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जल्लीकट्टू की जंग में सींग के सामने पनीरसेल्वम ही हैं

    • आईचौक
    • Updated: 20 जनवरी, 2017 07:15 PM
  • 20 जनवरी, 2017 07:15 PM
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चेन्नई की सड़कों और मरीना बीच पर जमा हुए हजारों युवकों में फर्क करना मुश्किल है कि कौन किस बैनर तले पहुंचा है. सिने कलाकारों से लेकर सियासी दलों के कार्यकर्ता तक एकजुट दिख रहे हैं.

जल्लीकट्टू के सपोर्ट में सुपरस्टार रजनीकांत भी शामिल हो गये हैं. इसके विरोध में सिर्फ पेटा है जो जानवरों के अधिकारों के लिए काम करती है. चेन्नई की सड़कों और मरीना बीच पर जमा हुए हजारों युवकों में फर्क करना मुश्किल है कि कौन किस बैनर तले पहुंचा है. सिने कलाकारों से लेकर सियासी दलों के कार्यकर्ता तक एकजुट दिख रहे हैं.

लोगों के भारी दबाव के चलते तमिनाडु के साथ साथ केंद्र की हरकतें भी तेज हो गई हैं - और जैसे भी किसी तरीके से इस विरोध से निजात पाने के लिए एक सेफ पैसेज की तैयारी है जिसका संकेत केंद्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रख कर दे दिया है.

एक सेफ पैसेज की दरकार

केंद्रीय मंत्री अनिल दवे ने जल्लीकट्टू पर जल्द ही नतीजे तक पहुंचने का भरोसा दिलाया है. सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट से पहले ही गुजारिश की जा चुकी है कि उसके फैसले से कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है, इसलिए फैसला कुछ दिन के लिए टाल दिया जाये. कोर्ट ने सरकार की अपील मंजूर कर ली है.

इसे भी पढ़ें : जल्लीकट्टू के बारे में वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं

अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा, "केंद्र और राज्य सरकार मिलकर कई विकल्पों पर विचार कर रहे हैं. दोनों कोई ऐसा रास्ता निकालेंगे जिससे लोगों के सांस्कृतिक अधिकार की सुरक्षा हो सके."

जल्लीकट्टू पर मोदी सरकार का ये रुख पहली बार देखने को मिला है. पनीरसेल्वम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर अपनी सरकार का पक्ष जरूर रखा था - लेकिन वो खुद भी बहुत आश्वस्त नजर नहीं आए.

जल्लीकट्टू के सपोर्ट में सुपरस्टार रजनीकांत भी शामिल हो गये हैं. इसके विरोध में सिर्फ पेटा है जो जानवरों के अधिकारों के लिए काम करती है. चेन्नई की सड़कों और मरीना बीच पर जमा हुए हजारों युवकों में फर्क करना मुश्किल है कि कौन किस बैनर तले पहुंचा है. सिने कलाकारों से लेकर सियासी दलों के कार्यकर्ता तक एकजुट दिख रहे हैं.

लोगों के भारी दबाव के चलते तमिनाडु के साथ साथ केंद्र की हरकतें भी तेज हो गई हैं - और जैसे भी किसी तरीके से इस विरोध से निजात पाने के लिए एक सेफ पैसेज की तैयारी है जिसका संकेत केंद्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रख कर दे दिया है.

एक सेफ पैसेज की दरकार

केंद्रीय मंत्री अनिल दवे ने जल्लीकट्टू पर जल्द ही नतीजे तक पहुंचने का भरोसा दिलाया है. सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट से पहले ही गुजारिश की जा चुकी है कि उसके फैसले से कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है, इसलिए फैसला कुछ दिन के लिए टाल दिया जाये. कोर्ट ने सरकार की अपील मंजूर कर ली है.

इसे भी पढ़ें : जल्लीकट्टू के बारे में वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं

अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा, "केंद्र और राज्य सरकार मिलकर कई विकल्पों पर विचार कर रहे हैं. दोनों कोई ऐसा रास्ता निकालेंगे जिससे लोगों के सांस्कृतिक अधिकार की सुरक्षा हो सके."

जल्लीकट्टू पर मोदी सरकार का ये रुख पहली बार देखने को मिला है. पनीरसेल्वम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर अपनी सरकार का पक्ष जरूर रखा था - लेकिन वो खुद भी बहुत आश्वस्त नजर नहीं आए.

जल्लीकट्टू के सपोर्ट में जन सैलाब

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता तो चाहती थीं कि पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव से पहले ही इसका कोई हल निकले. 2015 के आखिर में प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में जयललिता ने कहा था, "ये बहुत जरूरी है कि जल्लीकट्टू के पारंपरिक आयोजन से गहरा लगाव रखने वाले तमिलनाडु के लोगों की भावनाओं का ख्याल रखा जाए."

पनीरसेल्वम उसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. अम्मा की ही तरह वो भी चाहते हैं कि सांड़ों पर काबू पाने के खतरनाक खेल ‘जल्लीकट्टू’ के लिए कानूनी उपाय हों.

अपने अपने तर्क

ए आर रहमान से लेकर रजनीकांत तक जल्लीकट्टू के सपोर्ट में हैं. ऐक्टर धनुष तो पेटा से इतने खफा हैं कि उससे मिले पुरस्कार को ही अब अपमान बता रहे हैं. धनुष को पेटा ने कुछ साल पहले शाकाहारी होने के लिए सम्मानित किया था.

तमिलनाडु से आने वाले केंद्रीय मंत्री पी राधाकृष्णन भी पेटा से खासे खफा हैं. उन्होंने तो यहां तक कहा है कि सरकार को पेटा पर नजर रखनी चाहिए क्योंकि 'वो हमारी पारंपरिक चीजों में गैर-जरूरी दखल देने की कोशिश कर रहे हैं.'

सद्गुरु जग्गी वासुदेव जल्लीकट्टू के सपोर्ट में खड़े हैं. जग्गी वासुदेव इसे सांड़ों की लड़ाई नहीं मानते, 'ये तो उन्हें गले लगाने जैसा है. आप देख सकते हैं कि वे भी इस खेल को प्यार करते हैं और इसमें उन्हें मजा आता है.'

लेकिन जल्लीकट्टू का विरोध कर रहे पेटा यानी पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स अपनी बातों के साथ खड़ा है. पेटा इंडिया की सीईओ पूर्वा जोशीपुरा मानती हैं कि इसमें सांड़ों को इतना डराया जाता है कि वो भागने लगें. उनका यहां तक कहना है कि उन्हें तेज भगाने के लिए उनकी आंखों में मिर्च और तंबाकू तक डाल दिया जाता है.

विरोध और सियासत

खेल के मैदान में नो एंट्री के बाद से ही जल्लीकट्टू का सांड़ इधर उधर भटक रहा था - और अब ये सियासी मैदान में कूद पड़ा है. बवाल इतना आगे बढ़ चुका है कि अब सत्ताधारी एआईएडीएमके और डीएमके के साथ साथ केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी भी क्रेडिट लेने की होड़ में शामिल हो गई है.

चुनाव में हार के बाद से ही डीएमके के पास लोगों से जुड़ने के लिए कोई मुद्दा नहीं मिल रहा था. अव्वल तो उसे ऐसा मसला चाहिए जिस पर वो राज्य सरकार को घेर सके लेकिन अब तक उसे कोई मौका नहीं मिल पाया.

लोगों से जुड़ाव जताने के मकसद से इस वक्त डीएमके नेता काफी एक्टिव नजर आ रहे हैं. डीएमके की ओर से तो रेल रोको आंदोलन भी चलाया गया जिसके कारण उसके नेता एमके स्टालिन को कुछ घंटे हिरासत में भी बिताने पड़े.

जल्लीकट्टू पर अगर सबकुछ लोगों के मन मुताबिक हुआ तो डीएमके की कोशिश होगी कि वो खुद इसका क्रेडिट ले. डीएमके नेता लोगों को यही समझाएंगे कि उनके दबाव के चलते ही एआईएडीएमके सरकार और केंद्र सरकार हरकत में आए.

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तमिलनाडु सरकार की मजबूरी है कि वो बगैर केंद्र की मदद मिले कोई उपाय नहीं कर सकती - और केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी भी नहीं चाहेगी कि पूरा श्रेय एआईएडीएमके और उसकी सरकार को मिल जाए.

अब तक केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के नाम पर मामला टाल देती रही - लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अपील कर अब मोदी सरकार ने भी संकेत देने की कोशिश की है कि उसे भी जनभावनाओं का ख्याल है.

पल घटती घटनाओं के बीच असली अग्नि परीक्षा सीएम पनीरसेल्वम की है. अगर वो तमिलनाडु के लोगों के मनमाफिक हल निकालते हैं तो निश्चित रूप से लोगों का उनके प्रति विश्वास बढ़ेगा. लोग समझेंगे कि जो जयललिता उनके लिए चाहती थीं, पनीरसेल्वम भी उनके बारे में वैसा ही ख्याल रखते हैं - और जन समर्थन पार्टी में भी उनकी हैसियत मजबूत करेगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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