मीदों पर पानी फेर दिया, वह अपने उत्तराधिकारी स्टालिन की मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी नहीं कर सके.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का परचम फैला. कांग्रेस और वामपंथी दोनों पहले के मुकाबले अधिक कमजोर हो गए. भाजपा को भले ही तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा हो, लेकिन दस प्रतिशत वोट प्राप्त करने को वह अपनी उपलब्धि मान सकती है. कांग्रेस के हाथ से एक झटके में दो प्रदेश फिसल गए. असम और केरल में वह सत्ता से बाहर हो गयी. पुडुचेरी की सफलता पर वह अवश्य इतरा सकती है. गर्दिश में ऐसी उपलब्धि भी जश्न मनाने का मौका दे सकती है.

यह भी पढ़ें- ममता और जया के समर्थकों को सादगी या वैभव से फर्क नहीं पड़ता

असम का चुनाव परिणाम अवश्य नए ढंग का रहा. कांग्रेस के इस गढ़ में भाजपा को कभी मुख्य मुकाबले में जगह नहीं मिली थी. पिछले लोकसभा चुनाव में उसने यहां बड़ी सफलता दर्ज कर सबको चौंका दिया था. यह खासतौर पर कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी थी. वह पिछले तीन चुनावों से जीत हासिल कर रही थी. अपनी स्थिति में सुधार के लिए उसके पास दो वर्ष का समय था, लेकिन सुधार की कौन कहे, उसने अपनी दशा और भी खराब कर ली. यहां कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व के साथ ही मुख्यमंत्री तरुण गोगोई बड़े आत्मविश्वास में थे लेकिन वे भाजपा की ऐतिहासिक बढ़त को रोक नहीं सके.

 असम की जीत खास है..  

यह कहा जा सकता है कि चुनाव में जय-पराजय एक सामान्य प्रक्रिया है लेकिन पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के निहितार्थ देश की राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले साबित होंगे. पहला यह कि भाजपा अब सच्चे अर्थों में देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गयी है. अब भाजपा को साम्प्रदायिक बताकर नकारात्मक राजनीति अधिक समय तक नहीं चल सकती. यह तथ्य खासतौर पर राहुल गांधी, अरविन्द केजरीवाल, सीताराम येचुरी, नीतीश कुमार आदि नेताओं को समझना होगा. लोग इनकी नकारात्मक राजनीति को समझने लगे हैं. मुसलमानों को वोट बैंक मानना इनकी साम्प्रदायिक राजनीति की घृणित चाल है. ऐसे में भाजपा को साम्प्रदायिक बताना इनकी कथनी करनी को उजागर करता है.

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों ने जेएनयू और हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में जो रणनीति बनायी थी, वह बेनकाब हो गयी. चुनाव परिणाम आने के बाद अब शायद इन पार्टियों का कोई नेता अफजल कसाब के हमदर्दों को समर्थन देने के लिए नहीं दौड़ेगा. चुनाव में हार-जीत अपनी जगह है लेकिन कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने संयुक्त रूप से खतरनाक राजनीति शुरू की थी. जेएनयू और हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में छात्रों का एक समूह आतंकियों के समर्थन में कार्यक्रम आयोजित करता था, और हिन्दू आस्थाओं पर जानबूझ कर प्रहार करता था.

यह भी पढ़ें- विधानसभा चुनाव नतीजे कांग्रेस और लेफ्ट को करारा तमाचा

इनका जब विरोध हुआ तो दोनों पार्टियों के राष्ट्रीय नेता उनके बचाव के लिए दौड़ पड़े. उन्होंने आतंकियों के समर्थन और हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार करने वालां को अभिव्यक्ति की आजादी देने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया. राष्ट्रीय नेता छात्र नेताओं के पीछे चलने लगे. इस राजनीति का पश्चिम बंगाल तक विस्तार किया गया। देश के लिए यह राहत की बात है कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों की जेएनयू, हैदराबाद में तैयार साझा रणनीति ध्वस्त हो गयी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲