ग्रैंड ओल्ड पार्टी में करीब एक सप्ताह से सियासी ड्रामा ज़ारी है. इसके अहम् किरदार मरुधर के अनुभवी किंतु सठिया गए मुखिया एवं स्वयंभू जादूगर गहलोत हैं. पता नहीं क्यों उनकी हर ट्रिक एक्सपोज़ हो जा रही है ? उनके लिए तो अब यही कहें कि बिन पेंदी लोटे की तरह लुढ़क जाते हैं, बात बात पर वफ़ा की दुहाई दिए जाते हैं. वे अब तक तीन बार अपनी बात को उलट पुलट कर चुके हैं. दिल्ली दरबार में पहुंचने के पहले मुखिया जी ने किसी पद की लालसा के बिना काम करने की इच्छा जताने के साथ जयपुर के एपिसोड को छोटी मोटी घटना बताया. दरबार में हाजिरी लगी, झुक झुक कर खम्मा घणी कहते रहे और इतने भावुक थे कि बमुश्किल ही शब्द फूटे कि उन्हें जिंदगी भर दुख रहेगा कि माननीयों की बैठक में आलाकमान के लिए प्रस्ताव पास नहीं करा पाए. इसके लिए माफ़ी भी मांग ली. किसी अहमक जॉर्नलिस्ट के सीधे सवाल का एकदम सीधा जवाब भी दे दिया कि उनका मुख्यमंत्री बने रहना आलाकमान के रहमोकरम पर है. फिर गुलाबी नगरी पहुंचे तो सुर ही बदल गए. कह दिया कि वे 102 सम्मानित विधायकों के अभिभावक हैं तो उन्हें धोखा कैसे दे सकते हैं ? उनके लिए पद-वद कुछ नहीं है. अब मूर्ख ही कहलायेगा वो जो नहीं समझता कि गहलोत की रणनीति 102 की संख्या को अक्षुण्ण रखने की है. वे उन विधायकों को भी साध रहे हैं जिनके सुर पिछले तीन चार दिनों में बदले थे. एक तरह से वे चाहते हैं कि विधायकों का उन पर विश्वास, यदि कोई किंतु परंतु है भी तो, दिखता रहे ताकि आलाकमान अन्यथा कुछ करने की सोचे भी नहीं, बहुमत जो उनके साथ है.
अब ऐसे में भी कोई उनसे वफ़ा की उम्मीद करते हैं तो वो कहते हैं ना ऐट योर ओन रिस्क. क्या अब भी किंचित संदेह...
ग्रैंड ओल्ड पार्टी में करीब एक सप्ताह से सियासी ड्रामा ज़ारी है. इसके अहम् किरदार मरुधर के अनुभवी किंतु सठिया गए मुखिया एवं स्वयंभू जादूगर गहलोत हैं. पता नहीं क्यों उनकी हर ट्रिक एक्सपोज़ हो जा रही है ? उनके लिए तो अब यही कहें कि बिन पेंदी लोटे की तरह लुढ़क जाते हैं, बात बात पर वफ़ा की दुहाई दिए जाते हैं. वे अब तक तीन बार अपनी बात को उलट पुलट कर चुके हैं. दिल्ली दरबार में पहुंचने के पहले मुखिया जी ने किसी पद की लालसा के बिना काम करने की इच्छा जताने के साथ जयपुर के एपिसोड को छोटी मोटी घटना बताया. दरबार में हाजिरी लगी, झुक झुक कर खम्मा घणी कहते रहे और इतने भावुक थे कि बमुश्किल ही शब्द फूटे कि उन्हें जिंदगी भर दुख रहेगा कि माननीयों की बैठक में आलाकमान के लिए प्रस्ताव पास नहीं करा पाए. इसके लिए माफ़ी भी मांग ली. किसी अहमक जॉर्नलिस्ट के सीधे सवाल का एकदम सीधा जवाब भी दे दिया कि उनका मुख्यमंत्री बने रहना आलाकमान के रहमोकरम पर है. फिर गुलाबी नगरी पहुंचे तो सुर ही बदल गए. कह दिया कि वे 102 सम्मानित विधायकों के अभिभावक हैं तो उन्हें धोखा कैसे दे सकते हैं ? उनके लिए पद-वद कुछ नहीं है. अब मूर्ख ही कहलायेगा वो जो नहीं समझता कि गहलोत की रणनीति 102 की संख्या को अक्षुण्ण रखने की है. वे उन विधायकों को भी साध रहे हैं जिनके सुर पिछले तीन चार दिनों में बदले थे. एक तरह से वे चाहते हैं कि विधायकों का उन पर विश्वास, यदि कोई किंतु परंतु है भी तो, दिखता रहे ताकि आलाकमान अन्यथा कुछ करने की सोचे भी नहीं, बहुमत जो उनके साथ है.
अब ऐसे में भी कोई उनसे वफ़ा की उम्मीद करते हैं तो वो कहते हैं ना ऐट योर ओन रिस्क. क्या अब भी किंचित संदेह है गहलोत के स्वार्थ एवं फायदे की नीयत पर ? षड्यंत्रों के जाल उन्होंने बुने, होंठों पर कुछ और मन में कुछ और हमेशा रहा है उनके. किससे, कहां से कैसे हो फायदा, सिर्फ यही उनकी ईमानदारी है. तभी तो दो दिन भी नहीं बीते पार्टी के संगठन महासचिव वेणुगोपाल द्वारा जारी की गई एडवाइजरी के, गहलोत साहब ने जमकर पार्टी के आंतरिक मामलों पर ना केवल चर्चा की बल्कि बोलबचन भी कह डाले. उन्होंने आज तय हो चले पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के विरुद्ध भी विष वमन किया. एक तरह से गहलोत ने खड़गे जी को नसीहत देते हुए चेता ही दिया कि वे वर्तमान अध्यक्ष सोनिया जी के बिहाल्फ में पर्यवेक्षक के रूप में आये थे और उन्होंने अध्यक्ष की सोच और आभामंडल का निरादर किया.
एक बार फिर बिसात कुछ यूं बिछा दी है गहलोत ने कि आलाकमान असमंजस में हैं. लेकिन आलाकमान को भी समझना होगा कि कड़े फैसले लेने का वक्त और टाला नहीं जा सकता. गहलोत का वही सचिन कार्ड फिर से एक्टिव है कि सचिन एंड टीम फिर से एक्टिव है सरकार गिराने के लिए, पायलट की वफादारी संदेह से परे ना कल थी, ना ही आज है और ना ही रहेगी ! लगे हाथों, हालांकि गोल मटोल ही सही, कुछेक वीडियो के पब्लिक डोमेन में आने का भी जिक्र कर दिया जिनमें पायलट टीम से कोई अमित शाह के साथ बैठक कर रहा है. साथ ही वे हवाला दे रहे हैं अपने उस कहे का जो उन्होंने सोनिया जी से अगस्त में कहा था कि जो सरकार रिपीट करे उसे सीएम बनाएं , वे विथड्रॉ कर लेंगे.
कितना भोलापन है ? चुनाव तक वे सीएम बने रहें और फिर चुनाव उनकी अगुआई में ही लड़ा जाए, जीत गए तो फिर से सीएम और हार गए तो विथड्रॉ कर लेंगे सीएम जो नहीं रहेंगे. कुल मिलाकर अशोक गहलोत ने ठान लिया है कि आलाकमान की मर्जी के विपरीत भी वे मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं छोड़ेंगे और यदि आलाकमान ने मर्जी थोपने की कोशिश की तो सरकार ही नहीं रहेगी. सो पार्टी की अंदरूनी कलह आल टाइम हाई है.फिर पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए इतना हाइप क्रिएट हो गया कि जनमानस हतप्रभ है.
खुदा ना खास्ता सत्ता मिल गई तो निजी स्वार्थ के लिए नेता गण जन आकांक्षाओं की बलि ले लेंगे ! खुद का घर परिवार संभाल नहीं रहा, चले हैं देश को कुटुंब बनाने. जब जहां सरकार बनी, गुट भी बन गये मसलन गहलोत बनाम पायलट, सिंधिया बनाम कमलनाथ , बघेल बनाम जूदेव. 'भारत जोड़ो यात्रा' शुरू होने के ठीक एक दिन पहले गुजरात युवा कांग्रेस अध्यक्ष विश्वनाथसिंह बघेला ने इस्तीफा देते हुए कहा था कि the party should organise a “Congress Jodo Yatra” instead of the “Bharat Jodo Yatra.”
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