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क्या महबूबा का BJP के बजाय कांग्रेस से 'गठबंधन' था!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 24 जून, 2018 11:29 AM
  • 24 जून, 2018 11:29 AM
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महबूबा सरकार गिरने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पहली बार चुप्पी तोड़ी है. जम्मू पहुंचे अमित शाह की बातों से ऐसा लगा जैसे महबूबा ने बीजेपी नहीं बल्कि कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बनायी हुई थी.

महबूबा सरकार गिराने के बाद पहली बार अमित शाह जम्मू पहुंचे थे. मौका था श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस का. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को याद करते हुए अमित शाह ने जम्मू कश्मीर से खून का रिश्ता बताया.

शाह ने कांग्रेस नेताओं के बयान को लेकर राहुल गांधी पर हमला बोला ये तो समझ में आता है, लेकिन हाल तक सत्ता में रही महबूबा सरकार को भी वो ऐसे कोस रहे थे जैसे कोई कांग्रेसी सरकार हो. इस बीच, मध्य प्रदेश पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी परिवारवाद का नाम लेकर श्याम प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं का योगदान भुला देने के लिए कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला.

वो पूरी दास्तां...

जम्मू कश्मीर से बीजेपी के मजबूत रिश्ते को समझाने के लिए अमित शाह ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ जो कुछ हुआ, पूरी दास्तां सुनायी. अमित शाह ने कहा, "पहले जम्‍मू कश्‍मीर आने के लिए परमिट की जरूरत पड़ती थी... उस वक्‍त जम्‍मू कश्‍मीर में तिरंगा नहीं फहरा सकते थे. यहां अलग प्रधानमंत्री बैठता था. श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस मुद्दे को उठाया था. जब उन्होंने तिरंगा फहराने की कोशिश की तो गिरफ्तार कर लिया गया - और जम्‍मू की जेल में उनकी हत्‍या कर दी गई. उनके बलिदान को कोई नहीं भूल सकता.

मोदी स्टाइल में लोगोें से कनेक्ट होने की कोशिश

शाह ने ये भी समझाया कि वो सूबे के लोगों के साथ खून का रिश्ता क्यों बता रहे हैं, बोले, "जम्‍मू कश्‍मीर से हमारा दिल और खून का रिश्‍ता है - क्‍योंकि हमारे पूर्वजों ने इसे खून से सींचा है."

जैसे बीजेपी गठबंधन का हिस्सा ही नहीं थी!

पीडीपी और बीजेपी का गठबंधन टूटने के बाद अमित शाह का बयान कई हिसाब से महत्वपूर्ण था - एक तो मौका, दूसरा - स्थान....

महबूबा सरकार गिराने के बाद पहली बार अमित शाह जम्मू पहुंचे थे. मौका था श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस का. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को याद करते हुए अमित शाह ने जम्मू कश्मीर से खून का रिश्ता बताया.

शाह ने कांग्रेस नेताओं के बयान को लेकर राहुल गांधी पर हमला बोला ये तो समझ में आता है, लेकिन हाल तक सत्ता में रही महबूबा सरकार को भी वो ऐसे कोस रहे थे जैसे कोई कांग्रेसी सरकार हो. इस बीच, मध्य प्रदेश पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी परिवारवाद का नाम लेकर श्याम प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं का योगदान भुला देने के लिए कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला.

वो पूरी दास्तां...

जम्मू कश्मीर से बीजेपी के मजबूत रिश्ते को समझाने के लिए अमित शाह ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ जो कुछ हुआ, पूरी दास्तां सुनायी. अमित शाह ने कहा, "पहले जम्‍मू कश्‍मीर आने के लिए परमिट की जरूरत पड़ती थी... उस वक्‍त जम्‍मू कश्‍मीर में तिरंगा नहीं फहरा सकते थे. यहां अलग प्रधानमंत्री बैठता था. श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस मुद्दे को उठाया था. जब उन्होंने तिरंगा फहराने की कोशिश की तो गिरफ्तार कर लिया गया - और जम्‍मू की जेल में उनकी हत्‍या कर दी गई. उनके बलिदान को कोई नहीं भूल सकता.

मोदी स्टाइल में लोगोें से कनेक्ट होने की कोशिश

शाह ने ये भी समझाया कि वो सूबे के लोगों के साथ खून का रिश्ता क्यों बता रहे हैं, बोले, "जम्‍मू कश्‍मीर से हमारा दिल और खून का रिश्‍ता है - क्‍योंकि हमारे पूर्वजों ने इसे खून से सींचा है."

जैसे बीजेपी गठबंधन का हिस्सा ही नहीं थी!

पीडीपी और बीजेपी का गठबंधन टूटने के बाद अमित शाह का बयान कई हिसाब से महत्वपूर्ण था - एक तो मौका, दूसरा - स्थान. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान दिवस और जगह जम्मू.

शाह ने कहा, 'मैं एक साल पहले यहां आया था. उस वक्‍त हमारी गठबंधन की सरकार थी. अब आया हूं तो हमारी सरकार नहीं है. हमारे लिए सरकार कोई मायने नहीं रखती. हमारे लिए जम्‍मू का विकास और सलामती मायने रखती है."

यहां तक तो सब ठीक ठाक रहा. आगे जो कुछ अमित शाह ने बोला उसे सुन कर ऐसा लग रहा था जैसे महबूबा सरकार में बीजेपी की साझेदारी थी ही नहीं. ऐसी बातें तो शायद वो राजनीतिक पार्टी के कहने का हक नहीं हो सकता जो किसी सरकार को बाहर से सपोर्ट कर रही हो. वैसे समर्थन वापसी की घोषणा वाली पहली प्रेस कांफ्रेंस में भी राम माधव का अंदाज तकरीबन मिलता जुलता ही रहा.

मतलब निकल गया तो...

राम माधव ने भी तो यही समझाने की कोशिश की थी कि राज्य सरकार पूरी तरह से फेल हो चुकी थी. राम माधव भी यही समझाना चाह रहे थे कि पीडीपी सरकार फेल हो गयी. हकीकत तो ये रही कि बीजेपी भी सरकार में बराबर की हिस्सेदार रही.

देखा जाय तो अमित शाह उसी बात को आगे बढ़ा रहे थे. ऐसा तो कतई नहीं था कि सिर्फ महबूबा मुफ्ती की पार्टी ने अकेले सरकार चलायी. बीजेपी की भी महबूबा सरकार में बराबर की हिस्सेदारी रही. महबूबा नेतृत्व कर रही थीं तो बीजेपी ने भी डिप्टी सीएम बिठा रखा था. मंत्रिमंडल में बदलाव भी हुए और नया डिप्टी सीएम भी बीजेपी का ही रहा.

अगर महबूबा सरकार फेल हुई तो ये पीडीपी-बीजेपी गठबंधन की नाकामी है. सिर्फ पीडीपी को नाकामियों का जिम्मेदार ठहराने की कोई भी दलील भला गले के नीचे कैसे उतर सकती है?

जैसे कोई कांग्रेसी सरकार रही हो!

जम्मू से जिस तरह अमित शाह महबूबा मुफ्ती के शासन को कोस रहे थे वैसी बातें तो अमित शाह की चुनावी सभाओं में अक्सर सुनने को मिलती रही हैं. हिमाचल प्रदेश में भी और कर्नाटक में भी. नॉर्थ ईस्ट पहुंचे तो मेघालय की रैलियों के वीडियो बीजेपी की साइट या यू ट्यूब पर सुन लीजिए.

परिवारवाद पर हमला...

अमित शाह का दावा है कि जो 70 साल में नहीं हुआ वो मोदी सरकार ने जम्मू और कश्मीर के विकास के लिए कोशिश की, लेकिन राज्य की सरकार ने विकास के कामों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी.

आरोप नंबर 1: नरेंद्र मोदी सरकार ने केंद्र से पैसा भेजा लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं हुआ.

आरोप नंबर 2: महबूबा सरकार के रहते जम्मू और लद्दाख में बराबर विकास नहीं हो रहा था.

आरोप नंबर 3: महबूबा सरकार हिंसा को कंट्रोल करने में नाकाम साबित हो रही थी. शाह ने इसके लिए शुजात बुखारी की हत्या का उल्लेख किया.

अगर शाह महबूबा सरकार पर सीजफायर बढ़ाकर दहशतगर्दों की मदद की बात करते तो शायद ही किसी को ऐतराज होता. अगर सुरक्षा बलों के ऑपरेशन में किसी तरह के अड़ंगे की बात करते तो भी शायद किसी को आपत्ति नहीं होती. वैसे भी पीडीपी नेता ऑफ द रिकॉर्ड बता चुके हैं कि कैसे महबूबा लोगों को अपना संदेश दे चुकी हैं और आगे क्या रणनीति रहेगी.

अमित शाह की बातों से ऐसा लग रहा है जैसे महबूबा सरकार जम्मू और लद्दाख के लोगों से भेदभाव बरत रही थी. ऐसा लगता है जैसे महबूबा सरकार कश्मीर घाटी के लोगों के साथ पक्षपात करती रही हो.

दरअसल, बीजेपी को जम्मू क्षेत्र से वोट मिले थे और पीडीपी को कश्मीर घाटी से. दोनों के मिल कर सरकार बनाने की वजह भी यही रही. जिस तरह कश्मीर के लोग पीडीपी से नाराज थे, उसी तरह जम्मू के लोग भी बीजेपी से नाखुश थे कि उसने पीडीपी से हाथ क्यों मिलाया. समर्थन वापसी के बाद भी यही खबर आयी थी कि जम्मू के बीजेपी और संघ कार्यकर्ता भी खासे खफा थे. आखिरकार बीजेपी को वोट बैंक बचाने के लिए भी ये कदम उठाना पड़ा. अब बीजेपी लोगों को समझा रही है कि सरकार की सारी गलतियों के लिए महबूबा मुफ्ती जिम्मेदार हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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