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अरविंद केजरीवाल को बड़ा नेता बनाने के पीछे संघ ही तो नहीं?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 31 मार्च, 2022 01:17 PM
  • 31 मार्च, 2022 01:15 PM
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अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की धमक का दोहरा असर होने लगा है. वो हिंदुत्व की राजनीति (Hindutva Politics) अख्तियार करते तो नजर आ ही रहे हैं, कांग्रेस के सफाये में मददगार हैं - बीजेपी भले ही इसे अलग समझे संघ (RSS) को ये जरूर पसंद आ रहा होगा.

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की महत्वाकांक्षा शुरू से ही जगजाहिर है. ये बातें उनके बयान और एक्शन दोनों से मालूम होती हैं. अरविंद केजरीवाल के खिलाफ विरोध की राजनीति में भी ऐसी ही बातें बतायी जाती हैं - और हाल ही में खत्म हुआ पंजाब चुनाव कैंपेन जीता जागता उदाहरण है.

पंजाब चुनाव में केजरीवाल के पुराने साथी कुमार विश्वास भी तो यही समझाने की कोशिश कर रहे थे कि वो जैसे भी संभव है, जल्दी से जल्दी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. चुनावों में तो कुमार विश्वास का दावा रहा कि केजरीवाल प्रधानमंत्री बनने के लिए देश के बंटवारे तक से परहेज नहीं कर सकते. बहरहाल, पंजाब के लोगों ने ऐसी बातों की जरा भी परवाह नहीं की और आम आदमी पार्टी को सत्ता सौंप कर साबित कर दिया कि ये सारी चीजें केजरीवाल को बदनाम करने की साजिशें हैं.

2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को शिकस्त देने के बाद, 2014 में बीजेपी के तब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी को वाराणसी जाकर चैलेंज करना भी तो इसी बात का उदाहरण है - राजनीति में आने के पहले ही लगता है अरविंद केजरीवाल देश का प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब संजो चुके होंगे.

केजरीवाल की निजी महत्वाकांक्षा अपनी जगह है, लेकिन उनके मकसद में मददगार कौन है - ये समझना काफी महत्वपूर्ण हो गया है. खासकर, पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद.

एक तरफ तो अरविंद केजरीवाल दिल्ली में दिवाली मनाते हुए जय श्रीराम के नारे लगाते हैं और ऐसा करते करते वो अयोध्या तक पहुंच जाते हैं - और फिर एक दिन दिल्ली विधानसभा में उनका पूरा भाषण विनोद अग्निहोत्री की हद से ज्यादा चर्चित फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' पर फोकस हो जाता है.

और फिर देखते ही देखते...

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की महत्वाकांक्षा शुरू से ही जगजाहिर है. ये बातें उनके बयान और एक्शन दोनों से मालूम होती हैं. अरविंद केजरीवाल के खिलाफ विरोध की राजनीति में भी ऐसी ही बातें बतायी जाती हैं - और हाल ही में खत्म हुआ पंजाब चुनाव कैंपेन जीता जागता उदाहरण है.

पंजाब चुनाव में केजरीवाल के पुराने साथी कुमार विश्वास भी तो यही समझाने की कोशिश कर रहे थे कि वो जैसे भी संभव है, जल्दी से जल्दी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. चुनावों में तो कुमार विश्वास का दावा रहा कि केजरीवाल प्रधानमंत्री बनने के लिए देश के बंटवारे तक से परहेज नहीं कर सकते. बहरहाल, पंजाब के लोगों ने ऐसी बातों की जरा भी परवाह नहीं की और आम आदमी पार्टी को सत्ता सौंप कर साबित कर दिया कि ये सारी चीजें केजरीवाल को बदनाम करने की साजिशें हैं.

2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को शिकस्त देने के बाद, 2014 में बीजेपी के तब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी को वाराणसी जाकर चैलेंज करना भी तो इसी बात का उदाहरण है - राजनीति में आने के पहले ही लगता है अरविंद केजरीवाल देश का प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब संजो चुके होंगे.

केजरीवाल की निजी महत्वाकांक्षा अपनी जगह है, लेकिन उनके मकसद में मददगार कौन है - ये समझना काफी महत्वपूर्ण हो गया है. खासकर, पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद.

एक तरफ तो अरविंद केजरीवाल दिल्ली में दिवाली मनाते हुए जय श्रीराम के नारे लगाते हैं और ऐसा करते करते वो अयोध्या तक पहुंच जाते हैं - और फिर एक दिन दिल्ली विधानसभा में उनका पूरा भाषण विनोद अग्निहोत्री की हद से ज्यादा चर्चित फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' पर फोकस हो जाता है.

और फिर देखते ही देखते बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या के नेतृत्व में भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल के घर पर धावा बोल देते हैं. मुख्यमंत्री आवास के बाहर लगे सिक्योरिटी बैरियर और सीसीटीवी कैमरे हमले के दौरान तोड़ दिये हैं - और फिर आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है.

हिंदुत्व की राजनीति (Hindutva Politics) के रास्ते पर चलते हुए अचानक केजरीवाल को क्या हो जाता है कि वो द कश्मीर फाइल्स की आलोचना करने लगते हैं?

ये तो साफ है कि अरविंद केजरीवाल हमेशा ही मौके का फायदा उठाने की कोशिश करते आ रहे हैं, लेकिन ये स्पष्ट नहीं हो पाता कि अरविंद केजरीवाल की कामयाबी से और कौन लोग खुश होते हैं - और चाहते हैं कि केजरीवाल भी एक खास फ्रेम में फिट हो जायें.

जाहिर है ये वही चाहेगा जिसे ये सब फायदे का सौदा लग रहा होगा - क्या केजरीवाल की कामयाबी से संघ (RSS) भी खुश होता है? लेकिन क्या बीजेपी को केजरीवाल की कामयाबी हजम नहीं हो पाती?

संघ को केजरीवाल की राजनीति पसंद है

भारतीय जनता पार्टी, दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूरगामी सोच को हकीकत में बदलने का राजनीतिक टूल भर है. जल्द ही संघ अपनी स्थापना की शताब्दी मनाने वाला है - और संघ का राजनीतिक मकसद भी बीजेपी से हर जगह मेल खाता हो जरूरी नहीं है.

बीजेपी को संघ की अवहेलना तो नहीं कर सकता, लेकिन थोड़ी बहुत हेरफेर की छूट जरूर मिल जाती है. ये छूट भी कभी संघ की तरफ से दी जाती है और कभी मजबूत बीजेपी नेतृत्व मौका देख कर खुद ले लेता है.

केजरीवाल तो शिद्दत से चाहते ही हैं, संघ भी कायनात बन कर मददगार हो जाता है!

बीजेपी का मौजूदा नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की राजनीति भी कहीं ज्यादा हड़बड़ी में दिखती है, लेकिन संघ स्थाई भाव से बरसों आगे का प्लान करके चलता है. बीजेपी जैसे भी मुमकिन हो चुनाव जीत कर देश के साथ साथ हर राज्य में सत्ता पर कब्जा जमाना चाहती है - और इसके लिए कांग्रेस मुक्त भारत की तरह ही विपक्ष मुक्त भारत की मुहिम को महसूस किया जाने लगा है.

संघ को ये इसलिए मंजूर होता है क्योंकि आगे तो हिंदुत्व की राजनीति ही बढ़ रही है. संघ और बीजेपी की राजनीतिक मकसद में कुछ अंतर भी देखे जा सकते हैं. संघ की सत्ता पक्ष और विपक्ष से कहीं ज्यादा हिंदुत्व की राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी लगती है - कांग्रेस को संघ इसीलिए नापसंद करता है.

बीजेपी की नापसंद के बावजूद क्या केजरीवाल की राजनीति संघ को भी पसंद आती है? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि केजरीवाल की राजनीति के माध्यम से भी संघ के मकसद अपनेआप सध जाते हैं.

देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल की बदौलत ही कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बेदखल हुई. फिर धीरे धीरे करके केजरीवाल कांग्रेस को विपक्ष के नेतृत्व से भी बाहर करने में जुटे हुए लगते हैं - और ये तो वही हो रहा है जो संघ चाहता है.

संघ की नजर में केजरीवाल: रामलीला आंदोलन के दौरान संघ के कार्यकर्ताओं की मदद की खूब चर्चा रही - और उस पर दिये गये बयान और सफाई को समझने की कोशिश करें तो महाभारत में युधिष्ठिर का वक्तव्य 'अश्वत्थामा मरो नरो वा...' टाइप ही लगता है.

1. हिंदुत्व की राजनीति सर्वोपरि है: संघ को हिंदुत्व की राजनीति ही पसंद है - और विरोध की राजनीति करने वाला विपक्ष भी उसे सिर्फ उसी रूप में मंजूर है. कांग्रेस या ममता बनर्जी जहां ऐसी राजनीति में मिसफिट हैं वहीं अरविंद केजरीवाल लाडले लगते हैं.

2. संघ का एजेंडा सबसे ऊपर है: संघ का अपना अलग एजेंडा है. राष्ट्रनिर्माण के नाम पर संघ को हिंदुत्व का विस्तार और प्रभाव स्थापित करना है. ऐसे में संघ राजनीति के हर किरदार को कवि धूमिल के किरदार 'मोचीराम के लिए एक जोड़ी जूते जैसा' ही है - न कोई छोटा है न कोई बड़ा है. काम का है तो ठीक है, नहीं तो बेकार है.

3. कोई भी 'आडवाणी' बन सकता है: संघ के खांचे में कभी अटल-आडवाणी फिट हुआ करते थे, अभी मोदी शाह हैं - लेकिन कल कोई और होगा. ये तय है कि होगा वही जो हिंदुत्व की कट्टर राजनीति में पक्का यकीन रखता होगा.

4. योगी-उद्धव जैसे ही केजरीवाल: योगी आदित्यनाथ संघ की पृष्ठभूमि नहीं है, फिर भी संघ उनका आंख मूंद कर सपोर्ट करता नजर आता है. संघ के बूते ही योगी जीभर कर बीजेपी में मनमानी भी कर पाते हैं - और शिवसेना को लेकर भी संघ का नजरिया बदला नहीं है. भले ही शिवसेना ने अपने परम विरोधियों कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लिया हो.

5. हिंदुत्ववादियों पर संघ का नरम रुख: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद जब देवेंद्र फडणवीस संघ प्रमुख मोहन भागवत से मिलने गये थे, सलाह यही मिली थी कि तोड़ फोड़ की जरूरत नहीं है. फिर भी वो नहीं माने, कोशिश की लेकिन नाकाम रहे. जाहिर है संघ को कुछ भी ठीक नहीं लगा होगा.

मामूली तौर पर ही सही, लेकिन क्या संघ अरविंद केजरीवाल में भी योगी आदित्यनाथ और उद्धव ठाकरे का अक्स देखने लगा है? क्योंकि संघ को विपक्ष में भी राजनीति तो हिंदुत्व की ही पसंद है.

कश्मीर और केजरीवाल की राजनीति

दिल्ली में मुख्यमंत्री आवास पर बीजेपी के यूथ विंग के विरोध प्रदर्शन पर आम आदमी पार्टी की तरफ से जो रिएक्शन आया है, उसमें नया कुछ नहीं है. आज जो इल्जाम दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया लगा रहे हैं, खुद अरविंद केजरीवाल पहले ही लगा चुके हैं - अहम चीज ये समझना है कि आखिर ये राजनीति किस दिशा में बढ़ रही है?

कश्मीर फाइल्स पर केजरीवाल का बयान और सफाई: फिल्म कश्मीर फाइल्स तो बहाना है, अरविंद केजरीवाल के निशाने पर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी रही है - लेकिन बीजेपी ने केजरीवाल के बयान को कश्मीरी पंडितों के खिलाफ बताकर बवाल ही शुरू कर दिया.

अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि कंश्मीरी पंडितों के नाम पर लोग करोड़ों की कमाई कर रहे हैं और बीजेपी वालों को पोस्टर लगाने के लिए छोड़ दिया गया है. अरविंद केजरीवाल ने ये भी कहा था - 'ये बीजेपी वाले कह रहे हैं कि कश्मीर फाइल्स टैक्स फ्री करो... इस फिल्म को यू-ट्यूब पर डाल दो... सारी फिल्म फ्री हो जाएगी.'

और ये भी कहा कि 'आठ साल केंद्र सरकार चलाने के बाद अगर देश के प्रधानमंत्री को विवेक अग्निहोत्री की शरण लेनी पड़े तो इसका मतलब कोई काम नहीं किया... खराब कर दिये हैं इतने साल.'

अपने बयान को कश्मीरी पंडितों के खिलाफ बताये जाने पर अरविंद केजरीवाल ने सफाई भी दी कि उनका विरोध बीजेपी से है न कि कश्मीरी पंडितों से - और केजरीवाल ने खुद को कश्मीरी पंडितों का हिमायती होने का दावा किया है.

युवा मोर्चा का केजरीवाल के घर विरोध प्रदर्शन: भारतीय जनता युवा मोर्चा के नेता तेजस्वी सूर्या ने फिल्म पर बयान के लिए केजरीवाल से माफी मांगने की डिमांड की है.

युवा मोर्चा का कहना है - 'केजरीवाल को लगता है की एक समुदाय विशेष को खुश करने के लिए बार-बार हिंदुओं की आस्था को ठेस पहुंचा कर वो बच जाएंगे... लेकिन देश के जागृत युवा अब ये नहीं होने देंगे... BJYM ये सुनिश्चित करेगा कि आने वाले समय में केजरीवाल को इसकी भारी राजनैतिक कीमत चुकानी पड़े.'

आम आदमी पार्टी का रिएक्शन: आम आदमी पार्टी की तरफ से अरविंद केजरीवाल के घर पर युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन को 'बीजेपी के गुंडों का हमला' बताया गया है.

दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने आरोप लगाया है, 'बीजेपी अरविंद केजरीवाल को मारना चाहती है. सोची समझी साजिश के तहत अरविंद केजरीवाल पर हमला किया गया है. वो चुनाव में नहीं हरा हरा पा रहे हैं तो अब वो ऐसे खत्म करना चाहते हैं.' हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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