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Artificial Intelligence: क्या बच्चों को पढ़ा सीखा सकता है?

    • prakash kumar jain
    • Updated: 25 मई, 2023 01:05 PM
  • 25 मई, 2023 01:05 PM
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एआई किसी लर्नर (प्रशिक्षु) के लिए जानकारी जुटाने में तो सहायता प्रदान कर सकता है लेकिन वह उनके लिए सोच विचार नहीं कर सकता. तो सही सही कहें तो बच्चों को सीखने के लिए, लर्न करने के लिए AI कोई मदद नहीं कर सकता.

जल्द ही, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आपके बच्चों को पढ़ाने और उनके ग्रेड सुधारने में मदद कर सकता है - हम नहीं कहते अरबपति माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक बिल गेट्स कह रहे थे. उनके अनुसार एआई चैटबॉट आगामी 18 महीने के समय में बच्चों को पढ़ने और उनके लेखन कौशल को सीखने में मदद करने के लिए तैयार हो जाएगा. चूंकि बिल गेट्स के आर्थिक हित सधते हैं, उन्हें ऐसा कहना ही था. परंतु थोड़ा समझिये. चैटबॉट, जो बड़े डेटासेट पर प्रशिक्षित होते हैं, अक्सर मैथमेटिक्स के प्रश्नों पर स्ट्रगल करते प्रतीत होते हैं. यदि चैटबॉट को प्रशिक्षित करने वाले डेटासेट में साल्व्ड मैथ इक्वेशन पहले से मौजूद है, तो यह उत्तर दे देगा लेकिन स्वतः समाधान कर लेना फिलहाल तो दूर की कौड़ी ही है. तभी तो चैटबॉट अपेक्षाकृत सरल गणना नहीं कर पाता, यहां तक कि कुछ संख्याओं को गुणा भी नहीं कर सकता. कहा जा सकता है टेक्नोलॉजी और तरक्की करेगी.

माना जा रहा है कि अगर एआई का सही से इस्तेमाल किया जाए तो शिक्षा जगत में इससे क्रांतिकारी परिणाम देखने को मिल सकते हैं

स्पष्ट है ज्यों ज्यों डेटासेट रिच होता जाएगा, जटिलताएं संभलती जाएंगी, परंतु क्या वह आदर्श स्थिति आएगी जिसके तहत AI के पास ईश्वर प्रदत्त मानवीय तार्किक शक्ति होगी ? जवाब है, 'नहीं' क्योंकि तमाम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल्स मानव प्रदत्त है. ज्ञान एक अथाह महासागर है जिसकी थाह मानव ही अपनी बुद्धिमता से लेता है. हर सर्च इंजन मानव निर्मित है, वह स्वयं ज्ञान के अथाह महासागर में गोता नहीं लगा सकता। उसके ज्ञान की हद है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सीमा तक, जिसे मानव ही तब अपडेट कर पाता है जब वह महासागर से ले पाता है.

ऑन ए लाइटर नोट विद ऑल ड्यू रिस्पेक्ट क्यों ना चैटबॉट के इन प्रोडक्ट्स को पोंगा पंडित कहें ? आखिर रटी रटाई (फीड) बातों को ही तो...

जल्द ही, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आपके बच्चों को पढ़ाने और उनके ग्रेड सुधारने में मदद कर सकता है - हम नहीं कहते अरबपति माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक बिल गेट्स कह रहे थे. उनके अनुसार एआई चैटबॉट आगामी 18 महीने के समय में बच्चों को पढ़ने और उनके लेखन कौशल को सीखने में मदद करने के लिए तैयार हो जाएगा. चूंकि बिल गेट्स के आर्थिक हित सधते हैं, उन्हें ऐसा कहना ही था. परंतु थोड़ा समझिये. चैटबॉट, जो बड़े डेटासेट पर प्रशिक्षित होते हैं, अक्सर मैथमेटिक्स के प्रश्नों पर स्ट्रगल करते प्रतीत होते हैं. यदि चैटबॉट को प्रशिक्षित करने वाले डेटासेट में साल्व्ड मैथ इक्वेशन पहले से मौजूद है, तो यह उत्तर दे देगा लेकिन स्वतः समाधान कर लेना फिलहाल तो दूर की कौड़ी ही है. तभी तो चैटबॉट अपेक्षाकृत सरल गणना नहीं कर पाता, यहां तक कि कुछ संख्याओं को गुणा भी नहीं कर सकता. कहा जा सकता है टेक्नोलॉजी और तरक्की करेगी.

माना जा रहा है कि अगर एआई का सही से इस्तेमाल किया जाए तो शिक्षा जगत में इससे क्रांतिकारी परिणाम देखने को मिल सकते हैं

स्पष्ट है ज्यों ज्यों डेटासेट रिच होता जाएगा, जटिलताएं संभलती जाएंगी, परंतु क्या वह आदर्श स्थिति आएगी जिसके तहत AI के पास ईश्वर प्रदत्त मानवीय तार्किक शक्ति होगी ? जवाब है, 'नहीं' क्योंकि तमाम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल्स मानव प्रदत्त है. ज्ञान एक अथाह महासागर है जिसकी थाह मानव ही अपनी बुद्धिमता से लेता है. हर सर्च इंजन मानव निर्मित है, वह स्वयं ज्ञान के अथाह महासागर में गोता नहीं लगा सकता। उसके ज्ञान की हद है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सीमा तक, जिसे मानव ही तब अपडेट कर पाता है जब वह महासागर से ले पाता है.

ऑन ए लाइटर नोट विद ऑल ड्यू रिस्पेक्ट क्यों ना चैटबॉट के इन प्रोडक्ट्स को पोंगा पंडित कहें ? आखिर रटी रटाई (फीड) बातों को ही तो तोते की तरह दोहराता है. खुद का आत्मचिंतन या विवेक जो नहीं है. दरअसल चैटबॉट को आप एक डिजिटल रेडी रेकनर समझें जिसके अपडेशन की निरंतरता हर हाल में मानव पर निर्भर है. आज बच्चों की पढ़ाई के लिए एआई टूल्स का सहारा लिया जा रहा है. घर में एलेक्सा क्या है ?

जब DALL -E आया, बच्चों को अपने आर्टवर्क बनाने में मनपसंद फोटो और थीम के साथ प्रयोग करने में मदद मिली. गाठ वर्ष ही चैटजीपीटी आया और धनाढ्य पेरेंट्स ने (यूएस,जापान, फ़्रांस आदि देशों में ज्यादा) बच्चों को मनोरंजन के लिए इसका उपयोग करने दिया. और आजकल तो आम हो चला है बच्चों में नाना प्रकार के एआइ प्रोग्राम जनित टूल्स के उपयोग करने की प्रवृति का. मां बाप भी खुश होते हैं अपने बच्चों को इन टूल्स का प्रोजेक्ट्स के लिए इस्तेमाल करते हुए देखकर.

उन्हें गर्व जो है कि जो वे नहीं कर पाए, उनके बच्चे कर रहे हैं ! परंतु बच्चों को ध्यान से ऑब्ज़र्व करें तो समझ आएगा कि एआई किसी लर्नर (प्रशिक्षु) के लिए जानकारी जुटाने में तो सहायता प्रदान कर सकता है लेकिन वह उनके लिए सोच विचार नहीं कर सकता. तो सही सही कहें तो बच्चों को सीखने के लिए, लर्न करने के लिए AI कोई मदद नहीं कर सकता. फेमस बुक 'रीथिंकिंग इंटेलिजेंस : ए रेडिकल न्यू अंडरस्टैंडिंग ऑफ़ आवर ह्यूमन पोटेंशियल' की लेखिका डॉ रीना ब्लिस कहती हैं मानव बुद्धिमता कंप्यूटर की बुद्धिमता से अलग होती है.

मानव बुद्धि को मापा नहीं जा सकता. वे कहती हैं कि हमारा मस्तिष्क प्लास्टिक के मानिंद हैं , जैसे जैसे हम अपने आसपास के वातावरण से सीखते हैं, यह विकसित होता है, बढ़ता जाता है. और, मानव बुद्धि सापेक्षिक है चूंकि मानव संपर्क पर निर्भर करती है. जब हम दूसरों के साथ जुड़ते हैं, अपने आसपास की दुनिया पर विचार करते हैं और उस दुनिया के साथ अपने रिश्ते को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं, तो अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करना स्वाभाविक रूप से होता है.

दरअसल हम सब एक दूसरे को जानने और जुड़ने की इस प्रक्रिया का हिस्सा है. पर इस सबसे बुनियादी जन्मसिद्ध अधिकार के लिए जरूरी है कि हम एक प्रशिक्षु जैसी स्वाभाविक जिज्ञासा व जुनून का अनुकरण करते रहें. बिना उस सामाजिक-भावनात्मक तत्व के जानकारी या सूचना बेमानी है. शिक्षाविद जोर देते हैं सामाजिक, भावनात्मक और समस्या आधारित शिक्षण के लिए.

रिसर्च बताती है कि हर आयु वर्ग के छात्र तव बेहतर सीखते हैं और लंबे समय तक याद रखते हैं जब उन्हें ऐसा अवसर मिले कि उनके सीखने में प्रयुक्त सामग्री क्लासरूम के बाहर भी उनके जीवन से जुड़ी है. स्टूडेंट्स द्वारा AI का इस्तेमाल शिक्षा के इन सरोकारों से कई मायने में अलग है. AI प्रशिक्षण में क्या होता है ? एक व्यक्ति एक बॉट के साथ काम करता है मसलन एक AI टूल जवाब देने को तत्पर होता है.

उदाहरणार्थ ,छात्रों को पर्यावरण संबंधी तथ्य जुटाने में, समस्या का हल ढूंढने में और कोई रचनात्मक तरीका तलाशने में AI सूचनाओं की क्राउडसोर्सिंग से मदद तो कर सकता है लेकिन AI छात्रों को सोचने विचारने या याद रखने के लिए प्रेरित नहीं करता.,और, तथ्यों और जानकारियों का संकलन करना ही 'सीखना' नहीं कहलाता. वाकई स्टूडेंट्स को कुछ सीखना है तो उन्हें अपने न्यूरल नेटवर्क को मजबूत करना होगा और इंटेलिजेंस (मेघा) को विकसित करने के लिए अपनी न्यूरोप्लास्टिसिटी का इस्तेमाल करना होगा बजाए AI के न्यूरल नेटवर्क का मोहताज होकर.

आखिर AI को डेटा प्रोसेस करने की प्रेरणा मानव मस्तिष्क से ही तो मिलती है जो एक प्रकार की मशीन लर्निंग प्रक्रिया है, जिसे डीप लर्निंग कहा जाता है. वास्तविक जीवन में जो आपसी समन्वय होता है, उसका स्थान कोई नहीं ले सकता, जैसे टीचर, स्टूडेंट और फेलो स्टूडेंट्स के बीच परस्पर सीखने की प्रक्रिया, ताकि विकसित होने के लिए दिमाग की प्राकृतिक गति को प्रोत्साहन मिले. जब बच्चे AI के साथ जुड़ते हैं तो आपसी संवाद नदारद हो जाता है.

क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि कोई बॉट हमारी बीमारी का उपचार कर सकता है ? ऑन ए लाइटर नोट, भगवान ने इंसान को बनाया लेकिन अपने अधीन ही रखा, तभी तो सब भगवान को याद करते हैं ; इंसान ने AI को बनाया तो इतना उसको सर पे ना चढ़ा लो कि... वैसे भी मानविकी और तकनीक के बीच बुनियादी अंतर की बात करें तो तकनीक से मिलने वाली सूचनाओं का आधार फीड किया गया डाटा होता है या फिर वह जिसका कहीं पहले जिक्र किया गया हो.

परंतु एक हाड़मांस का प्रोफेशनल, टीचर हो या पत्रकार या अकाउंटेंट या प्रशिक्षक, वह कर सकता है जो पहले कभी नहीं हुआ हो और व्यावहारिक भी हो. और जब वह होता है, जो पहले नहीं हुआ, भी फीड हो जाएगा तकनीक को कंट्रीब्यूट करने के लिए. सो कहने का मतलब है कि इंसान हमेशा ही आगे रहेगा, आखिर तकनीक भी तो मानव की ही देन है.

और बच्चों को तो फिलहाल बख्श ही दीजिए और किसी भी कंप्यूटर टूल से उन्हें दूर ही रहने दें. बच्चों ने सोचना, विचारना, सीखना बंद कर दिया तो यकीन मानिए कल मानव के ईजाद किये गए इस AI रूपी दानव को नियंत्रित करने वाले ही नहीं रहेंगे. 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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