ममता बनर्जी और जे जयललिता. ये दोनों ही नाम फिलहाल टॉप ट्रेंड में हैं. इनमें कई बातें कॉमन हैं तो काफी चीजें कॉनट्रास्ट में भी नजर आती हैं. एक की लाइफ स्टाइल सादगी की मिसाल है तो दूसरी का वैभव. बाकियों को भले ही इसमें खासा अंतर दिखे लेकिन उनके समर्थकों को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता.
संघर्ष की मिसाल
ममता बनर्जी और जे. जयललिता - दोनों को ही अपने अपने मुकाम हासिल करने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा है. जिस तरह ममता बनर्जी को धक्का देकर एक दिन कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग से निकाल दिया गया था, उसी तरह जयललिता को भी तमिलनाडु विधानसभा में बेइज्जत किया गया था. फिर दोनों ने संकल्प लिया - मुख्यमंत्री बन कर ही लौटेंगी. दोनों ने संकल्प पूरा भी किया. ममता ने तो उस दौरान अपने बाल भी खुले रखे. 2011 में चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले ममता का केश श्रृंगार हुआ.
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बंगाल के लोगों के लिए ममता जहां सड़क पर हर कदम उनकी लड़ाई लड़ने वाली उन्हीं के बीच की नेता हैं तो तमिलनाडु के लोगों के लिए जयललिता आज भी सिल्वर स्क्रीन की स्वप्निल नायिका जिनके दर्शन मात्र से ही जीवन धन्य हो जाता है.
अटूट रिश्ता
आधिकारिक रूप से भले ही दोनों के नाम ममता बनर्जी और जे जयललिता के तौर पर दर्ज किये जाते हों - लेकिन कोई भी उन्हें दीदी और अम्मा के अलावा किसी और नाम से नहीं पुकारता. नामों से बेपरवाह और बेखबर लोग दोनों से सीधे कनेक्ट हो जाते हैं - एक अटूट रिश्ता बनाते हुए.
पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए ममता बनर्जी उनकी हर बात का ख्याल रखनेवाली दीदी हैं तो तमिलनाडु में जयललिता अपने हर समर्थक की अम्मा...
ममता बनर्जी और जे जयललिता. ये दोनों ही नाम फिलहाल टॉप ट्रेंड में हैं. इनमें कई बातें कॉमन हैं तो काफी चीजें कॉनट्रास्ट में भी नजर आती हैं. एक की लाइफ स्टाइल सादगी की मिसाल है तो दूसरी का वैभव. बाकियों को भले ही इसमें खासा अंतर दिखे लेकिन उनके समर्थकों को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता.
संघर्ष की मिसाल
ममता बनर्जी और जे. जयललिता - दोनों को ही अपने अपने मुकाम हासिल करने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा है. जिस तरह ममता बनर्जी को धक्का देकर एक दिन कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग से निकाल दिया गया था, उसी तरह जयललिता को भी तमिलनाडु विधानसभा में बेइज्जत किया गया था. फिर दोनों ने संकल्प लिया - मुख्यमंत्री बन कर ही लौटेंगी. दोनों ने संकल्प पूरा भी किया. ममता ने तो उस दौरान अपने बाल भी खुले रखे. 2011 में चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले ममता का केश श्रृंगार हुआ.
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बंगाल के लोगों के लिए ममता जहां सड़क पर हर कदम उनकी लड़ाई लड़ने वाली उन्हीं के बीच की नेता हैं तो तमिलनाडु के लोगों के लिए जयललिता आज भी सिल्वर स्क्रीन की स्वप्निल नायिका जिनके दर्शन मात्र से ही जीवन धन्य हो जाता है.
अटूट रिश्ता
आधिकारिक रूप से भले ही दोनों के नाम ममता बनर्जी और जे जयललिता के तौर पर दर्ज किये जाते हों - लेकिन कोई भी उन्हें दीदी और अम्मा के अलावा किसी और नाम से नहीं पुकारता. नामों से बेपरवाह और बेखबर लोग दोनों से सीधे कनेक्ट हो जाते हैं - एक अटूट रिश्ता बनाते हुए.
पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए ममता बनर्जी उनकी हर बात का ख्याल रखनेवाली दीदी हैं तो तमिलनाडु में जयललिता अपने हर समर्थक की अम्मा हैं.
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मां, माटी और मानुष के नारे के साथ सफर शुरू करने वाली ममता ने इसे दूसरी पारी के रूप में आगे बढ़ाया है. स्लोगन भी वही है - मां, माटी और मानुष.
चुनावों के दौरान जब भी जयललिता लोगों के बीच होतीं एक बात जरूर दोहरातीं - मैं आप लोगों के लिए हूं और आपकी बदौलत हूं. अगर लोगों से पूछा जाये तो एक ही जवाब सुनने को मिलेगा - मां की तरह वो बच्चों की हर जरूरत पूरी करती हैं, वो जानती हैं कि बच्चों को क्या चाहिए?
अपनी अपनी लाइफस्टाइल
ममता और जया की जीवन शैली पर गौर करें तो दोनों में जमीन आसमान का अंतर है.
नीले बॉर्डर वाली सफेद सूती साड़ी और हवाई चप्पल ममता की पहचान बन चुकी हैं तो जयललिता महंगे गिफ्ट और ऐशो आराम की जिंदगी के लिए जानी जाती रही हैं.
पश्चिम बंगाल की हरीश चटर्जी स्ट्रीट के एक साधारण घर में रहने वाली ममता लोगों के लिए दूसरे आम पड़ोसियों जैसी ही हैं. दूसरी तरफ पोएस गार्डन में जयललिता का आलीशान बंगला किसी महल से कम नहीं है.
कहीं धूप, कहीं छांव... |
ममता के समर्थक जहां उनकी सादगी के कायल हैं और खुद से जुड़ा महसूस करते हैं तो जयललिता के सपोर्टर उन्हें देवी की तरह पूजते हैं. ममता के समर्थक उन्हें चाय, बिस्किट और भात खाते देख अपने जैसा फील करते हैं तो जयललिता के सपोर्टर उनके खान पान की कल्पना मात्र से ही आह्लादित हो उठते हैं.
ममता अपने लोगों के बीच हरदम घूमती फिरती मिल जाएंगी, तो जयललिता का कभी कभार दर्शन पाकर ही लोग खुद को उपकृत महसूस करते हैं.
अलग अलग फलक
चुनाव के दौरान 61 साल की ममता ने करीब दो सौ रैलियां, रोड शो और पदयात्राएं कीं. भीषण गर्मी में भी सात-आठ किलोमीटर पैदल चलती रहतीं. डॉक्टर मना करते तो भी परवाह नहीं करतीं. दूसरी तरफ 68 साल की जयललिता ने महीने भर में महज 15 आम सभाएं कीं. लेकिन पैदल चलने को कौन कहे उन्होंने सड़क पर शायद ही सफर किया हो - जहां कहीं में कार्यक्रम तय होता वो सीधे हेलीकॉप्टर से उड़ कर पहुंच जाती रहीं.
अपनी अपनी श्रद्धा... |
ममता जहां खुले आसमान तले लोगों से मिलतीं और धाराप्रवाह भाषण देतीं तो जयललिता के लिए एसी वाले डायस तैयार किये जाते, जहां बैठ कर वो लिखा हुआ भाषण पढ़ती रहीं.
भ्रष्टाचार या साजिश?
ममता का जीवन जहां खुली किताब है वहीं जयललिता को भ्रष्टाचार के आरोप में न सिर्फ कुर्सी गंवानी पड़ी बल्कि कर्नाटक की अदालत से सजा होने पर जेल भी जाना पड़ा. बाद में हाई कोर्ट से बरी होने पर उन्हें फिर से कुर्सी हासिल हो पाई, हालांकि, मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है.
ममता पर तो नहीं लेकिन उनके कई साथियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. कइयों को जेल जाना पड़ा लेकिन सारदा से लेकर नारद स्टिंग तक ममता हमेशा उनका बचाव करती रहीं. ममता का दावा है कि ये सब उनके राजनीतिक विरोधियों की साजिश है.
भारतीय राजनीतिक के इन दो चमचमाते सितारों में एक और नाम जुड़ गया है सर्बानंद सोनवाल और तीनों में एक बात कॉमन है - तीनों कुआंरे हैं और अपने अपने राज्य में फिलहाल सबसे अधिक लोकप्रिय.
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