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महाराष्ट्र-हरियाणा के अनुभव ने BJP को अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर लौटाया

    • आईचौक
    • Updated: 22 नवम्बर, 2019 01:17 PM
  • 22 नवम्बर, 2019 01:17 PM
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झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Election 2019) के साथ ही बीजेपी एक बार फिर राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर लौट आयी है. क्या ये बीजेपी ने ये फैसला विधानसभा चुनावों (Assembly Polls) में राष्ट्रवाद का फायदा न मिल पाने के चलते किया है?

अमित शाह ने झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Election 2019) में बीजेपी के चुनाव अभियान का आगाज कर दिया है. अमित शाह (Amit Shah) की रैली के लिए दो इलाके खासतौर पर चुने गये थे - लातेहार और लोहरदगा. लातेहार इसलिए क्योंकि वो बिरसा मुंडा (Birsa Munda) की धरती है और लोहरदगा इसलिए क्योंकि वहां से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे सुखदेव भगत (Sukhdev Bhagat) बीजेपी उम्मीदवार हैं - और AJS से बीजेपी के गठबंधन टूटने में बड़े फैक्टर भी.

बीजेपी अध्यक्ष ने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत के साथ ही पार्टी का एजेंडा साफ कर दिया - अयोध्या में राम मंदिर और निशाने पर कांग्रेस पार्टी. झारखंड में बड़ी विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा है और उसके नेता हेमंत सोरेन के नेतृत्व में ही कांग्रेस भी चुनाव लड़ रही है.

सवाल तो बनता ही है कि अमित शाह ने सीधे सीधे हेमंत सोरेन या JMM को टारगेट करने की जगह कांग्रेस को लेकर हमलावर क्यों हुए?

बीजेपी की चुनावी राजनीति में मंदिर की वापसी क्यों?

2019 के लोक सभा चुनाव से पहले ही विश्व हिंदू परिषद (VHP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के अयोध्या मामले से पल्ला झाड़ लेने के बाद बीजेपी ने भी राम मंदिर निर्माण की चर्चा तक छोड़ दी थी. अगर कभी चर्चा सुनने को मिलती भी तो यही कि अदालत से जो फैसला आएगा मानेंगे. आम चुनाव के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए उसमें भी राम मंदिर का मसला नदारद ही रहा. दोनों ही राज्यों में बीजेपी ने चुनाव राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ लड़े.

वैसे भी केंद्र की सत्ता में लौटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को बतौर बड़ी उपलब्धि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म किया जाना ही नजर आ रही थी - चुनावी वादा जो पूरा किया था. धारा 370 के मामले में राजनीतिक रणनीति तो बीजेपी ने ऐसी बनायी कि राज्य सभा में बहुमत में न होने के बावजूद सारे दलों को बेकार बैठा दिया. कांग्रेस तो चारों खाने चित्त हो गयी, जेडीयू जैसे साथी भी जो ऐसे मुद्दों पर एनडीए में...

अमित शाह ने झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Election 2019) में बीजेपी के चुनाव अभियान का आगाज कर दिया है. अमित शाह (Amit Shah) की रैली के लिए दो इलाके खासतौर पर चुने गये थे - लातेहार और लोहरदगा. लातेहार इसलिए क्योंकि वो बिरसा मुंडा (Birsa Munda) की धरती है और लोहरदगा इसलिए क्योंकि वहां से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे सुखदेव भगत (Sukhdev Bhagat) बीजेपी उम्मीदवार हैं - और AJS से बीजेपी के गठबंधन टूटने में बड़े फैक्टर भी.

बीजेपी अध्यक्ष ने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत के साथ ही पार्टी का एजेंडा साफ कर दिया - अयोध्या में राम मंदिर और निशाने पर कांग्रेस पार्टी. झारखंड में बड़ी विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा है और उसके नेता हेमंत सोरेन के नेतृत्व में ही कांग्रेस भी चुनाव लड़ रही है.

सवाल तो बनता ही है कि अमित शाह ने सीधे सीधे हेमंत सोरेन या JMM को टारगेट करने की जगह कांग्रेस को लेकर हमलावर क्यों हुए?

बीजेपी की चुनावी राजनीति में मंदिर की वापसी क्यों?

2019 के लोक सभा चुनाव से पहले ही विश्व हिंदू परिषद (VHP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के अयोध्या मामले से पल्ला झाड़ लेने के बाद बीजेपी ने भी राम मंदिर निर्माण की चर्चा तक छोड़ दी थी. अगर कभी चर्चा सुनने को मिलती भी तो यही कि अदालत से जो फैसला आएगा मानेंगे. आम चुनाव के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए उसमें भी राम मंदिर का मसला नदारद ही रहा. दोनों ही राज्यों में बीजेपी ने चुनाव राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ लड़े.

वैसे भी केंद्र की सत्ता में लौटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को बतौर बड़ी उपलब्धि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म किया जाना ही नजर आ रही थी - चुनावी वादा जो पूरा किया था. धारा 370 के मामले में राजनीतिक रणनीति तो बीजेपी ने ऐसी बनायी कि राज्य सभा में बहुमत में न होने के बावजूद सारे दलों को बेकार बैठा दिया. कांग्रेस तो चारों खाने चित्त हो गयी, जेडीयू जैसे साथी भी जो ऐसे मुद्दों पर एनडीए में रहते हुए भी अलग राय रखते रहे, कहने लगे - अब जब फैसला हो ही गया तो क्या विरोध करना.

अयोध्या पर फैसला महाराष्ट्र-हरियाणा के बाद और झारखंड चुनाव से पहले आया है. लिहाजा बीजेपी एक बार फिर मंदिर मुद्दे पर लौट आयी है. झारखंड में बीजेपी के चुनावी अभियान से तो यही लगने लगा है.

देश को तमाम समस्याओं में उलझाये रखने के साथ ही मंदिर न बनने को लेकर भी कांग्रेस को टारगेट करते हुए अमित शाह ने कहा, ‘हर कोई चाहता था कि अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए, मगर कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया... सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाया और रामलला मंदिर का रास्ता साफ कर दिया.’

'कांग्रेस ने रोड़ा लगाया... भव्य मंदिर वहीं बनाएंगे'

महाराष्ट्र और हरियाणा के लोगों से तो बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म करने के नाम पर वोट मांगा - और अब झारखंड में कह रही है कि लोगों को इसलिए वोट देना चाहिये क्योंकि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनेगा.

मंदिर के नाम पर अमित शाह के वोट मांगने का तरीका भी बड़ा ही नायाब है - 'कांग्रेस पार्टी केस ही नहीं चलने देती थी... इतने सालों से ये फैसला नहीं हो रहा था. हम भी चाहते थे कि संवैधानिक रूप से इस विवाद का रास्ता निकले और देखिये श्रीराम की कृपा से सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय कर दिया - और उसी स्थान पर भव्य राम मंदिर बनने का रास्ता खुल गया है... देश के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला करके सर्वानुमत से यह निर्णय दिया है कि अयोध्या में जहां श्रीराम का जन्म हुआ था, वहीं भव्य मंदिर बने.'

लगे हाथ धारा 370 की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का क्रेडिट शाह ने दे डाला, 'हम चाहते थे कि कोर्ट फैसला करे और संवैधानिक रूप से इस विवाद का अंत हो - और देखिए सुप्रीम कोर्ट ने इसका समाधान कर राम मंदिर के निर्माण का प्रशस्त कर दिया... प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की एक के बाद एक समस्याओं का समाधान कर रहे हैं.'

निशाने पर कांग्रेस क्यों - Jharkhand में बड़ी विपक्षी पार्टी तो JMM है

लोहरदगा झारखंड की वो सीट है जिसे लेकर बीजेपी और अब तक साथ साथ रहे सुदेश महतो की पार्टी AJS यानी ऑल झारखंड स्टूडेंस्ट यूनियन में टकराव की शुरुआत हुई - और आखिरकार गठबंधन टूट भी गया.

सुदेश महतो की मांग थी कि लोहरदगा सीट आजसू को दी जाये लेकिन BJP ने वहां से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे सुखदेव भगत को अधिकृत उम्मीदवार घोषित कर दिया. अब सुखदेव भगत को मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव के साथ साथ आजसू कैंडिडेट नीरू शांति भगत से मुकाबला करना पड़ रहा है.

असल में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित लोहरदगा सीट से 2014 में आजसू नेता कमल किशोर भगत विधायक बने. बाद में एक मामले में कमल किशोर भगत को कोर्ट से सजा मिली और सदस्यता चली गयी तो उपचुनाव हुआ. कमल किशोर भगत ने पहले सुखदेव भगत को हराया था लेकिन उपचुनाव में सुखदेव भगत ने उनकी पत्नी नीरू शांति भगत को शिकस्त दे दी. आजसू और बीजेपी के बीच झगड़े में सुखदेव भगत और नीरू शांति भगत की ही मुख्य भूमिका रही. चुनाव से कुछ ही दिन पहले सुखदेव भगत पाला बदल कर बीजेपी में शामिल हो गये थे. लोहरदगा से पहले ही लातेहार के मनिका से ही अमित शाह ने कांग्रेस पर धावा बोल दिया. साथ ही अयोध्या में राम मंदिर बनाये जाने का भी जोर शोर से जिक्र किया.

झारखंड में बीजेपी अकेले चुनाव मैदान में है और उसके मुकाबले में हेमंत सोरेन की अगुवाई में महागठबंधन है. महागठबंधन में कांग्रेस के अलावा आरजेडी भी लेकिन उसे सिर्फ सात सीटें मिली हैं. कांग्रेस और हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) में सीटों को लेकर थोड़ी तकरार भी रही, लेकिन दबाव बनने पर कांग्रेस ने हथियार डाल दिये. शिवसेना की तरह ही जेएमएम का दावा रहा कि आम चुनाव के वक्त ही विधानसभा की शर्तें तय हो गयी थीं.

महागठबंधन को निशाने बनाते हुए बीजेपी अध्यक्ष ने सवाल किया, 'हेमंत सोरेन आदिवासियों की बात करते हैं... आप किसके साथ बैठे हो? मैं राहुल और सोनिया गांधी से पूछना चाहता हूं कि आपने 70 साल में आदिवासियों के लिए क्या किया?’

अमित शाह ने कठघरे में खड़ा तो JMM को भी किया लेकिन जिस तरह कांग्रेस को टारगेट किया वैसे नहीं. बल्कि, हेमंत सोरेन को तो जैसे संदेह का लाभ भी देते दिखे और उसमें भी कांग्रेस पर हमले का बहाना खोज लिया. मंदिर पर तो कांग्रेस को लपेटना ही था. आम चुनाव को छोड़ दें तो ये सिलसिला 2017 के गुजरात चुनाव से चला आ रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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