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केजरीवाल के हर मौजूदा एक्ट में 2024 की तैयारी देखी जा सकती है!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 30 मई, 2022 10:21 PM
  • 30 मई, 2022 10:21 PM
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जल्दी ही होने जा रहे विधानसभा या सिर्फ निकाय चुनाव नहीं, अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) अभी से आगे के सभी चुनावों की तैयारी (AAP Election Campaign) में लगे हुए हैं. पंजाब में राज्य सभा उम्मीदवारों (Punjab RS candidates) का चयन हो या बीजेपी विरोधी मुख्यमंत्रियों से मुलाकात - असली एजेंडा 2024 ही है.

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) अपने अखिल भारतीय चुनावी अभियान पर निकल चुके हैं. अपनी हर पब्लिक मीटिंग में वो पंजाब का जिक्र जोर देकर जरूर करते हैं. गुजरात और हिमाचल प्रदेश में तो इसी साल चुनाव होने हैं - लेकिन वो कर्नाटक से लेकर हरियाणा तक का दौरा कर रहे हैं.

कर्नाटक में 2023 जबकि हरियाणा में 2024 में विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं. वो भी 2024 के आम चुनाव हो जाने के बाद, लेकिन अरविंद केजरीवाल अभी से हरियाणा जा धमके हैं - कहने को तो वो निकाय चुनाव के लिए कैंपेन कर रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है जैसे वो 2024 के आम चुनाव (AAP Election Campaign) के मिशन पर ही हैं.

पंजाब में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों (Punjab Rajya Sabha candidates) के चयन में भी ऐसी ही झलक देखने को मिलती है, जबकि उसमें दिल्ली के स्टैंड से आगे बढ़ कर भूल सुधार की कोशिश भी शुमार है. साथ ही साथ, गैर एनडीए मुख्यमंत्रियों से मुलाकातों का शुरू हुआ सिलसिला और बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस पर लगातार हमले. हर तरफ एक ही संकेत है, एक ही संदेश है - अरविंद केजरीवाल 2024 के मिशन पर निकल चुके हैं.

AAP की अखिल भारतीय चुनावी मुहिम

ये भी देखने को मिल रहा है कि अरविंद केजरीवाल बीच बीच में बीजेपी विरोधी मुख्यमंत्रियों के साथ भी मुलाकात कर रहे हैं, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि हाल फिलहाल ममता बनर्जी के साथ उनकी कोई मुलाकात नहीं हुई है - और विपक्ष को एकजुट करने की ममता बनर्जी की कोशिशों को लेकर पूछे जाने पर कहते हैं कि उनको ऐसी कोई जानकारी नहीं है.

पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन दिल्ली के दौरे पर रहे. दिल्ली सरकार के स्कूल और अस्पताल देखने के बाद बोले कि तमिलनाडु में भी वो वही मॉडल अप्लाई करेंगे. फिर तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव का दिल्ली का दौरा हुआ -...

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) अपने अखिल भारतीय चुनावी अभियान पर निकल चुके हैं. अपनी हर पब्लिक मीटिंग में वो पंजाब का जिक्र जोर देकर जरूर करते हैं. गुजरात और हिमाचल प्रदेश में तो इसी साल चुनाव होने हैं - लेकिन वो कर्नाटक से लेकर हरियाणा तक का दौरा कर रहे हैं.

कर्नाटक में 2023 जबकि हरियाणा में 2024 में विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं. वो भी 2024 के आम चुनाव हो जाने के बाद, लेकिन अरविंद केजरीवाल अभी से हरियाणा जा धमके हैं - कहने को तो वो निकाय चुनाव के लिए कैंपेन कर रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है जैसे वो 2024 के आम चुनाव (AAP Election Campaign) के मिशन पर ही हैं.

पंजाब में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों (Punjab Rajya Sabha candidates) के चयन में भी ऐसी ही झलक देखने को मिलती है, जबकि उसमें दिल्ली के स्टैंड से आगे बढ़ कर भूल सुधार की कोशिश भी शुमार है. साथ ही साथ, गैर एनडीए मुख्यमंत्रियों से मुलाकातों का शुरू हुआ सिलसिला और बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस पर लगातार हमले. हर तरफ एक ही संकेत है, एक ही संदेश है - अरविंद केजरीवाल 2024 के मिशन पर निकल चुके हैं.

AAP की अखिल भारतीय चुनावी मुहिम

ये भी देखने को मिल रहा है कि अरविंद केजरीवाल बीच बीच में बीजेपी विरोधी मुख्यमंत्रियों के साथ भी मुलाकात कर रहे हैं, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि हाल फिलहाल ममता बनर्जी के साथ उनकी कोई मुलाकात नहीं हुई है - और विपक्ष को एकजुट करने की ममता बनर्जी की कोशिशों को लेकर पूछे जाने पर कहते हैं कि उनको ऐसी कोई जानकारी नहीं है.

पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन दिल्ली के दौरे पर रहे. दिल्ली सरकार के स्कूल और अस्पताल देखने के बाद बोले कि तमिलनाडु में भी वो वही मॉडल अप्लाई करेंगे. फिर तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव का दिल्ली का दौरा हुआ - दिल्ली सरकार के एजुकेशन मॉडल के वो भी मुरीद हुए बताये जाते हैं.

अरविंद केजरीवाल 2024 के लिए पंजाब की जीत का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं

दिल्ली तो दिल्ली पंजाब में भी के. चंद्रशेखर राव और अरविंद केजरीवाल साथ साथ देखे गये हैं. अब अगर राव और केजरीवाल एक साथ पंजाब में हों तो मुख्यमंत्री भगवंत मान का होना तो लाजिमी ही है. बताते हैं कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर किसान आंदोलन के दौरान मारे गये किसानों के परिवार वालों को आर्थिक मदद के तौर पर 3-3 लाख रुपये बांटने पहुंचे थे.

कितना दिलचस्प है ना! तेलंगाना के मुख्यमंत्री का पंजाब जाकर किसानों को वित्तीय मदद देना - मतलब, ये भी कोई नयी खिचड़ी ही पक रही है. विपक्षी खेमे की इस खिचड़ी में ममता बनर्जी नजर नहीं आ रही हैं और कांग्रेस के होने का तो मतलब ही नहीं बनता.

केसीआर ने यूपी चुनावों के दौरान ही मुंबई जाकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एनसीपी नेता शरद पवार से भी मुलाकात की थी. उसी दौरान प्रशांत किशोर राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के प्रस्ताव के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मिले थे.

2019 में केसीआर ने ममता बनर्जी के साथ मुलाकात कर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की थी. मिलने के बाद केसीआर चाहते थे कि ममता बनर्जी मीडिया के सामने उनके साथ सामने आयें और कुछ बोलें भी. ममता बनर्जी बाहर निकली ही नहीं.

केसीआर भी जानते हैं कि शरद पवार कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ने वाले हैं. अगर शरद पवार ऐसा नहीं करेंगे तो उद्धव ठाकरे भी आगे पीछे शायद ही सोचें. शायद इसीलिए केसीआर ने केजरीवाल के साथ हाथ मिलाने का फैसला किया है - बस देखते रहिये आगे आगे होता है क्या क्या?

हरियाणा में 'छोरा' बने केजरीवाल: अरविंद केजरीवाल की जन्मभूमि हरियाणा ही है. लिहाजा जब तब हरियाणा को लेकर केजरीवाल का प्रेम उमड़ता रहता है. रह रह कर वो रैली करने हरियाणा पहुंच भी जाते हैं. हालांकि, अक्सर लंबा गैप हो जाता है.

हरियाणा में निकाय चुनावों को देखते हुए आम आदमी पार्टी की तरफ से केजरीवाल की रैली की पहले से ही तैयारी चल रही थी. रैली करने की एक खास वजह आप के नये नेता बने अशोक तंवर भी हैं. कांग्रेस में कभी राहुल गांधी के बेहद करीबी रहे अशोक तंवर निकाले जाने के बाद ममता बनर्जी के साथ चले गये थे, लेकिन कुछ ही दिन बाद तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर केजरीवाल की आम आदमी पार्टी अच्छी लगने लगी - और आखिरकार उसी के हो भी गये.

हरियाणा में अरविंद केजरीवाल पूरे फॉर्म में दिखे. कुरुक्षेत्र की रैली में केजरीवाल का भाषण चल रहा था, 'त्रेतायुग में रामचन्द्र जी ने रावण का घमंड तोड़ा था... द्वापरयुग में कृष्ण जी ने कंस का घमंड तोड़ा था... कलियुग में किसानों ने भाजपाइयों का घमंड तोड़ा है...'

फिर बोले, 'पंजाब से चला तूफान अब हरियाणा में आना वाला है...'

और फिर अपनी स्टाइल पर लौट आये, 'जो लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, वकील बनें, वो हमारे साथ आयें... जो चाहते हैं कि उनके बच्चे दंगाई, गुंडे और बलात्कारी बनें वो भाजपा के पास चले जाएं.'

दिल्ली में चुनावों के दौरान अक्सर अरविंद केजरीवाल के ऐसे ही भाषण सुनने को मिलते हैं. कभी कभी ये चल भी जाता है, लेकिन हर बार नहीं चलता. पिछले एमसीडी चुनाव में ये स्टाइल नहीं चली, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनावों में तो जैसे बल्ले बल्ले हो गयी. तब केजरीवाल ने सरेआम कह दिया था कि अगर दिल्लीवाले उनको आतंकवादी मानते हैं तो बीजेपी को अपना वोट दे दें.

पंजाब चुनाव के दौरान भी देखा गया कि किस तरह बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अरविंद केजरीवाल को आतंकवादियों का सपोर्टर साबित करने की कोशिश कर रहे थे. केजरीवाल के ही पुराने साथी कुमार विश्वास भी खूब बयानबाजी कर रहे थे, लेकिन आम आदमी पार्टी अपने कैंपेन में लगी रही और सरकार बना ली.

बचपन से अपने रहे लोगों के बीच पहुंचे अरविंद केजरीवाल ने बताया कि जब भी कोई उनको 'हरियाणे का लाल' कहता है तो उनको बहुत अच्छा लगता है. बोले, जन्मभूमि का कर्ज आदमी सात जन्मों तक नहीं चुका पाता.

अरविंद केजरीवाल ने ये भी समझाया कि उनको बीजेपी या बाकी दलों की तरह राजनीति नहीं आती, 'मैं सीधा-साधा छोरा हूं... मन्ने काम करना आवे, जितना मर्जी काम करवा लो...'

उपचुनाव से दिल्लीवालों का मूड जानने की कोशिश दिल्ली में 23 जून को राजेंद्र नगर विधानसभा सीट पर वोटिंग होनी है. ये सीट आप विधायक राघव चड्ढा के राज्य सभा चले जाने के कारण खाली हुई थी, इसलिए उपचुनाव कराया जा रहा है.

आम आदमी पार्टी ने राजेंद्र नगर से अपने मजबूत नेता दुर्गेश पाठक को उम्मीदवार बनाया है - और ये दिल्ली में आगे चल कर होने वाले एमसीडी चुनावों से पहले लोगों का मूड जानने का हर पार्टी के लिए बेहतरीन मौका है.

कुछ दिन पहले खबर आयी थी कि बीजेपी में राजेंद्र नगर से प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता और तेजिंदर सिंह बग्गा जैसे दिल्ली के नेता टिकट चाहते हैं. हालांकि, अब बताया जा रहा है कि ये दोनों ही शांत हो गये हैं. तेजिंदर बग्गा हाल ही में अपनी गिरफ्तारी और रेस्क्यू को लेकर चर्चा में थे. हुआ ये था कि पंजाब पुलिस बग्गा को गिरफ्तार करके ले जा रही थी, तभी हरियाणा पुलिस ने रोक लिया और बाद में दिल्ली पुलिस को सौंप दिया था.

अब आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सांसद संजय सिंह बीजेपी को ललकारते हुए कह रहे हैं कि वो चाहे तो दुर्गेश पाठक के मुकाबले आदेश गुप्ता या तेजिंदर बग्गा को चुनाव मैदान में उतार कर देख ले.

पंजाब में राज्य सभा उम्मीदवारों के जरिये संदेश

पंजाब में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दो ऐसे लोगों को राज्य सभा का उम्मीदवार बनाया है जिनका समाजसेवा के क्षेत्र में बड़ा नाम है. दोनों ही उम्मीदवारों को उनके काम के लिए भारत सरकार का पद्मश्री सम्मान भी मिल चुका है.

आप के एक उम्मीदवार संत बलबीर सिंह सीचेवाल ईको बाबा के नाम से मशहूर हैं और नदियों में बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम केलिए काम करते हैं. सुल्तानपुर लोधी में 160 किलोमीटर लंबी काली बेन नदी की सफाई का पूरा श्रेय सीचेवाल को ही दिया जाता है. 2007 में सीचेवाल ने काली बेन नदी की सफाई अकेले ही शुरू कर दी थी - और धीरे धीरे लोग साथ खड़े होते गये.

ठीक वैसे ही, विक्रमजीत सिंह साहनी का नाम शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए लिया जाता है. शिक्षा के क्षेत्र में कई कार्यक्रम चलाने के अलावा साहनी हजारों पंजाबी छात्रों के लिए स्कॉलरशिप भी मुहैया करा चुके हैं.

2018 में दिल्ली से आम आदमी पार्टी की तरफ से राज्य सभा भेजे जाने वाले चेहरों को लेकर काफी बवाल हुआ था. पहले तो ये बताया गया कि अरविंद केजरीवाल की टीम आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन जैसी शख्सियतों को खोज रही है, लेकिन जब ऐसे लोगों ने साफ तौर पर मना कर दिया तो नयी तलाश शुरू हुई.

ऐसे में जबकि कुमार विश्वास और आशुतोष जैसे लोग आप के जरिये राज्य सभा जाने की आस लगाये बैठे थे, अरविंद केजरीवाल ने संजय सिंह के अलावा एक सीए एनडी गुप्ता और दिल्ली में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रह चुके सुशील गुप्ता को उम्मीदवार बना डाला.

पंजाब से आप के राज्य सभा उम्मीदवार पद्मश्री से सम्मानित हैं और संत सीचेवाल तो अपनी शर्तों पर तैयार हुए हैं

पंजाब के उम्मीदवारों का चयन दिल्ली के भूल सुधार की कोशिश तो लगती ही है, राष्ट्रीय स्तर पर आम आदमी पार्टी की राजनीतिक छवि को नये कलेवर में पेश करने की कोशिश भी लगती है - और सबसे बड़ी बात है, संत सीचेवाल की शर्त

बताते हैं कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने आप की तरफ से राज्य सभा भेजने को लेकर संत सीचेवाल से उनकी राय पूछी, लेकिन वो मना कर दिया - और ऐसा दो बार हुआ. भगवंत मान फिर भी नहीं माने और फोन कर जानने की कोशिश की कि उनकी राय बदली की नहीं. तब संत सीचेवाल ने थोड़ा वक्त मांगा - और आखिर में पार्टी की तरफ से राज्य सभा जाने को लेकर अपनी शर्त रख दी. भगवंत मान ने संत सीचेवाल की शर्त मान ली - और लगे हाथ ट्विटर पर ही उम्मीदवार की घोषणा भी कर दी.

संत सीचेवाल की शर्त भी दिलचस्प है - और उससे भी दिलचस्प है भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल का पूरे होशोहवास में वो शर्त मान जाना. संत बलवीर सिंह सीचेवाल की शर्त है कि न तो वो आम आदमी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करेंगे और न ही रैलियों में जाकर उम्मीदवारों के लिए वोट ही मांगेगे - अगर अरविंद केजरीवाल आगे भी ऐसे काम करते हैं तो नाउम्मीद हो चुके लोग उनको नये सिरे से एक मौका दे भी सकते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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