• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

बिहार विधानसभा के बजट सत्र में ही दिखेगी विधानसभा चुनाव की रणनीति

    • सुजीत कुमार झा
    • Updated: 27 जून, 2019 06:44 PM
  • 27 जून, 2019 06:43 PM
offline
लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद जिस तरीके से बीजेपी को प्रचंड बहुमत देश में और 100 परसेंट प्रचंड सफलता बिहार में मिली है उसके बाद से एनडीए में शामिल जेडीयू और बीजेपी के बीच वर्चस्व की लडाई अंदर अंदर शुरू हो गई है.

बिहार में एक बार फिर राजनीतिक भूचाल की आशंका बढती जा रही है. लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरीके से बिहार के एनडीए गठबंधन में दिखावे की एकजुटता दिख रही है उसी प्रकार आरजेडी में टूट की संभावना भी दिख रही हैं. उसको देखते हुए यह आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अगले कुछ महीनों में बिहार की राजनीति किसी और करवट बैठेगी. लेकिन फिलहाल तो ये आशंका प्रबल है कि आरजेडी के कुछ विधायक टूट सकते हैं. यह टूट कभी भी हो सकती है. शुक्रवार से बिहार विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो रहा है. माना जा रहा है कि एक महीने के इस सत्र में वो तैयारियां स्पष्ट रुप से दिखने लगेंगी जो अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार करने में सहायक हो सकती हैं.

सबसे पहले बात एनडीए गठबंधन की. लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद जिस तरीके से बीजेपी को प्रचंड बहुमत देश में और 100 परसेंट प्रचंड सफलता बिहार में मिली है उसके बाद से एनडीए में शामिल जेडीयू और बीजेपी के बीच वर्चस्व की लडाई अंदर अंदर शुरू हो गई है. हांलाकि यह लड़ाई उपरी तौर पर जाहिर नहीं हो रही है लेकिन अंदर अंदर का धुआं साफ दिखाई देने लगा है. इसलिए दोनों दल विधानसभा चुनाव की तैयारियों लिए अपने-अपने किले को मजबूत करने में लग गए हैं. और इन दोनों दल का आसान टार्गेट अभी आरजेडी बना हुआ है.

एनडीए में शामिल जेडीयू और बीजेपी के बीच वर्चस्व की लडाई अंदर अंदर शुरू हो गई है

कभी दूसरे दलों को तोड़कर अपने में मिलने वाला आरजेडी आज नेता विहीन खडा है. आरजेडी को इस लोकसभा चुनाव में इतना बडा झटका लगा कि वो शून्य पर आउट हो गई. यह पहला मौका था कि आरजेडी की इतनी बडी हार हूई है. लेकिन इस हार के बाद बजाए पार्टी संभालने के पार्टी के नेतृत्वकर्ता एक महीने के लिए गायब हो गए. पार्टी के किसी नेता को प्रतिपक्ष के नेता के...

बिहार में एक बार फिर राजनीतिक भूचाल की आशंका बढती जा रही है. लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरीके से बिहार के एनडीए गठबंधन में दिखावे की एकजुटता दिख रही है उसी प्रकार आरजेडी में टूट की संभावना भी दिख रही हैं. उसको देखते हुए यह आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अगले कुछ महीनों में बिहार की राजनीति किसी और करवट बैठेगी. लेकिन फिलहाल तो ये आशंका प्रबल है कि आरजेडी के कुछ विधायक टूट सकते हैं. यह टूट कभी भी हो सकती है. शुक्रवार से बिहार विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो रहा है. माना जा रहा है कि एक महीने के इस सत्र में वो तैयारियां स्पष्ट रुप से दिखने लगेंगी जो अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार करने में सहायक हो सकती हैं.

सबसे पहले बात एनडीए गठबंधन की. लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद जिस तरीके से बीजेपी को प्रचंड बहुमत देश में और 100 परसेंट प्रचंड सफलता बिहार में मिली है उसके बाद से एनडीए में शामिल जेडीयू और बीजेपी के बीच वर्चस्व की लडाई अंदर अंदर शुरू हो गई है. हांलाकि यह लड़ाई उपरी तौर पर जाहिर नहीं हो रही है लेकिन अंदर अंदर का धुआं साफ दिखाई देने लगा है. इसलिए दोनों दल विधानसभा चुनाव की तैयारियों लिए अपने-अपने किले को मजबूत करने में लग गए हैं. और इन दोनों दल का आसान टार्गेट अभी आरजेडी बना हुआ है.

एनडीए में शामिल जेडीयू और बीजेपी के बीच वर्चस्व की लडाई अंदर अंदर शुरू हो गई है

कभी दूसरे दलों को तोड़कर अपने में मिलने वाला आरजेडी आज नेता विहीन खडा है. आरजेडी को इस लोकसभा चुनाव में इतना बडा झटका लगा कि वो शून्य पर आउट हो गई. यह पहला मौका था कि आरजेडी की इतनी बडी हार हूई है. लेकिन इस हार के बाद बजाए पार्टी संभालने के पार्टी के नेतृत्वकर्ता एक महीने के लिए गायब हो गए. पार्टी के किसी नेता को प्रतिपक्ष के नेता के बारे में कोई जानकारी नहीं रही. लालू प्रसाद यादव के चारा घोटाले में जेल में रहने की वजह से पार्टी पहले से ही कमजोर होने लगी थी लेकिन लोकसभा चुनाव और उसके बाद तेजस्वी यादव का यह रूख पार्टी के विधायकों को बिल्कुल रास नहीं आ रहा है. चमकी बुखार जैसे बडे मद्दे पर विपक्ष सरकार को घेरने में नाकाम रही है तो इसके पीछे नेतृत्व की नाकामी ही कही जायेगी.

आरजेडी टूटने की बड़ी वजह ये बताई जा रही है कि 2015 के विधानसभा चुनाव में 80 सीटें जीतने वाली आरजेडी को इस लोकसभा चुनाव के परिणामों का विधानसभा क्षेत्र के तहत आकलन करने पर महज 9 विधानसभा क्षेत्रों में बढ मिल पाई है. खुद प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव को राघोपुर विधानसभा क्षेत्र में महज 242 वोटों की बढत मिली. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आरजेडी के विधायकों में किस प्रकार की बचैनी होगी. भविष्य को लेकर चिंतित आरजेडी विधायक जेडीयू और बीजेपी की तरफ देख रहे हैं. बस सीट मिलने की गारंटी होनी चाहिए. हालांकि जेडीयू के लिए आरजेडी विधायकों को एडजस्ट करना बीजेपी से ज्यादा आसान है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी.

जेडीयू नेतृत्व की चाहत है कि माईनस लालू परिवार आरजेडी को मिलाकर वो विधानसभा में बीजेपी पर से अपनी निर्भरता खत्म कर सकती हैं जेडीयू के विधानसभा में 72 विधायक हैं जबकि 54 विधायकों के साथ बीजेपी भी अपने किले को अंदर-अंदर मजबूत करने में लगी है. सूत्रों की मानें तो दोनों पार्टियां आरजेडी विधायकों के सम्पर्क में हैं.

हांलाकि जेडीयू ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में यह फैसला लिया है कि बिहार विधानसभा 2020 का चुनाव वो एनडीए गठबंधन के साथ नीतीश कुमार के नेतृत्व में लडेगा. लेकिन दूसरी तरफ बीजेपी की तरफ से अधिकारिक तौर पर तो नहीं लेकिन कई नेताओं द्वारा नीतीश कुमार के नेतृत्व पर पहली बार सवाल उठाने की कोशिश शुरू हो गई हैं. इससे साफ है कि बीजेपी का गेमप्लान कुछ और है उसे लगता है कि अभी जिस तरीके का माहौल बीजेपी के पक्ष में है ऐसे में उन्हें नेतृत्व उधार लेने की क्या जरूरत है.

केन्द्रीय मंत्रिमंडल में सांकेतिक रूप से जेडीयू के शामिल नहीं होने के बाद से तीन तलाक और अन्य मुद्दों पर केन्द्र सरकार का विरोध यह साबित करने के लिए काफी है तो दूसरी तरफ चमकी बुखार को लेकर जिस तरीके से केवल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाना बनाने के पीछे यही रणनीति है कि उनके नेतृत्व पर सवाल उठाना. जबकि बिहार की एनडीए सरकार में स्वास्थ्य विभाग हमेशा बीजेपी के पास ही रहा है. रही सही कसर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस बयान से पूरी हो जाती है कि चमकी बुखार हम सबकी विफलता है.

ये भी पढ़ें-

अब यूपी में 'ध्रुवीकरण' होगा मायावती का नया पैंतरा!

सब माया है : मायावती के भतीजे ही उनके वारिस हैं, इसमें इतना क्या घबराना ?

मायावती ने 'असली' भतीजे को तो अब मैदान में उतारा है


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲