• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

अब यूपी में 'ध्रुवीकरण' होगा मायावती का नया पैंतरा!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 25 जून, 2019 08:08 PM
  • 25 जून, 2019 08:08 PM
offline
लोकसभा चुनावों में करारी शिकस्त के बाद मायावती और अखिलेश यादव ने अपनी राहें अलग कर ली हैं. गठबंधन तोड़ते हुए मायावती ने कहा है कि अब वो अकेले ही चुनाव लड़ेंगी. ऐसे में माना यही जा रहा है कि यूपी में अगर वो दलितों के अलावा मुसलमानों को साध लेटी हैं तो इससे आने वाले वक़्त में उन्हें बड़ा फायदा मिल सकता है.

उत्तर प्रदेश में दलित और मुस्लिम समाज को लक्ष्य बनाकर बसपा तीस प्रतिशत से अधिक वोट बैंक पर एकक्षत्र राज करने की फिराक मे है. मोदी लहर में बसपा के किले से दलितों के तमाम वर्ग भले ही खिसक गये हों किंतु जाटव वर्ग का विश्वास बसपा सुप्रीमों मायावती पर बना हुआ है. जाटव समाज को अपनी पार्टी का आधार मानने वाली बहन जी को अब ये भी महसूस होने लगा है कि यूपी में कांग्रेस और सपा की कमजोर स्थिति देखकर यूपी का मुसलमान तबका एकजुट होकर बसपा का एकतरफा समर्थन करेगा. यही कारण है कि गठबंधन का रिश्ता तोड़ बसपा ने से पुरानी दुश्मनी की तलवार चमकाना शुरू कर दिया. लड़ाई के इस नये सेग्मेंट में मायावती ने ये जताना शुरू किया है कि मुस्लिम समाज का विश्वास बसपा के साथ जुड़ा है.

सपा और मुसलमानों के बीच बड़ी खाई पैदा करने के लिए ही मायावती ने कहा कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उनसे कहा था कि मुसलमानों को टिकट ना दें. यूपी के मुसलमानों का विश्वास जीतने के लिए अमरोहा सीट से जीते अपने मुस्लिम सांसद दानिश अली को बसपा संसदीय दल का नेता बनाया। मायावती ने सपा से रिश्ता तोड़ते वक्त साफतौर पर कहा कि 2019 लोकसभा चुनाव में मुसलमानों ने बसपा को वोट दिया जबकि सपा को यादव समाज ने भी नकार दिया.

जैसी मायावती की चाल है उनका लक्ष्य यूपी के दलितों के अलावा मुसलमानों के हित साधना है

मायावती ने इस तरह के बयान देकर मुस्लिम समाज को ये मंशा जाहिर की कि अल्पसंख्यक वर्ग और दलित समाज मिल कर ही भाजपा को टक्कर दे सकता है. कांग्रेस और सपा का आधार भी खिसक चुका है इसलिए मुस्लिम समाज एकजुट होकर दलित/जाटव समाज के मजबूत आधार वाली बसपा में जाना बेहतर समझेगा.

पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजो ने ज़ाहिर कर दिया है कि फिलहाल उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय राजनीति में बसपा नंबर वन पर है. यूपी में...

उत्तर प्रदेश में दलित और मुस्लिम समाज को लक्ष्य बनाकर बसपा तीस प्रतिशत से अधिक वोट बैंक पर एकक्षत्र राज करने की फिराक मे है. मोदी लहर में बसपा के किले से दलितों के तमाम वर्ग भले ही खिसक गये हों किंतु जाटव वर्ग का विश्वास बसपा सुप्रीमों मायावती पर बना हुआ है. जाटव समाज को अपनी पार्टी का आधार मानने वाली बहन जी को अब ये भी महसूस होने लगा है कि यूपी में कांग्रेस और सपा की कमजोर स्थिति देखकर यूपी का मुसलमान तबका एकजुट होकर बसपा का एकतरफा समर्थन करेगा. यही कारण है कि गठबंधन का रिश्ता तोड़ बसपा ने से पुरानी दुश्मनी की तलवार चमकाना शुरू कर दिया. लड़ाई के इस नये सेग्मेंट में मायावती ने ये जताना शुरू किया है कि मुस्लिम समाज का विश्वास बसपा के साथ जुड़ा है.

सपा और मुसलमानों के बीच बड़ी खाई पैदा करने के लिए ही मायावती ने कहा कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उनसे कहा था कि मुसलमानों को टिकट ना दें. यूपी के मुसलमानों का विश्वास जीतने के लिए अमरोहा सीट से जीते अपने मुस्लिम सांसद दानिश अली को बसपा संसदीय दल का नेता बनाया। मायावती ने सपा से रिश्ता तोड़ते वक्त साफतौर पर कहा कि 2019 लोकसभा चुनाव में मुसलमानों ने बसपा को वोट दिया जबकि सपा को यादव समाज ने भी नकार दिया.

जैसी मायावती की चाल है उनका लक्ष्य यूपी के दलितों के अलावा मुसलमानों के हित साधना है

मायावती ने इस तरह के बयान देकर मुस्लिम समाज को ये मंशा जाहिर की कि अल्पसंख्यक वर्ग और दलित समाज मिल कर ही भाजपा को टक्कर दे सकता है. कांग्रेस और सपा का आधार भी खिसक चुका है इसलिए मुस्लिम समाज एकजुट होकर दलित/जाटव समाज के मजबूत आधार वाली बसपा में जाना बेहतर समझेगा.

पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजो ने ज़ाहिर कर दिया है कि फिलहाल उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय राजनीति में बसपा नंबर वन पर है. यूपी में कांग्रेस साफ हो चुकी है और इस सूबे में सबसे बड़े राष्ट्रीय दल भाजपा का वर्चस्व क़ायम है. आने वाले समय में योगी सरकार जनता की अपेक्षाओं में खरी नहीं उतरी तो बसपा भाजपा को टक्कर दे सकती है.

दलित-मुस्लिम वोट बैंक को ही एकजुट कर अपने पक्ष में कर लिया तो अकेले नहीं तो किसी के साथ मिलजुल कर यूपी की हुकुमत हासिल की जा सकती है. भाजपा की आंधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की आंधी में देशभर के ज्यादातर बुझ से गये क्षेत्रीय दलों के अंधकारमय भविष्य में बसपा सुप्रीमो मायावती आशा की अलख जलायें हैं.

उनकी मंशा दलित और मुस्लिम समाज की राजनीति की आग में घी डालना है. वो ध्रुवीकरण की राजनीति से वो खुद को और भाजपा को फायदा पंहुचाना चाहती हैं. ताकि यूपी में बतौर राष्ट्रीय दल भाजपा नंबर वन रहे और क्षेत्रीय दल के रूप में बसपा का एकक्षत्र राज रहे.

ये भी पढ़ें -

Mayawati का 'परिवारवाद' मजबूरी की विरासत है

मुजफ्फरपुर भी आपको बहुत मिस कर रहा है मोदी जी...

मायावती ने 'असली' भतीजे को तो अब मैदान में उतारा है


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲