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Owaisi factor: बंटवारा करके मुसलमानों को हरा रही है ओवैसी की जीत

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 15 नवम्बर, 2020 02:44 PM
  • 15 नवम्बर, 2020 02:44 PM
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बिहार के बाद ओवैसी (Asaduddin Owaisi) का कद बढ़ा है, माना जा रहा है कि जिस लिहाज से वो मुस्लिम (Muslim) राजनीति कर रहे हैं वो न केवल अन्य दलों को परेशानी में डालेगा बल्कि इनके जरिये देश के मुसलमानों को भी सक्रिय राजनीति में आधार मिलेगा.

'कोई ओवैसी (Asaduddin Owaisi) को मुसलमानों (Muslims) का रहनुमा मान रहा है तो कोई आज का जिन्ना कह रहा है. बिहार (Bihar) में पांच सीटें जीतने के बाद एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवेसी के समर्थन और विरोध में मुस्लिम समाज विभाजित हो गया है.'

चिंगारी कोई भड़के, तो सावन उसे बुझाये

सावन जो अगन लगाये, उसे कौन बुझाये.

मसलकों में बंटे मुस्लिम समाज को सियासत एकजुट कर देती है किंतु इस बार मुस्लिम सियासत ही मुसलमानों को बांटने लगा है. आमतौर से मुस्लिम समाज धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ रहता है और चुनावी बेला में जो धर्मनिरपेक्ष दल भाजपा को सीधी टक्कर देने की स्थिति मे नजर आता है उसे जिताने के लिए मसलकों की कटुता भुलाकर सब एकजुट हो जाते हैं. लेकिन अब माहौल कुछ बदला-बदला सा नजर आने लगा है. अल्पसंख्यक समाज का भरोसा अब धर्मनिरपेक्ष दलों से भी उठने लगा है. दो हिस्सों में बंटे मुसलमानों में एक धड़ा अभी भी धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ है और दूसरा धड़ा मुस्लिम नुमाइंदगी वाले राजनीति के पक्ष मे है.

बिहार के बाद ओवैसी तमाम दलों के लिए बड़ी मुसीबत बनते जा रहे हैं

बिहार विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीत कर देश के मुस्लिम समाज में विभाजन जैसा माहौल पैदा कर दिया है. बहस और बड़ा विवाद छिड़ गया है. आपस मे तकरार हो रही है. घरो, परिवारों, नुक्कड़ों, चौपालों और सोशल मीडिया पर बहस-मुबाहिसा चरम पर है. करीब आधे मुसलमान ओवेसी को अपना सियासी ख़ुदा मान बैठे हैं. और आधे कह रहे हैं की ओवेसी भाजपा की बी टीम हैं. ये राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के एजेंट हैं. कहा जा रहा है कि धर्मनिरपेक्ष दलों को हराने के लिए मुस्लिम विरोधी ताकतों ने एआईएमआईएम को जन्म दिया है.

बिहार में ओवेसी ने बीस सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारकर...

'कोई ओवैसी (Asaduddin Owaisi) को मुसलमानों (Muslims) का रहनुमा मान रहा है तो कोई आज का जिन्ना कह रहा है. बिहार (Bihar) में पांच सीटें जीतने के बाद एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवेसी के समर्थन और विरोध में मुस्लिम समाज विभाजित हो गया है.'

चिंगारी कोई भड़के, तो सावन उसे बुझाये

सावन जो अगन लगाये, उसे कौन बुझाये.

मसलकों में बंटे मुस्लिम समाज को सियासत एकजुट कर देती है किंतु इस बार मुस्लिम सियासत ही मुसलमानों को बांटने लगा है. आमतौर से मुस्लिम समाज धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ रहता है और चुनावी बेला में जो धर्मनिरपेक्ष दल भाजपा को सीधी टक्कर देने की स्थिति मे नजर आता है उसे जिताने के लिए मसलकों की कटुता भुलाकर सब एकजुट हो जाते हैं. लेकिन अब माहौल कुछ बदला-बदला सा नजर आने लगा है. अल्पसंख्यक समाज का भरोसा अब धर्मनिरपेक्ष दलों से भी उठने लगा है. दो हिस्सों में बंटे मुसलमानों में एक धड़ा अभी भी धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ है और दूसरा धड़ा मुस्लिम नुमाइंदगी वाले राजनीति के पक्ष मे है.

बिहार के बाद ओवैसी तमाम दलों के लिए बड़ी मुसीबत बनते जा रहे हैं

बिहार विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीत कर देश के मुस्लिम समाज में विभाजन जैसा माहौल पैदा कर दिया है. बहस और बड़ा विवाद छिड़ गया है. आपस मे तकरार हो रही है. घरो, परिवारों, नुक्कड़ों, चौपालों और सोशल मीडिया पर बहस-मुबाहिसा चरम पर है. करीब आधे मुसलमान ओवेसी को अपना सियासी ख़ुदा मान बैठे हैं. और आधे कह रहे हैं की ओवेसी भाजपा की बी टीम हैं. ये राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के एजेंट हैं. कहा जा रहा है कि धर्मनिरपेक्ष दलों को हराने के लिए मुस्लिम विरोधी ताकतों ने एआईएमआईएम को जन्म दिया है.

बिहार में ओवेसी ने बीस सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारकर एनडीए को जिता दिया और महागठबंधन को हरवा दिया. वहीं अक़लियत का दूसरा धड़ा बिहार में एआईएमआईएम की पांच सीटों पर जीत पर गदगद है. ये इस बात से भी खुश हैं कि एआईएमआईएम अब पश्चिम बंगाल और फिर उत्तर प्रदेश में भी पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ेगा.

तालिबे इल्म मोहम्मद इमरान कहते हैं- क्यों मुसलमान सियासी रहनुमाई से महरूम रहे! हर जाति का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नेता और कोई दल होता है. कम्युनिस्टों की अलग पार्टी है. भाजपा हिंदुत्व के उत्थान की बात करती है. सपा यादवों को लाभ देती है और बसपा दलितों को समर्पित है. कांग्रेस साफ्ट हिन्दुत्व मे रंग कर भी हार जाती है. सबका अलग-अलग किरदार, स्वार्थ और उद्देश्य है. हम मुसलमान आंख बंद करके कभी इनको तो कभी उनका वोट बैंक बनते रहते हैं. हम पंचर और कबाड़ की दुनिया से बाहर इसलिए नही निकल पा रहे क्योंकि हमारा कोई रहनुमा नहीं. हम सत्ता के हाशिये पर रहते हैं.

असदुद्दीन ओवेसी मुस्लिम रहनुमाई को मजबूती देना चाह रहे हैं तो इसमे क्या गलत है?

मीट के कारोबार से जुड़े दानिश भी ऐसी चर्चा पर जज्बाती हो जाते हैं. कहते हैं कि कब तक भाजपा के डर में हम कांग्रेस, सपा, तृणमूल और आप जैसे दलों के बगलों मे छिपे रहें. ये हमारी क़ौम को बेवकूफ बनकार हमें सिर्फ वोट बैंक समझते रहे. सियासत में हमे हमारा हक़ नहीं मिलता. पार्टी/संगठन में अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ और हुकुमत में अल्पसंख्यक विभाग से ज्यादा कुछ नहीं मिलता. क्या किसी धर्मनिरपेक्ष पार्टी ने किसी मुसलमान को प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री जैसी कुर्सी दी

एक्टीविस्ट फैज़ान मुसन्ना लिखते हैं-ठीक है चलिए हम ओवैसी को वोट नहीं देते तो क्या कांग्रेस,समाजवादी पार्टी अथवा बहुजन समाज पार्टी मुसलमानों को बराबरी का हक़ देने का वादा करेगी?

उत्तर प्रदेश की बात करते है इन पार्टियों में कितने जिला अध्यक्ष मुसलमान हैं ? अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अतिरिक्त मुख्य संगठन में कितने मुसलमानो को जगह देते हैं ये दल. आप सिर्फ मुसलमान का वोट चाहते हैं उसको राजनैतिक सम्मान और स्थान नहीं देना चाहते ऐसे कैसा चलेगा. जनाब मुसलमानो की युवा पीढ़ी अब रोज़ा अफ्तार और ईद मुबारक जैसे झांसों से आगे निकल चुकी है उसको राजनीति की मुख्यधारा में अपना वाजिब स्थान चाहिए वो भी इज़्ज़त के साथ देते हो तो बोलो ?

पूर्व सूचना अधिकारी हामिद अली ख़ान कहते हैं हिंदू अकसरीयत वाले मुल्क में मुस्लिम सियासत कामयाब नहीं हो सकती. आप अपनी सोच के लोगों का साथ लीजिए. अभी यह मुश्किल लग रहा होगा. लेकिन आखिर में आप को कामयाबी मिलेगी.

दूसरी तरफ तमाम आम मुसलमानों के अलावा जानी पहचानी बड़ी-बड़ी मुस्लिम हस्तियां धर्मनिरपेक्ष राजनीति दलों के पक्ष में एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवेसी की कड़ी आलोचना कर उन्हें भाजपा की बी टीम और संघ का एजेंट बता रहे हैं. मशहूर शायर मुनव्वर राना ने कहा कि मुसलमान भारत मे किसी दूसरे जिन्ना को बर्दाश्त नहीं करेंगे. एआईएमआईएम ने एनडीए की मदद के लिए बिहार में बीस उम्मीदवार उतार कर भाजपा को फायदा पंहुचाया और जीतते हुए महागठबंधन को हरवा दिया. इधर कुछ महीनों से विवादित बयान देकर सुर्खियों मे रहने वाले मुनव्वर राना ने कहा की मैं असदुद्दीन ओवेसी और उनके भाई अकबरुद्दीन को गुंडा मानता हूं.

मशहूर शायर के इस तल्ख बयान के अलावा आम मुसलमानों के एक तब्के में ओवेसी को मुसलमानों को बांटने वाला बताकर उनके प्रति नफरत उगलने का भी सिलसिला तेज़ हो रहा है. कहा जा रहा है कि एआईएमआईएम की राजनीति ऐसा ध्रुवीकरण पैदा कर देगी कि साम्प्रदायिक नफरत का ये आलम होगा कि भारतीय समाज में मुसलमान हाशिये से भी गायब होकर गुलामों से बद्तर जिन्दगी बसर करने पर मजबूर हो जायेगा. सारे मुसलमान एक भी हो गये तब भी 85% और 15% के क्रमशः हिन्दू और मुस्लिम सियासत बंट जायेगी. धर्मनिरपेक्ष दल खत्म हो जायेंगे. लोकतांत्रिक व्यवस्था में संख्या बल का महत्व होता है. इसलिए हुकुमत से मुसलमानों की बेदखली हो जायेगी और समाज मे भी अलग-थलग पड़ जायेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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