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अब अशोक गहलोत की उल्टी गिनती शुरू हो गई है

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 30 सितम्बर, 2022 02:29 PM
  • 30 सितम्बर, 2022 02:29 PM
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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से मुलाकात के बाद राजस्थान (Rajasthan) के सीएम अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) पूरी तरह से नतमस्तक नजर आए. लेकिन, ऐसा लग नहीं रहा है कि कांग्रेस आलाकमान (Congress) गहलोत पर नरमदिली दिखाएगा. आसान शब्दों में कहें, तो अब अशोक गहलोत की उल्टी गिनती शुरू हो गई है.

राजस्थान में उपजे सियासी संकट के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद बाहर निकले अशोक गहलोत ने मीडिया से बातचीच में कहा कि 'राजस्थान में जो हुआ, उसके लिए सोनिया गांधी से मैंने खेद जताया है. किसी भी फैसले पर हम आलाकमान के लिए एक लाइन का प्रस्ताव पास करते हैं. लेकिन, मुख्यमंत्री होने के बावजूद मैं प्रस्ताव पास नहीं करवा पाया. ये मेरी नैतिक जिम्मेदारी है कि और, मैं कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ूंगा. मेरे मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का फैसला न मुझे करना है, न सोनिया गांधी को, कांग्रेस अध्यक्ष को ये फैसला लेना है.'

वैसे, जिस तरह से अशोक गहलोत इस मामले पर सफाई पेश कर रहे थे. और, गांधी परिवार से अपने पुराने और प्रगाढ़ संबंधों की दुहाई दे रहे थे. ये इशारा करने के लिए काफी है कि राजस्थान में जल्द ही कुछ बड़ा होने वाला है. और, कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने इस बात पर तकरीबन मुहर भी लगा दी है. केसी वेणुगोपाल ने कहा है कि 'राजस्थान में मुख्यमंत्री को लेकर अगले दो दिन में सोनिया गांधी फैसला लेंगी.' इन तमाम घटनाक्रमों को देखते हुए कहा जा सकता है कि अशोक गहलोत अब कहीं के नहीं रहे हैं.

अशोक गहलोत जिस तरह से कांग्रेस आलाकमान के आगे नतमस्तक हैं. उनके पास बहुत ज्यादा विकल्प हैं नहीं.

राहुल गांधी ने 2019 में ही निकाल दी थी भड़ास

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली शर्मनाक हार के बाद पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. सियासी गलियारों में इसकी काफी चर्चा रही थी कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की थी. तब राहुल गांधी को अशोक गहलोत, पी चिदंबरम और कमलनाथ ने समझाने की...

राजस्थान में उपजे सियासी संकट के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद बाहर निकले अशोक गहलोत ने मीडिया से बातचीच में कहा कि 'राजस्थान में जो हुआ, उसके लिए सोनिया गांधी से मैंने खेद जताया है. किसी भी फैसले पर हम आलाकमान के लिए एक लाइन का प्रस्ताव पास करते हैं. लेकिन, मुख्यमंत्री होने के बावजूद मैं प्रस्ताव पास नहीं करवा पाया. ये मेरी नैतिक जिम्मेदारी है कि और, मैं कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ूंगा. मेरे मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का फैसला न मुझे करना है, न सोनिया गांधी को, कांग्रेस अध्यक्ष को ये फैसला लेना है.'

वैसे, जिस तरह से अशोक गहलोत इस मामले पर सफाई पेश कर रहे थे. और, गांधी परिवार से अपने पुराने और प्रगाढ़ संबंधों की दुहाई दे रहे थे. ये इशारा करने के लिए काफी है कि राजस्थान में जल्द ही कुछ बड़ा होने वाला है. और, कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने इस बात पर तकरीबन मुहर भी लगा दी है. केसी वेणुगोपाल ने कहा है कि 'राजस्थान में मुख्यमंत्री को लेकर अगले दो दिन में सोनिया गांधी फैसला लेंगी.' इन तमाम घटनाक्रमों को देखते हुए कहा जा सकता है कि अशोक गहलोत अब कहीं के नहीं रहे हैं.

अशोक गहलोत जिस तरह से कांग्रेस आलाकमान के आगे नतमस्तक हैं. उनके पास बहुत ज्यादा विकल्प हैं नहीं.

राहुल गांधी ने 2019 में ही निकाल दी थी भड़ास

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली शर्मनाक हार के बाद पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. सियासी गलियारों में इसकी काफी चर्चा रही थी कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की थी. तब राहुल गांधी को अशोक गहलोत, पी चिदंबरम और कमलनाथ ने समझाने की कोशिश की थी. लेकिन, इस पर राहुल गांधी ने भरी सभा में इन तीनों ही नेताओं पर खुलकर अपनी भड़ास निकाली थी.

राहुल गांधी ने कहा था कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम अपने बेटों को टिकट दिलवाने की जिद लेकर बैठ गए थे. वैसे, ऐसी एक अन्य बैठक में (जिसमें कांग्रेस के असंतुष्ट गुट जी-23 के नेता भी शामिल थे) ये भी कहा गया था कि कांग्रेस को खत्म करने वाले इसी कमरे में मौजूद हैं. बताना जरूरी है कि लोकसभा चुनाव 2019 में कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ और पी चिदंबरम के बेटे कार्ती चिदंबरम जीत गये थे. लेकिन, अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को हार का सामना करना पड़ा था.

माना जा रहा था कि इस घटना के बाद से ही राहुल गांधी का अशोक गहलोत के ऊपर से भरोसा कम होता गया. हालांकि, सचिन पायलट पहले से ही राहुल गांधी के करीबी रहे हैं. लेकिन, सोनिया गांधी के कहने पर राहुल ने गहलोत पर भरोसा बनाए रखा था. जो राजस्थान में हुई हालिया बगावत के बाद पूरी तरह से टूट चुका है.

गहलोत न घर के रहे, न घाट के

अशोक गहलोत को राजस्थान की राजनीति का जादूगर कहा जाता है. लेकिन, इस बार उनका ये जादू कांग्रेस आलाकमान पर नहीं चल सका. यहीं कारण रहा कि सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद अशोक गहलोत खुद को 50 सालों से गांधी परिवार का वफादार और कांग्रेस आलाकमान की कृपा से मुख्यमंत्री बनाए जाने की बात कहते नजर आए. दरअसल, राजस्थान में विधायकों के इस्तीफा देने के पीछे सीएम अशोक गहलोत को ही मुख्य सूत्रधार माना गया. और, इस बगावत से अशोक गहलोत का सियासी कद कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार की नजरों में घट गया.

ये अलग बात है कि सोनिया गांधी ने पर्यवेक्षक अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे से जो रिपोर्ट तलब की थी. उसमें गहलोत को क्लीन चिट दे दी गई. लेकिन, उनके करीबी विधायकों को कारण बताओ नोटिस जारी कर कांग्रेस आलाकमान ने पेंच कस दिए गए. इसी वजह से अशोक गहलोत सोनिया गांधी से मुलाकात करने दिल्ली पहुंचे थे. ताकि, अपना पक्ष रख सकें. और, ये बता सकें कि राजस्थान में जो कुछ भी हुआ, उसके पीछे उनका हाथ नहीं था. लेकिन, इस मामले पर अशोक गहलोत की जितनी किरकिरी होनी थी. वो तो पहले ही हो चुकी थी.

कांग्रेस आलाकमान को संदेश जा चुका था कि कांग्रेस के पुराने वफादार सीएम की कुर्सी इतनी आसानी से खाली नहीं करेंगे. और, केसी वेणुगोपाल के बयान के बाद माना जा रहा है कि अशोक गहलोत का सीएम पद भी फिलहाल खतरे में है.

गहलोत के पास विकल्प क्या हैं?

- कांग्रेस आलाकमान अगर सचिन पायलट को सीएम बनाने का फैसला करता है. तो, अशोक गहलोत के पास उसे मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा. क्योंकि, कांग्रेस आलाकमान के फैसले का शायद ही कोई नेता विरोध करेगा. और, अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से टिकट मिलने का भरोसा मिलने के बाद विधायकों को गहलोत का पाला छोड़कर सचिन पायलट के खेमे में आने में समय नहीं लगेगा. वैसे भी अशोक गहलोत उम्र के इस दौर में कांग्रेस छोड़ने या नई पार्टी बनाने का खतरा नहीं उठा पाएंगे. और, अगर ऐसा हो भी जाता है, तो उनके सफल होने की संभावनाएं बहुत ज्यादा नहीं हैं. क्योंकि, राजस्थान में हर चुनाव में सरकार बदलने का चलन रहा है. तो, शायद ही मतदाता फिर से अशोक गहलोत पर भरोसा जताएं.

- जिस तरह से अशोक गहलोत ने राजस्थान में विधायकों की बगावत पर नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव से खुद को दूर कर लिया. संभव है कि कांग्रेस आलाकमान के दबाव के आगे नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अशोक गहलोत खुद ही सीएम पद छोड़ दें. और, सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाकर अपने किसी करीबी के लिए डिप्टी सीएम का पद मांग लें.

- वैसे, अशोक गहलोत को मिली क्लीन चिट के बाद ये भी संभावना है कि कांग्रेस आलाकमान उन्हें सीएम पद पर बनाए रखे. लेकिन, सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उनके पर कतरने की कोशिश करे. जैसा पंजाब में किया गया था. इसके साथ ही अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सचिन पालयट को देकर गहलोत को सियासी रूप से साइडलाइन करे दे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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